
17-06-2025 (Important News Clippings)
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ईरान के जैसी ही सख्ती पाकिस्तान पर क्यों नहीं?
संपादकीय
बड़े देशों को शक है कि ईरान परमाणु बम बनाने की कगार पर है। करीब 2300 किमी दूर (रास्ते में चार देश) बैठे इजराइल का आरोप है कि इसका इस्तेमाल उसके खिलाफ होगा। लिहाजा ईरान पर इजराइल का पूर्ण हमला यूएस का दो युद्धक जहाजों का ईरान के नजदीक लाना, यूके का इजराइल की मदद में लड़ाकू विमान तैनात करना और फ्रांस द्वारा भी सहयोग देने के पीछे तर्क क्या है? ईरान एक इस्लामिक स्टेट है। लेकिन पाकिस्तान भी तो है और अमेरिका के सबसे बड़े दुश्मन ओसामा बिन लादेन को पनाह देने वाला रहा है। वह भारत से कई और सीधे युद्ध कर चुका है। फिर भारत से क्यों इस बात का ‘जीबल प्रूफ’ मांगा जाता है कि पहलगाम हमले में पाकिस्तान का हाथ होने की बात को साबित करे? क्या इन बड़ी ताकतों ने हमला करने से पहले ईरान से एटम बम बनाने का प्रूफ मांगा ? क्या अस्तित्व का खतरा केवल इजराइल को है, भारत को नहीं है? कम से कम ईरान में सेना और आतंकी संगठनों के हाथ में तो सरकार की नकेल नहीं है। क्या यह खतरा नहीं है कि पाकिस्तानी सेना का कोई बहका हुआ जनरल आतंकियों के दबाव और भय में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करे? क्यों अमेरिका को एक परमाणु अस्त्र से लैस और आतंकियों को पोसने के दशकों के ट्रैक रिकॉर्ड वाले पाकिस्तान में ‘आतंकवाद के खिलाफ सक्रिय भूमिका’ नजर आती है ?
Date: 17-06-25
रिसर्च और एआई में निवेश के बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते
नीरज कौशल, ( कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर )
यूके को पीछे छोड़कर भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। एक-दो वर्षों में वह जापान से आगे निकलकर चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी बन जाएगा। देश में कोविड के बाद हुई आर्थिक वृद्धि को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
बीते तीन वर्षों में जब विश्व की अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल मची थी तो भारत की जीडीपी तकरीबन 8% की दर से बढ़ी है। यह प्रभावी है। फिर भी भारत की बढ़ती आर्थिक क्षमताओं से अधिक उत्साहित होना क्या तर्कसंगत है? हमें विश्व की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के सांख्यिकीय मायनों को समझ लेना चाहिए।
भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है। प्रति व्यक्ति आय के संदर्भ में हमारी रैंकिंग अब भी निम्न-मध्यम आय वाले देश की है। पर-कैपिटा नॉमिनल जीडीपी में भारत 194 देशों में 143वें स्थान पर है और प्रति व्यक्ति क्रय शक्ति (पीपीपी) में 125वें स्थान पर। इन रैंकिंग्स में हमारी स्थिति में थोड़ा सुधार जरूर हुआ है, लेकिन बहुत अधिक नहीं।
शायद ये आंकड़े हमें थोड़ा विनम्र बनाएं। लेकिन हमें समग्र जीडीपी के लिहाज से भी दुनिया के शीर्ष पांच देशों में खड़े होने की अपनी महत्ता को कमतर नहीं आंकना चाहिए। चीन का उदाहरण लें। नॉमिनल पर-कैपिटा जीडीपी के लिहाज से वह दुनिया में 69वें और पीपीपी पर-कैपिटा जीडीपी के मानकों पर 72वें क्रम पर है। इन आंकड़ों के बावजूद दुनिया में उसके दबदबे पर कोई फर्क नहीं पड़ता। उसकी आर्थिक और रणनीतिक ताकत दुनिया में अमेरिका के बाद सबसे अधिक है और कहीं-कहीं तो उससे भी अधिक है।
दुनिया पर भारत के प्रभाव को भी उसकी प्रति व्यक्ति रैंकिंग के बजाय उसकी ओवरऑल जीडीपी रैंकिंग के आधार पर ही मापा जाना चाहिए। लेकिन विश्व की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं और भारत के बीच जो अंतर है, हमें उसको भी ध्यान में रखना होगा। अमेरिका की नॉमिनल जीडीपी 30 ट्रिलियन डॉलर की है और चीन की 19 ट्रिलियन डॉलर की। जबकि भारत की अभी महज 3.9 ट्रिलियन डॉलर ही है।
2018 में भारत सरकार ने कहा था कि 2025 तक हम 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था होंगे। बहुत-से विशेषज्ञों ने उस समय इस लक्ष्य पर संशय जताया था। कोविड के दो सालों में भी भारत की अर्थव्यवस्था को धक्का पहुंचा। लेकिन भारत के 5 ट्रिलियन इकोनॉमी बनने का सपना देख रहे लोग इस बात पर निराश होंगे कि हम लक्ष्य से पिछड़ गए हैं। 2018-19 में भारत की जीडीपी 2.8 ट्रिलियन डॉलर थी और 2024-25 में 3.9 ट्रिलियन डॉलर है। हम 1.1 ट्रिलियन डॉलर पीछे हैं। अब आशा है कि हम यह लक्ष्य 2029 तक हासिल कर लेंगे।
अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण सेक्टरों में दुनिया भारत के बढ़ते प्रभाव को मानती है, लेकिन इनका भी विश्लेषण करें तो मिली-जुली-सी कहानी ही सामने आती है। भारत विश्व का सबसे बड़ा एआई यूजर है और दुनिया की 16 प्रतिशत एआई प्रतिभा भी हमारे यहां है।
भारत चाहता है कि एआई के क्षेत्र में दुनिया का नेतृत्व वह करे। फिर भी इस क्षेत्र में निवेश के मामले में हम दूसरे देशों से बहुत पीछे हैं। स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का अनुमान है कि एआई सेक्टर में भारत में सिर्फ 1.2 अरब डॉलर का ही निजी निवेश हुआ है।
अमेरिका में सर्वाधिक 109 अरब डॉलर का निवेश हुआ है, लेकिन चीन में भी भारत से सात गुना अधिक निवेश हुआ है। इकोनॉमिस्ट के एक नए लेख में सवाल उठाया गया है कि क्या भारत एआई के क्षेत्र में विजेता बन पाएगा? लेख का निष्कर्ष यह है कि भारत को अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
हाल के दिनों में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की सबसे चर्चित खबर यह रही है कि एपल अमेरिका में बिकने वाले अपने 20 प्रतिशत स्मार्ट फोन की असेंबलिंग भारत में कर रहा है और 2026 तक यह आंकड़ा 100 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। यह निश्चित ही प्रभावित करता है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि भारत में सिर्फ फोन की असेंबलिंग हो रही है, लगभग सभी पुर्जे तो अब भी चीन में बन रहे हैं।
भविष्य की आर्थिक वृद्धि का सबसे बड़ा जरिया अनुसंधान एवं विकास (आर-एंड-डी) क्षेत्र में निवेश होता है, लेकिन दु:खद है कि भारत में सार्वजनिक और निजी- दोनों ही क्षेत्र इसमें निवेश को लेकर हाथ रोके बैठे हैं। भारत अपनी जीडीपी के अनुपात में महज 0.64 प्रतिशत ही आर-एंड-डी में खर्च करता है, जबकि चीन 2.4 और अमेरिका अपनी विशाल जीडीपी का 3.5 प्रतिशत हिस्सा इस पर खर्च करता है।
भारत अपनी जीडीपी के अनुपात में 0.64% ही आर-एंड-डी में खर्च करता है, जबकि चीन 2.4 और अमेरिका अपनी विशाल जीडीपी का 3.5% हिस्सा खर्च करता है। अपनी संभावनाओं का लाभ लेना है तो इसे बदलना होगा।
Date: 17-06-25
फिर परमाणु धमकी
संपादकीय
यह बहुत दुखद और विचारणीय है कि पश्चिम एशिया में परमाणु युद्ध की आशंका मंडराने लगी है। ईरान और इजरायल के बीच तेज होते संघर्ष के चौथे दिन तनाव तब चरम पर पहुंच गया, जब एक ईरानी जनरल ने परमाणु युद्ध की चर्चा छेड़ दी। जनरल मोहसिन रेजेई ने एक टीवी साक्षात्कार के दौरान कहा कि इजरायल अगर ईरान पर परमाणु बम गिराता है, तो पाकिस्तान उस पर परमाणु हमला करेगा। जनरल ने यह भी इशारा किया कि परमाणु हमले की स्थिति में ईरान को यह आश्वासन स्वयं पाकिस्तान ने दिया है। हालांकि, पाकिस्तान ने अपना पल्ला झाड़ने में वक्त नहीं लगाया। पाकिस्तान ने स्पष्ट किया कि उसने ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया है। अब सवाल है कि ईरान का कोई जनरल परमाणु युद्ध की चर्चा क्यों कर रहा है? ईरान को भूलना नहीं चाहिए कि इराक के साथ क्या हुआ था। सद्दाम हुसैन में भी लड़ने का जुनून था, मगर जंग में जीत सिर्फ जुनून से नहीं मिलती, पूरी ताकत व हुनर की जरूरत पड़ती है। सद्दाम हुसैन के पास हुनर नहीं था, तो वह इतिहास हो गए और उनका देश तरक्की की पटरी से उतरकर कट्टरता व तबाही की ओर बढ़ गया। ईरान को भी सिर्फ जुनून का शिकार होने से बचना होगा। अपने व्यापक हित में समझदारी दिखानी पड़ेगी।
हम देख रहे हैं कि पाकिस्तान ने भले ही ईरानी दावे का खंडन कर दिया है, पर उसके पास मौजूद परमाणु बम के बारे में दुनिया का एक अपेक्षाकृत ताकतवर मुल्क ईरान क्या सोच रहा है, इसका पता दुनिया को चल गया है। महज मजहब की बुनियाद पर गोलबंद होने की सोच आफत बनकर टूट सकती है भूलना नहीं चाहिए, मजहब के नाम पर बना पाकिस्तान आए दिन भारत को परमाणु शक्ति की याद दिलाकर चेतावनी देता है। ईरान भी शायद सिर्फ मजहब के आधार पर पाकिस्तान के परमाणु बम को अपनी ताकत मानने की भूल कर रहा है। ईरान को भूलना नहीं चाहिए कि पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान में अमेरिका की दखलंदाजी किस स्तर की है। पाकिस्तान अच्छे से जानता है कि अगर वह इजरायल के खिलाफ मैदाने जंग में उतरेगा, तो उसे भी वैसी ही मिसाइलों से मुकाबला करना होगा, जैसी मिसाइलों की मार से ईरान चार दिन में ही परेशान हो गया है। चार दिन की लड़ाई में ही परमाणु हमले की चर्चा शुरू हो गई है। इसका एक संकेत यह भी है कि ईरान इस संघर्ष में कमजोर पड़ने लगा है। ईरान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह माना है कि शुक्रवार को इजरायली हमलों के शुरू होने के बाद से 224 लोग मारे गए हैं और 1,277 अन्य अस्पताल में भर्ती हैं। यह भी बताया गया है कि 90 प्रतिशत से अधिक हताहत आम ईरानी नागरिक हैं। ऐसे में, सवाल उठता है कि कहां हैं इजरायल को आए दिन धमकाने वाले नेता ?
इजरायल को भी अनावश्यक हिंसा से रोकने की जरूरत है और इसमें सबसे बड़ी भूमिका अमेरिका की होनी चाहिए। ऐसे पर्याप्त साक्ष्य हैं, जिनसे लगता है कि ईरान ने अमेरिका से सहमति लेकर ही अपने निशाने चुने हैं। शायद अमेरिका से मंजूरी लेकर ही इजरायल ने ईरान की वायु क्षमता को लगभग खत्म कर दिया है। ऐसे में ईरान परमाणु संधि तोड़कर बम विकसित करने की मुद्रा में आता दिख रहा है। अगर ऐसा हुआ, तो यह एशिया व दुनिया के लिए खतरनाक होगा। अब पाकिस्तान या किसी भी मुस्लिम मुल्क की भूमिका इजरायल को उकसाने में नहीं, बल्कि अमेरिका को संघर्ष विराम के लिए मनाने में होनी चाहिए। संघर्ष को रोकना जरूरी है, ताकि ईरान को तबाही से बचाया जा सके।