
20-03-2025 (Important News Clippings)
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No Wrong Turns on Land Acquisition
ET Editorials
Land acquisition for expanding India’s crucial National Highways Authority of India (NHAI) network has long sparked controversy, with protests simmering in many states. The challenges are well-documented: lack of executive transparency, excessive bureaucratic control, inadequate compensation and insufficient rehabilitation measures, leading to protracted legal disputes. To speed up land acquisition and minimise disputes, GoI has proposed amendments to the National Highways Act 1956. One key proposal is to return land acquired for highway projects to the original owners if it remains unused for five years. The plan is awaiting Cabinet approval.
Land for highway projects is acquired under Section 3 of the Highways Act, with compensation determined as per the Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement (RFCTLARR) Act 2013. RFCTLARR’s Section 101 states, ‘If land bought by the government under this law isn’t used within five years after the government takes control, it must be given back to the people who originally owned it, their heirs, or placed into a Land Bank.’ In a way, GoI is incorporating a segment of the umbrella Act into the NHAI Act. Many states have shown a preference for the land bank route, angering landowners.
GoI’s proposal to return unused land to the owners is welcome and, if it works, should be extended to other large-scale infrastructure projects. This could ease opposition and add fairness —critical because many projects have faced protests due to executive miscalculation — by recognising that land is often a family’s most valuable tangible asset, tied to a family/community’s livelihood and identity. Building trust in the process is essential for smoother development and lasting cooperation.
सुनीता विलियम्स की सकुशल वापसी से राहत
संपादकीय
सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर की आईएसएस पर 286 दिनों के ठहराव के बाद पृथ्वी पर सकुशल वापसी दुनिया के लिए राहत भरी थी। ऐसा नहीं कि यह पहली बार हुआ है। रूस ने स्पेस स्टेशन की परिकल्पना को 21 साल पहले साकार करते हुए मीर स्पेस स्टेशन से अपने पहले एस्ट्रोनॉट क्लारी पोलिअकोव को 438 दिनों तक अंतरिक्ष में रखा था। पिछले 25 वर्षों में ऐसा कोई क्षण नहीं रहा, जब स्पेस स्टेशन बगैर एक भी एस्ट्रोनॉट के रहा हो । कुछ अन्य रूसी एस्ट्रोनॉट्स पांच बार स्पेस आते-जाते रहे हैं। सुनीता की यह वहां पर तीसरी पारी थी। अभियान का मकसद था निजी पूंजी आकर्षित करना ताकि कंपनियां यात्रियों को अपने स्पेसक्राफ्ट से आईएसएस तक (स्पेस टूरिज्म के तहत ) ढोना शुरू करें और नासा को अन्य शोधपरक अभियानों के लिए समय मिले। मस्क की कंपनी स्पेसएक्स इसमें पहली निवेशक बनी। सुनीता और विल्मोर को लेकर स्पेसएक्स का बोइंग निकला। इसमें हीलियम के लीकेज का पता चला, फिर भी किसी तरह दोनों को स्टेशन तक पहुंचा सका। दोनों की वापसी नौ माह से अधिक तक टलती रही। अंततः ये ही नहीं, साथ में दो और एस्ट्रोनॉट्स, जो अन्य मिशन के थे, भी लौटे। स्पेस में मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और हड्डियां गलने लगती हैं। अगले कुछ हफ्ते एस्ट्रोनॉट्स को सहज रूप से चलाने और बोन डेंसिटी बढ़ाने के प्रयास होंगे। दोनों की मनोदशा का भी अध्ययन किया जाएगा। बहरहाल सुनीता विलियम्स के सकुशल आने पर बधाई !
Date: 20-03-25
शहरीकरण की चुनौतियां
संपादकीय
नीति आयोग के पूर्व सीईओ और जी-20 शेरपा अमिताभ कांत ने रायसीना डायलॉग के मंच से देश के विकास में सतत शहरी विकास की महत्ता के बारे में जो कुछ कहा, उसे हमारे नीति-नियंता समझें और शहरों को समस्याओं से मुक्त करने के लिए ठोस कदम उठाएं तो बेहतर। अमिताभ कांत ने यह जो कहा कि शहर विकास, नवाचार और समृद्धि के केंद्र हैं, वह कोई नई-अनोखी बात नहीं।
यह पूरी दुनिया में स्थापित हो चुका है कि शहर विकास के वाहक हैं। भारत में भी कुछ शहर इसके परिचायक हैं और यह इस उदाहरण से साबित होता है कि मुंबई का सकल घरेलू उत्पाद 18 भारतीय राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद से अधिक है। इसी तरह नोएडा का सकल घरेलू उत्पाद कानपुर से 12 गुना अधिक है।
यह निराशाजनक है कि शहरों की इस महत्ता से परिचित होने के बाद भी उनमें नियोजित विकास सुनिश्चित नहीं किया जा पा रहा है। इसका परिणाम यह है कि वे समस्याओं से घिरते जा रहे हैं और बढ़ती आबादी के बोझ तले दबते चले जा रहे हैं। यह तब है, जब यह बार-बार सामने आ रहा है कि आने वाले समय में शहरों की आबादी तेजी से बढ़ेगी।
इसे देखते हुए होना तो यह चाहिए कि शहरों के समुचित विकास पर प्राथमिकता के आधार पर ध्यान दिया जाए और उन्हें इस तरह विकसित किया जाए कि उनमें उद्योग-धंधे तेजी के साथ फल-फूल सकें।
आवश्यकता केवल यह नहीं है कि शहरीकरण की चुनौतियों से पार पाने पर अतिरिक्त ध्यान दिया जाए, बल्कि यह भी है कि विकास के मामले में हमारे शहर एक-दूसरे से होड़ लें। आज देश में कई मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद, नोएडा आदि होने चाहिए। वैसे तो इसकी चिंता केंद्र और राज्य सरकारों को भी करनी होगी, लेकिन सबसे अधिक सजगता का परिचय नगर निकायों के जनप्रतिनिधियों को देना होगा।
दुर्भाग्य से वे ऐसा नहीं कर रहे हैं। वे शहरों के बुनियादी ढांचे को सुधारने और संवारने के बजाय अपने वोट बैंक की चिंता करते हैं। इससे भी खराब बात यह है कि वे ऐसा करते हुए न केवल विकास की अनदेखी करते हैं, बल्कि शहरी जीवन की समस्याएं बढ़ाने वाले काम करते हैं। इसी कारण हमारे शहरों में अतिक्रमण, प्रदूषण आदि बेलगाम होता दिखता है और झुग्गी बस्तियां खत्म होने के बजाय बढ़ती चली जा रही हैं।
यह वोट बैंक की सस्ती राजनीति का ही नतीजा है। हमारे औसत पार्षद, मेयर आदि अपनी मूल जिम्मेदारी का निर्वाह ही नहीं करते। यदि शहरों को वास्तव में विकास का इंजन बनाना है तो फिर नगर निकायों के प्रतिनिधियों को जवाबदेह बनाने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं। अच्छी तरह विकसित शहर अर्थव्यवस्था को बल देने के साथ रोजगार के केंद्र बनते हैं और लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाते हैं।
चुनौतीपूर्ण वापसी
संपादकीय
लंबे इंतजार के बाद आखिर, अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर दो अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के साथ स्पेसएक्स के ड्रैगन कैप्सूल के जरिए पृथ्वी पर वापिस आ गए। दोनों एस्ट्रोनॉट जून में केवल आठ दिनों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्टेशन पर गए थे मगर धरती पर वापस लाने वाले वाले यान के खराब होने के कारण नौ महीनों बाद वापसी संभव हुई। स्पेसएक्स एलन मस्क की कंपनी है, जिसका ड्रैगन कैप्सूल फ्लोरिडा के तटीय समुद्र में उन्हें लेकर सत्रह घंटों में सुरक्षित गिराया गया। नासा की लाइव तस्वीरों द्वारा दुनिया भर में बेसब्री से इंतजार कर रहे लोगों ने अंतरिक्ष यात्रियों को देखा । अंतरिक्ष में तकरीबन 286 दिन बिताने वाले इन यात्रियों ने प्रति दिन सोलह बार सूर्योदय और सूर्यास्त देखा। जांच के बाद विशेषज्ञों का कहना है कि उनका स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक है। हालांकि वे कुछ समय के लिए रिकवरीशिप में रहेंगे। उसके बाद परिवार से मिलने की इजाजत दी जाएगी। फिर वे अपने अनुभव विशेषज्ञों से बांटेंगे और लंबी छुट्टी पर चले जाएंगे। अंतरिक्ष में रहने का वक्त अधिकतम छह माह माना गया है, मगर सुनीता और बुच को नौ माह रहना पड़ा जिसका शरीर पर गहरा असर होता गुरुत्वाकर्षण शून्य होने के कारण खून का प्रवाह प्रभावित होता है और हड्डियां/मांसपेशियां कमजोर होती जाती हैं। हालांकि यह धरती के वातावरण में आते ही प्राकृतिक रूप से सामान्य होता जाएगा। इसका मानसिक सेहत पर भी गहरा असर हो सकता है। क्योंकि बार-बार यात्रियों के पृथ्वी पर लौटने की उम्मीदें नाममात्र रहने ने इन्हें बुरी तरह अवश्य प्रभावित किया होगा। नासा ने बाताया कि इस दरम्यान विलियम्स ने 150 वैज्ञानिक प्रयोग किए और नौ सौ घंटे रिसर्च में बिताए जो अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए मददगार साबित हो सकते हैं | अंतरिक्ष में मैराथन दौड़ने वाली पहली अंतरिक्ष यात्री रहीं विलियम्स अपनी तीन अंतरिक्ष यात्राओं के दौरान बासठ घंटों से ज्यादा का स्पेस वॉक कर चुकी हैं। उनके पिता भारतीय हैं, इसलिए सुनीता के सुरक्षित लौटने को लेकर भारतवासी चिंतित थे। उन्होंने विभिन्न धार्मिक आयोजन किए। अंतरिक्ष में समोसे और गीता – उपनिषद ले जाने की बात कर विलियम्स ने भारतीयों में और भी अपनायित पैदा कर दी थी। इसका बड़ा श्रेय तो मस्क को ही जाता है। हालांकि उन्होंने इसे अमेरिकी चुनावों राजनीतिक जंग के तौर पर इस्तेमाल किया था । बहरहाल, अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षित वापसी ने दुनिया भर में मुस्कुराहट फैलाने का काम किया है।
Date: 20-03-25
जल रहा है सीरिया
डॉ. ब्रह्मदीप अलूने
राजनीतिक अस्थिरता, धार्मिक हिंसा, चरमपंथ, आतंकवाद और विदेशी हस्तक्षेप सीरिया की प्रमुख समस्या रही हैं, और लगता है कि असद के पतन के बाद भी मध्य-पूर्व के इस देश में शांति लौटती हुई दिखाई नहीं दे रही है। असद के समर्थकों को मोहम्मद अल- जुलानी पर भरोसा नहीं है, और उनकी आशंका सच भी साबित हुई है। अल्पसंख्यक अलावी समुदाय के हजारों लोगों को मार दिया गया है। ऐसे तथ्य सामने आए हैं कि हयात तहरीर अल- शाम के सुरक्षा बलों को पूर्व राष्ट्रपति असद के समर्थकों से लड़ने के लिए भेजा गया है।
सीरियाई सुरक्षा बलों द्वारा सीरियाई तट के गांवों और इलाके के लोगों की हत्या कब्जा और यातना के कई वीडियो सामने आ रहे हैं, जिन्हें लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गहरी चिंता जताई जा रही है। सौरिया की अंतरिम सरकार ने देश के तटीय इलाकों लताकिया और टार्टस में बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात किया है। लताकिया में अलाबाइट्स, सुन्नी मुस्लिम और ईसाई जैसे जातीय और धार्मिक समूह रहते हैं। लाताकिया सीरिया का अलावाइट बहुल क्षेत्र है, और यहां अलावाइट समुदाय का विशेष प्रभाव है। टार्टस सीरिया के पश्चिमी तट पर स्थित है, और यहां अलावाइट समुदाय की अधिकता है। यह इलाका बशर अल-असद का प्रमुख गढ़ माना जाता है। देश के तटीय इलाकों में अलावी और ईसाई अल्पसंख्यक समुदाय पर सुरक्षा बलों के हमलों का असर देश के दूसरे कई इलाकों पर पड़ रहा है, और इससे तनाव गहरा गया है।
मोहम्मद अल- जुलानी देश में बाहरी हस्तक्षेप रोकने की बात कह रहे थे लेकिन उनके कदम ठीक इससे उलट दिखाई दे रहे हैं। सीरिया की सरकार ने देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने और पेशेवर सेना तैयार करने के लिए देश के सशस्त्र बलों में उइगर, जॉर्डनियन और तुर्क सहित कुछ विदेशी लड़ाकों को प्रमुख जिम्मेदारियां सौंपी हैं उनका यह कदम अन्य जातीय धार्मिक समूहों के लिए विचलित करने वाला है। जुलानी का आईएस से गहरा संबंध रहा है, और दुनिया के इस सबसे दुर्दात आतंकी संगठन का किसी देश में सीमा पर कोई विश्वास नहीं है, आईएस को विदेशी लड़ाकों की
सुस्थापित सैन्य इकाई माना जाता है। जुलानी ने आईएस से अलग होकर ही हयात तहरीर अल- शाम नामक गुट बनाया था और वे खुद को उदार नेता के रूप में प्रस्तुत कर सीरिया के कई जातीय समूहों का विश्वास जीतने में सफल भी हो सके। लेकिन अब जब देश की कमान उनके हाथ में आई तो उन्हें लेकर आशंकाएं भी कम नहीं हैं। एचटीएस की स्थापना 2011 में एक अलग नाम, जबात अल नुसरा के तहत अल-कायदा के प्रत्यक्ष सहयोगी के रूप में की गई थी। स्वयंभू इस्लामिक स्टेट का नेता अबू बक्र अल- बगदादी भी इसके गठन में शामिल था। अल- जुलानी ने सार्वजनिक रूप से अल कायदा और इस्लामिक स्टेट से नाता तोड़ लिया है, लेकिन वे सुन्नी मुसलमान हैं, जो खलीफाओं के प्रभुत्व को स्वीकार करते हैं।
खलीफा अरबी भाषा में ऐसे शासक को कहते हैं, जो किसी इस्लामी राज्य या अन्य शरिया से चलने वाली राजकीय व्यवस्था का शासक हो। यह इस्लाम की पारंपरिक और प्राचीन विचारधारा है, जिस पर बहुसंख्यक सुन्नी भरोसा करते हैं। दुनिया में आईएस के उभार के केंद्र में इस विचारधारा को रखा गया जब एक दशक पहले इस्लामी चरमपंथी संगठन आईएस ने इराक और सीरिया में अपने कब्जे वाले इलाकों में खिलाफत यानी इस्लामी राज्य का ऐलान किया। शिया मुसलमान इतिहास की इस व्याख्या को स्वीकार नहीं करते हैं।
असद के जाने के बाद शिया गहरे दबाव में हैं। अलावी, इस्माइलिस और अन्य शिया सीरिया की आबादी का करीब तेरह फीसद हिस्सा हैं बशर अल-असद सरकार के पतन से पहले उनकी शासन व्यवस्था में सकारात्मक स्थिति मौजूद थी। हयात अल-शाम को सुन्नियों का संगठन माना जाता है, यदि इस विद्रोही संगठन ने शियाओं को निशाना बनाने की कोशिश की तो सीरिया में ईरान और तुर्की के हित भी टकराएंगे। सीरिया में तुर्की ईरान की जगह ले सकता है।
सीरिया की बाईस मिलियन आबादी में से दसवां हिस्सा ईसाइयों का है। रूस खुद को बीजान्टिन साम्राज्य और उसकी रूढ़िवादी ईसाई धार्मिक विरासत के प्राकृतिक उत्तराधिकारी के रूप में देखता है, जो सीरियाई रूढ़िवादी ईसाई चर्च से बहुत जुड़ा हुआ है। वहीं अपनी रणनीतिक स्थिति मजबूत करने के लिए भी रूस सीरिया में बने रहना चाहता है, जिससे वह पूर्वी भूमध्य सागर, दक्षिणी यूरोप और उत्तरी अफ्रीका तक अपनी मौजूदगी को बढ़ा सके। भूमध्य सागर में रूस की रणनीति तीन प्रमुख लक्ष्यों पर केंद्रित है, भूमध्य सागर की भौगोलिक स्थिति का लाभ उठा कर अपनी सुरक्षा में सुधार करना, धूमध्य सागर में अपनी स्थिति का उपयोग करके अमेरिका के लिए एक वैकल्पिक विश्व शक्ति के रूप में रूस की स्थिति को बढ़ाना और सीरिया में अपनी उपस्थिति को मजबूत करना। रूस का काला सागर बेड़े के लिए एकमात्र भूमध्यसागरीय नौसैनिक अड्डा सीरिया के बंदरगाह शहर टार्टस में स्थित है। टार्टस सीरिया के पश्चिमी तट पर स्थित है, और यहां अलावाइट समुदाय की अधिकता है। अब अलावी समुदाय के लोग रूस से सुरक्षा की गुहार लगा रहे हैं। सीरिया में रूस, तुर्की, ईरान, सऊदी अरब और अमेरिका का गहरा दखल है। तुर्की सीरिया की वर्तमान सुन्नी सरकार को समर्थन देकर कुर्दों पर दबाव बढ़ा रहा है।
सीरिया में तुर्की की प्राथमिक रुचि उत्तरी सीरिया में कुर्द समूहों से लड़ने के लिए एक बफर जोन और एक पुलाहेड बनाने की रही है उत्तरी सीरिया के कुर्द बल में कुर्दिश पीपुल्स प्रोटेक्शन यूनिट्स मिलीशिया का दबदबा है। तुर्की इसे अपनी सीमा पर मौजूद खतरे की तरह देखता है। तुर्की कुर्दों के एक हिस्से को आतंकवादी समूह बताता है। असद को ईरान का समर्थन हासिल था लेकिन अब तुर्की समर्थक सरकार बनने से मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक परिदृश्य बदल गया है। मोहम्मद अल- जुलानी को अपने देश में शांति की स्थापना के लिए विदेशी हस्तक्षेप को रोकना होगा और सभी वर्गों से बातचीत कर सर्वमान्य सरकार बनाना होगा। फिलहाल, जुलानी आर्दोआन के हितों को आगे बढ़ा रहे हैं, और यह स्थिति सीरिया में गृह युद्ध की आशंका को बढ़ा रही है।
Date: 20-03-25
साहस देती सुनीता की सफलता
प्रदीप कुमार मुखर्जी, ( पूर्व प्रोफेसर व विज्ञान लेखक )
नौ महीनों से भी अधिक समय तक अंतरिक्ष में फंसे रहने के बाद आखिरकार भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर 19 मार्च, 2025 की सुबह 3:27 बजे स्पेसएक्स के ड्रैगन कैप्सूल से धरती पर वापस लौट आए। उनके साथ दो अन्य आंतरिक्ष यात्री नासा के निक हेग और रूसी अंतरिक्ष यात्री अलेक्जेंडर गोनोव भी लौटे हैं। ये चारों अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर क्रू-9 के सदस्य थे। उनकी जगह लेने के लिए चार अन्य अंतरिक्ष यात्री नासा की ऐनी मैक्लेन और निकोल एयर्स, जापान के ताकुवा ओनिशी और रूस के किरिल पेस्कोव 16 मार्च की सुबह आईएसएस पहुंचे थे। ये चारों अंतरिक्ष यात्री क्रू – 10 के सदस्य हैं, जो आईएसएस पर अगले छह महीनों तक कार्य करेंगे।
गौरतलब है, बोइंग स्टारलाइनर नामक अंतरिक्ष यान से 5 जून, 2024 को यात्रा आरंभ कर सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर 6 जून को आईएसएस पहुंचे थे। इन दोनों यात्रियों की धरती पर वापसी 13 जून, 2024 को ही होनी थी, पर बोइंग स्टारलाइनर में हीलियम- रिसाव और इसके प्रस्टरों में खराबी आने के कारण स्टारलाइनर को इन यात्रियों के बिना ही 7 सितंबर, 2024 को धरती पर लौट आना पड़ा था और अब अंतरिक्ष यात्रियों की ड्रैगन अंतरिक्ष यान से सकुशल वापसी ने सबको आनंद विभोर करने के साथ-साथ उत्साहित कर दिया है।
अंतरिक्ष में पहुंचना और वहां से लौटना, दोनों रोमांचक होने के साथ-साथ घोर जोखिम भरा होता है। भारतीय मूल की ही अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला के दुखद अंत को हम भूल नहीं सकते। अंतरिक्ष प्रवास के दौरान अनेक तरह की समस्याओं के साथ शारीरिक समस्याएं भी अंतरिक्ष यात्रियों को झेलनी पड़ती हैं, बल्कि धरती पर वापस लौटने के बाद भी शारीरिक परेशानियां उनका पीछा नहीं छोड़तीं। बहरहाल, यह वक्त सुनीता विलियम्स की अंतरिक्ष यात्राओं और उनके द्वारा वहां बनाए गए कीर्तिमानों पर गौर करने का है। सुनीता 19 सितंबर, 1965 को अमेरिकी शहर बूक्लिड (ओहियो) में पैदा हुई। पिता दीपक पांड्या एक जाने-माने चिकित्सक हैं, जिनका संबंध गुजरात से है। वर्ष 1998 में सुनीता का चयन अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा में हुआ था। डिस्कवर शटल पर 9 दिसंबर, 2006 को वह अपने पहले अंतरिक्ष अभियान पर गई थीं, जिसमें आईएसएस अभियान 14 व 15 के साथ वह जुड़ी थीं। अपने इस अभियान में 195 दिन बिताकर वह 22 जून, 2007 को धरती पर लौटीं। इस अभियान में सुनीता ने चार बार कुल 29 घंटे 17 मिनट तक अंतरिक्ष में चहलकदमी की थी । यान से बाहर निकलकर अंतरिक्ष में चहलकदमी करने को ‘स्पेसवॉक’ कहते हैं।
सुनीता का दूसरा अंतरिक्ष मिशन सोयूज नामक रूसी यान से 15 जुलाई, 2012 को शुरू हुआ। इस अभियान में उन्हें आईएसएस एक्सपीडिशन 33 का कमांडर बनाया गया था। करीब चार महीने अंतरिक्ष में बिताने के बाद 19 नवंबर, 2012 को वह कजाकिस्तान में धरती पर उतरीं। इस दूसरे अभियान में सुनीता ने 127 दिन अंतरिक्ष में बिताए। इस दौरान उन्होंने कुल 21 घंटे, 23 मिनट तक स्पेसवॉक भी किया। कुल नौ बार स्पेसवॉक करने का रिकॉर्ड सुनीता के नाम है। उन्होंने कुल 62 घंटे 6 मिनट का स्पेसवॉक किया है, जो अब तक का सर्वाधिक रिकॉर्ड है। दस बार स्पेसवॉक कर चुकीं येगी व्हिटसन इस मामले में दूसरे पायदान पर हैं।
अंतरिक्ष स्टेशन पर पिछले नौ महीनों की अवधि में सुनीता और विल्मोर ने अपना समय कैसे व्यतीत किया ? ये दोनों अंतरिक्ष यात्री पुराने उपकरणों की मरम्मती और रख-रखाव करने के अलावा हार्डवेयर बदलने का कार्य करते रहे। इन्होंने आईएसएस के बाहर खराब हो चुके रेडियो संचार हार्डवेयर को हटाया तथा इस समस्त प्रक्रिया में पैदा हुए ढेर सारे कचरे को पृथ्वी पर वापस भेजा। इसके अलावा सुनीता और विल्मोर ने नमूने भी इकट्ठा किए, ताकि यह पता लगाया जा सके कि पृथ्वी की परिक्रमा कर रही प्रयोगशाला (आईएसएस) के बाहरी भाग में सूक्ष्म जीव मौजूद हैं या नहीं ? इस दौरान वैज्ञानिक परीक्षण के तौर पर सुनीता ने अंतरिक्ष में सलाद के रूप में खाए जाने वाले लाल लैट्यूस की एक किस्म को उगाने का काम भी किया।
लंबे समय तक अंतरिक्ष प्रवास के कारण अंतरिक्ष यात्रियों को अनेक प्रकार की शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हड्डियों व मांसपेशियों का कमजोर पड़ना शून्य गुरुत्वाकर्षण वाले वातावरण में होने वाली आम समस्या है। इसके अलावा हृदय, दिमाग और शरीर के परिसंचारी तंत्र (सर्कुलेटरी सिस्टम) पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। अंतरिक्ष में शरीर के तरल पदार्थ ऊपर चेहरे की ओर चले जाते हैं, जिससे चेहरे पर सूजन आ जाती है और हाथ-पैर पतले दिखने लगते हैं। दिमाग में तरल पदार्थों के जमाव के कारण सुनने में कठिनाई, नजर की कमजोरी और सेरेब्रल एडिमा जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है। दरअसल, अंतरिक्ष-प्रवास के दौरान ये समस्याएं मुख्यतः भारहीनता के कारण पैदा होती हैं। फिर अंतरिक्ष यात्रियों को विकिरण भी झेलना पड़ता है, जिससे कालांतर में कैंसर को न्योता मिल सकता है। ध्यान रहे, अंतरिक्ष में एक महीने में झेले गए विकिरण का परिमाण धरती पर झेले जाने वाले एक वर्ष के विकिरण के बराबर होता है।
अब जब ये अंतरिक्ष यात्री धरती पर वापस लौट आए हैं, तो उन्हें कम से कम डेढ़ महीने तक चिकित्सीय देख-रेख, व्यायाम आदि की जटिल प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ेगा। पैरों के तलवे संवेदनशील हो जाने के कारण इनके लिए चलना-फिरना फिलहाल एक दूर की कौड़ी होगा। इसको ‘बेबी फीट’ का नाम दिया जाता है। इन लौटे यात्रियों के लिए पेंसिल तक उठाना भारी पड़ने वाला है। इसके अलावा चक्कर आने व जी मिचलाने जैसी शिकायतें भी आम बात है। अंतरिक्ष से वापसी के बाद दिल की धड़कनें भी सामान्य नहीं रहतीं और शरीर का रक्त संचार भी प्रभावित होता है।
बहरहाल, सुनीता विलियम्स का अंतरिक्ष से सकुशल वापस लौट आना न केवल अंतरिक्ष प्रवास और यात्राओं पर हमारे विश्वास को मजबूत करता है, बल्कि इस विज्ञान में महिलाओं को आगे आने के लिए भी प्रेरित करता है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुपम योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित की जा चुकों सुनीता विलियम्स को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब पत्र लिखकर भारत आने का न्योता दिया है। निस्संदेह, भारत उस दिन का इंतजार करेगा, जब सुनीता अपने पुरखों की इस धरती पर आएंगी!