22-02-2019 (Important News Clippings)

Afeias
22 Feb 2019
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Date:22-02-19

A Calibrated Hug for Riyadh

Indrani Bagchi is The Times of India’s diplomatic editor.

Saudi Crown Prince Mohammed bin Salman had fond ideas of hanging out with the Asians to counter some of the awful profile he has built up in the West after his people reportedly worked on journalist Jamal Khashoggi with a bone-saw. ‘MBS’ walked into the India-Pakistan minefield days after the Pulwama terror attack. In the past four days, the future Saudi king was introduced to the tough act of balancing two very different relationships — between a nuclear and ideological ally and an aspiring partnership. He took the easy way out — he said to everyone pretty much what they wanted to hear.

In Pakistan, he endorsed Islamabad’s version of terrorism and agreed with them when they said UN terror listings should not be politicised. In India, he agreed to share intelligence about terrorists (most of whom are Pakistani), denounced terror as an ‘instrument of State policy’ and demanded UN list and sanction ‘comprehensively’ all terrorists. With India, he even agreed that connectivity projects should respect sovereignty — he flew to China from India. Go figure.

The Saudi visit showed the limits of the protocol-driven diplomatic mechanisms like ‘joint statements’, particularly when the mode of governance is ruler-led, instead of institution-led. This is important, because when Saudi Arabia does what it will do, don’t go back to that joint statement for reference. Instead, look at the real world. What was Saudi Arabia signalling in 2016 when Prime Minister Narendra Modi visited Riyadh? It was under pressure after the Joint Comprehensive Plan of Action (JCPOA) gave Iran a lease of life. The Saudi economy had begun to strain under the ‘limits of oil’. Riyadh had decided to do a geopolitical ‘pivot’ towards Russia, India and China. In commercial terms, the Saudis were hedging their bets away from the US towards the growing economies of Asia.

In 2019, that pivot has only intensified. Despite US President Donald Trump’s love for the Saudis and revocation of JCPOA, the US is walking out of West Asia and Afghanistan, politically and economically. Saudi Arabia will have to pay for its own lunch, and oil isn’t cutting it anymore, not with the US contributing to the glut in the world market — Iran and Venezuela are both out of the market, and oil prices are not shooting through the roof. Riyadh chews on that for breakfast every day. As for that oil refinery Saudi Arabia is building in Pakistan’s Gwadar, which could supply to China? Well, if China’s shale oil output takes off in Xinjiang, coupled with what China gets anyway from Kazakhstan, that refinery could become less attractive.

Hence, the Saudis’ commitment on investments in India. There will be similar commitments in China. They will swallow India’s antipathy to Pakistan the same way they will swallow China’s close ties with Iran. The Saudis are taking a leaf out of the UAE playbook. In the past decade, the UAE pivot towards India has been one of the most significant developments in this part of the world. We’re now seeing a similar move by the Saudis. They will be doing the same thing by investing in the National Investment and Infrastructure Fund (NIIF), infrastructure, refineries, etc.

This won’t mean Riyadh will abandon Pakistan. Pakistan is the custodian of Riyadh’s nuclear and terror assets. Pakistan will be used to put pressure on Iran — the Jaish al-Adl attack on the Islamic Revolutionary Guard Corps (IRGC) on February 13 was no coincidence. Pakistani ex-soldiers are fighting in Yemen, including their ex-army chief Raheel Sharif. Terror is an instrument of state policy in that part of the world. Pakistan obliges, in return for largesse.

India has slapped down Saudi suggestions of ‘de-escalation’, ‘mediation’ etc. Remember how long it took the US to ‘de-hyphenate’ India and Pakistan. Diplomatically, India has to ‘just get along with everyone’ until the Saudis figure things out. And why did Modi hug MBS, fresh out of terror-state Pakistan? For most Indians, it was frankly too much to swallow. But perhaps Modi knew it was a PR gamble. Looking at the bigger canvas, however, he may have figured that MBS would stay ruler of Saudi Arabia for the next few decades. If India has to invest in Saudi Arabia, it would not do to publicly snub him as a visiting head of state. The Saudi side got India’s messages quietly. And no one lost face. That’s important in Asia.


Date:22-02-19

हमारे लिए आर्थिक ही नहीं, रणनीतिक रूप से भी अहम है सऊदी अरब

लेफ्टि. जन. (रिटायर्ड) सैयद अता हसनैन , ( कश्मीर में 15वीं कोर के पूर्व कमांडर )

सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) दिल्ली आए थे, चाहे उनके यहां आने का यह सबसे अच्छा वक्त नहीं था। पाकिस्तान पर उनका अत्यधिक प्रभाव है। पाकिस्तान को आतंकियों पर लगाम लगाने के लिए मजबूर करने हेतु एमबीएस जैसे प्रभावशाली व्यक्तित्व के जरिये राजनयिक विकल्प बहुत महत्वपूर्ण है। दो बातें सऊदी अरब को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती हैं। एक, वहां मक्का-मदीना जैसे इस्लाम के सर्वोच्च श्रद्धास्थान हैं। दो, उसके पास कच्चे तेल की संपदा है, जिसने उसे अपार संपदा दी है। अभी सलमान उस युग के लिए अपने देश को तैयार कर रहे हैं, जब अर्थव्यवस्था कच्चे तेल से नहीं चलेगी। उन्होंने अमेरिका से बहुत अच्छे रिश्ते बना लिए हैं। अपेक्षा के विपरीत उन्होंने ईरान के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए इजरायल से भी मैत्री स्थापित की है। भारत ऐसी अनूठी स्थिति में है, जिसमें उसके सऊदी अरब, ईरान, अमेरिका और इजरायल सबके साथ मजबूत रिश्ते हैं। सऊदी अरब हमारे लिए रणनीतिक रूप से इसलिए अहम है कि वहां से कच्चे तेल की अबाधित आपूर्ति होने के अलावा वहां 28 लाख भारतीय काम करते हैं, जो भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा भेजते हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था बढ़ने के साथ सऊदी अरब के लिए यहां कच्चा तेल बेचने के अच्छे अवसर हैं। यह इसलिए अहम है, क्योंकि शेल ऑइल क्रांति के बाद कच्चे तेल के लिए सऊदी अरब पर अमेरिका की निर्भरता घटी है। सऊदी अरब गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (जीसीसी) का प्रभावशाली सदस्य है। इसे यूएई के मोहम्मद बिन जायेद के साथ सलमान ही चलाते हैं। दोनों युवा नेता अपने-अपने देशों में उदार नीतियां लाने में लगे हैं। वे लंबे समय से कायम रूढ़ीवादी मानसिकता बदलने में लगे हैं। हाल ही में पोप फ्रांसिस की सऊदी अरब उचित संदेश देने के लिए ही आयोजित की गई थी। भारत, सऊदी अरब और इजरायल के मजबूत रिश्ते होने का खुफिया जानकारी जुटाने और आतंकवाद विरोधी उपायों में बहुत मदद मिलती है। आर्थिक पक्ष देखें तो सऊदी अरब की कंपनी सऊदी आरामेको भारत की सबसे बड़ी रिफाइनरी में 44 अरब डॉलर का निवेश कर रही है। दोनों देशों के बीच 28 अरब डॉलर का व्यापार है, जो बहुत कम है। 100 अरब डॉलर निवेश का सलमान का वादा भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आकर्षक है।

हालांकि, यमन ऐसा मुद्‌दा है जो सऊदी अरब के गले की हड्‌डी है। ईरानी प्रभाव से चिंतित सऊदी अरब ने अन्य देशों के सहयोग से यह विनाशकारी युद्ध छेड़ा। सऊदी अरब चाहता है कि उसके संसाधनों से पाकिस्तानी फौज उसकी ओर से यह युद्ध लड़े। अभी तक पाक को मनाने में उसे सफलता नहीं मिली है। ऐसे में यह अहम है कि भारत अपनी मध्य-पूर्व नीति को बहुत बुद्धिमानी से संचालित करे और संतुलन बनाए रखे। सऊदी युवराज सलमान भावी अंतरराष्ट्रीय राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाएंगे और इसे देखते हुए उनकी मौजूदा यात्रा बहुत महत्व रखती है।


Date:21-02-19

निवेश की राह

संपादकीय

सरकार ने स्टार्टअप योजना को गति देने की मंशा से इसमें निवेश करने वाली कंपनियों को कर में बड़ी राहत का एलान किया है। अब स्टार्टअप कंपनियों में पच्चीस करोड़ रुपए तक निवेश करने पर कोई कर भुगतान नहीं करना पड़ेगा। अभी तक यह सीमा दस करोड़ रुपए थी। इसके अलावा स्टार्टअप की परिभाषा में भी बदलाव किया गया है, जिसके तहत अब अपने पंजीकरण से दस साल तक परिचालन करने वाली कंपनियां भी निवेश कर सकेंगी। पहले यह सीमा सात साल थी। अब सौ करोड़ नेटवर्थ या ढाई सौ करोड़ रुपए का सालाना कारोबार करने वाली कंपनियां भी निवेश कर सकेंगी। इसी तरह स्टार्टअप में निवेश संबंधी कुछ और नियमों को लचीला बनाया गया है। इस तरह निवेशकों का दायरा बढ़ने और स्टार्टअप कंपनियों को कुछ गति मिलने की उम्मीद बनेगी। आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग इसे लेकर उत्साहित है।

दरअसल, स्टार्टअप केंद्र सरकार की महत्त्वाकांक्षी योजना है। इसे इस मकसद से शुरू किया गया था कि देश के तकनीकी रूप से दक्ष युवा नौकरियों के पीछे भागने के बजाय अपना काम शुरू कर सकेंगे। नए रोजगार भी सृजित होंगे। अभी तक बहुत सारे युवा इसलिए अपना कारोबार शुरू नहीं कर पा रहे थे कि उन्हें पूंजी जुटाने में मुश्किलें आती थीं। मगर मौजूदा सरकार ने इसके लिए अलग से प्रावधान किए और नए रोजगार शुरू करने के लिए खूब प्रोत्साहित किया। बैंकों से कर्ज की सुविधा बढ़ाई गई। ऋण संबंधी शर्तों को लचीला बनाया गया। मगर जैसी उम्मीद की गई थी, यह योजना वैसी गति नहीं पकड़ पाई। माना जा रहा था कि कंपनियां स्टार्टअप योजना में निवेश के लिए आगे आएंगी, नए उद्यमों को प्रोत्साहन देंगी और अपने कारोबार में बढ़ोतरी करेंगी। मगर उत्साहजनक नतीजे नहीं निकल पाए। इसलिए नए संशोधन के तहत निवेश करने वाली कंपनियों के लिए आयकर में छूट की सीमा बढ़ाई गई है। माना जा रहा है कि स्टार्टअप योजना के गति पकड़ने से न सिर्फ रोजगार संबंधी समस्या का समाधान निकलेगा, बल्कि विकास दर को भी लक्ष्य तक पहुंचाने में आसानी होगी। इसलिए स्टार्टअप को गति देने की सरकार की चिंता स्वाभाविक है।

अच्छी बात है कि सरकार ने नए उद्यमों को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ छोटे और मझोले उद्यमों की स्थिति सुधारने पर भी ध्यान केंद्रित किया है। पिछले दिनों छोटे और मझोले उद्यमों को एक करोड़ रुपए तक के कर्ज बिना शर्त दिए गए। कोई भी बैंक ऐसे उद्यमों को कर्ज देने से मना नहीं कर सकता। इसी क्रम में स्टार्टअप को आगे बढ़ाने का प्रयास हो रहा है। इस तरह इन इकाइयों की दशा सुधरने से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। पर हकीकत यह है कि कोई भी कारोबार सिर्फ उत्पादन पर ज्यादा समय तक नहीं टिकता। उसके लिए बाजार की जरूरत पड़ती है। स्टार्टअप के तहत उत्पादन पर जोर तो है, पर बाजार में खपत उस अनुपात में बढ़ने की गुंजाइश बहुत कम रह गई है। विदेशी बाजारों में भी भारत के लिए बहुत कम जगह है। निर्यात की दर संतोषजनक नहीं है। फिर उन बड़ी कंपनियों के उत्पादों और सेवाओं से प्रतिस्पर्द्धा है, जिन्हें सस्ती दर पर वे उपलब्ध करा रही हैं। इसी सबके मद्देनजर निवेशक उत्साहित नजर नहीं आते। कोई भी निवेशक अपनी पूंजी उसी उद्यम में लगाना चाहता है, जिसमें मुनाफे की गुंजाइश है। इसलिए स्टार्टअप में निवेश की राह आसान बनाने के साथ-साथ बाजार के विस्तार पर भी विचार होना चाहिए।


Date:21-02-19

Enterprise Epowerment

Small businesses can lead to financial self-sufficiency,empower rural women

Clement Chauvet , [ The writer is the chief of skills and business development at UNDP India. ]

In Dhani Shankar village, Bhiwani, Renu makes colourful bangles and cosmetic creams using natural ingredients. Renu was lucky to have received the support of her husband in starting her own enterprise. She was motivated to do this after attending a three-day Start-And-Improve-Your-Business training in Jui village, and, she started her shop with Rs 10,000. Now, Renu tells me, she makes a profit of Rs 8,000 in a month. Renu also motivates other women in her village as a Biz Sakhi and, with her help, 14 women have started their own businesses.

When Renu came to participate in the discussion on promoting entrepreneurship, she told me that rural women often face problems in entering the workforce due to their domestic duties. In fact, on an average, Indian women spend 297 minutes daily on unpaid care work.

The need to improve women’s participation in the economy has been a long-standing priority and is also crucial towards achieving the Sustainable Development Goals, too. In recent years, entrepreneurship has emerged as an ideal way for rural women to contribute, by taking a few hours out of their day they can engage in small businesses and bring home additional income. There are multiple programmes which offer support to such women such as the Start and Improve Your Business Program (SIYB) of the International Labour Organization (ILO) and the government’s Trade Related Entrepreneurship Assistance and Development (TREAD). Our ongoing partnership with Hero MotoCorp Ltd and the Government of Haryana too seeks to positively impact the lives of 14,000 underprivileged women like Renu through training and entrepreneurial skill development.

However, recent data released by the Ministry of Statistics and Programme Implementation shows that women constitute only 14 per cent of the total entrepreneurs in the country. So, what is stopping more rural women from getting involved in entrepreneurship?

Through its pilot programmes with rural women under the Disha Programme, UNDP India has come to realise that one of the reasons for this lack of uptake is the absence of mentorship for women entrepreneurs. Women in rural areas face multiple barriers to pursuing income-generating activities, with patriarchal family and societal norms being the primary hurdle. Renu was of course lucky to have a very supportive husband.

Other issues include lack of awareness about opportunities, difficulty in accessing formal financing and poor customer management skills. It is clear that providing opportunities isn’t enough — these women need to be made aware and guided through the process to ensure they are successful.

Trained by Disha Project – a partnership between UNDP India, IKEA Foundation and India Development Foundation, the Biz Sakhis are women from rural communities who guide budding female entrepreneurs through multiple processes and provide both practical and psychological support to them. As a first step, they encourage rural women to start their own businesses by making them aware of entrepreneurship as a realistic opportunity, and, by informing them of the benefits of starting their own small businesses.

However, even after the women are trained, access to finance remains a big hurdle for rural women who often dip into their savings or take loans from their family. Biz Sakhis are instrumental at this point in helping them access formal banking channels for loans, by providing them information about schemes such as the Mudra Yojana Scheme of the government.

 Again, even with financing, small female-run businesses often fail due to poor understanding of the market. Biz Sakhis provide inputs to help women access market linkages and introduce them to a variety of business models and ideas to help them scale up. They also work with small business owners to develop their communication skills, and to be able to persuade and negotiate with stakeholders within the ecosystem of their businesses.

However, the most important role that Biz Sakhis play in the lives of rural entrepreneurs, is to be the source of emotional and psychological support. It helps these women to become more confident in their abilities and have the determination to continue with their businesses. Often, family pressures and societal norms discourage women from engaging in such activities or cause them to abandon their business in the wake of community backlash. Being from the community themselves, Biz Sakhis such as Renu can effectively engage with women and the community at large to counter such barriers and empower rural women to sustain their businesses.