28-12-2023 (Important News Clippings)
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समय के अनुरूप सराहनीय पहल
सीबीपी श्रीवास्तव, ( लेखक सेंटर फार अप्लायड रिसर्च इन गवर्नेंस के अध्यक्ष हैं )
लोकतांत्रिक राष्ट्रों में विधि के शासन के तहत यह देखा जाता है कि एक ओर जहां किसी निर्दोष व्यक्ति को सजा नहीं हो तो दूसरी ओर कोई अपराधी न्याय तंत्र से बचकर निकलने में सफल न हो पाए। ऐसे राष्ट्रों के आपराधिक कानूनों का उद्देश्य यही होता है। इसी प्रणाली या तंत्र को आपराधिक न्याय तंत्र कहते हैं। भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली तीन मुख्य घटकों से बनी है-पुलिस, न्यायपालिका और सुधारात्मक प्रणाली। पुलिस जांच करने, अपराधियों को पकड़ने और कानून लागू करने के लिए जिम्मेदार है। न्यायपालिका यह सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी है कि मुकदमे निष्पक्ष रूप से चलें और न्याय मिले। सुधारात्मक प्रणाली अपराधियों के पुनर्वास और उन्हें भविष्य में अपराध करने से रोकने के लिए जिम्मेदार है।
आपराधिक न्याय प्रणाली का प्राथमिक उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्याय मिले। यह अभियुक्तों के अधिकारों की रक्षा करने और पीड़ितों को न्याय प्रदान करने के लिए भी जिम्मेदार है। आपराधिक न्याय प्रणाली अपराध निवारक के रूप में भी कार्य करती है, क्योंकि अपराधियों को उनके आपराधिक कार्यों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। इसके अलावा आपराधिक न्याय प्रणाली जनता को सुरक्षा की भावना प्रदान करती है, क्योंकि इससे तय होता है कि अपराधियों को उनके किए की सजा मिलेगी। इस पूरी प्रक्रिया की कार्यकुशलता अपराध विधि की प्रभाविता और उसके क्रियान्वयन की कार्यकुशलता पर निर्भर है। इसी पृष्ठभूमि में भारत में औपनिवेशिक शासन के दौरान बनी अपराध विधियों को प्रतिस्थापित किया जा रहा है। देखना यह है कि ये नए कानून इस तंत्र के उद्देश्यों को प्राप्त कर पाने में कितने सफल होंगे? नए कानूनों में भारतीय न्याय संहिता पूर्ववर्ती भारतीय दंड संहिता का स्थान लेगी। इसमें सामुदायिक सेवा को सजा के रूप में जोड़ा गया है। इसके तहत राजद्रोह अब अपराध नहीं है, बल्कि भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों के लिए एक नया अपराध है। भारतीय न्याय संहिता में आतंकवाद को एक ऐसे आपराधिक कृत्य के रूप में परिभाषित किया गया है, जिस कृत्य का उद्देश्य देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालना, आम जनता को डराना या लोक व्यवस्था को बिगाड़ना है। एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि संगठित अपराध को अपराध के रूप में जोड़ा गया है। इसमें अपराध सिंडिकेट की ओर से किए गए अपहरण, जबरन वसूली और साइबर अपराध जैसे अपराध शामिल हैं। जाति, भाषा या व्यक्तिगत विश्वास जैसे कुछ पहचान चिह्नों के आधार पर पांच या अधिक व्यक्तियों के समूह द्वारा हत्या सात साल से लेकर आजीवन कारावास या मौत तक की सजा के साथ एक अपराध होगा।
एक उल्लेखनीय परिवर्तन इस रूप में है कि भारतीय न्याय संहिता ने आइपीसी में उल्लिखित दुष्कर्म, ताक-झांक, पीछा करना और महिला की गरिमा का अपमान करने जैसे कृत्यों को उसी रूप में अपराध माना है। हालांकि इस संहिता ने विशेषकर सामूहिक दुष्कर्म के मामले में पीड़िता को वयस्क के रूप में वर्गीकृत करने की सीमा को 16 से बढ़ाकर 18 वर्ष कर दिया है। इसमें किसी महिला के साथ धोखे से या झूठे वादे करके यौन संबंध बनाने को भी अपराध माना गया है। यह समय की मांग थी। भारतीय न्याय संहिता में बच्चों के खिलाफ अपराध के मामले में कड़े दंड का प्रविधान है। ज्यादातर मामलों में, इसमें व्यवस्था है कि 18 वर्ष से कम उम्र के पीड़ित के साथ बच्चे जैसा व्यवहार किया जाएगा। बच्चों के खिलाफ कुछ अपराधों के लिए पीड़ित की आयु सीमा 18 वर्ष नहीं है। उदाहरण के लिए, माता-पिता से चोरी करने के इरादे से बच्चे का अपहरण या अपहरण केवल 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चे पर लागू होता है। इसका तात्पर्य यह है कि 11 साल के बच्चे के अपहरण की सजा एक वयस्क के अपहरण के समान ही है। इसके अलावा किसी विदेशी महिला को दूसरे देश से अवैध तरीके से लाने के अपराध के लिए आइपीसी की 21 वर्ष की आयु बरकरार रखी है। हालांकि लड़कों के लिए इसमें 18 वर्ष की आयु सीमा जोड़ी गई है। गृह मामलों की स्थायी समिति ने बच्चे को 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के रूप में परिभाषित करने की सिफारिश की है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 जो क्रमशः आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की जगह लेंगे, इन अपराधों के लिए एक अलग आपराधिक प्रक्रिया प्रदान नहीं करते। संगठित अपराध और आतंकवाद पर विशेष कानूनों में सामान्य आपराधिक प्रक्रिया से कई भिन्नताएं हैं। वे अभियुक्तों के लिए कुछ सुरक्षा उपाय हटा देते हैं, जैसे जमानत की शर्तें और पुलिस में इकबालिया बयान की स्वीकार्यता। गैर-कानूनी गतिविधियां रोक-थाम अधिनियम, 1967 के तहत मामलों की सुनवाई राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008 के तहत की जाती है, जो ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें स्थापित करती है। नए कानून के तहत आतंकवाद के मामलों की सुनवाई सत्र न्यायालयों में की जाएगी। इसके परिणामस्वरूप समान अपराधों के लिए अलग-अलग जांच और परीक्षण प्रक्रियाएं होंगी।
कुल मिलाकर सबसे बड़ा परिवर्तन इस रूप में है कि नए कानूनों में औपनिवेशिक दृष्टिकोण के बदले लोकतांत्रिक दृष्टिकोण अपनाया गया है। दूसरे शब्दों में तीन नए कानूनों का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं है, बल्कि दंडात्मक न्याय देकर समाज में सुधार लाना भी है। दंड की कठोरता में वृद्धि समाज में एक सुदृढ़ निवारण का कार्य करती है और अपराधों को कम करने में इससे सहायता मिलती है। हाल के वर्षों में जिस प्रकार के नए अपराध उभरे हैं, उनको देखते हुए विधियों में किया गया परिवर्तन सराहनीय कहा जाएगा। विशेषकर उन अपराधों में जैसे-हेट स्पीच यानी नफरती भाषण, हिंसक भीड़ द्वारा हत्या आदि। ऐसे मामलों में आवश्यक कानूनों का अभाव था, जिससे अपराधियों को बल मिल रहा था। नए कानूनों के प्रभावी होने के बाद यह आशा की जा सकती है कि इनसे स्थितियां बेहतर होंगी। अपराध पर रोक लगाने में आसानी होगी। ऐसी स्थिति में नए कानूनों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखा जाना चाहिए और भविष्य में आवश्यकतानुसार उनमें समय रहते संशोधन भी किए जाने चाहिए।
Date:28-12-23
भारत की कार्रवाई उचित
संपादकीय
भारत ने अपने वाणिज्यिक पोतों को यमन के हूती आतंकवादियों के हमले से बचाने में पीछे न छूटते’ हुए अपने चार विध्वसंक युद्धपोत तैनात कर दिए हैं। ये युद्धपोत अरब सागर के लगभग 38 हजार वर्ग किमी. लंबे जल क्षेत्र में निगरानी करेंगे। इसमें हूती आतंकवादियों के कब्जे वाला अदन की खाड़ी का इलाका भी शामिल है। यह तैनाती पहले भेजे गए एक बड़े रडार से लैस एयरक्राफ्ट के अलावा है । ये चारों युद्धपोत यमन में अदन की खाड़ी से रोजाना गुजरने वाले अपने जहाजों की वास्तविक समय निगरानी और चौकसी करेंगे। इनकी कमान के अधीन ही भारतीय कमर्शियल टैंकरों को सुरक्षित आवाजाही कराई जाएगी। जाहिर है कि अरब सागर में तैनात होने वाले युद्धपोत हूती आतंकियों को ‘समुद्र की अतल गहराई से खोज निकालने वाले’ हैं। इसका रक्षा मंत्री द्वारा किया गया दावा बड़बोलापन नहीं, वास्तविकता है। भारत की तरफ से यह कार्रवाई उसके एवं अंतरराष्ट्रीय हितों तथा जिम्मेदारियों को देखते हुए आवश्यक थी। उसका यह कदम लाल सागर की छाती पर सैन्य शक्ति जमावड़े में शामिल होना नहीं है, जो इस्राइल के पक्ष में लामबंदी बताती हो। यह अलग बात है कि वहां सुरक्षा कारणों से पहले से मौजूद अमेरिका, फ्रांस, जापान एवं यूरोप के अन्य देशों के युद्धपोत तैनात हैं, जहां उसकी भी उपस्थिति मानी जा सकती है। लेकिन भारत की स्थिति भिन्न है। एक तो यह कि भारत का 90 फीसद कारोबार और 80 फीसद तेल तथा गैस समुद्र के रास्ते ही आता है। इनमें से बड़ा हिस्सा केवल पश्चिम एशिया से ही आता है। दूसरे, भारत भी समुद्र में जहाजों की आवाजाही सुनिश्चित करने की अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी से बंधा हुआ है । हूती आतंकी अब तक करीब 100 ड्रोन और मिसाइल हमले कर चुके हैं, जिनसे करीब 10 जहाजों को नुकसान पहुंचा है। इनमें भारत के झंडे लगे दो जहाज भी हैं। हूतियों के इस हमले के पीछे इस्राइल-हमास संघर्ष भी है। उसका दावा है कि इस्राइल युद्ध विराम नहीं करेगा, वे लाल सागर में जहाजों पर हमले जारी रखेंगे। समुद्री यातायात को ठप करते रहेंगे। अब चूंकि इस्राइल है तो अमेरिका भी है और उसके शत्रु देश की भी अपनी चाल हो सकती है। पर भारत अपनी स्थिति बेहतर समझता है । इस बीच, भारत के प्रधानमंत्री का सऊदी अरब के प्रिंस से फोन पर बातचीत का सकारात्मक मायने है । वह यह कि भारत के लिए सुरक्षा एक वरीय प्राथमिकता है पर वह उन गतिविधियों को आजमाने में विश्वास करता है, जो मसले के स्थायी हल तक ले जाती हैं।
पर्यटकों को लुभाने की होड़ में कहीं पिछड़ न जाए भारत
राहुल जैकब, ( आर्थिक शोधकर्ता व वरिष्ठ पत्रकार )
आजकल जगह-जगह पर्यटकों की बहार है। सुर्खियों से दूर विकासशील देशों के बीच पर्यटकों को लुभाने के लिए जंग छिड़ गई है। वर्ष के अंत में छुट्टियों का समय शुरू होते ही देश एक-दूजे के नागरिकों को अस्थायी रूप से मानो बंधक बना लेने की कोशिश में जुट गए हैं। अक्तूबर से थाईलैंड, मलेशिया और श्रीलंका जैसे देशों में भारतीयों के लिए वीजा-मुक्त यात्रा मंजूर की गई है। वन्य जीवन के लिए प्रसिद्ध केन्या, 2024 से दुनिया भर के लोगों को वीजा-मुक्त प्रवेश देगा।
अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए दरवाजे खोलने की एक वजह यह भी है कि महामारी के बाद बहुत प्रयास व प्रचार के बावजूद अंतरराष्ट्रीय पर्यटन क्षेत्र में पहले जैसी स्थिति नहीं लौटी है। एशिया के सबसे लोकप्रिय पर्यटन केंद्र थाईलैंड में 2019 में 3.90 करोड़ पर्यटक आए थे, जबकि इस वर्ष लगभग 2.80 करोड़ पर्यटक आने वाले हैं। महामारी से पहले बाली में सालाना 63 लाख विदेशी पर्यटक आते थे। नवंबर 2022 और इस साल अक्तूबर के बीच बाली में महज 50 लाख मेहमान पहुंचे। 2019 में वियतनाम में 1.80 करोड़ पर्यटक आए, जबकि बहुत रियायत के बावजूद जनवरी से अक्तूबर तक वहां केवल एक करोड़ मेहमान पहुंचे हैं।
दुनिया भर में विकासशील सरकारें महसूस कर रही हैं कि पर्यटन कम लागत वाला निवेश है, जो अलग-अलग कौशल वाले लोगों को काम देता है। फिर भी विरोधाभास है कि भारत सहित कई देशों में पर्यटन अभी भी सौतेला विषय है।
ध्यान रहे, विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की 2022 की रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों को पर्यटन से बहुत लाभ होता है। इन देशों में पर्यटन से जुड़े ऐसे उद्यम या भवन होते हैं, जो घरेलू व विदेशी पर्यटकों से खूब पैसे वसूलते हैं। मिसाल के लिए, इस सप्ताह के अंत में उदयपुर में एक लेक पैलेस में झील की ओर खुलने वाली खिड़कियों वाले कमरों के लिए 1,23,500 रुपये से 3,60,000 रुपये तक वसूले जा रहे हैं। यह शुल्क उचित है या नहीं, इस पर विचार करते समय यह भी देख लीजिए, लेक पैलेस की वेबसाइट लाल अक्षरों में बताती है,कुछ ही कमरे अब शेष हैं।
यह विडंबना है कि अमीर देश ही हैं, जो यात्रा और पर्यटन विकास सूचकांक (टीटीडीआई) में शीर्ष पर हैं। इन देशों में यात्रा के लिए बेहतर बुनियादी ढांचा है। इस सूचकांक या रैंकिंग में जापान पहले स्थान पर है और अमेरिका दूसरे स्थान पर। ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर क्रमश: सातवें और नौवें स्थान पर हैं। स्पेन तीसरे, फ्रांस चौथे, जर्मनी पांचवें, स्विट्जरलैंड छठे और ब्रिटेन आठवें स्थान पर है। देखिए कि जापान की यात्रा के लिए वीजा पाना कितना आसान है। 20 साल से भी पहले, मुझे जापानी वीजा प्रक्रिया की याद आती है, जिसमें महज एक घोषणापत्र जमा करना जरूरी था कि मेरे नियोक्ता के पास मेरी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त धन है और यदि निर्वासित करना जरूरी हुआ, तो मेरे पास यात्रा लागत भी है। अमेरिका हो या ब्रिटेन, पर्यटकों की बात आती है, तो लगभग हर देश अधिक से अधिक सुविधा देना चाहता है। ऐसे में, हम क्या कर रहे हैं, जबकि थाई टूरिज्म ने भारतीय पर्यटकों को लुभाने के लिए हमारे अनेक शहरों में रोड शो किए हैं। खैर, इस वर्ष के पहले 10 महीनों में भारत में पर्यटकों की संख्या 72 लाख हो गई, पर यह क्षमता से काफी कम है। स्पेन में तो साल की पहली छमाही में ही 37.50 करोड़ विदेशी पर्यटक गए हैं।
अभी हमारे यहां ज्यादातर भारतीय प्रवासी ही अपने परिवार से मिलने आ रहे हैं, इनकी भी संख्या कम है। इस मोर्चे पर कोई योजना नहीं दिखती है। बेशक, पर्यटन वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 10 प्रतिशत हिस्सा बन सकता है और हस्तशिल्प से लेकर हाउसकीपिंग तक सेवा क्षेत्र में लाखों नौकरियां दे सकता है, पर इस क्षेत्र की उपेक्षा हो रही है। गौर करने की बात है, भारत में लाखों ऐसे लोग हैं, जिन्हें कम कौशल वाली नौकरियों की जरूरत है। ऐसे में, भारत को पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए चल रही वैश्विक प्रतिस्पद्र्धा में अगली पंक्ति में होना चाहिए।