14-02-2025 (Important News Clippings)

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14 Feb 2025
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Date: 14-02-25

मणिपुर के मामले में कई जरूरी सवाल सामने हैं

संपादकीय

मणिपुर के सीएम का इस्तीफा कई स्तरों पर सवाल खड़े करता है। करीब 21 महीने के मैतेई – कुकी संघर्ष में 250 से 500 मौतें, 60 हजार लोगों का विस्थापन और बकौल गृह मंत्रालय- केवल एक राज्य ही नहीं पूरे पूर्वोत्तर में उग्रवाद की वापसी का खतरा गवनेंस की ढहती स्थिति बताता है। ऐसे में सीएम का इस्तीफा और वह भी तब जब उनकी पार्टी की राज्य इकाई और विधानमंडल दल बगावत कर अविश्वास प्रस्ताव लाए हों, केंद्र को कठघरे में खड़ा करता है। सुप्रीम कोर्ट ने सीएम के विवादास्पद ऑडियो टेप की सेंट्रल लैब से जांच के आदेश दिए हैं। संविधान केंद्र को अधिकार और जिम्मेदारी देता है कि वह सुनिश्चित करे राज्यों में शासन संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप चल रहा है। मणिपुर के मामले में सीएम को बदलने की मांग और जरूरत इसलिए थी, क्योंकि केंद्र को सीएम के पक्षपात पर स्वयं केंद्रीय संस्थाओं ने स्पष्ट रिपोट्र्स दी थीं। लेकिन इसे नजरअंदाज किया गया। संसद में इस पर चर्चा और पीएम के बयान की मांग को भी टाला गया। सीएम और उनकी पुलिस ने हिंसा के पहले दिन से ही दूसरी जाति के खिलाफ पोजिशन ली। मैतेई समुदाय के अलावा वोट की राजनीति के कारण विधायक भी सीएम के साथ खड़े रहे लेकिन बाद में खिलाफ हो गए। ऑडियो टेप से नाराजगी और उबली केंद्र का तमाम आरोपों से उबरना संभव नहीं होगा।


Date: 14-02-25

सरल आयकर

संपादकीय

यह सराहनीय है कि 63 वर्ष पुराने आयकर कानून को बदलने के लिए एक विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत कर दिया गया। इसके माध्यम से आयकर की भाषा को सरल बनाने के साथ ही अनावश्यक प्रविधानों को हटाया जाएगा। आयकर कानून बदलने और उसे सरल एवं सुस्पष्ट करने के प्रयास किए जा रहे हैं, इसकी पुष्टि इससे होती है कि नया आयकर विधेयक 622 पन्नों का है, जबकि मौजूदा आयकर अधिनियम में 1647 पन्ने हैं। वित्त मंत्री की मानें तो नए आयकर कानून से कर संहिता अधिक सरल हो जाएगी और वह आयकर अधिकारियों के साथ आयकरदाताओं को भी राहत प्रदान करेगी। इससे अच्छा और कुछ नहीं कि आयकरदाताओं को जटिल नियमों के साथ आसानी से समझ न आने वाली भाषा से छुटकारा मिले। चूंकि आयकर विधेयक को संसदीय समिति के पास भेजने का निर्णय लिया गया है, इसलिए यह आशा की जाती है कि वहां उस पर व्यापक विचार-विमर्श के दौरान उसे वास्तव में सरल रूप देने में मदद मिलेगी। इस अपेक्षा के साथ ही यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि ऐसा माहौल बनाने की आवश्यकता है, जिससे लोग स्वेच्छा से आयकर देने को प्रेरित हों और उनके मन में किसी तरह का भय न रहे।

जितना आवश्यक आयकर संबंधी नियम-कानून सरल करना है, उतना ही इसकी गुंजाइश खत्म करना भी कि आयकर विभाग लोगों से अनावश्यक रूप से न तो सवाल-जवाब कर सके और न ही किसी भूल-चूक पर उन्हें तंग कर सके। यह तब संभव होगा, जब आयकर अधिकारी आयकरदाताओं को संदेह की दृष्टि से देखना बंद करेंगे। उन्हें यह भी समझना होगा कि आयकर बचाने के उपाय अपनाने का मतलब कर चोरी करना नहीं होता। आयकर विभाग को उन कारणों का निवारण भी करना होगा, जिनके चलते लोग आय छिपाने के जतन करते हैं। इसी के साथ ऐसी भी व्यवस्था करनी होगी, जिससे आयकर का आकलन करने और उसकी वसूली में भ्रष्टाचार न होने पाए। यह इसलिए जरूरी है, क्योंकि चंद दिनों पहले ही फेसलेस असेसमेंट योजना में सेंधमारी का मामला सामने आया। इस मामले में आयकर विभाग के एक डिप्टी कमिश्नर को भी लिप्त पाया गया। यह भी समय की मांग है कि सरकार आयकरदाताओं की संख्या बढ़ाने के उपाय करे। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि वर्तमान में आयकर देने वालों की संख्या चार करोड़ से भी कम है। इनमें मुख्यतः वे ही हैं, जो नौकरीपेशा हैं। यह सही समय है कि उन लोगों पर निगाह दौड़ाई जाए, जो समर्थ होते हुए भी आयकर नहीं देते। आखिर जो संपन्न किसान एक सीमा से अधिक आय अर्जित करते हैं, उन्हें आयकर के दायरे में क्यों नहीं लाया जाना चाहिए? इसकी अनदेखी नहीं की जाए कि कृषि आय को टैक्स के दायरे से बाहर रखने के नियम का दुरुपयोग भी किया जा रहा है।


Date: 14-02-25

देश के हितों पर चोट करती विदेशी सहायता

विकास सारस्वत, ( लेखक इंडिक अकादमी के सदस्य एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं )

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जबसे अंतरराष्ट्रीय विकास के लिए संयुक्त राज्य अमेरिकी एजेंसी अर्थात यूएसएड का अमेरिकी विदेश विभाग में विलय करने का निर्णय लिया है, तबसे इस एजेंसी के कार्यकलापों को लेकर चौंकाने वाले रहस्योद्घाटन हो रहे हैं। स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे कुछ अच्छे प्रयासों पर धन खर्च करने वाली यह संस्था अमेरिका के सत्ता परिवर्तन अभियान का जरिया भी बनी हुई थी। अमेरिकी विदेश विभाग के पूर्व अधिकारी माइक बेंज ने दावा किया है कि यूएसएड ने विभिन्न माध्यमों से बांग्लादेश में तख्तापलट को प्रोत्साहित करने के बाद भारतीय विमर्श को भी प्रभावित करने का प्रयास किया। बेंज के अनुसार अमेरिका ने बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार को कमजोर करने के लिए सांस्कृतिक तनाव का इस्तेमाल कर उनकी सरकार के खिलाफ भावनाओं को भड़काया। बेंज ने आरोप लगाया है कि यूएसएड अन्य अमेरिकी सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर भारत में मोदी विरोधी राजनीतिक कथानक को तैयार करने के लिए लगातार प्रयास करती रही है। इस कथानक का उपयोग 2019 के आम चुनावों में मोदी विरोधी हवा बनाने के लिए तो किया ही गया, साथ ही आनलाइन विमर्श में हेराफेरी करने, विपक्षी आंदोलनों को वित्तपोषित करने और कुछ दृष्टिकोणों को सेंसर करने के लिए भी किया गया। बेंज की मानें तो यूएसएड और उसके सहयोगियों ने प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को गलत सूचनाएं यानी फेक न्यूज प्रचारित करने का आरोपित बनाकर पेश किया और ऐसा चित्रण तैयार करने के बाद फेसबुक, वाट्सएप, यूट्यूब और ट्विटर (एक्स) जैसे इंटरनेट मीडिया नेटवर्क पर मोदी समर्थक सामग्री को सेंसरशिप के दायरे में लाने का औचित्य गढ़ा। बेंज का दावा है कि यूएसएड से जुड़े संगठनों ने भारत में फेक न्यूज की फर्जी रिपोर्ट तैयार करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मीडिया और डिजिटल फोरेंसिक समूहों के साथ सहयोग भी किया।

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि यूएसएड का उस फ्रीडम हाउस नामक संस्था से गठजोड़ है, जो भारतीय लोकतंत्र को लगातार निचले पायदान पर रखती है और यह संदेश देने की कोशिश करती है कि भारत में लोकतंत्र कमजोर होता जा रहा है। इन सनसनीखेज दावों के बीच विकिलीक्स ने भी उजागर किया है कि यूएसएड ने स्वतंत्र पत्रकारिता के विकास का दावा करने वाली इंटरन्यूज नामक एक अन्य संस्था को लगभग 4,100 करोड़ का अनुदान दिया। इस अनुदान का एक हिस्सा भारत भी आया, जिसमें बड़ी रकम सुप्रीम कोर्ट के एक वकील की ऐसी संस्था को मिली, जिसके परामर्शदाता और उसके द्वारा संचालित कार्यशालाओं में मोदी विरोधी एक्टिविस्ट और पत्रकारों के नाम सामने आते हैं। ये सभी मोदी सरकार के धुर विरोधियों में गिने जाते हैं। इनमें से कई की गिनती वामपंथियों में भी होती है। यह भी कोई संयोग नहीं कि अमेरिकी दूतावास ने 1.6 करोड़ के बजट की घोषणा से पब्लिक मीडिया ट्रेनरों की नियुक्ति के लिए जो मुहिम चलाई थी, उसके नेतृत्व के लिए इन्हीं के बीच के एक यूट्यूबर पत्रकार को चुना था और उसे दूतावास निमंत्रित किया था। द पैंफलेट नामक पोर्टल ने कुछ समय पहले यह उजागर किया था कि अंधविरोध से ग्रस्त घोर मोदी विरोधी और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता एक भारतीय पत्रकार पर अमेरिका में बनाई गई डाक्युमेंट्री को फोर्ड फाउंडेशन से आर्थिक सहायता मिली थी। इससे पहले राजीव गांधी फाउंडेशन को जार्ज सोरोस से अनुदान मिलने की खबर आई थी, परंतु अब सैम पित्रोदा के एनजीओ जीकेआइ को भी यूएसएड से पैसा मिलने की बात सामने आई है।

इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि गांधी परिवार के राजीव गांधी फाउंडेशन को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से चंदा मिला था। इसके चलते फाउंडेशन का विदेश चंदे संबंधी एफसीआरए लाइसेंस को रद कर दिया गया था। भारतीय राजनीति और भारतीय मीडिया में विदेशी दखल का चलन नई बात नहीं है। मित्रोखिन आर्काइव्स में वर्णित सोवियत रूसी हस्तक्षेप से लेकर चीनी फंडिंग प्राप्त एक न्यूज पोर्टल की ओर से देश में अराजकता फैलाने के प्रकरण समय-समय पर उजागर होते रहे हैं। देश की राजनीति में विदेशी और खासकर अमेरिकी हस्तक्षेप और राजनीतिक एवं मीडिया कथानक को पैसे के दम पर तोड़ने-मरोड़ने का प्रयास इस मायने में भिन्न है कि यह बेशर्मी से खुलेआम हो रहा है। यूएसएड के जरिये अमेरिकी प्रयास इस मायने में और भी खतरनाक थे कि वे राजनीति के अलावा लोकतंत्र के विभिन्न अंगों को प्रभावित और अधिग्रहित कर भारतीय संप्रभुता को खुली चुनौती दे रहे थे। इसके अलावा ऐसे प्रयास दूरगामी सामाजिक एवं सांस्कृतिक विप्लव की जमीन भी तैयार करते हैं। यूएसएड द्वारा मोटा चंदा प्राप्त वर्ल्ड विजन और परोक्ष रूप से सहायता प्राप्त जोशुआ प्रोजेक्ट इसका उदाहरण हैं। ये संस्थाएं न सिर्फ मतांतरण करा रही हैं, बल्कि हिंदुओं के प्रति घृणा का माहौल भी तैयार करती हैं।

चाहे राजनीति हो या पत्रकारिता, एक्टिविज्म हो या फिर सामाजिक कार्य, भारत में सभी प्रकार के लोगों को अपनी रुचि और अपने मंतव्य के अनुसार चलने की पूरी छूट है, परंतु एक संप्रभु राष्ट्र का स्वाभिमान इसकी अनुमति कभी नहीं दे सकता कि विदेशी ताकतों और विदेशी पैसे के बल पर देश की दशा-दिशा प्रभावित हो। यह बहुत चिंताजनक बात है कि न सिर्फ पत्रकार और एक्टिविस्ट किस्म के लोग, बल्कि कुछ राजनेता भी अमेरिकी हाथों में खेलने को तैयार हैं। ऐसी दुष्चेष्टा की जितनी निंदा की जाए, कम है। इसके प्रति देश को सावधान रहना होगा। इसके साथ ही सरकार को भी चाहिए कि विदेशी फंडिंग के जटिल से जटिल मार्गों को रोकने का प्रबंध करे। अमेरिका में बदले राजनीतिक परिदृश्य और डोनाल्ड ट्रंप की साफगोई वाली विदेश नीति इसमें तात्कालिक रूप से सहायक सिद्ध हो सकती है, लेकिन भारत को अपने हितों की रक्षा के लिए और अधिक सक्रिय होना होगा। इसलिए और भी, क्योंकि आम तौर पर विदेशी सहायता देने वालों के अपने संकीर्ण स्वार्थ होते हैं।


Date: 14-02-25

प्रभावी कर व्यवस्था

संपादकीय

भारत जैसे तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था वाले देश में राज्य को स्थितियों के अनुरूप तेजी से ढलना चाहिए और आर्थिक कारकों को आर्थिक गतिविधियों पर ही केंद्रित रहने देना चाहिए। कराधान ऐसा ही एक क्षेत्र है जहां आम व्यक्ति और कारोबार का संपर्क राज्य से होता है। बजट की लगातार बढ़ती मांग के कारण सरकार अक्सर राजस्व बढ़ाने के तरीकों पर ध्यान केंद्रित करती है। किंतु राजस्व सृजन को लंबे समय तक स्थिरता देने के लिए जरूरी है कि करदाताओं को अपने हिस्से का कर चुकाने में अधिक कठिनाई का सामना नहीं करना पड़े। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को आयकर विधेयक, 2025 संसद में पेश किया, जो इन्हीं लक्ष्यों को हासिल करने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। सरकार फेसलेस असेसमेंट स्कीम आदि के जरिये करदाताओं का अनुभव बेहतर बनाने के लिए काम कर रही है और नया विधेयक इसे आगे ले जाने में मदद करेगा।

सीतारमण ने जुलाई 2024 के बजट भाषण में घोषणा की थी कि आयकर अधिनियम, 1961 की व्यापक समीक्षा की जाएगी। इसके पीछे विचार यह था कि इस अधिनियम को संक्षिप्त और स्पष्ट तथा पढ़ने-समझने में आसान बनाया जा सके। इसीलिए विधेयक में 622 पृष्ठ ही रखे गए हैं, जबकि वर्तमान कानून में 823 पृष्ठ हैं। इससे भी बढ़कर शब्द संख्या है, जो मौजूदा कानून के 5.20 लाख शब्दों से घटाकर विधेयक में केवल 2.60 लाख रखी गई है। ध्यान देने की बात है कि लक्ष्य कर व्यस्था को बदलना नहीं बल्कि कानून को आसान बनाना था ताकि करदाता उसे आसानी से समझ सकें। विभिन्न संशोधनों और बाद में जोड़े गए नए हिस्सों के साथ वर्तमान कानून बहुत जटिल हो चुका है।

इसमें एक अन्य खास बात है केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड द्वारा ‘चार्टर ऑफ टैक्सपेयर्स’ आपनाया जाना, जिससे व्यवस्था में विश्वास और पारदर्शिता बढ़ने की उम्मीद है। मौजूदा कानून में आरंभ में केवल 298 धाराएं थीं मगर प्रावधान जुड़ते गए और अब कुल 819 धाराएं हो गई हैं। नए विधेयक ने इन्हें घटाकर 536 कर दिया है। वेतनभोगी करदाताओं के लिए हालात को सहज बनाने के इरादे से हर तरह की कटौती को एक ही धारा के तहत रख दिया गया है, जिससे इसे समझना भी आसान हो सके और इसका पालन करना भी। विधेयक ने आभासी डिजिटल परिसंपत्तियों को भी स्पष्ट किया है और बताया है कि इन पर कर कैसे लगेगा। सरलीकरण के लिए कर निर्धारण वर्ष और पिछले वर्ष जैसी अवधारणाओं को समाप्त किया गया। इसमें ‘कर वर्ष’ का इस्तेमाल किया गया है, जिसमें आय अर्जित की गई और जिसके लिए कर चुकाना है। संसद से पारित होने के बाद नया कानून एक अप्रैल, 2026 से लागू होगा।

नए कानून के पीछे की मंशा को गलत नहीं बताया जा सकता मगर इसका वास्तविक प्रभाव इस बात पर निर्भर होगा कि इसे कितनी आसानी से लागू किया जाता है। इस समाचार पत्र में गत वर्ष प्रकाशित एक खबर के मुताबिक आयकर आयुक्त के समक्ष 5.44 लाख अपीलें लंबित थीं, जो 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक राशि से जुड़ी थीं। कानून की वास्तविक परीक्षा यह होगी कि वह कर संबंधी मुकदमों में ला पाएगा या नहीं। इससे करदाताओं पर प्रतिकूल असर पड़ता है और राज्य की क्षमता भी इसी काम में लग जाती है, जबकि उसका दूसरी जगहों पर बेहतर इस्तेमाल हो सकता था। इसके अलावा विधेयक का इरादा कर कानून को सरल बनाना है मगर कर व्यवस्था को सरल बनाना भी जरूरी है। व्यक्तिगत आयकर के मामले में सरकार ने नई सरल कर प्रणाली लागू करके बेहतर किया है। 1 फरवरी को पेश 2025-26 के बजट में घोषणा की गई कि 12 लाख रुपये तक की वार्षिक आय पर कोई कर नहीं लगेगा। लेकिन रियायतों और सात कर दरों के साथ ढांचा अब भी जटिल बना हुआ है। इसे सरल बनाने के लिए सरकार कराधान की सीमा तय कर सकती है और कर दरें घटाकर तीन कर सकती है। सरल कर ढांचा और सरल कानून सभी के लिए मददगार होंगे।


Date: 14-02-25

दोस्ती के आयाम

संपादकीय

भारत फ्रांस के करीबी साझेदारों में से एक है। दोनों देशों के बीच परस्पर सम्मान और विश्वास का रिश्ता रहा है। चीन के बरक्स भारत की क्षमता बढ़ाने में सहयोग का मसला हो या सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए दावा, फ्रांस ने हर बड़े मौके पर भारत का साथ दिया है दुनिया में तेजी से उभरती ताकत के रूप में भारत की संभावनाओं को फ्रांस पहले ही भांप चुका है। हाल के वर्षों में अंतरिक्ष अनुसंधान से लेकर पनडुब्बी बनाने में सहयोग कर उसने साबित कर दिया कि वह भारत का न केवल भरोसेमंद बल्कि सबसे बड़ा रणनीतिक सहयोगी है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की परस्पर निकटता का प्रमाण कई बार मिल चुका है। इस बार दोनों देशों ने आधुनिक परमाणु संयंत्रों को संयुक्त रूप से विकसित करने का संकल्प किया है फ्रांस के मारसेई में एक आशय पत्र पर दस्तखत के बाद दोनों देशों ने स्पष्ट कर दिया है कि ऊर्जा सुरक्षा और कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था के लिए परमाणु ऊर्जा अहम है। इस लिहाज से देखें, तो परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम है।

फ्रांस न केवल अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का साथ देता रहा है, बल्कि रणनीतिक साझेदारी निभाते हुए आर्थिक संबंध मजबूत करने की दिशा में भी सहयोग करता रहा है। नतीजा यह कि वर्ष 2022-23 में दोनों देशों के बीच कारोबार उन्नीस अरब डालर तक पहुंच गया था। इससे पहले वर्ष 2000 से 2024 के मध्य फ्रांस से कोई दस अरब डालर से अधिक का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया था। इस बार की प्रधानमंत्री की फ्रांस यात्रा के दौरान भी व्यापार और निवेश बढ़ाने पर दोनों देशों ने जोर दिया है। इससे व्यापार संबंध और मजबूत होने की उम्मीद बंधी है। इसके अलावा दोनों देश जलवायु संकट से निपटने की दिशा में भी एक मंच पर काम कर रहे हैं। इसके लिए भारत और फ्रांस ने ‘इंटरनेशनल सोलर अलायंस’ का गठन किया, जिसमें सौ से अधिक देश शामिल किए गए थे।

भारत-फ्रांस के शीर्ष नेताओं ने असैन्य परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र में जिस तरह इस बार परस्पर सहयोग की गंभीरता से समीक्षा की है, इससे लगता है कि इसके दूरगामी और सकारात्मक परिणाम निकलेंगे। दोनों देशों ने रणनीतिक साझेदारी के लिए प्रतिबद्धता जता कर साफ कर दिया है कि उनके संबंध बहुआयामी हैं। इस तरह दोनों ने दोस्ती को एक नया आयाम ही दिया है। उम्मीद यह भी है कि कृत्रिम मेधा से लेकर प्रौद्योगिकी और नवाचार की दिशा में सहयोग और मजबूत होगा। दस अहम समझौते के बाद फ्रांस एक बार फिर सच्चे दोस्त के रूप में सामने आया है। इन समझौतों के बाद दोनों देशों के बीच संबंध और गहरे होंगे। परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में असैन्य सहयोग भी मील का पत्थर साबित होगा। कृत्रिम मेथा और नवाचार की दिशा में भारत और फ्रांस ने एक बड़ा लक्ष्य तय किया है सुरक्षित और विश्वसनीय कृत्रिम मेधा के विकास के लिए दोनों देश अब साझा रूप से काम करेंगे। यह विकसित प्रौद्योगिकी वैश्विक हितों के लिए काम करेगी। कुल मिला कर देखें, तो भारत और फ्रांस के बीच प्रगाढ़ होते संबंध चीन और अमेरिका को संदेश देने का भी प्रयास है। एक न्यायसंगत व शांतिपूर्ण अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था कायम करने के लिए भारत ने फ्रांस से हाथ मिलाया है। सहयोग का यह मार्ग लंबा है, दोनों मित्रता निभाते हुए आगे बढ़ेंगे।


Date: 14-02-25

आयकर सुधार

संपादकीय

नया आयकर अधिनियम 2025 स्वागतयोग्य है। आयकर एक ऐसा संवेदनशील विषय है, जिसमें सुधार की गुंजाइश हमेशा रहती है और रहेगी। मध्य युग के बाद से ही आयकर या संपत्तिकर में सुधार का क्रम जारी है। एक समय था, जब हर नागरिक या हर परिवार से पूरी कड़ाई से कर या लगान की वसूली होती थी, लेकिन देश की आजादी के बाद आयकर कानून में समय-समय पर खूब सुधार हुए हैं। ताजा सुधार को भी इसी कड़ी में देखना चाहिए। आयकर की दुनिया में जिसे ‘सरल’ कहा जाता है, वह वास्तव में आम आदमी के लिए जटिल है। यदि हम नए अधिनियम के जरिये बची हुई जटिलता से आगे जरूरी सरलता की ओर बढ़ रहे हैं, तो यह सुखद है। आयकर के मोर्चे पर अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। कर प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए कि कोई भी आदमी कर चुकाने के मामले में जमीनी और कागजी, दोनों ही स्तरों पर आत्मनिर्भर हो जाए।

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नए आयकर अधिनियम 2025 को लोकसभा में पेश कर दिया है और इसमें टैक्स फाइलिंग से जुड़ी कठिनाइयों को घटाने की कोशिश दिखती है। नए विधेयक को पुराने अधिनियम से छोटा किया गया है और नए अधिनियम में कम शब्दों में कर प्रक्रिया को यथोचित ढंग से समझाने की कोशिश हुई है। बेशक, कर कानून को सरल, पारदर्शी और करदाता के अनुकूल बनाना विकसित भारत के अनुकूल किया गया फैसला है। आम बजट के समय ही आयकर रियायत से पहले ही नया आयकर अधिनियम पेश करने की घोषणा हुई थी। यह अच्छी बात है कि ‘फाइनेंशियल ईयर’, ‘प्रीवियस ईयर’, ‘असेसमेंट ईयर’ जैसे शब्द के लिए अब केवल टैक्स ईयर शब्द का इस्तेमाल किया जाएगा। नए कानून के तहत रक्षा सेवा जैसे सेना, अर्द्धसैनिक बल और अन्य कर्मचारियों को मिले ग्रेच्युटी को कर से छूट दी जाएगी। चिकित्सा, आवास ऋण, पीएफ, उच्च शिक्षा के लिए ऋण पर कर राहत पहले की तरह ही जारी रहेगी। अनुमान के मुताबिक, यह आयकर अधिनियम अगर इस वर्ष पारित हो जाएगा, तो वर्ष 2026 से इसे लागू कर दिया जाएगा। अगर ऐसा हुआ, तो साल 2025 आयकर के मामले में एक ऐतिहासिक वर्ष होगा। इस वर्ष 12 लाख रुपये तक की कमाई को आयकर से आजादी मिली है। इस वर्ष हमारे देश ने एक तरह से यह मान लिया कि 12 लाख रुपये की कमाई सामान्य बात है। और यहां से देश की एक नई विकास यात्रा शुरू होती है।

वैसे यह ध्यान रहना चाहिए कि आयकर का विषय हर देश में विवाद का विषय रहा है। आयकर को दोहरा और गैर-जरूरी कराधान मानने वाले अर्थशास्त्री भी कम नहीं हैं। यह माना जाता है कि एक नागरिक लगभग हर वस्तु और सेवा के लिए कर चुकाता है, तो फिर उससे आयकर वसूलने की जरूरत क्या है? यह एक विचार है, लेकिन आज के समय में जब सरकारों को आसान कर या राजस्व की जरूरत है, तब आयकर सबसे कारगर है। आय के स्रोत पर ही कर लगाने की यह आसान प्रक्रिया शासन-प्रशासन को भी मुफीद लगती है। पिछले वर्ष जब आयकर स्लैब में अपेक्षा के अनुरूप बदलाव नहीं किया गया था, तब सरकार की मजबूरी की भी चर्चा हुई थी। हालांकि, ऐसी मजबूरी के बावजूद इस साल सरकार ने त्याग का परिचय दिया है और इसके लिए उसकी तारीफ भी हो रही है। उम्मीद करनी चाहिए कि आने वाले समय में कर के मोर्चे पर तारीफ का यह क्रम जारी रहेगा।