27-06-2024 (Important News Clippings)
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Date: 27-06-24
द्विपक्षीय संबंधों का स्वर्णिम दौर
हर्ष वी. पंत, ( लेखक आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में उपाध्यक्ष हैं )
इस दौर को यदि भारत-बांग्लादेश संबंधों का स्वर्णिम काल कहा जाए तो गलत नहीं होगा। इस महीने की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के कुछ दिन बाद ही बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत के दौरे पर आईं। नई सरकार के कार्यकाल में यह किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष का पहला भारत दौरा है। यह दर्शाता है कि बीते दस वर्षों के दौरान दिल्ली और ढाका के रिश्ते कितने मधुर एवं सहज हुए हैं और कई बार मुश्किल परिस्थितियों की आंच भी उन पर नहीं पड़ी। तीस्ता जल समझौते की ही मिसाल लें तो जहां मोदी को बंगाल सरकार के विरोध से जूझना पड़ा, वहीं बांग्लादेश में हसीना को भारत-विरोधी तत्वों का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद दोनों नेताओं ने अपनी साझेदारी को आगे बढ़ाने पर जोर दिया, जो न केवल द्विपक्षीय, बल्कि क्षेत्रीय दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इस वर्ष जनवरी में जब शेख हसीना फिर से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं तो उन्होंने अपने पहले विदेशी दौरे के लिए भारत को चुना। तब उन्होंने कहा था, ‘भारत हमारा एक प्रमुख पड़ोसी, भरोसेमंद साथी और क्षेत्रीय साझेदार है। भारत-बांग्लादेश रिश्ते बहुत तेजी से मजबूत हो रहे हैं।’ उनके हालिया दौरे की महत्ता को प्रधानमंत्री मोदी ने भी यह कहकर बखूबी रेखांकित किया कि ‘वह हमारी सरकार के तीसरे कार्यकाल की पहली विदेशी मेहमान हैं।’ इस दौरे पर दोनों नेताओं के बीच दस सहमति पत्रों (एमओयू) पर हस्ताक्षर हुए। ये एमओयू डिजिटल एवं हरित साझेदारी से लेकर सामुद्रिक सहयोग और सबसे उल्लेखनीय भारत-बांग्लादेश रेल कनेक्टिविटी का साझा दृष्टिकोण जैसे विविधतापूर्ण विषयों पर केंद्रित रहे। साझा बयान भी कनेक्टिविटी, व्यापार और सहयोग भाव पर केंद्रित शांति, समृद्धि एवं विकास को समर्पित रहा। द्विपक्षीय संबंधों को नया आयाम प्रदान करने के लिए कुछ नई पहल भी की गई हैं। जैसे बांग्लादेश से इलाज के लिए भारत आने वाले मरीजों को ई-वीजा, नई रेल एवं बस सेवा, गंगा जल समझौते के लिए संयुक्त तकनीकी समिति, तीस्ता नदी के संरक्षण एवं प्रबंधन से जुड़ी एक बड़ी परियोजना के लिए एक भारतीय तकनीकी टीम को बांग्लादेश भेजना, नेपाल से भारतीय ग्रिड के जरिये 40 मेगावाट बिजली बांग्लादेश को पहुंचाने के साथ ही बांग्लादेशी पुलिस अधिकारियों के प्रशिक्षण जैसी पहल शामिल हैं। बांग्लादेश की सामरिक क्षमताओं में बढ़ोतरी की संभावनाएं तलाशना भी एक मुद्दा रहा। इसमें बांग्लादेशी सुरक्षा बलों के आधुनिकीकरण के साथ ही रक्षा औद्योगिक उत्पादन में सहयोग पर चर्चा हुई।
शेख हसीना जुलाई में चीन का दौरा करेंगी। उससे पहले उनका हालिया भारत दौरा द्विपक्षीय संबंधों में आ रही परिपक्वता का भी परिचायक रहा कि दोनों देश अन्य राष्ट्रों के साथ अपने रिश्तों को बढ़ाने के साथ ही एक-दूसरे के साथ बहुत निकटता से काम कर रहे हैं। नई दिल्ली ने कभी ढाका को बीजिंग के साथ सक्रियता बढ़ाने से नहीं रोका, लेकिन चीन को लेकर भारत की कुछ चिंताएं जरूर रही हैं, जिनका हसीना ने हमेशा ख्याल रखा है। वर्ष 2020 से ही चीन तीस्ता नदी से जुड़ी विकास परियोजना में एक अरब डालर के निवेश की इच्छा जता रहा है और गत वर्ष उसने एक औपचारिक प्रस्ताव भी दिया। बांग्लादेश के लिए यह लंबे समय से चली आ रही प्राथमिकता है और मनमोहन सिंह की सरकार ने 2011 में इस संदर्भ में एक समझौता भी किया था, लेकिन वह बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के विरोध के चलते सिरे नहीं चढ़ पाया था। उधर चीन बार-बार प्रस्ताव दे रहा था और भारत की ओर से हीलाहवाली के चलते हसीना राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर थीं। ऐसे में चीन जाने से पहले उनके भारत दौरे से नई दिल्ली को इस मोर्चे पर नए सिरे से पहल करने का अवसर मिला। तीस्ता नदी के संरक्षण एवं प्रबंधन के लिए भारतीय तकनीकी टीम को बांग्लादेश भेजने का निर्णय यही संकेत करता है कि कुछ घरेलू चुनौतियों के बावजूद वह पड़ोसी देशों में अपने रणनीतिक हितों को तिलांजलि नहीं देगा। इसी प्रकार, 1996 में हुए गंगा जल समझौते के नवीनीकरण के लिए तकनीकी वार्ता का निर्णय भी बांग्लादेश को समय पर आश्वस्त करने वाला है, क्योंकि यह मुद्दा हसीना सरकार की प्राथमिकता सूची में शामिल है।
भारत के लिए बांग्लादेश की अहमियत को कम करके नहीं आंका जा सकता। भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित होना चाहता है और बंगाल की खाड़ी की भूमिका उसके एक क्षेत्रीय केंद्र के रूप में होगी। वहीं, बांग्लादेश के लिए इस क्षेत्र में एक प्रमुख आर्थिक एवं सामरिक केंद्र के रूप में अपनी संभावनाओं को भुनाना है तो उसके लिए भारत से साझेदारी बेहद महत्वपूर्ण होगी। चूंकि दोनों ही देश अपने रणनीतिक नजरियों को लेकर बहुत महत्वाकांक्षी हैं तो उनके व्यवहार को आकार देने में द्विपक्षीय साझेदारी निरंतर रूप से अहम बनी रहेगी। नि:संदेह, चीन इसमें एक अहम किरदार बना रहेगा, लेकिन उसे बहुत बढ़ा-चढ़ाकर नहीं पेश किया जाना चाहिए। भारत-बांग्लादेश के संबंध अपने हितों एवं समझ के आधार पर सशक्त हो रहे हैं। उनकी अपनी उपयोगिता एवं अहमियत है। इसी महत्ता को समझते हुए मोदी और हसीना ने अपने-अपने देशों की जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए ठोस कदम उठाना सुनिश्चित किया है। पड़ोसी देशों के बीच किस प्रकार की आदर्श साझेदारी होनी चाहिए, उसे इन दोनों नेताओं ने पुन: परिभाषित किया है। परस्पर सम्मान, परस्पर हित और परस्पर संवेदनशीलता ने इस साझेदारी को अन्य देशों के लिए एक अनुकरणीय आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया है।
Date: 27-06-24
भारतवंशियों ने चुनाव में गाड़े झंडे
डॉ. आर. के. सिन्हा
भारत में लोक सभा चुनाव के नतीजे बीती 4 जून को आए और दक्षिण अफ्रीका के उससे मात्र दो दिन पहले 2 जून को। दोनों देशों में मिली-जुली सरकारें बन गई हैं। दक्षिण अफ्रीका से भारत सिर्फ इसलिए ही अपने को भावनात्मक रूप से जोड़कर नहीं देखता है कि वहां लगभग 21 सालों तक गांधी जी रहे। वहां उन्होंने भारतवंशियों और बहुसंख्यक अश्वेत आबादी के हक में लड़ाई लड़ी। दक्षिण अफ्रीका भारत के लिए इसलिए भी विशेष है कि वहां पर करीब 15-16 लाख भारतवंशी बसे हुए हैं। संसार के शायद ही किसी अन्य देश में इतने भारतवंशी हों।
दक्षिण अफ्रीका की संसद के लिए हुए हालिया चुनाव भारतीय मूल के बहुत से उम्मीदवार विभिन्न राजनीतिक दलों से भाग्य आजमा रहे थे। उन्होंने संसद और प्रांतीय असेंबलियों में भी जीत दर्ज की। मेरगन शेट्टी लगातार तीसरी बार संसद के लिए चुने गए। क्वाजुलू-नाटाल प्रांतीय विधानसभा की सदस्य शारा सिंह ने राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश किया और संसद सदस्य बन गई। शेट्टी संसद में डेमोक्रेटिक अलायंस (डीए) की सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले भारतीय मूल के सदस्य बताए जाते हैं। उन्होंने पहले 2006 में पीटरमारिट्जबर्ग नगर परिषद का प्रतिनिधित्व किया था। शारा सिंह ने संसद में चुने जाने के बाद स्थानीय सरकार की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। डीए के संसद के लिए 87 सदस्य चुने गए हैं। इनमें से चार भारतीय मूल के हैं। ए. सरूपेन ने लगातार दूसरी बार संसद के चुनाव में जीत हासिल की। सरूपेन के पूर्वज उत्तर प्रदेश से थे। वे गौतेंग प्रांतीय विधानसभा के सदस्य के रूप में भी कार्य कर चुके हैं। इंकथा फ्रीडम पार्टी के नेता नरेन्द्र सिंह, अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस (एएनसी) की फासीहा हसन, अल जमा – आह के इमरान इस्माइल मूसा भी निर्वाचित हुए हैं। गोपाल रेड्डी और शुनमुगम रामसामी मूडली भी संसद पहुंचे हैं। अधिकांश चुने गए भारतीय मूल के सदस्य दक्षिण अफ्रीका में ही पैदा हुए हैं, लेकिन केरल के पथानमथिट्टा जिले के तिरुवल्ला के मूल निवासी अनिल कुमार केसवा पिल्लई ने 40 साल पहले दक्षिण अफ्रीका की स्थानीय राजनीति में खुद को स्थापित किया था। एक युवा शिक्षक के रूप में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे पिल्लई शिक्षकों के ट्रेड यूनियन नेता के रूप में उभरे। उन्हें पहली बार 2019 में एएनसी के प्रतिनिधि के रूप में ईस्टर्न केप की प्रांतीय परिषद के लिए चुना गया था। डीए के सदस्य इमरान कीका, एम. नायर और रिओना गोकुल को भी क्वाजुलु-नाटाल की प्रांतीय विधानसभा के लिए फिर से चुना गया है।
इस बीच, दक्षिण अफ्रीका के फिर से राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा बन गए हैं। रामाफोसा ने अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस (एएनसी), डेमोक्रेटिक अलायंस (डीए) और अन्य दलों के समर्थन से फिर से राष्ट्रपति पद को संभाला। खैर, भारत दक्षिण अफ्रीका समेत सभी अफ्रीकी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध रखने का इच्छुक रहा है। कुछ साल पहले राजधानी में हुए भारत-अफ्रीका समिट को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संबोधित किया। उन्होंने कहा था कि भारत और अफ्रीका की युवा होती आबादी पूरे विश्व में नये कीर्तिमान बना सकती है। उन्होंने कहा कि अफ्रीका में निवेश के लिए भारत बड़ा स्रोत है। तब भारत ने अफ्रीकी देशों के लिए 600 मिलियन डॉलर की मदद की घोषणा की थी। भारत की चोटी की कंपनियों टाटा, भारती, महिन्द्रा, अशोक लीलैंड वगैरह का अफ्रीका में तगड़ा निवेश है। भारती एयरटेल ने अफीका के करीब 17 देशों में दूरसंचार क्षेत्र में अरबों डॉलर का निवेश किया हुआ है। भारतीय कंपनियों ने कोयला, लोहा और मैगनीज खदानों के अधिग्रहण में भी रुचि जताई है। अफ्रीकी कंपनियां एग्रो प्रोसेसिंग और कोल्ड चेन, पर्यटन एवं होटल और रिटेल क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के साथ सहयोग कर रही हैं। अफ्रीकी देश नाइजीरिया भारत को बड़े पैमाने पर तेल की आपूर्ति करता है।
अफ्रीका से राजधानी दिल्ली में आने नागरिकों को यहां अफ्रीका के बहुत सारे प्रतीक मिलेंगे। राजधानी के चाणक्यपुरी में घाना के शिखर नेता क्वामे नकरूमा मार्ग के नाम पर एक सड़क है। करीब ही अफ्रीका गॉर्डन है। अफ्रीका एवेन्यू भी है। संयोग ही है कि निर्गुट आंदोलन के नेता क्वामें नकरूमा मार्ग और अफ्रीका गार्डन इतने करीब हैं | इंडिया अफ्रीका फ्रेंडशिप रोज गॉर्डन को अब अफ्रीका गॉर्डन कहा जाने लगा है। दिल्ली में अफ्रीका नाम से किसी उद्यान का होना एक तरह से यहां पर रहने वाले अफ्रीकी नागरिकों को कुछ भरोसा तो दिलाता होगा कि भारत उनका मित्र है। राजधानी में नेल्सन मंडेला और मिस्र के जननायक गमाल आब्देल नासेर के नाम पर भी सड़क हैं। क्वामें नकरूमा की तरह नासेर भी निर्गुट आंदोलन के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर थे। लगता है कि मोदी जी तीसरे प्रधानमंत्रित्व काल की सरकार दक्षिण अफ्रीका तथा अन्य सभी अफ्रीकी देशों से संबंध और मजबूत और स्थायी करेगी।