27-09-2023 (Important News Clippings)
To Download Click Here.
भारत में सेहत को लेकर यह अज्ञानता घातक है
संपादकीय
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने हाल ही में भारत को लेकर अपनी एक रिपोर्ट जारी की है। इसमें कहा गया है कि अगर हाइपरटेंशन के प्रति लोग जागरूक हो जाएं तो सन् 2024 तक 46 लाख जानें बचाई जा सकती हैं। हाइपरटेंशन की परिणति हाई बीपी और उससे जुड़ी दिल, किडनी और अन्य जानलेवा बीमारियों में होती है। इसकी विभीषिका के प्रति लापरवाही के आंकड़े देते हुए संगठन ने कहा कि आज भारत में 18.83 करोड़ लोग हाइपरटेंशन के साथ जी रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें आधे से ज्यादा (63% ) यह भी नहीं जानते कि वे इसके शिकार हैं और जो 37% जान भी जाते हैं, उनमें हर तीन में केवल एक ही चिकित्सकीय राय और दवा लेते हैं। दवा लेने वालों में भी केवल आधे ही बीपी काबू रख पाते हैं। नतीजतन देश में हृदय रोग से मृत्यु के मामलों में आधे से ज्यादा के पीछे अनियंत्रित बीपी होता है। उच्च आय वाले देशों में लोग और सरकारें इस महामारी जैसे फैलती समस्या पर काफी चैतन्य हैं, जबकि भारत जैसे कम आय वाले देशों में न तो सरकार इसके प्रति अपेक्षित जागरूकता पैदा कर रही है न ही इलाज की समुचित व्यवस्था है। लोगों में इसके प्रति उदासीनता का एक सबसे बड़ा कारण है हाइपरटेंशन का अपना कोई स्पष्ट लक्षण न होना। आदतन लोग समय-समय पर अपना बीपी चेक कराने की जहमत नहीं पालते । लम्बे समय तक अनियंत्रित बीपी से दिल और किडनी की बीमारी होती है, क्योंकि दोनों अंगों को अधिक काम करना पड़ता है। डॉक्टरों के अनुसार इसकी रोकथाम के लिए भारतीयों को अपने खाने में नमक की मात्रा कम से कम एक चौथाई करनी पड़ेगी। संगठन और अन्य संस्थाओं की अनुशंसा प्रति दिन 2-4 ग्राम नमक की है, जबकि भारतीय खाने में यह 8-12 ग्राम होता है। इस पर विचार करना होगा।
Date:27-09-23
‘पर्यावरण के अनुकूल’ विकास अवधारणा का अंत!
मिहिर एस शर्मा
क्या हम पीछे मुड़कर वर्ष 2020 से 2023 तक के वर्षों को ‘पर्यावरण के अनुकूल वृद्धि’ पर सहमति के लिहाज से अहम वर्षों के रूप में देखेंगे? तीन वर्ष पहले महामारी आने के बाद दुनिया के समान सोच वाले नेताओं ने आर्थिक स्थिति में सुधार और पैकेज के लिए अपने खजाने से असाधारण धन राशि निकाली थी जो काफी हद तक हरित सुधार की दिशा में थी। इस विषय में दुनिया के अधिकांश हिस्सों में सहमति नजर आई कि जलवायु परिवर्तन दुनिया के अस्तित्व से जुड़ा एक अहम मसला है। यह भी कि भविष्य की वृद्धि को पहले की तुलना में कम कार्बन आधारित होना चाहिए और सरकारों को इस दिशा में प्रयास करना चाहिए बल्कि करना ही होगा कि हरित वृद्धि जल्द से जल्द नजर आए।
इस सहमति को एक या दो भाग्यशाली घटनाओं का सहयोग भी मिला। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डॉनल्ड ट्रंप की हार शायद सबसे महत्त्वपूर्ण घटना थी। डेमोक्रेट कम से कम सैद्धांतिक तौर पर ही सही, जलवायु परिवर्तन संबंधी कदमों को लेकर प्रतिबद्ध थे जबकि ट्रंप इसे नकारते थे। वह 2012 में कह चुके थे कि जलवायु परिवर्तन चीन की देन है ताकि अमेरिकी विनिर्माण को गैर प्रतिस्पर्धी बनाया जा सके। जब जो बाइडन ने पद संभाला तो उनकी पार्टी के प्रगतिशील लोगों ने पाया कि वे हरित तत्त्व वाली औद्योगिक नीति की फाइनैंसिंग को लेकर सहमति पर पहुंच सकते हैं। बाइडन ऐसी किसी भी नीति से सहमत थे जो उन्हें यह दावा करने दे कि वह रस्ट बेल्ट में नई फैक्टरियां ला रहे हैं। रस्ट बेल्ट अमेरिका वह इलाका है जो औद्योगिक पराभव झेल चुका है। इस तरह इन्फ्लेशन रिडक्शन ऐक्ट (आईआरए) का जन्म हुआ जिसमें स्वच्छ ऊर्जा के लिए 370 अरब डॉलर का प्रावधान था।
इस बीच चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने कहा कि चीन की अर्थव्यवस्था अगर नए और कम कार्बन गहन क्षेत्रों को तेजी से और पूरी तरह अपनाती है तो वह पश्चिम को पीछे छोड़ सकती है। यही वजह है कि उन्होंने बैटरी और भंडारण तथा इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्रों के लिए समर्थन बढ़ाया और 2020 में यह घोषणा भी की कि चीन का कार्बन उत्सर्जन 2030 तक अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच जाएगा। चीन की अर्थव्यवस्था ने शी की इच्छा पूरी करने का प्रयास भी किया। ब्लूमबर्ग के अनुसार 2023 में चीन दुनिया के कुल कम कार्बन व्यय के करीब आधे के लिए जवाबदेह है। उसने नवीकरणीय ऊर्जा बैटरी और ईवी में 50,000 करोड़ डॉलर से अधिक का निवेश किया। यूरोपीय संघ ने आने वाले दशक में हरित निवेश के लिए पहले से विवादित 1.2 लाख करोड़ डॉलर के माध्यम से महामारी को लेकर प्रतिक्रिया देने का निश्चय किया। इसमें से आधी राशि आयोग के निजी वित्त से और दसवां हिस्सा विभिन्न सदस्य राष्ट्रों के राष्ट्रीय बजट में से आएगा। कर राजस्व अन्य उपायों के अलावा आयातित वस्तुओं पर एक नए कार्बन टैरिफ से जुटाया जाएगा।
भारत समेत विकासशील देशों ने भी कठिन सुधारों की दिशा अपनाई है। दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया और वियतनाम ने जटिल और राजनीतिक रूप से संवेदनशील ऊर्जा क्षेत्र में बाहरी आर्थिक मदद लाने का प्रयास किया। भारत ने 2070 तक कार्बन निरपेक्ष होने की बात कही लेकिन इसके अलावा उसने खामोशी से यह स्वीकार कर लिया कि वह नए कोयला संचालित ताप बिजली घर की योजना नहीं बनाएगा। सरकार ने सार्वजनिक रूप से कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 2030 तक तीन गुनी की जाएगी। इस बीच निजी क्षेत्र में उन परियोजनाओं के लिए धन जुटाया गया जो पर्यावरण, समाज और शासन के मोर्चे पर बेहतर थीं। कंपनियों ने अपने यहां विशुद्ध शून्य उत्सर्जन की योजना विकसित की। सचेत निवेशकों ने वित्तीय संस्थानों को कहा कि उत्सर्जन वाले क्षेत्रों से दूरी बनाएं।
2023 समाप्ति की ओर बढ़ रहा है और इस सहमति के भंग होने की चिंता उत्पन्न हो रही है। इस प्रगति का बड़ा हिस्सा काल्पनिक भी साबित हो सकता है। अमेरिका इसकी सबसे कमजोर कड़ी है। दिक्कत वहां की उथलपुथल भरी राजनीति में ही नहीं है बल्कि इस बात की भी संभावना है कि ट्रंप या जलवायु परिवर्तन पर शंका करने वाला कोई अन्य रिपब्लिकन नेता 2025 में चुनाव जीत जाए और बाइडन के कदमों को पलट दे। विवेक रामास्वामी के रूप में एक रिपब्लिकन नेता कह चुके हैं कि फाइनैंस में पर्यावरण, समाज और शासन आदि पर ध्यान देना अपने आप में एक समस्या है। इसे पारित करने के लिए जो समझौते करने पड़े हैं उन्होंने वास्तविक जलवायु घटक को काफी कमजोर कर दिया है। अमेरिका में कार्बन पर कोई कर नहीं है और भविष्य में उत्सर्जन कम करने को लेकर उसकी राह इस बात पर निर्भर है तकनीकी हल बढ़ाने में कितना निवेश किया जाता है। इस बीच यूरोप में क्रियान्वयन की दिक्कतें हैं। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद जर्मनी ने कोयला खदानें दोबारा शुरू कर दी हैं और उत्सर्जन कम करने के बजाय बढ़ाना आरंभ कर दिया है। यूरोपीय आयोग ने चीन में निर्मित इलेक्ट्रिक वाहनों की जांच शुरू कर दी है। यूरोप को कार्बनीकरण कम करने के लिए सस्ते इलेक्ट्रिक वाहनों की आवश्यकता है।
यूनाइटेड किंगडम जो पहले पर्यावरण बचाव की होड़ का अगुआ रहा है उसने भी सत्ताधरी कंजरवेटिव पार्टी के लंदन के एक उपनगरीय इलाके में हुए उपचुनाव में बारीक अंतर से जीत के बाद अपनी राह बदल ली है। वहां के रहवासी इस बात को लेकर नाराज थे कि पुरानी कारों पर शुल्क लगाया जा रहा था। लेबर पार्टी को महज 500 वोट से पराजय का सामना करना पड़ा। प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने कहा कि वह उपभोक्ताओं पर बोझ डालने वाले अनेक प्रावधान लागू नहीं करने वाले। चीन ने भी शायद नई हरित परियोजनाओं में अपना निवेश रद्द न किया हो लेकिन भूराजनीतिक स्थितियों और 2022 में बिजली की कटौती की घटनाओं ने उसे कोयला आधारित संयंत्रों से दूरी बनाने के कदम पर पुनर्विचार के लिए प्रेरित किया है। अब वह हर सप्ताह दो ऐसी परियोजनाओं को मंजूरी दे रहा है।
लब्बोलुआब यह कि 2020-2023 के बीच जो आशावाद था वह गलत धारणाओं पर आधारित था। सरकारों को यह अवसर मिला था कि वे पैसे खर्च करें और उन्होंने ऐसा किया। इसमे चकित करने जैसा कुछ नहीं। परंतु ज्यादातर राजनेताओं ने ऐसा हरित अर्थव्यवस्था के लिए नहीं किया। उनकी प्रेरणा अलग थी। उन्होंने वृद्धि के मामले में बढ़त हासिल करने, आर्थिक सुरक्षा और औद्योगीकरण को नए सिरे से वित्तीय सहायता मुहैया कराने और क्षेत्रीय और हितवादी समूहों के लिए ऐसा किया जो वैश्वीकरण के दो दशकों में नहीं हुआ था। पर्यावरण को लेकर बनी सहमति खोखली थी। विभिन्न देशों को केवल वृद्धि और रोजगार की परवाह थी।
ऐ भारतीय युवक, उठ आंखें खोल
भगत सिंह, ( क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी )
युवावस्था मानव जीवन का वसंत काल है। उसे पाकर मनुष्य मतवाला हो जाता है। विधाता की दी हुई सारी शक्तियां सहस्त्र-धारा होकर फूट पड़ती हैं। मदांध मातंग की तरह निरंकुश, वर्षाकालीन शोणभद्र की तरह दुर्द्धर्ष, प्रलयकालीन प्रबल प्रभंजन की तरह प्रचंड, नवागत वसंत की प्रथम मल्लिका कलिका की तरह कोमल, ज्वालामुखी की तरह उच्छृंखल और भैरवी संगीत की तरह मधुर युवावस्था है। उज्ज्वल प्रभात की शोभा, स्निग्ध संध्या की छटा, शरच्चंद्रिका की माधुरी ग्रीष्म-मध्याह्न का उत्ताप और भाद्र्रपदी अमावस्या की अर्द्धरात्रि की भीषणता युवावस्था में सन्निहित है। जैसे क्रांतिकारी की जेब में बमगोला, रण-रस-रसिक वीर के हाथ में खड्ग, वैसे ही मनुष्य की देह में युवावस्था। 16 से 25 वर्ष तक हाड़-चाम के संदूक में संसार भर के हाहाकारों को समेटकर विधाता बंद कर देता है। दस बरस तक यह झांझरी नैया मंझधार तूफान में डगमगाती रहती है।
युवावस्था देखने में तो शस्य श्यामला वसुंधरा से भी सुंदर है, पर इसके अंदर भूकंप-सी भयंकरता भरी है। इसीलिए युवावस्था में मनुष्य के लिए केवल दो ही मार्ग हैं, वह चढ़ सकता है उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर, वह गिर सकता है अध:पात के अंधेरे खंदक में। चाहे तो त्यागी हो सकता है युवक, चाहे तो विलासी बन सकता है युवक। वह देवता बन सकता है, तो पिशाच भी बन सकता है। वही संसार को त्रस्त कर सकता है, और वही संसार को अभयदान दे सकता है। संसार में युवक का ही साम्राज्य है।
युवक के कीर्तिमान से संसार का इतिहास भरा पड़ा है। युवक ही रणचंडी के ललाट की रेखा है। युवक स्वदेश की यश-दुंदुभि का तुमुल निनाद है। युवक ही स्वदेश की विजय-वैजयंती का सुदृढ़ी दंड है। वह महासागर की उत्ताल तरंगों के समान उद्दंड है। वह महाभारत के भीष्म-पर्व की पहली ललकार के समान विकराल है, प्रथम मिलन के स्फीत चुंबन की तरह सरस है, रावण के अहंकार की तरह निर्भीक है…। अगर किसी विशाल हृदय की आवश्यकता हो, तो युवकों के हृदय टटोलो। अगर किसी आत्मत्यागी वीर की चाह हो, तो युवकों से मांगो। रसिकता उसी के हिस्से पड़ी है। भावुकता पर उसी का सिक्का है। वह छंद शास्त्र से अनभिज्ञ होने पर भी प्रतिभाशाली कवि है। कवि भी उसी के हृदयारविंद का मधुप है। वह रसों की परिभाषा नहीं जानता, पर कविता का सच्चा मर्मज्ञ है। सृष्टि की एक विषम समस्या है युवक। ईश्वरीय रचना-कौशल का एक उत्कृष्ट नमूना है युवक। संध्या समय वह नदी के तट पर घंटों बैठा रहता है। क्षितिज की ओर बढ़ते जाने वाले रक्त-रश्मि सूर्यदेव को आकृष्ट नेत्रों से देखता रह जाता है। उस पार से आती हुई संगीत-लहरी के मंद प्रवाह में तल्लीन हो जाता है। विचित्र है उसका जीवन। अद्भुत है उसका साहस। अमोध है उसका उत्साह।
वह निश्चिंत है, असावधान है। लगन लग गई, तो रात भर जागना उसके बाएं हाथ का खेल है, जेठ की दुपहरी उसके लिए चैत की चांदनी है, सावन-भादो की झड़ी मंगलोत्सव की पुष्पवृष्टि है, श्मशान की निस्तब्धता, उद्यान का विहग-कल-कूजन है। वह इच्छा करे, तो समाज और जाति को जगा दे, देश की लाली रख ले, राष्ट्र का मुख उज्ज्वल कर दे, बड़े-बड़े साम्राज्य उलट डाले। पतितों के उत्थान और संसार के उद्धारक सूत्र उसी के हाथों में हैं। वह इस विशाल विश्व-रंगस्थल का सिद्धहस्त खिलाड़ी है।
अगर रक्त की भेंट चाहिए, तो सिवा युवकों के कौन देगा? अगर तुम बलिदान चाहते हो, तो तुम्हें युवकों की ओर ही देखना पड़ेगा। प्रत्येक जाति के भाग्य-विधाता युवक ही तो होते हैं। एक पाश्चात्य पंडित ने ठीक कहा है कि आज के युवक ही कल देश के भाग्य-निर्माता हैं। वे ही भविष्य के सफलता के बीज हैं। संसार के इतिहास के पन्ने खोलकर देख लो, युवक के रक्त से लिखे हुए अमर संदेश भरे पड़े हैं। संसार की क्रांतियों और परिवर्तनों के वर्णन छांट डालो, उनमें केवल ऐसे युवक ही मिलेंगे, जिन्हें बुद्धिमानों ने ‘पागल छोकरे’ अथवा ‘पथ-भ्रष्ट’ कहा है…। सच्चा युवक तो बिना झिझक मृत्यु का आलिंगन करता है, चोखी संगीनों के सामने छाती खोलकर डट जाता है, तोप के मुंह के आगे बैठकर भी मुस्कराता ही रहता है, बेड़ियों की झनकार पर राष्ट्रीय गान गाता है और फांसी के तख्ते पर अट्टाहासपूर्वक आरूढ़ हो जाता है। फांसी के दिन युवक का ही वजन बढ़ता है, जेल की चक्की पर युवक ही मुक्ति-मंत्र गाता है, काल कोठरी के अंधकार में धंसकर वह स्वदेश को अंधकार के बीच से उबारता है। अमेरिका के युवक-दल के नेता पैट्रिक हेनरी ने अपनी ओजस्विनी वक्तृता में एक बार कहा था कि जेल की दीवारों से बाहर की जिंदगी बड़ी महंगी है, मगर जेल की काल कोठरियों की जिंदगी और भी महंगी है; क्योंकि वहां यह स्वतंत्रता-संग्राम के मूल्य-रूप में चुकाई जाती है। वही ऐसा सजीव नेता है, तभी तो अमेरिका के युवकों में यह ज्वलंत घोषणा करने का साहस भी है कि जन्मसिद्ध अधिकारों को पद-दलित करने वाली सत्ता का विनाश करना मनुष्य का कर्तव्य है।
ऐ भारतीय युवक! तू क्यों गफलत की नींद में पड़ा बेखबर सो रहा है। उठ, आंखें खोल। देख, प्राची-दिशा का ललाट सिंदूर-रंजित हो उठा। अब अधिक मत सो। सोना हो, तो अनंत निद्र्रा की गोद में जाकर सो रह। कायरता के कोने में क्यों सोता है? माया-मोह-ममता त्यागकर गरज। उठ, तेरी माता, तेरी प्रात: स्मरणीया, तेरी परम वंदनीया, तेरी जगदंबा, तेरी अन्नपूर्णा, तेरी त्रिशूलधारिणी, तेरी सिंहवाहिनी, तेरी शस्य श्यामलांचला आज फूट-फूटकर रो रही है। क्या उसकी विकलता तुझे तनिक भी चंचल नहीं करती? धिक्कार है तेरी निर्जीवता पर! …यदि अब भी तेरे किसी अंग में थोड़ी हया बाकी हो, तो उठकर अपनी माता के दूध की लाज रख, उसके उद्धार का बीड़ा उठा, उसके आंसुओं की एक-एक बूंद की सौगंध ले, उसका बेड़ा पार कर और बोल अपने मुक्त कंठ से- वन्दे मातरम्।
(भगत सिंह का यह लेख बलवंत सिंह के छद्म नाम से मतवाला में 1925 में प्रकाशित हुआ था। बाद में यह पुस्तक भंडार द्वारा प्रकाशित युवक-साहित्य में संगृहीत हुआ। ख्यात संपादक शिवपूजन सहाय ने इस लेख को सजाया-संवारा था।)
Date:27-09-23
पैगंबर का पैगाम है हर तरफ अमन और इंसानियत
प्रो जैनुस्साजिदीन सिद्दीकी, ( शहर काजी, मेरठ )
हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) 9 या 12 रवि उल अव्वल (अरबी महीना) की सुबह सऊदी अरब के मक्का शहर में पैदा हुए। उनके वालिद का नाम अब्दुल्ला था, जिनका देहांत हजरत मुहम्मद (स.अ.) की पैदाइश से पहले हो गया था। हजरत मुहम्मद (स.अ.) की माता का नाम आमना था। सबसे पहले उन्होंने ही दूध पिलाया। फिर अरब के रिवाज के अनुसार हलीमा दाई, जो मक्का शहर से 60 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी शहता में रहती थीं, उन्हें उनके हवाले कर दिया गया, ताकि साफ-सुथरे माहौल में उनकी परवरिश हो। वह जब छह साल के हुए, तो माता आमना का भी देहांत हो गया। इसके बाद दादा अब्दुल तालिब और फिर चाचा अबु तालिब ने उनकी परवरिश की।
जब हजरत मुहम्मद (स.अ.) की उम्र 40 साल हुई, तो वह मक्का से कुछ दूरी पर गारे गिरा में अल्लाह की इबादत में थे। अल्लाह के फरिश्ते हजरत जिब्राइल (अलैहिस्सलाम) ने उनको अल्लाह तआला का पहला संदेश दिया। पढ़िए, इस खुदा का नाम लेकर, जिसने हर चीज पैदा की, जिसने इंसान को गोश्त के लोथड़े से पैदा किया। पढ़िए, हां आपका पैदा करने वाला सबसे ज्यादा इज्जत वाला है। जिसने कलम के जरिये इल्म दिया और इसको इन बातों की जानकारी दी, जिनको वह नहीं जानता।… इस पैगाम में हुक्म दिया गया है कि चांद, सूरज, सितारे, समंदर, बागात, इंसान, हैवान कायनात की तमाम चीजों का अध्ययन करें, और कहा गया कि अल्लाह का बड़ा करम है कि इंसान को इल्म से नवाजा, कुरआन में ही दूसरी जगह कहा गया है कि आलिम व जाहिल बराबर नहीं हो सकते। हजरत मुहम्मद (स.अ.) ने हर मर्द व औरत पर इल्म का हासिल करना फर्ज करार दिया। इससे पता चलता है कि इस्लाम ने तालीम हासिल करने पर कितना जोर दिया है। मगर यह भी हकीकत है कि अच्छे अखलाक तमाम इंसानों के साथ अच्छा बर्ताव व हमदर्दी के बगैर शिक्षा बेकार है। इसलिए हजरत मुहम्मद (स.अ.) ने फरमाया, मैं इंसानों को अच्छे अखलाक देने के लिए भेजा गया हूं।
एक मर्तबा आप (स.अ.) के पास हातिम ताई के बेटे अदी आए। आप (स.अ.) उनसे बातचीत कर रहे थे कि एक बुढ़िया आ गई, और अपनी परेशानी बयान करने लगी। आप (स.अ.) ने उस बूढ़ी औरत की पूरी बात सुनी और उनकी शिकायत व परेशानी को दूर कर दिया। हजरत मुहम्मद (स.अ.) मक्का मुअज्जमा में आठ साल की जिला वतनी के बाद फातेह मक्का की हैसियत से दाखिल हुए। खाना काबा का इक्तिदार उनके हाथ में था, काबा का बसीअ (बड़ा) सहना मक्का के कुरैश खानदान के मर्दों और औरतों से भरा हुआ था। हजरत मुहम्मद (स.अ.) के साथ इन लोगों ने जो बरबरियत का बर्ताव किया था, जिसकी वजह से उन्हें मक्का छोड़कर मदीना जाना पड़ा था, वह इनको लरजा रहा था। उन्होंने इन लोगों से पूछा, आज तुम मुझसे क्या चाहते हो? मक्का वालों ने कहा, आपसे भलाई की ही उम्मीद करते हैं। हजरत मुहम्मद (स.अ.) ने मुस्कराकर फरमाया, आज तुम पर कोई इल्जाम नहीं। जाओ, तुम सब आजाद हो।
अनु सुफयान, जो इस्लाम के बदतरीन दुश्मन थे, अब इस्लाम कुबूल कर चुके थे, उनको बस इज्जत से नवाजा कि जो दुश्मन इनके घर में पनाह लेगा, इसको भी माफी है, इनके गुलाम वहशी ने हुजूर अकरम (स.अ.) के चाचा का कत्ल किया था, उसको भी माफ कर दिया। उस जमाने में गुलामों के साथ जानवरों जैसा बर्ताव किया जाता था, हजरत मुहम्मद (स.अ.) ने इन तमाम बुराइयों को खत्म किया और उनके साथ अच्छा सलूक करने का हुक्म दिया। उस जमाने में औरतों के साथ जुल्म सितम किया जाता था। इनको तमाम इंसानी हुकूक से नवाजा। हज के अवसर पर हजरत मुहम्मद (स.अ.) ने एलान किया कि दुनिया के तमाम इंसान बराबर हैं। काले को गोरे पर और अरबी को गैर-अरबी पर कोई फोकियत नहीं है।
ये सब बातें बताती हैं कि हमको अपनी जिंदगी में कैसा अमल करना चाहिए। हम सब हजरत मुहम्मद (स.अ.) को मानने वाले हैैं। हमारी जिंदगी के अंदर उनकी जो हिदायत एवं रहनुमाई होनी चाहिए, वह नहीं मिलती। अफसोस है कि न तो तालीम, न ही बच्चों को अखलाक दे रहे हैं। हमें यह सूरत बदलनी चाहिए।