
19-06-2025 (Important News Clippings)
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Failed summit
India must reassess the usefulness of attending G-7 meetings
Editorials
At 50, the G-7- a grouping of the most advanced economies should appear robust, cohesive and experienced in managing global conflict. Instead, the G-7 Summit and Outreach session in Kananaskis, Canada presented a disunited and ineffective force in the face of some of the most testing conflicts including an escalating Russia-Ukraine war, the Israel. Iran strife and Israel’s ceaseless bombardment of Gaza. In addition, it has been unable to deal with the biggest disruptor in global trade – that of the U.S. Trump administration’s reciprocal tariffs worldwide. This year’s G-7 was rocky from the start as host Canada saw an unexpected election just months before the summit. The government of Mark Carney was still finding its feet, which meant leaders such as Prime Minister Modi were invited just days before the summit. Upheavals in U.S. foreign and trade policy have also caught the grouping off-guard: U.S. President Donald Trump’s pivot to Russia on the Ukraine crisis, and ambiguous approach to China have been particularly noted. In Kananaskis Mr. Trump even suggested that the G-7 become the “G9, including Russia and China”, much to the chagrin of other leaders, including the Ukraine President, who was a special invite. Mr. Trump’s volte face from proclaiming to be a “Peace-time President” to actively supporting Israel’s aggression was another issue. The U.S. refused to sign on to a draft statement by G-7 members that called for a de escalation or any criticism of Israel, and pushed for a statement that condemned Iran. Mr. Trump’s early exit dealt another blow. Eventually, the G-7 was unable to issue a joint statement on key issues, and a Chair’s Summary was issued to deal with the crises at hand, along with statements on less divisive issues such as Al and quantum computing, critical minerals supply chains, wildfire and prevention, and transnational repression, but not on terrorism, as India had hoped.
Perhaps the most productive part of Mr. Modi’s trip was his meeting with Mr. Carney, and the decisions to restore Indian and Canadian High Commissioners, and to reset ties ruptured over the Nijjar case. However, the Carney government has not demonstrated any change in its position on the case or on action against Khalistani extremism. Moreover, the G-7 statement on Transnational Repression (TNR) does not name any country, but is pointed in its reference to allegations of foreign interference and TNR made by Canada against India, as well as China, Russia and Iran. Given the outcomes, the government must re- view the utility of India’s participation in the G-7 process. To have the Prime Minister travel more than 11,000 kilometers to address one outreach session of a fractious summit may not be the most optimal use of India’s resources.
Date: 19-06-25
अब ‘रेयर अर्थ’ को लेकर दुनिया में खींचतान होगी
मनोज जोशी, ( विदेशी मामलों के जानकार )
लंदन में दो दिन की बातचीत के बाद अमेरिका और चीन पिछले महीने जेनेवा में हुए व्यापार सौदे के स्थान पर एक नए सौदे पर सहमत हो गए। जिनपिंग और ट्रम्प की फोन पर बातचीत के बाद जेनेवा समझौता हुआ था। लेकिन अमेरिका ने हुआवे कंपनी की कुछ एसेन्ड चिप्स का उपयोग निलंबित कर दिया था, जिसके कारण जेनेवा सौदा रद्द कर दिया गया।
प्रतिक्रिया में चीन ने दुनियाभर में हाईटेक उत्पादों में काम आने वाले रेयर अर्थ पदार्थों का निर्यात सीमित कर दिया। अमेरिका ने भी जवाबी कार्रवाई में चीनी विद्यार्थियों के वीजा वापस ले लिए थे। तब जाकर ट्रम्प और जिनपिंग ने बीते सप्ताह 90 मिनट बात की और फिर लंदन समझौता हुआ।
अब, ट्रम्प के एक ट्वीट के अनुसार दोनों पक्षों के बीच जिन बातों पर सहमति बनी है, उनमें टैरिफ घटा कर चीन पर 55 प्रतिशत और अमेरिका पर 10 प्रतिशत किया जाएगा। अमेरिका चीन को कॉरमेक एयरलाइनर के पुर्जों की सप्लाई समेत कुछ तकनीकी प्रतिबंधों को हटा सकता है।
दोनों पक्षों को आशा है कि इससे उनके बीच चल रहे ट्रेड वॉर में शांति आएगी और कई मुसीबतों से जूझ रही उनकी अर्थव्यवस्थाओं को बल मिलेगा। लेकिन इससे यह तो स्पष्ट हो गया है कि अमेरिका और चीन के बीच मौजूदा समस्या की जड़ में रेयर अर्थ और मैग्नेट का मसला है।
रेयर अर्थ मैग्नेट सामान्य आयरन मैग्नेट से 20 गुना अधिक ताकतवर होता है और कारों तथा कई अन्य उपकरणों में लगने वाली इलेक्ट्रिक मोटरों को बनाने के लिए जरूरी है। 17 प्रकार की धातुओं को रेयर अर्थ के नाम से जाना जाता है। ऐसा नहीं कि ये दुर्लभ हैं। ये पूरी दुनिया में पाए जाते हैं। लेकिन सिर्फ चीन में ही ऐसे भंडार हैं, जहां आसानी से इनका खनन किया जा सकता है।
चीन के पास ही इनकी प्रोसेसिंग की क्षमता है। चूंकि इन तत्वों को एक-दूसरे से अलग करना मुश्किल है, इसीलिए इन्हें रेयर कहा जाता है। इनको अलग करने की जटिल प्रक्रिया में भारी मात्रा में एसिड की जरूरत होती है।
रेयर अर्थ की वैश्विक सप्लाई चेन में चीन का दबदबा है। इनका 70 प्रतिशत खनन और 90 प्रतिशत प्रोसेसिंग अकेला चीन करता है। ये विंड टर्बाइन, रक्षा उपकरणों और इलेक्ट्रिक वाहनों से लेकर हर चीज में काम आते हैं।
आधुनिक इंडस्ट्री में इनका महत्व यों समझा जा सकता है कि जैसे ही चीन ने रेयर अर्थ और मैग्नेट के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए, भारत में सुजूकी कंपनी को अपनी लोकप्रिय स्विफ्ट कार का निर्माण टालने के लिए मजबूर होना पड़ा। विश्व की अन्य कार कंपनियों को भी परेशानी झेलनी पड़ी।
अप्रेल में जब ट्रम्प ने अपने लिबरेशन डे टैरिफ की घोषणा की तो चीन ने सात प्रकार की रेयर अर्थ धातुओं तथा इनसे बनने वाली सुपर पॉवरफुल मैग्नेट का निर्यात रोक दिया, क्योंकि ये चीजें सैन्य और नागरिक, दोनों प्रकार के उपयोग में आती हैं।
2010 में जापान से सीमा विवाद के बाद भी चीन ने इनका निर्यात रोका था। रेयर अर्थ की आपूर्ति बहाल करने में चीन की धीमी गति के कारण ही जेनेवा समझौता टूट गया था। अधिकतर रेयर अर्थ मैग्नेट नियोडिमियम और प्रेसियोडीमियम से बनी होती हैं। इसमें डायस्प्रोसियम और टर्बियम मिलाएं तो यह मैग्नेट ताप के प्रति और अधिक प्रतिरोधी बन जाता है।
जिन रेयर अर्थ का निर्यात चीन ने रोका, उनमें सैमेरियम का उपयोग इंटर कॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइलों के गाइडेंस-सिस्टम में होता है। लड़ाकू विमान एफ-35 में कई किलोग्राम सैमेरियम काम आता है। यट्रियम का उपयोग लेजर बनाने और स्कैंडियम का उपयोग हल्के विमानों के पुर्जे बनाने में होता है। लेकिन इन तत्वों का सैन्य उपयोग महज 5 प्रतिशत ही है।
भारत को भी क्लीन एनर्जी, विंड टर्बाइन, मिसाइल गाइडेंस और सेमी कंडक्टर के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए रेयर अर्थ तत्वों की जरूरत है। 2023-24 में हमने 2270 टन रेयर अर्थ आयात किया था। इसमें अधिकतर हिस्सा चीन से आया था।
भारत में भी रेयर अर्थ के भंडार हैं, जो वैश्विक भंडारों के लगभग 6 प्रतिशत हैं। केरल में थोरियम सैंड के अलावा आंध्रप्रदेश, ओडिशा, राजस्थान में भी इसके भंडार हैं। लेकिन दुनियाभर की आपूर्ति का महज एक प्रतिशत हिस्सा ही भारत में उत्पादित होता है।
रेयर अर्थ के लिए चीन पर निर्भर होना सही नहीं होगा, क्योंकि इससे उसे हम पर प्रभावी होने का मौका मिलता है। अब यह जरूरी है कि भारत अपने स्तर पर इनका उत्पादन शुरू करे और अन्य देशों में भी खनन की संभावनाएं देखे।
Date: 19-06-25
G7 बैठक पर गतिरोध हावी
संपादकीय
अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के नेतृत्व में नियम-व्यवस्था आधारित लोकतंत्र और व्यापार पर पश्चिमी देशों के बीच आपसी सहमति की बुनियाद दरकने का एक और उदाहरण जी-7 देशों की बैठक में दिखा। कनाडा के प्रांत अल्बर्टा के कनानास्किस में प्रधानमंत्री मार्क कार्नी की मेजबानी में आयोजित जी-7 देशों की 51वीं बैठक में यह बिखराव साफ नजर आया। दो दिनों तक चली इस बैठक के कार्यक्रमों और जिन विषयों पर चर्चा होनी थी उनमें वृद्धि एवं साझा आर्थिक संपन्नता के लिए आवश्यक रकम पर आपसी साझेदारी मजबूत करना, वृद्धि के लिए एआई से जुड़ी पहल एवं महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति व्यवस्था तैयार करना और प्रवासियों की अवैध घुसपैठ आदि शामिल थे। इसके साथ ही ईरान और यूक्रेन संकट पर भी चर्चा होनी थी।
मगर इन विषयों पर कोई संयुक्त बयान जारी नहीं होने से जी-7 देशों के बीच आपसी मतभेद उजागर हो गए। हालांकि, अलग-अलग विषयों पर कुछ संयुक्त बयान जरूर आए। ईरान और इजरायल के बीच चल रहे युद्ध के साए में हुई इस बैठक के पहले ही दिन ट्रंप बैठक बीच में छोड़कर वाशिंगटन लौट गए। ट्रंप के इस निर्णय से जी-7 शिखर सम्मेलन गतिरोध का शिकार हो गया।
ईरान व इजरायल के बीच जारी घमासान के दौरान इस बैठक में ‘गाजा में संघर्ष विराम सहित पश्चिम एशिया में तनाव कम करने’ पर एक संक्षिप्त बयान अवश्य आया मगर इसमें ईरान और इजरायल के बीच संघर्ष विराम का जिक्र नहीं था। अमेरिका की आपत्ति के बाद यूक्रेन के समर्थन में संयुक्त बयान भी हटा दिया गया। हालांकि, ट्रंप की आपत्ति के बाद जी-7 की 51वीं बैठक की अध्यक्षता कर रहे कनाडा की तरफ से जारी सार वक्तव्य में एक छोटा हिस्सा शामिल किया गया जिसमें ‘आर्थिक प्रतिबंध सहित रूस पर अधिकतम दबाव बनाने के लिए सभी विकल्प तलाशने’ की बात कही गई। ट्रंप इस बैठक में अन्य सदस्य देशों के साथ व्यापार सौदा करना चाहते थे मगर कनाडा, जापान और यूरोपीय संघ किसी को भी अपनी बात रखने का मौका नहीं मिला।
कनाडा के प्रधानमंत्री के निमंत्रण पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहुंचने से सम्मेलन में कुछ जान आई और कुछ सकारात्मक परिणाम भी सामने आए। बैठक में भारत-कनाडा द्विपक्षीय रिश्तों में आई खटास कम हुई। जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल में दोनों देशों के संबंध बिगड़ गए थे लेकिन जी-7 सम्मेलन के दौरान मोदी और कार्नी की बैठक के द्विपक्षीय ताल्लुकात सुधरने की पहली संभावना नजर आई।
इस दिशा में ‘सोच-विचार कर उठाए गए पहले कदम’ के रूप में दोनों नेता अपने-अपने उच्चायोग दोबारा भेजने पर सहमत हो गए। दोनों प्रधानमंत्री व्यापार, दोनों देशों के बीच संबंध एवं संपर्क से जुड़े कई क्षेत्रों में वरिष्ठ एवं कार्य-स्तरीय ढांचा एवं चर्चा शुरू करने पर सहमत हुए। आने वाले समय में और भी कूटनीतिक कदम उठाए जाने की संभावना है। दोनों नेताओं की बैठक पर कनाडा की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि ‘पार-देशीय अपराध एवं दमन, सुरक्षा और नियम आधारित व्यवस्था’ पर भी चर्चा हुई।
भारत और कनाडा के बीच गहरे सांस्कृतिक संबंध रहे हैं इसलिए निश्चित रूप ये सही सकारात्मक संकेत हैं। कनाडा की कुल आबादी में 5 प्रतिशत हिस्सा भारतीय मूल के लोगों की है। किंतु, कुछ प्रमुख प्रश्न अब भी अनुत्तरित हैं। सबसे पहले,ओटावा के इस आरोप का कोई निष्कर्ष नहीं निकला है कि कनाडा की धरती पर एक सिख पृथकतावादी नेता की हत्या में भारत सरकार के एजेंटों का हाथ रहा है। साल 2023 में दोनों देशों के बीच संबंध खराब होने की यह सबसे बड़ी वजह थी। कनाडा में ताकतवर सिख कनाडा गुट कार्नी पर दबाव बना सकते हैं। मोदी को आमंत्रित करने के कार्नी के निर्णय के खिलाफ सिख प्रदर्शनकारियों ने कैलगरी में एक विरोध रैली का आयोजन किया। कैलगरी जी-7 के आयोजन स्थल से सबसे नजदीक शहर है।
इस बीच, प्रधानमंत्री मोदी और ट्रंप के बीच फोन पर हुई 35 मिनट की बातचीत से कुछ प्रगति हुई है। इस साल नई दिल्ली में ‘क्वाड’ के अगले शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए मोदी का निमंत्रण राष्ट्रपति ट्रंप ने स्वीकार कर लिया है। पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन के कार्यकाल में ‘क्वाड’ पर कोई खास प्रगति नहीं हुई थी इसलिए इसे एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जाना चाहिए। मगर ट्रंप के नेतृत्व में ‘क्वाड समूह कितनी प्रगति करेगा यह फिलहाल एक अनुत्तरित प्रश्न है।