22-02-2024 (Important News Clippings)

Afeias
22 Feb 2024
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Date:22-02-24

Ending discrimination

Workplaces must ensure fair treatment of woman employees

Editorial

The Supreme Court of India has come out heavily against another archaic idea with patriarchal overtones by observing that rules which penalise women employees for getting married are unconstitutional. “Terminating employment because the woman has got married is a coarse case of gender discrimination and inequality. Acceptance of such [a] patriarchal rule undermines human dignity, right to non-discrimination and fair treatment.” The observations were part of an order which upheld the rights of Selina John, a former lieutenant and Permanent Commissioner Officer in the Military Nursing Service, who was discharged from service in 1988 for getting married. A Bench headed by Justice Sanjiv Khanna directed the Union Government to pay Ms. John ₹60 lakh in compensation within eight weeks. The government had appealed in the top court against a decision of the Lucknow Bench of the Armed Forces Tribunal which had ruled in her favour in 2016. Pointing out that her dismissal was “wrong and illegal”, the Court noted that the rule against marriage was applicable only to women nursing officers. Women have been fighting a long and uphill battle for gender parity in the Army — they were granted permanent commission after judgments in 2020 and 2021. Words to the effect that the Indian Army is encouraging more women to join the forces have to be backed by deeds.

It is not that the civilian space is much better off, and women are often asked uncomfortable personal questions at job interviews. They are quizzed about future plans on marriage and motherhood. If labour participation of women in the workforce has to increase — in the latest Periodic Labour Force data (October-December 2023), India’s is at an abysmal 19.9% for women of all ages — then barriers in education, employment, and opportunities, not to talk of bullying mindsets, have to be broken down. It is a fact that many girls, especially among the poor, have to drop out of school for various reasons, from economic to lack of proper toilets. The UN’s Gender Snapshot 2023 had provided a grim picture of where the world is on gender parity, pointing out that if course correction measures are not taken, the next generation of women will still spend a disproportionate amount of time on housework and duties compared to men, and stay off leadership roles. The schemes routinely announced by the government for girls and women will mean little on the ground if they have to abide by restrictive social and cultural norms. The Court’s words that rules making marriage of women employees and their domestic involvement a ground for disentitlement are unconstitutional should be heard by all organisations so that the workplace becomes an enabler, and not a hurdle.


Date:22-02-24

बढ़ती महंगाई के कारण तलाशने की जरूरत

संपादकीय

दुनिया में गेहूं 26% सस्ता हुआ लेकिन भारत में 8% महंगा जबकि भारत एक कृषि प्रधान देश है। दुनिया में प्राकृतिक गैस के दाम 54 फीसदी कम हुए लेकिन भारत में 33 फीसदी बढ़े। ये आंकड़े बैंक ऑफ बड़ोदा की ताजा रिपोर्ट के हैं। महंगाई किसी देश के नागरिकों पर अघोषित टैक्स होती है। स्वयं सरकार बताती है कि पांच साल में जीएसटी से आय दूनी हुई है। ऑक्सफैम के अनुसार भारत में जीएसटी का 97% निम्न और मध्यम वर्ग देता है। भारत उच्च महंगाई दर में जी-20 देशों में पिछले एक साल और पांच साल के कालखंडों में दूसरे स्थान पर रहा। रिपोर्ट के अनुसार जहां गेहूं के दाम बढ़े, वहीं सोना सस्ता हुआ है। देश में जीवन-यापन की वस्तुएं तब महंगी हो रही हैं जब उनका उत्पादन भी बढ़ा है। चूंकि चुनावी वर्ष है इसलिए सरकार ने महंगाई थामने के लिए गेहूं और चावल के निर्यात पर रोक लगाई, लेकिन गेहूं और चावल के दाम बढ़ते गए। फिर अगर विश्व बाजार में गेहूं के दाम सस्ते हैं तो भारत में यह महंगाई क्यों? मांग को देखें तो गरीब तबके की क्रय शक्ति भी नहीं बढ़ी है और ना ही गेहूं की उत्पादन लागत भी अचानक बढ़ गई है। इसका सीधा मतलब है आपूर्ति तंत्र में कहीं कोई गड़बड़ी सरकार नहीं रोक सकी है। सवाल यह है कि क्या आम जनता गेहूं पहने और सोना खाए या अपने भाग्य को कोसे?


Date:22-02-24

कानून होने के बावजूद क्यों नहीं रुक रहा है दलबदल ?

अर्ध्य सेनगुप्ता,जय विनायक ओझा ( विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी के क्रमशः संस्थापक और रिसर्च फेलो )

बिहार में नीतीश कुमार ने विश्वासमत जीतकर आधुनिक भारत की सबसे दिलचस्प राजनीतिक जीवनी का एक और खंड रच दिया था। बीते एक दशक में यह चौथी मर्तबा है, जब नीतीश अपने गठबंधन सहयोगी का दामन छोड़कर विपक्ष से जा मिले हैं। इस राजनीतिक रंगमंच के चलते उस दर्शक को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जो एकबारगी भूल ही जाए कि देश में दलबदल के खिलाफ कोई कानून भी है बिहार इस कानून की विफलता का महज नवीनतम उदाहरण भर है। इससे पहले गोवा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश एवं अन्य प्रदेशों में भी विधायकों ने इस कानून में मौजूद अपवादों का फायदा उठाकर दल बदले हैं, सरकारें गिराई हैं, और नई सरकारों का गठन
करने में सफलता पाई है।

इन तमाम घटनाओं ने संविधान की दसवीं अनुसूची- जो कि दलबदल विरोधी प्रावधानों का ब्योरा देती है की तीन मुख्य कमियों को उजागर किया है अनुच्छेद 4 में दलों के विलय से सम्बंधित प्रावधान सभापति की भूमिका और जैसा कि बिहार में देखा जा रहा है, गठबंधन में शामिल दलों की जवाबदेहियां तय नहीं करना दलबदल गोवा में भी 2022 में देखा गया था, जब कांग्रेस के ग्यारह में से आठ विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे। दलों के विलय से सम्बंधित प्रावधान इसकी अनुमति देता है कि यदि एक दल के दो-तिहाई विधायक अथवा सांसद दूसरे दल में चले जाएं तो इसे दलबदल के बजाय दलों का विलय माना जाएगा और इन सदस्यों को अपात्र नहीं घोषित किया जा सकेगा। इसके पीछे यह कारण बताया गया था कि यदि किसी दल में सैद्धांतिक कारणों से फूट आती है तो उसे छोड़ने वालों पर पाबंदी नहीं लगाई जानी चाहिए। लेकिन जैसा कि हम जानते हैं, वास्तविकता कुछ और ही होती है। इसी कारण से कहा जाता है कि संविधान की दसवीं अनुसूची ने विधायकों की खुदरा बिक्री पर तो रोक लगाई है पर थोक बिक्री को जायज माना है।

अफसोस की दूसरी बात यह है कि भारत में एक निष्पक्ष सभापति नामक संस्था अभी तक जड़ें नहीं जमा सकी है। दसवीं अनुसूची के तहत पात्रता समाप्त करने सम्बंधी सभी प्रश्नों का निर्णय सभापति के अधीन होता है परंतु चूंकि भारत में अध्यक्ष पद पर पहुंचने के बाद भी विधायक और सांसद अपने दलों की सदस्यता कायम रखते हैं, इसलिए उनके पूर्वग्रह से संचालित होने की धारणा बन जाती है। विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी पाया है कि 1996 और 2004 के बीच सभापतियों के की रिपोर्ट ‘एनाटोमी ऑफ इंडियाज एंटी डिफेक्शन लॉ समक्ष पात्रता निरस्त करने सम्बंधी 55 याचिकाएं प्रस्तुत गई थीं, लेकिन केवल छह सदस्यों को ही अपन घोषित किया गया। यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय ने कीहोतो होलोहान के मामले में सभापतियों की स्वतंत्रता पर लगाम लगा दी थी। 2020 में जब राजस्थान में दलबदल का सवाल उठा था, तब सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला लेने से इंकार नहीं कर सकते हैं और न ही उसे यह भी कहा था कि सभापति अपात्रता के मामले में इतने समय तक लंबित रख सकते हैं कि मामले का कोई औचित्य ही न रह जाए। अध्यक्ष के निर्णय दुर्भावना से भी प्रेरित नहीं हो सकते हैं।

गठबंधनों का सवाल और भी पेचीदा है। चाहे गठबंधन चुनाव के पहले बने या बाद में, उनका हर सदस्य दल कानूनी तौर पर एक विशिष्ट इकाई होता है। अतः एक दल के गठबंधन छोड़ने और दूसरे से जुड़ने के निर्णय पर कानूनी सवाल नहीं उठाया जा सकता। इसी कारण से कई दल जैसे कि तेलंगाना राष्ट्र समिति एवं जनता दल (संयुक्त)- दोनों प्रमुख राष्ट्रीय गठबंधनों यूपीए एवं एनडीए में आते-जाते रहे हैं।

इस समस्या का समाधान दलबदल कानून में कुछ और प्रावधान तूंस देने से नहीं होगा। 2003 में दलों के विभाजन का प्रावधान जो किसी दल के एक-तिहाई सदस्यों को पार्टी बदलने की अनुमति देता था को हटा दिया गया और दलों के विलय की न्यूनतम सीमा दो-तिहाई हो गई। पर इस संशोधन के बावजूद अनैतिक दलबदल में कमी नहीं आई विधि की रिपोर्ट ने पाया है कि खासकर छोटे राज्यों की विधानसभाओं में जहां सभासदों की संख्या कम होती है और साथ ही जहां अक्सर एक सदस्यीय दल भी पाए जाते हैं-वहां दलों का विलय बहुत आसान साबित होता है।

इसका समाधान दलों में आंतरिक उत्तरदायित्व एवं लोकतंत्र लाना ही है। नेताओं की जवाबदेही तय हो तो उन्हें दलबदल के अपने निर्णयों को न्यायोचित ठहराने को विवश होना होगा। यह बदलाव हर पार्टी में पाई जाने वाली आलाकमान की तानाशाही को भी कमजोर कर सकता है।


Date:22-02-24

अगला चरण

संपादकीय

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने गत शनिवार भा को तीसरी पीढ़ी का मौसम संबंधी उपर इनसेट- उदीर सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया। इसे एक बड़ी उपलब्धि के रूप में सराहा गया। वह उपग्राह मौसम के पूर्वानुमान की भारत की क्षमता बढ़ाएगा। अंतरिक्ष एजेंसी इंजन के समस्यामुक्त प्रदर्शन से रोमांचित थी। उपग्रह को ले जाने वाले जीएसएलवीएफ 14 रकिट में तीसरे चरण का क्रायोजेनिक इंजन लगा था। भारत ने चार दशक तक स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन तैयार करने के लिए संघर्ष किया है। इस परिपक्व और अच्छे प्रदर्शन का देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर सकारात्मक प्रभाव तो पड़ेगा ही, साथ ही इससे सैन्य क्षमताओं को भी नए आयाम मिल सकते हैं।

क्रायोजेनिक इंजन में तरल मैसों (प्रायः हाइड्रोजन और ऑक्सीजन) के मिश्रण का इस्तेमाल किया जाता है जो ढोए जा रहे भार को तीव्र गति प्रदान करती हैं। वे रविट ज्यादा भार को तेजी से ऊपर ले जाते हैं। तरल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को बहुत कम तापमान पर अलग-अलग भंडारित किया जाता है। इन्हें साथ मिलाने पर जबरदस्त विस्फोट उत्पन्न होता है। तापमान के अंतर का प्रबंधन और भंडारण टैंक में विस्फोट होने से रोकना आसान नहीं है। इन तकनीकी दिक्कतों से निपटने के लिए बेहतरीन डिजाइन की आवश्यकता होती है और साथ ही पदार्थ विज्ञान की अच्छी समझ भी जरूरी है। भारत समेत केवल देश है जिनके पास वह क्षमता है। भारत ने रूस के इंजनों के साथ शुरुआत की थी। बहरहाल यह दोहरी तकनीक है क्योंकि इसका सैन्य इस्तेमाल भी संभव है। पोकरण-2 और भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के मिसाइल कार्यक्रम को देखते हुए अमेरिका ने इस क्षेत्र में शोध एवं विकास को बाधित करने का निरंतर प्रवास किया है। रूस ने भी तकनीक हस्तांतरित नहीं की, हालांकि उसने बीते वर्षों में छह इंजन अवश्य दिए। इसरो को रिवर्स इंजीनियरिंग को अपनाना पड़ा और नई प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। पहले 15 प्रक्षेपण में चार बार पूरी तरह और दो बार आंशिक स्तर पर नाकामी झेलनी पड़ी। इस 16वें प्रक्षेपण के बाद माना जा रहा है तकनीक में स्थिरता आई है। इस इंजन को पहले इसरो के भीतर ‘नॉटी बाँव’ का नाम दिया गया था लेकिन अब उसे ‘स्मार्ट बॉय’ कहकर पुकारा जा रहा है। यह इंजन पृथ्वी की निचली कक्षा में 6,000 किलोग्राम तक का भार ले जा सकता है जबकि ऊपरी कक्षा में यह करीब एक तिहाई भार ले जा सकता है। ध्यान रहे इनसैट-3डीएस का वजन करीब 2,275 किलोग्राम है। इससे भविष्य के मंगल वा चंद्र अभियानों की जटिलता कम होगी। यह अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना में भी मदद कर सकता है।

इसके तात्कालिक वाणिज्यिक असर भी हैं। उदाहरण के लिए चूंकि वह अधिक भार को उच्च कक्षा में ले जा सकता है इसलिए भारत वैश्विक उपग्रह कारोबार में अहम हिस्सेदार बन सकता है। इसरो के अलावा निजी क्षेत्र की स्टार्टअप भी क्रायोजेनिक इंजन तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं और वे अलग-अलग डिजाइन के साथ प्रयोग कर रहे हैं। इनसैट-3डीएस, पहले के दो इनसैट के साथ समुद्र में अधिक दूरी को दायरे में लेगा। अगला मिशन है। एनआईएसएआर (नासा- इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार) उपग्रह को प्रोषित करना। वह इसरो और नासा के बीच सहयोग के साथ अंजाम दिया जा रहा है और जीएसएलवीएफ 14 का सबसे प्रतिष्ठित मिशन है।

इसरो डीआरडीओ के साथ तथा एरोस्पेस अधिनियम के बाद निजी क्षेत्र के साथ तकनीक साझा कर सकता है। भारत के एरोस्पेस क्षेत्र ने अब पदार्थ विज्ञान संबंधी क्षमताएं विकसित कर ली हैं जिसकी मदद से कई उपयोग संभव है। अंतरिक्ष में अधिक भार ले जाने की क्षमता का अर्थ है संचार में और मजबूती। इसमें सैन्य संचार शामिल है।

क्रायोजेनिक इंजन ईंधन का इस्तेमाल करने में समय लेते हैं। इसलिए मिसाइल में इनका इस्तेमाल नहीं हो सकता है क्योंकि उन्हें तुरंत दागना होता है। अंतरमहाद्वीपीय क्षमता वाली आधुनिक बैलिस्टिक मिसाइल भी सेमी-क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल करती हैं। क्रायोजेनिक तकनीक के बाद सेमी-क्रायोजेनिक इंजन के लिए शोध एवं विकास आसान होगा। क्रायोजेनिक इंजन अच्छी खबर है। इसमें तात्कालिक के साथ दूरगामी लाभ निहित हैं।


Date:22-02-24

ऐतिहासिक फैसला

सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को चंडीगढ़ मेयर चुनाव के परिणाम को पलट दिया। शीर्ष अदालत ने भाजपा के प्रत्याशी मनोज सोनकर को विजयी घोषित करने के पीठासीन अधिकारी के फैसले को निरस्त करते हुए आम आदमी पार्टी कांग्रेस के साझा प्रत्याशी कुलदीप कुमार को विजेता घोषित कर दिया। अदालत ने चुनावी लोकतंत्र की शुचिता कायम रखने की दिशा में जो फैसला सुनाया है उसका स्वागत किया जाना चाहिए। चुनाव की निष्पक्षता बहाल रखने के लिए इस तरह के फैसले आवश्यक होते हैं क्योंकि लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव से सत्ता का हस्तांतरण आसानी से संभव हो पाता है और पराजित होने वाला प्रत्याशी चुनाव परिणामों की वैधता को स्वीकार करने में जरा देर नहीं लगाता। स्वतंत्र भारत के चुनावी इतिहास में कभी ऐसा नहीं हुआ है कि किसी पराजित प्रत्याशी ने चुनाव आयोग द्वारा घोषित परिणाम को स्वीकार नहीं किया हो। ऐसा भले हुआ है कि उसने चुनाव आयोग या अदालत का दरवाजा खटखटाया हो । लोकतंत्र की यही खूबसूरती है। चंडीगढ़ के मेयर के मामले में भी आप और कांग्रेस ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाकर पहले हाई कोर्ट और उसके बाद सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जहां उन्हें न्याय मिला। न्यायालय ने इस मामले में पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 से प्राप्त विशेषाधिकार के तहत फैसला सुनाया। इससे जाहिर होता है कि शीर्ष अदालत ने इस पूरे मामले को काफी गंभीरता से लिया और लोकतंत्र को संरक्षित रखने के अपने दायित्व का निर्वाह किया। अदालत ने भाजपा के प्रत्याशी मनोज सोनकर के वकील की ओर से नये सिरे से चुनाव कराने की मांग को यह कहकर खारिज कर दिया कि उन्होंने इस्तीफा दे दिया है। ऐसे में दोबारा चुनाव कराने की आवश्यकता नहीं है। मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़, जस्टिस जमशेद पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र की बेंच ने मेयर चुनाव के पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह को चुनाव में धांधली के लिए न केवल जिम्मेदार ठहराया, बल्कि अदालत को गुमराह करने के लिए सीआरपीसी की धारा 340 के तहत आपराधिक मुकदमा चलाने का भी निर्देश दिया । चुनावी प्रक्रिया की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बहाल रखने में अदालतों की भूमिका सराहनीय रही है। शीर्ष अदालत द्वारा लोकतंत्र की प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए चंडीगढ़ का मेयर घोषित करने के फैसले को हमेशा याद किया जाएगा।


Date:22-02-24

मखमली आवाज़ से गीतों को पिरोते थे अमीन सायानी

पवन दुग्गल, ( सूचना प्रोधोगिकी मामलों के विशेषज्ञ )

बिनाका गीतमाला सुनने वाले सभी संगीत प्रेमियों को सलाम, उपस्थित है, आपका दोस्त, आपका साथी, अमीन सायानी, तो आइए… बहनो और भाइयो, गाना है फिल्म जानेमन से और लता मंगशेकर कह रही हैं, आएगी आएगी आएगी किसी को हमारी याद आएगी…।

किसी गाने के बोल को अपने शब्दों से किस खूबसूरती से पिरो देना है, यह कलाकारी अमीन सायानी से बेहतर शायद ही कोई जानता था। उन दिनों मैं छोटी उम्र का था, लेकिन गीतमाला एक ऐसा कार्यक्रम था, जिसका हम लोग शिद्दत से इंतजार किया करते थे। तब तक देश में टीवी जरूर आ गया था, पर ज्यादातर घरों में रेडियो ही देश-दुनिया से जुड़ने का एकमात्र साधन हुआ करता था। गीतमाला करीब एक घंटे तक चलता और जब अमीन सायानी के शब्द गूंजते, तो घर, बाजार, दुकान में मानो सब कुछ थम जाता। सायानी साहब जिस तरह से फिल्मी दुनिया से जुड़ी छोटी-छोटी कहानियों को आपस में जोड़ा करते, उससे यह प्रोग्राम एक अलग ही मुकाम पर पहुंच जाता। इसीलिए हम एक नई दुनिया में खो जाते थे। लगता, एक ऐसे दोस्त के साथ बैठे हैं, जो हमें नया रास्ता दिखा रहा है। इसी वजह से गीतमाला के कई गाने या धुनें हमें आज तक याद हैं।

अब अमीन सायानी साहब भौतिक रूप में हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज हमेशा गूंजती रहेगी। वह भारतवासियों की आवाज है। जब भी रेडियो पर यह आवाज आती, तो समाज का हर तबका उसे पहचान लेता। उसमें कोई बनावटी-भाव नहीं था, जमीन की खुशबू आती थी उससे। लगता, घर का ही कोई पुकार रहा है, और हम उस ओर खिंचे चले जाते। इस आवाज की एक खासियत यह भी थी कि यह हर उम्र के लोगों को भाती थी। क्या बच्चे, क्या जवान और क्या बुजुर्ग, सभी अमीन सायानी के शब्दों से जुड़ जाते थे। वह भारत की उम्मीद और आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करते। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा भी है, हिन्दुस्तान को टूटने से बचाने में फिल्म-संगीत का बड़ा हाथ है, वरना हम तो काफी पहले बिखर चुके होते। हालांकि, ज्यादातर लोग आवाज के इस जादूगर को हिंदी तक महदूद रखते हैं, लेकिन अमीन सायानी बहुभाषी थे और रेडियो पर अलग-अलग भाषाओं के कार्यक्रम किया करते थे। रेडियो उद्घोषक के रूप में उनका पहला कार्यक्रम अंग्रेजी में था।

मुझे कई बार उनसे मिलने का मौका मिला और हर बार मैंने उनसे कुछ नया सीखा। दिलचस्प है कि उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ सीखा, करियर के दौरान सीखा, अपनी सिखाई को मांजा और फिर अपना स्तर इतना ऊंचा कर लिया कि एक चलते-फिरते संस्थान बन गए। वह सिर्फ खनकती आवाज के ही मालिक नहीं थे, बल्कि तमाम किस्म की जानकारियों का भी खजाना थे। मैं उनसे पहली बार तब मिला था, जब वह ‘कैडबरी बोर्नविटा क्वीज’ प्रतियोगिता कर रहे थे। उनके सामने आते ही मेरे हाथ-पैर सुन्न हो गए। उनकी आवाज तो बचपन से सुनता आ रहा था, लेकिन शक्ल को आवाज से मिलाना मुश्किल हो गया था। मुंह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे। मेरी इस उलझन को संभवत: सायानी साहब ने भांप लिया। यह उनकी सिफत ही थी कि सामने वाले को वह एहसास नहीं होने देते थे कि वह कितनी ऊंची शख्सियत के मालिक हैं। सामने कोई भी इंसान हो, उसे वह पूरी इज्जत देते थे। उनमें किसी किस्म का घमंड नहीं था। यही कारण था कि उनसे बातचीत करके हर कोई अभिभूत हो जाता।

ऐसी ही एक मुलाकात में मैंने पूछा कि आपने अपनी शैली कैसे विकसित की? उनका जवाब था, मैंने यही कोशिश की कि किसी की नकल न करूं। आप किसी भी जगह पर रहें, आपका प्रयास मौलिक होना चाहिए। अपनी स्टाइल खुद बनाएं। आप किसी दूसरेे की महत्वपूर्ण बातें इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन उसे अपनी शैली में ही पेश करें। मैंने भी रेडियो और टीवी पर प्रस्तुति के दिनों में सायानी साहब के इन शब्दों को जीने की कोशिश की। आज भी मैं उनकी यह सीख नहीं भूल पाता कि यदि वास्तविकता दिखाएंगे, तो आपको कभी छिपाने का कोई प्रयास नहीं करना होगा, और वह सबसे अलग भी होगी। मुझे लगता है, अमीन सयानी साहब को सच्ची श्रद्धांजलि भी यही होगी कि हम हमेशा मौलिकता में विश्वास करें और नकल से दूर रहें।