24-09-2024 (Important News Clippings)

Afeias
24 Sep 2024
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Date: 24-09-24

Adulteration Central

Tirupati controversy reminds us how common adulterated food is in India & how little’s done about it.

TOI Editorials

As the serious issue of adulteration of temple prasad at Tirupati spawns a political slugfest, various places of worship and organisations that distribute cooked food, investigators, and food adulteration safety inspectors need to review food checks and controls.

Who is monitoring | Places of worship are vested with deep trust. Which makes the scandal of alleged adulteration in TTD’s prasad a highly sensitive matter. Following the allegations made in public, all supplies were reportedly suspended and vendors replaced, including those for ghee. But the adulteration itself needs further scientific probe – from place of procurement of samples to the period of adulteration. It also needs to be seen what quality checks high footfall places such as Tirupati have in place, how frequent is the food monitoring, and SOP in event of breach. How frequently do state regulators oversee food inspections in places of worship, nationwide?

Everything needs checking | Adulteration is institutionalised nationwide. Community feeding as a mass activity is common across states, mass distribution of cooked meals is also state activity. The successful mid-day meal scheme is hobbled with cases of adulteration where kids have fallen severely sick. Leave aside fertiliser/pesticide residue in veggies and fruits, or antibiotics in poultry, or lead and arsenic in water. Spices and cooking mediums remain among the most adulterated items. A recent Stanford University multi-country study of lead chromate that took samples from 17 Indian cities, found 14% of all samples had high levels of the metal. Presence of lead was off the charts in samples from Patna, and high in samples from Guwahati and Chennai. On milk, cooperatives may have powered the industry’s growth, but the unorganised sector still constitutes over half the sector, including for processed products such as ghee. In 2016, Parliament was told 2 in 3 Indians consume milk that has detergent, caustic soda, urea or paint. Last Aug, data shared in Parliament showed over 25% of food samples tested in 2022-2023 had adulterants.

Inadequacy of inspection | Food inspections network is woefully lacking, failing to tackle adulteration with the goal of rooting it out. What typically happens is a rash of raids, seizures and bans follows any instance of adulteration that goes public – recall the Maggi masala mix case, or recent ethylene oxide scandal – followed by no-one-quite-knows-what-happened. The alleged Tirupati contamination is breach of people’s trust. But food adulteration everywhere continues apace – and regulators do not look like they’re winning the battle.


Date: 24-09-24

Keep Up With the Flux of Changing Jobs

A skills gap index will help employers, employees.

ET Editorials

GoI is planning to map India’s skills gap by building an index in order to align the country’s labour market with long-term trends such as AI and climate transition. Labour shortages are a key determinant in adoption of new technologies, and early identification can, indeed, help both on the demand and supply sides of the skills equation. An index of overand under-qualification can help workers, industry, academia and policymakers to make the labour market more liquid. Employers can adopt new technologies quicker if they are not confronted with a shortage of skills. Job-seekers can be steered towards occupations facing recruitment difficulties. Educational institutions will be able to mould curricula to the evolving demands of the job market, something that needs better synching. And policies can be tailored to develop rapid reskilling to embrace technological change.

Technology is the biggest contributor to skills shortage. Not only are jobs being created and destroyed continually, the nature of jobis mutating as well. IT that allows machines to perform repetitive tasks has altered the employment scenario across industries. AI, which allows machines to make independent decisions, is expected to have a deeper impact on how work is done in an economy. Yet, employers report skills shortage to be among the top barriers to implementing AI as training institutes scramble to offer courses on the subject. GoI has to facilitate the training and oversee its quality, ensuring ‘AI-washing’ doesn’t gain ground. By some estimates, a third of all formal jobs in the economy could be at risk on account of AI. Not all these jobs will disappear, of course, and policies will have to be drawn up to encourage significant investments in retraining workers to be able to deliver in an automated economy.

India also has a special need for a skills gap index to accelerate employment in the formal economy. This is vital for the country to become a manufacturing and services base for the global economy.


Date: 24-09-24

इंडो-यूएस सेमीकॉन डील के वैश्विक मायने

संपादकीय

करीब 19 वर्षों पहले अमेरिका से हुए सिविल परमाणु समझौते के बाद भारत ने एक बार फिर एक ऐसा समझौता किया है, जो अभी तक अमेरिका ने किसी अन्य देश से नहीं किया है। इसके तहत अमेरिका की मिलिट्री इकाई यूएस स्पेस फोर्स, भारत सरकार के सेमीकॉन मिशन सहित दो भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर खास किस्म के सेमी-कंडक्टर बनाएगी, जो आधुनिक सामरिक क्षमता के मद्देनजर एडवांस्ड सेंसिंग, संवर्धित – संचार और हाई वोल्टेज पॉवर इलेक्ट्रॉनिक्स में भारत को अग्रणी बनाएगा। हाल में अमेरिका अति-परिष्कृत रक्षा टेक्नोलॉजी साझा करने में बेहद सतर्क रह रहा है, ताकि वह घूम-फिर कर चीन के पास न पहुंचे। दो साल पहले इसी आशय से ‘चिप्स कानून’ बना। लेकिन अब भारत को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करना मंजूर हुआ है। ‘क्वाड’ का जन्म चीन की विस्तारवादी नीति की प्रतिक्रिया में हुआ था। यही कारण है कि चीन ने दो दिन पहले ‘क्वाड’ की ताजा बैठक को लेकर कहा कि उसे धमकाने की कोशिश न की जाए। बहरहाल अमेरिका की भारत को सामरिक रूप से सक्षम करने की उदारता अकारण नहीं है। चीन से खतरा बढ़ता जा रहा है और जो चिंता अमेरिका की है, वही भारत के अलावा जापान, ऑस्ट्रेलिया की भी है। दरअसल अमेरिका के रक्षा उत्पादन में एडवांस्ड सेमी कंडक्टर की डिजाइन के शोध में लगी कई संस्थाओं के मुखिया भारतीय मूल के और कई भारतीय स्टार्टअप उत्पादन में सक्षम हैं। इसमें दिल्ली आईआईटी का भी योगदान है। इसीलिए भारत में इन उपकरणों का उत्पादन दोनों देशों के लिए हितकर होगा। यह पहली इकाई होगी जो दुनिया में बहु-तत्वीय इन्फ्रारेड, जेलियम नाइट्राइड, सिलिकॉन कार्बाइड सेमीकंडक्टर का निर्माण न केवल रक्षा-सामर्थ्य बल्कि रेलवे, डाटा सेंटर्स, ग्रीन एनर्जी, संचार और कमर्शियल हितों के लिए भी करेगी। भारत फिलहाल आठ हजार करोड़ रुपए से ऐसी चिप आयात करता है।


Date: 24-09-24

क्वाड का हासिल

संपादकीय

भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया के संगठन क्वाड का यह छठवां शिखर सम्मेलन था, जिसमें चारों देशों ने बड़े उत्साह के साथ भाग लिया। अभी चार वर्ष हुए हैं इस संगठन को बने हुए। इस बीच दो आभासी माध्यम से बैठकें भी हो चुकी हैं। इस सम्मेलन में क्वाड देशों के बीच हिंद प्रशांत क्षेत्र में स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी ऐतिहासिक फैसले हुए हैं। इसमें ‘कैंसर मूनशाट इनिशिएटिव’ के जरिए हिंद प्रशांत क्षेत्र में गर्भाशय ग्रीवा कैंसर से जीवन बचाने के लिए साझेदारी और समुद्री सुरक्षा को आगे बढ़ाने के लिए 2025 में ‘क्वाड ऐट सी शिप आब्जर्वर मिशन’ शुरू करना शामिल है। इसके जरिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बंदरगाहों के बुनियादी ढांचे के समावेशी विकास को आगे बढ़ाया जाएगा। संभावित बीमारियों और महामारियों से पार पाने के लिए पहले से रणनीति बनाने पर भी जोर दिया गया है । निस्संदेह ये महत्त्वपूर्ण समझौते हैं। गर्भाशय ग्रीवा कैंसर से पार पाना इस समय की बड़ी चुनौती है। क्वाड समझौते से निश्चय ही इस पर काबू पाने में काफी मदद मिल सकेगी। इसके अलावा, इस सम्मेलन में क्वाड देशों के बीच सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला को मजूबत बनाने के लिए किया गया समझौता बेहद अहम है।

हिंद प्रशांत क्षेत्र विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला और आर्थिक रूप से सक्रिय क्षेत्र है, जिसमें चार महाद्वीप शामिल हैं- एशिया, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और अमेरिका । इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते दखल से सारे देश सतर्क हैं। दरअसल, चीन से मिलने वाली चुनौतियों से पार पाने के मकसद से ही क्वाड का गठन किया गया था । इस क्षेत्र में भारत की भूमिका अहम है। अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान चीन का मुकाबला करने के लिए दक्षिण चीन सागर तथा पूर्वी चीन सागर में भारत की उपस्थिति चाहते हैं । भारत भी अपनी सीमाओं और पड़ोसी देशों में चीन की पैठ से परेशान है। अमेरिका से उसकी तनातनी पुरानी है । ऐसे में, इन देशों के एक मंच पर उपस्थित होने से चीन को चुनौती देने में आसानी होगी । समुद्री सीमा के विस्तार और उसमें इन देशों के साझा सैन्य अभ्यास से चीन को रोकना आसान होगा । इस अर्थ में क्वाड का ताजा शिखर सम्मेलन कई अर्थों में ऐतिहासिक कहा जा सकता है।

फिलहाल देशों की ताकत उनकी तकनीकी संपन्नता से आंकी जाने लगी है। इस मामले में चीन अनेक मामलों में अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया से बहुत आगे है। खासकर सेमीकंडक्टर निर्माण के क्षेत्र में फिलहाल पूरी दुनिया में उसका दबदबा है। अमेरिका ने पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में काफी तरक्की की है, पर अब भी वह चीन से काफी पीछे है। भारत ने सेमीकंडक्टर निर्माण की दिशा में बहुत तेजी से कदम आगे बढ़ाया है, मगर उसके सामने कई अड़चनें बनी हुई हैं। दो कंपनियों ने इसमें निवेश का उत्साह दिखाया था, मगर उन्होंने अपने कदम वापस खींच लिए। तीसरी कंपनी को विदेशी विशेषज्ञों की जरूरत है, जो फिलहाल उपलब्ध नहीं हो पा रहे। ऐसे में क्वाड सम्मेलन में इस क्षेत्र में शोध और शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए आर्थिक मदद की घोषणा से निश्चय ही उल्लेखनीय नतीजे आने की उम्मीद की जा सकती है। हालांकि सम्मेलन के बाद हमारे प्रधानमंत्री ने चीन का नाम लिए बगैर कहा कि क्वाड किसी के खिलाफ नहीं है। हम क्षेत्रीय अखंडता और सभी मुद्दों पर शांतिपूर्ण तरीके से समाधान करने के समर्थन में हैं। पर इस वास्तविकता से इनकार नहीं किया जा सकता कि क्वाड की सक्रियता से चीन की चिंता तो बढ़ी है।


Date: 24-09-24

नई बयार

संपादकीय

करीब दो वर्ष पहले श्रीलंका में उपजे आर्थिक संकट के बीच जो हालात पैदा हुए थे, उसके मद्देनजर यह आशंका स्वाभाविक थी कि इस स्थिति से निकलने में देश को शायद काफी वक्त लग जाए । मगर चुनावों के बाद अब वहां एक तरह से नई सत्ता की स्पष्ट तस्वीर उभर कर सामने आई है । श्रीलंका में हुए चुनाव के बाद आखिरकार वामपंथी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके को 42.31 फीसद मत मिले और उनके प्रतिद्वंद्वी रहे सजी थ प्रेमदासा को 32.76 फीसद वोट मिले। मगर दूसरे दौर की गिनती के बाद दिसानायके को वहां के नौवें राष्ट्रपति के रूप में चुन लिया गया । दिलचस्प यह है कि सन 2019 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में दिसानायके को सिर्फ तीन फीसद वोट मिले थे। यानी कहा जा सकता है कि इस बीच श्रीलंका में आर्थिक संकट और बिगड़ती स्थिति के बीच मुख्यधारा के बाकी राजनीतिक पक्षों में से किसी की भी आम लोगों की अपेक्षाओं या उम्मीदों के बीच जगह नहीं बची थी। इस बीच देश से भ्रष्टाचार खत्म करने, मजदूरों की आवाज उठाने और अच्छा प्रशासन देने के दिसानायके के वादे ने एक तरह से अंधेरे में घिरी आम जनता को उम्मीद की रोशनी दी।

निश्चित रूप से श्रीलंका के लिए यह एक नई बयार है और उम्मीद की जानी चाहिए कि वह कुछ वर्ष पहले भिन्न धार्मिक पहचान पर आधारित हिंसा से लेकर व्यापक आर्थिक संकट की वजह से पैदा हुए व्यापक अराजक विद्रोह के हालात से आगे की राह पर कदम बढ़ाएगा । दिसानायके की जीत को श्रीलंका में नस्लीय या धार्मिक कट्टरता के खिलाफ जनादेश भी कहा जा सकता है । मगर भारत और उसके पड़ोसी देशों की इस बात पर नजर रहेगी कि नई भू-राजनीतिक परिस्थितियों के बीच अंतरराष्ट्रीय संबंधों के समीकरण में श्रीलंका क्या रुख अख्तियार करेगा । पहले ही इस बात की आशंका जताई जाती रही है कि चीन के कर्ज के जाल में उलझने का असर श्रीलंका के अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों और नीतियों पर पड़ता रहा है। अब वहां वामपंथी विचारधारा के एक नेता के राष्ट्रपति बनने के बाद यह देखने की बात होगी कि श्रीलंका चीन के प्रभाव से किस हद तक मुक्त रह पाता है।