23-02-2019 (Important News Clippings)

Afeias
23 Feb 2019
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Date:23-02-19

Smartening Up Old Cities

Kala S Sridhar & Sheetal Singh

In the run-up to the upcoming Lok Sabha elections, farmer loan waivers have become a central issue. With an urban population of only 31% in India according to Census 2011, are our cities supporting villages the way our villages are deemed to be supporting cities? For many, the answer may be a unanimous no. But in reality, the answer may not be so resounding.

The City Managers’ Association of Karnataka puts together a compendium of best practices followed by cities and towns in the state every year. This is based on the replicability and sustainability of cities and towns, and awards going to the three best ones. Identification and documentation of such practices will provide a valuable database for capacity-building of local bodies. It encourages them to adopt and evolve new ideas leading to the setting up of new paradigms for effective governance and efficient urban management.

Bengaluru’s citizens may be complaining about its congested roads and traffic, but few know that recently, the Bangalore Traffic Police (BTP) initiated an adaptive traffic control system for effective traffic management. This system has also been started in Bhubaneswar in Odisha.

The system has already provided benefits by continuously distributing ‘green light’ time equitably for all traffic movements, thereby reducing congestion; by improving travel time reliability; and by upgrading the effectiveness of traffic signal timing. It is expected to reduce commute time, which in turn can increase the city’s efficiency.

Waste collection and its safe disposal are a major problem for Indian cities, with increasing incomes, changing lifestyles, and increasing waste generation. Many big cities lack enough land and space for sanitary landfills, resulting in unsafe means of waste incineration and disposal. However, many cities and towns are adopting innovative approaches to deal with this problem.

In the small but growing town of Shimoga in Karnataka, for instance, until recently, waste collection was carried out throughout the day. But by the time waste collection was completed, the next day’s waste was generated and dumped back in the town’s ‘black spots’. There was also a shortage of vehicles and manpower to cover all areas of Shimoga, and major commercial areas consumed a major portion of the resources.

Swept Off the Feet

Under a new initiative started by the Shimoga city corporation, nightsweeping of main roads and commercial areas was started. This included the clearance of ‘black spots’ at night. A team of young, willing municipal sanitary workers — pourakarmikas — were identified for the night shift, and then motivated with awards. Black spots and waste points of commercial areas were identified and mapped. With streetsweeping and collection being more efficient at night, greater coverage of the city with minimal manpower is being accomplished.

In Belagavi (old Belgaum), attempts at waste segregation were met with partial success due to noncooperation from local residents. Hence, the corporation started a waste segregation initiative by schoolchildren for segregation and collection of dry waste. The children were trained, and they brought dry waste generated at home to school. The three largest amounts of dry waste generated attracted prizes, to encourage students to bring — and not discard — their dry waste.

The money collected by selling dry waste to non-governmental organisations (NGOs) is now utilised for the education of poor students. This not only made the city of Belagavi cleaner, but also encouraged youngsters to educate their parents and elders at home. Mangaluru is an industrial hub. As a result, the city corporation has been motivated to take up corporate social responsibility (CSR) initiatives towards improving the civic infrastructure that includes public toilets, e-toilets, wall murals and paintings that have changed the face of the coastal city. Painting walls with artwork is also being practised in Bengaluru. The innovative part in Mangaluru is that there is no funding needed from the city corporation. The latter only gives approvals and facilitates the process funded by companies.

In the Ramanagara City Municipal Council, there was earlier no mechanism to collect wet waste from bulk waste generated in hotels, canteens and hostels, as there was no scientific treatment plant. However, a detailed project report was prepared in 2017 for handling wet waste to use it for biogas and electricity generation and compost preparation.

Power Users

Since power generation for lighting was preferred, after following all procedures and norms, a 1-tonne wet waste-handling capacity plant with 10 KW of power generation capacity was established on the outskirts of Ramanagara. 10 KW of power generated is duly supplied to illuminate street lamps, the first project of its kind in the Karnataka.

The ability to use an existing storehouse of best practices, without having to reinvent the wheel, is the recipe to ‘catch up’. It is also the basis of convergence. Villages, cities and towns in other states stand to benefit from what’s going on in the cities and towns of Karnataka.


Date:23-02-19

अपनी सभी सीमाओं को लेकर भू-रणनीतिक विज़न तैयार करे भारत

अभिषेक रखेजा, ( एडिनबरा यूनिवर्सिटी, यूके )

जैश-ए-मोहम्मद के आत्मघाती हमले में सीआरपीएफ के 40 जवानों की क्रूर हत्या के बाद भारत को पाकिस्तान पर संदेह है। पुलवामा जैसे कई बड़े आतंकी हमलों में लिप्त होने के बाद भी जैश के सरगना मसूद अजहर को पाकिस्तान में पूरी आज़ादी है। यहां व्यापक मुद्दा यह है कि पाकिस्तान से कैसे निपटा जाए। यहां मैं दो मूल प्रश्नों को ले रहा हूं। एक, क्या मौजूदा परिदृश्य में, पाकिस्तान में सत्ता में बैठे लोगों में भारत से शांति की चाह है? दो, क्या भीतर या बाहर से पाकिस्तान पर कोई दबाव है कि वह अपनी आईएसआई जैसी संस्थाओं में सुधार लाए?

वॉल्टेयर ने एक बार फ्रेड्रिक द ग्रेट के प्रशा के बारे में कहा था, ‘यह सेना वाला देश नहीं है बल्कि देश वाली सेना है।’ यही पाकिस्तान के लोकतांत्रिक ताने-बाने के लिए भी समस्या है। 1947 से किसी निर्वाचित प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान में कार्यकाल पूरा नहीं किया है। पाक सेना के पास इतनी ज्यादा शक्ति है कि वही कठपुतली सरकारें स्थापित करती हैं और उन्हें बेदखल करती है। लेखक फरीद ज़कारिया ध्यान दिलाते हैं कि पाक फौज और उसके गुर्गे भारत के साथ यथास्थिति रखना चाहते हैं, क्योंकि शांति होगी तो उनकी प्रासंगिकता घट जाएगी। फिलहाल पाकिस्तानी संस्थाओं व उन्हें चलाने वाले लोगों में भारत के साथ रिश्ते सुधारने की न तो इच्छा है और न क्षमता। लेकिन, यदि इन्हें सुधार पर मजबूर किया जाए, तो शांति की संभावना अधिक होगी। किंतु पाकिस्तान पर सुधार के लिए भीतर या अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कोई दवाब नहीं है। मोदी सरकार ने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने की बात कही थी। लेकिन, अमेरिका और ब्रिटेन के लिए अफगानिस्तान में पाक का भू-रणनीतिक महत्व, सऊदी अरब से इसके अच्छे रिश्ते और चीन के साथ प्रगाढ़ मैत्री देखते हुए उसे अलग-थलग करना बड़ी चुनौती है। पाकिस्तान को आर्थिक व राजनयिक रूप से घेरने पर ही उसके नागरिकों को उसकी आंच महसूस होगी और वह फौज व नेताओं से जवाब मांग सकेंगे।

मोदी सरकार (या इसकी उत्तराधिकारी) को देश की सभी सीमाओं को लेकर एक औपचारिक भू-रणनीतिक विज़न तैयार करना चाहिए। रणनीति में आर्थिक, राजनयिक और सैन्य प्रयास शामिल होने चाहिए। राजनयिक स्तर पर चीन भारत को संख्या में मात देता है। दुनिया में भारत का एक राजनयिक है तो चीन के पांच। जब भारत अधिक प्रबल राजनयिक शक्ति हो जाएगा तो विश्व में उसके राजनयिकों की संख्या बढ़ेगी और अमेरिका व ब्रिटेन जैसे देशों से उसका संवाद बढ़ेगा, जो पाक पर लगाम लगाने के प्रयासों में महत्वपूर्ण हैं। आर्थिक रूप से भारत को स्वतंत्र खिलाड़ी बनने के लिए आक्रामक रुख अपनाकर सेवा क्षेत्र से आगे अपनी मौजूदगी बढ़ानी होगी। एक बार वह प्रमुख आर्थिक खिलाड़ी बन जाए तो अन्य देशों से पाकिस्तान को अलग-थलग करने की उसे नई शक्ति मिलेगी। पाकिस्तान के साथ स्थायी शांति स्थापित करना भारत के हित में है लेकिन, यह पाकिस्तानी संस्थानों के सुधार पर निर्भर है। ये सुधार पाकिस्तान के नागरिकों द्वारा अपनी सरकार से और वैश्विक समुदाय द्वारा पाकिस्तान से मांगे जाने वाले जवाबों से जुड़े हैं।


Date:22-02-19

दोस्ती का दायरा

संपादकीय

सऊदी अरब के युवराज मुहम्मद बिन सलमान की यात्रा से निस्संदेह भारत की दोस्ती का दायरा बढ़ा है। प्रधानमंत्री के साथ सलमान ने मुलाकात में घोषणा की कि सऊदी अरब आतंकवाद रोकने की दिशा में भारत की हर संभव कोशिश करेगा। खुफिया सूचनाएं साझा करने से लेकर मसूद अजहर को आतंकवादी घोषित करने तक पर उन्होंने सहमति जताई। भारत यात्रा से पहले वे पाकिस्तान भी गए थे, जहां बाहें फैला कर उनका स्वागत किया गया। सलमान ने पाकिस्तान में बड़े निवेश के समझौते भी किए। उनकी यह यात्रा ऐसे समय हुई है, जब पुलवामा हमले के बाद दोनों देशों के रिश्तों में तनाव बढ़ गया है। इसलिए कई लोगों का कयास था कि सऊदी के युवराज इस मसले पर कुछ कहने से बचेंगे, आतंकवाद के मसले पर भी वे कन्नी काट सकते हैं। पर ऐसा नहीं हुआ। सलमान ने शुरू में पुलवामा घटना पर कोई बयान देने से परहेज किया, पर बाद में उन्होंने कड़े शब्दों में इसकी निंदा की। आतंकवाद के मसले पर खुफिया जानकारियां साझा करने संबंधी समझौता भारत की उपलब्धि कही जा सकती है। इससे पाकिस्तान को कड़ा संदेश गया है।

दरअसल, भारत उड़ी हमले के बाद से ही पाकिस्तान को विश्व बिरादरी में अलग-थलग करने का प्रयास कर रहा है। इस दिशा में कुछ कामयाबी भी मिली है। कई देशों ने उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं। खासकर अमेरिका ने उसे वित्तीय और सैन्य मदद देने से हाथ खींच लिया। सार्क संगठन के देशों ने अपने व्यापारिक रिश्ते सिकोड़ लिए हैं। इस तरह वह अपने पड़ोसियों के बीच अलग-थलग पड़ गया है। इस सफलता को देखते हुए ही पुलवामा हमले के बाद भारत ने फैसला किया है कि वह इस घटना से जुड़े सबूत पाकिस्तान को सौंपने के बजाय दुनिया के अपने मित्र राष्ट्रों के सामने रखेगा। दरअसल, अब तक हुए आतंकी हमलों से संबंधित पुख्ता सबूत सौंपे जाने के बावजूद पाकिस्तान उन्हें मानने से इनकार करता रहा है। इसलिए इन सबूतों को विश्व बिरादरी के सामने रख कर दबाव बनाने की रणनीति ज्यादा कारगर साबित होगी। इसमें सऊदी अरब का सहयोग मिले, तो पाकिस्तान पर नकेल कसने में काफी मदद मिलेगी, पर वह कहां तक इस दिशा में साथ दे पाएगा, वक्त बताएगा। क्योंकि मोहम्मद बिन सलमान की हाल की पाकिस्तान यात्रा से ऐसा संकेत नहीं मिला कि वे पाकिस्तान के प्रति कोई सख्त रुख अख्तियार करेंगे।

इस यात्रा का एक उत्साहजनक पक्ष यह है कि इसमें सौ अरब डॉलर के निवेश संबंधी समझौते हुए हैं, जो भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में मददगार साबित हो सकते हैं। इसमें पंद्रह भारतीय कंपनियों ने निवेश का समझौता किया है, जिसमें आधारभूत ढांचे को मजबूत करने संबंधी परियोजनाएं शामिल होंगी। विदेशी निवेश जुटाने के मामले में भारत लक्ष्य से काफी पीछे चल रहा है। ऐसे में सऊदी अरब के साथ निवेश संबंधी समझौतों से अर्थव्यवस्था को निस्संदेह काफी बल मिलेगा। इसके अलावा चूंकि बड़ी संख्या में भारतीय सऊदी अरब में नौकरी या रोजगार के सिलसिले में रहते हैं, दोनों देशों के बीच दोस्ती के बढ़े दायरे से उनके कामकाज में कई सहूलियतें आएंगी। सऊदी अरब ने फिलहाल आठ सौ भारतीय कैदियों को रिहा करने का एलान किया है। पर फिलहाल सबका ध्यान इस बात पर है कि सऊदी अरब भारत के आतंकवाद निरोधक अभियान में सक्रिय भूमिका निभाए। इसमें हमारी सरकार उसे कहां तक अपने साथ ले पाती है, देखने की बात होगी।


Date:22-02-19

जंगल के दावेदार

संपादकीय

सदियों से वे जिस जंगल को अपना घर मानते थे, अब उसे खाली करना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने वनों में रहने वाले 11 लाख से ज्यादा परिवारों की वनभूमि पर दावेदारी को खारिज कर दिया है और प्रदेश सरकारों से कहा गया है कि 27 जुलाई को मामले की अगली सुनवाई से पहले इन जंगलों को खाली करवा दिया जाए। इस फैसले के बाद भी अगर वे वहां बने रहते हैं, तो उन्हें अनधिकृत कब्जेदार माना जाएगा। यहां 16 राज्यों के 11 लाख से ज्यादा परिवारों की दावेदारी खारिज हुई है। जो इस दावेदारी में शामिल नहीं थे, उन्हें भी जोड़ लिया जाए, तो शायद एक करोड़ के आस-पास आबादी को अब उन जंगलों से बाहर आना होगा। सुप्रीम कोर्ट का आदेश पूरे देश पर लागू होगा, इसलिए अन्य राज्य भी इस पर कार्रवाई को बाध्य होंगे। यह फैसला जिस तरह से आया है, उसमें केंद्र सरकार भी घिर रही है। मामले की पिछली सुनवाई 13 फरवरी को थी। लेकिन उस दिन सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से कोई वकील पहुंचा ही नहीं, इसलिए इस पूरे मामले में केंद्र का पक्ष सामने आ ही नहीं सका। बहरहाल, अदालत की तीन सदस्यों वाली पीठ का यह फैसला उस समय आया है, जब अगला आम चुनाव बहुत दूर नहीं है और इसे लेकर राजनीतिक गुणा-भाग भी अभी से होने लगे हैं।

विडंबना यह है कि इस मामले की जड़ में 2006 का वह कानून है, जो वनवासियों को जंगल की भूमि पर अधिकार देता है। यह अंग्रेजों के जमाने में बने वन कानून की जगह लेने के लिए बनाया गया था। जब यह कानून बना था, तब वन्य जीवन पर काम करने वाले कई संगठनों ने इसका विरोध किया था और कहा था कि इससे तो देश के जंगल ही खत्म हो जाएंगे। इसके बाद ही उन लोगों की पहचान शुरू की गई, जिनकी जंगलों की जमीन पर दावेदारी है। पिछले साल नवंबर तक 42 लाख से ज्यादा लोगों ने यह दावेदारी की थी। उसी समय, जब इन दावों की समीक्षा की गई, तो 19 लाख लोगों की दावेदारी सीधे तौर पर खारिज कर दी गई। लगभग इतने ही लोगों की दावेदारी को वैध माना गया और बाकी का मामला लंबित रहा। जिनकी दावेदारी खारिज कर दी गई, उनमें से ज्यादातर ने अदालत की शरण ली और वहां भी उनकी दावेदारी खारिज हो गई है। इसी के साथ इसमें वह मामला भी जुड़ गया है, जिसमें कुछ संगठनों ने इस कानून की वैधता को ही चुनौती दी है।

यह मामला अब किसी भी तरह से केंद्र और राज्य सरकारों के लिए तमाम बड़ी परेशानियां खड़ी करने वाला है। यह सच है कि हमारे वन सिर्फ संरक्षित वन नहीं, बल्कि उनमें आबादी का एक बड़ा हिस्सा भी रहता है। हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि हमारे वनों में आबादी का घनत्व कुछ ज्यादा ही है। लेकिन इस घनत्व को एकाएक कम करना काफी मुश्किल भरा साबित हो सकता है। जो लोग वहां रह रहे हैं, उनके लिए ये जंगल उनका घर ही नहीं, जीवन का आधार भी हैं, इसी से उनका जीवन-यापन होता है। कुछ ही महीनों के अंतराल में किसी को उसके घर और जीवन के साधन से अलग करना मुश्किल ही नहीं, अमानवीय भी हो सकता है। दिक्कत यह भी है कि पुनर्वास के मामले में हमारे देश का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है, खासकर वनवासियों के पुनर्वास के मामले में। सरकार को जल्द ही इसका समाधान निकालना होगा, वरना हमारी परेशानियां बढ़ भी सकती हैं।


Date:22-02-19

Picking sides in West Asia

India could find it difficult to maintain a ‘balancing’ approach between different West Asian powers

Harsh V. Pant & Hasan Alhasan , [ Harsh V. Pant is Director, Studies and Professor of International Relations at King’s College London. Hasan Alhasan is a PhD candidate at King’s College London]

Over the past few years, the course of India’s relations with Israel, Saudi Arabia, and the United Arab Emirates (UAE) suggests that under Prime Minister Narendra Modi, India finally appears to be moving away from its traditional “balancing” approach to West Asia. The Modi government has in practice demonstrated a preference for working with the three regional powers rather than Iran, a trend likely to be reinforced after the visit of Saudi Crown Prince Mohammed bin Salman (MBS) and the proposed trip by Israeli Prime Minister Benjamin Netanyahu to New Delhi.

Regional realities

Since the 1990-91 Gulf War, India has officially adopted a “balancing” approach to West Asia, which some view as a legacy of non-alignment. Although this approach has allowed India to eschew involvement in regional disputes and de-hyphenate relations with regional rivals including Iran, Israel and Saudi Arabia, the policy has also constrained India’s ability to press its geopolitical interests in the region.

Geopolitically, MBS and Abu Dhabi’s Crown Prince Mohammed bin Zayed (MBZ) have over the past few years escalated their battle against political Islamist groups, including the Muslim Brotherhood. Most notably, this materialised in their support for Egyptian President Abdel Fattah el-Sisi’s takeover of power in Egypt from the Muslim Brotherhood in 2013, and in their dispute with Qatar, a key regional backer of the group. Naturally, this brings them closer to Israel, which faces a growing threat from Islamist militant groups, including Hamas, Hezbollah, and Iranian-backed forces in Syria.

The campaign by Saudi Arabia and the UAE to curtail the influence of political Islamist groups also draws them closer to India. During his visit to New Delhi, the Saudi Crown Prince hinted at the attack by vowing to “cooperate in every way, including intelligence sharing”. In recent months, the UAE has also ramped up its security cooperation with India, extraditing at least three suspects wanted in relation to the AgustaWestland case.

Defence and energy needs

Meanwhile, India’s defence and security partnership with Israel has already proven useful to its security and military modernisation drive. In 1998, Israel provided India with valuable intelligence on Pakistani positions during the Kargil war. More recently, India and Israel have collaborated on a $777 million project to develop a maritime version of the Barak-8, a surface-to-air missile that India successfully tested in January. India has also reportedly agreed to purchase 54 HAROP attack drones for the Indian Air Force and two airborne warning and control systems (AWACS) worth over $800 million from Israel. Due to its technological sophistication and warm relations, Israel has become one of India’s top suppliers of military technology.

Economically, the ability of Saudi Arabia and the UAE to mobilise investments despite low oil prices is a huge asset in their relations with India. Investments have included a $44 billion oil refinery in India by Saudi Aramco and the Abu Dhabi National Oil Company in partnership with an Indian consortium. During his visit to New Delhi, MBS said he foresaw up to $100 billion worth of Saudi investments in India over the next few years, including a plan by the Saudi Basic Industries Corp. to acquire two LNG plants.

Iran’s stake

In contrast, Iran’s support for Islamist militancy, not least by transferring advanced missile technology to Islamist groups and militias in Lebanon and Syria, has led to an increase in tensions with Israel, which responded by conducting air strikes against Iranian targets on Syrian soil in January. Although the simultaneous attacks that claimed the lives of 27 members of Iran’s Revolutionary Guard Corps and 40 members of India’s Central Reserve Police Force (CRPF) are likely to bring India and Iran closer together against Pakistan, it is doubtful that the occasion would generate much momentum in bilateral relations.

From an economic perspective, U.S. sanctions have turned Iran into an unreliable economic partner. Despite obtaining a six-month waiver from the U.S. in November on energy imports from Iran, India is shoring up plans to find alternative sources as the waiver reaches its term. Meanwhile, Indian investments in Iran, including the Shahid Beheshti complex at Chabahar and the Farzad B gas field, have languished for years, reflecting the severe constraints on doing business with Iran.

However, India’s tilt towards Israel, Saudi Arabia, and the UAE is not a risk-free move. Iran continues to exercise much influence in West Asia and can help shape events in Afghanistan by shoring up the Taliban against the U.S. Moreover, Iran’s Chabahar port represents a strategic investment for India which hopes to use the facility to connect with the International North-South Transit Corridor (INSTC) that extends to Central Asia and to bypass Pakistan en route to Afghanistan.

Yet, as tensions rise in West Asia, Israel, Saudi Arabia and the UAE have coalesced more closely against Iran under the U.S.-sponsored Middle East Security Alliance (MESA). Concurrently, recent escalation between Iran and Israel on the Syrian front suggests that tensions are unlikely to drop soon. Amid competing demands from West Asian powers for India to take sides, India might find it difficult to maintain a “balancing” approach even if it wanted to.

For now, the Modi government seems to have taken its pick. Having practically abandoned a “balancing” approach, the Modi government has, in effect, placed its bets on Israel and the Gulf monarchies, relegating relations with Iran to the side.