13-10-2023 (Important News Clippings)

Afeias
13 Oct 2023
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Date:13-10-23

Addministrators

All services need more officers, not just IFS. So do local govts. And recruit more specialists.

TOI Editorials

 With economic heft comes greater global engagement – hence the increase in the cadre strength of the Indian Foreign Service. A parliamentary panel’s recommendation in the run-up to this decision observed that IFS is short-staffed compared to foreign services of many other countries. The long-awaited enhancement in IFS cadre strength should trigger another look at the nature of Indian bureaucracy, a term that encompasses all public employment. The first point to note is that the popular view of a bloated government is incorrect.

Political scientist Devesh Kapur’s research shows India’s bureaucratic strength peaked in 1986 with 19,000 officials per million. That figure has trended downwards since and in the 1990s, government employment was about 2% of the population, below the Asian average of 2.6%. The bureaucracy, in a cross-country comparison, is not big enough. Kapur observed the bureaucracy delivers on episodic events like conducting elections, which have a clear exit date. But when it comes to daily events such as provision of civic amenities, the result is deeply unsatisfactory. The division of bureaucracy between three levels of government, Centre, states and local, is a likely reason.

In India, local governments distantly trail states and GOI in bureaucratic strength. It’s the opposite in China and the US, where local governments are where most bureaucrats are placed. That clearly hasn’t impaired American or Chinese state capacity. Separately, governments here also need to revisit the bureaucracy’s recruitment process. Are most recruits fit for the job demands in a highly complex world? Is there enough specialisation? Modern states have evolved from directly running factories to regulating economic activity. Be it IFS that grapples with FTAs or other services that must contend with complex policy conundrums, bureaucracy needs more recruitment and more domain expertise.


Date:13-10-23

मानसिकता बदलने वाली एक बड़ी पहल

अर्जुन राम मेघवाल, ( लेखक केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री, स्वतंत्र प्रभार हैं )

लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी उल्लेखनीय बदलाव के लिए सर्वसम्मति से लिया गया निर्णय विशेष महत्व रखता है। यह समावेशी बदलाव लाने की सामूहिक भावना को दर्शाता है। आज जब भू-राजनीतिक परिदृश्य अनेक संदर्भों में भारी उथल-पुथल का सामना कर रहा है, तब अभी हाल में लोकतंत्र की गौरवमयी जननी भारत के मुकुट में एक और रत्न जुड़ गया है। महिलाओं द्वारा राष्ट्र के विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए लंबे समय से की जा रही मांग को पूरा करने के लिए मोदी सरकार ने नारी शक्ति वंदन विधेयक को संसद में पारित कराया। केंद्र और राज्य स्तर पर प्रतिनिधि संस्थानों में महिलाओं की उचित भागीदारी निर्धारित करने वाले महिला आरक्षण विधेयक को नारी शक्ति वंदन अधिनियम के रूप में लागू होते हुए देखने के लिए इस देश की महिलाओं ने 27 वर्षों तक लंबा इंतजार किया। नारी शक्ति आधी आबादी का हिस्सा है। उसकी लोकतांत्रिक प्रतिनिधि संस्थानों में हिस्सेदारी न्यूनतम थी और यह स्थिति प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध थी। बाध्यकारी सामाजिक मान्यताओं ने निर्णय की प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी को सीमित कर दिया था तथा समाज द्वारा लिए गए निर्णयों का अनुपालन करने के लिए वह काफी हद तक बाध्य कर दी गई थी। इन चुनौतियों के बीच इस दृष्टिकोण के विरोध में अनेक अपवाद सामने आए। महिलाएं अपने पर थोपी गईं बाध्यकारी वर्जनाओं से बाहर निकलीं। महिलाओं ने हर क्षेत्र में देश को गौरवान्वित किया है। अब मोदी सरकार ने इस नैतिक कर्तव्य को सम्मानपूर्वक प्राथमिकता दी तथा शीर्ष निर्णयकर्ता के रूप में महिलाओं की भूमिका को मान्यता देकर एक ऐतिहासिक गलती को दुरुस्त करने की दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई। विधायी क्षेत्र में नारी शक्ति वंदन अधिनियम द्वारा प्रस्तावित लैंगिक न्याय महिलाओं के सम्मान को समग्र रूप में बल प्रदान करेगा

यह एक विडंबना, परंतु सत्य है कि अमेरिका को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद महिलाओं को समान मतदान का अधिकार देने में 144 साल लग गए। ब्रिटेन में महिलाओं को मताधिकार उनके द्वारा दशकों तक लड़ाई लड़ने तथा पहले विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद उत्पन्न हुई परिस्थितियों में दिया गया। हमारे पूर्वज दूरदर्शी थे और उन्होंने आजादी के तुरंत बाद महिलाओं के लिए मतदान का अधिकार सुनिश्चित किया।
अब देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्ष पूरे होने पर भारत ने महिलाओं के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व का अधिकार भी सुनिश्चित किया है। बाबा साहब डा. भीमराव आंबेडकर ने संविधान सभा में 25 नवंबर, 1949 को दिए गए अपने भाषण में यह पूछा था कि आखिर कब तक हम विरोधाभासों का यह जीवन जीते रहेंगे। इस अवसर पर उन्होंने देश को सामाजिक तथा आर्थिक असमानताओं के प्रति आगाह किया था। पिछले नौ वर्षों के दौरान मोदी सरकार द्वारा देश के निर्धन वर्ग के लोगों तथा आम जनता के कल्याण को ध्यान में रखकर लागू की जा रही नीतियों से उन विरोधाभासों को समाप्त किया जा रहा है। यह उल्लेखनीय है कि इस दौरान देश के 13.5 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी से बाहर आए हैं। नारी शक्ति वंदन अधिनियम एक व्यक्ति, एक वोट तथा एक मूल्य की भावना को साकार करने की दिशा में उठाया गया एक और कदम है। महिलाओं में मौजूद दृढ़ता, रचनात्मकता, त्याग, ममता, करुणा, दया, समर्पण तथा विश्वास जैसे सहज गुण उन्हें नेतृत्व करने की विशिष्ट क्षमता प्रदान करते हैं। इसके लिए उन्हें शीर्ष प्रबंधन स्कूलों एवं विश्वविद्यालयों से नेतृत्व पाठ्यक्रम प्रमाणपत्र लेने की आवश्यकता नहीं है। बस आवश्यकता इस बात की होती है कि उन्हें उनका उचित स्थान दिया जाए। ऐसा करने मात्र से ही उनकी क्षमता निर्माण को व्यापक बल मिलेगा और वे दूसरों द्वारा अनुकरण के लिए एक आदर्श माडल भी बनेंगी।

नारी शक्ति वंदन अधिनियम मोदी सरकार के लिए कोई राजनीतिक कदम नहीं, बल्कि यह विश्वास का प्रतीक है। संसद का विशेष सत्र बुलाना तथा सर्वसम्मति-आधारित निर्णय के लिए सभी राजनीतिक दलों को राजी करना एक कठिन कार्य था। पहले इस नेक काम का विरोध करने वाले कुछ राजनीतिक दलों का इस विधेयक के लिए सहमत होना उनकी इच्छा से नहीं हुआ, बल्कि ऐसा करना उनकी राजनीतिक मजबूरी बन गई थी। नारी शक्ति वंदन अधिनियम लागू होने पर लोकसभा एवं विधानसभा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का अनुपात वर्तमान के 15 प्रतिशत से बढ़कर 33 प्रतिशत हो जाएगा। इस प्रकार हमारे देश के लोकतांत्रिक संस्थानों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का प्रतिशत वैश्विक औसत (26.7 प्रतिशत) को पार कर जाएगा तथा दुनिया के कई विकसित राष्ट्रों की तुलना में काफी अधिक होगा। ऐसे उपायों को लागू करने से 21वीं सदी में देश को महिलाओं के नेतृत्व में प्रगति के पथ पर अग्रसर करने के संदर्भ में राष्ट्र के दृष्टिकोण में एक नया बदलाव आएगा।

नारी शक्ति वंदन अधिनियम के प्रविधानों को लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत पूर्व अपेक्षित संवैधानिक बाध्यता यह है कि महिलाओं के नेतृत्व वाले निर्वाचन क्षेत्रों की पहचान करने के लिए पहले जनगणना तथा परिसीमन से संबंधित कार्य पूरे किए जाएं। मोदी सरकार संविधान की इस भावना के अनुरूप इस अधिनियम को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। तथापि बदलाव की आहट अभी से पूरे देश में महसूस की जाने लगी है। वर्तमान समाज की पुरुष प्रधान मानसिकता में तेजी से बदलाव आ रहा है। आइए! हम सब मिलकर विकसित भारत के निर्माण के लिए नारी शक्ति नेतृत्व के इस उज्ज्वल युग का स्वागत करें।


Date:13-10-23

भारत की आश्वस्ति

संपादकीय

इस्राइल पर फिलिस्तिीनी चरमपंथी गुट हमास के हमले के बाद भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में वह यरुशलम की पीड़ित जनता के साथ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को आश्वस्त कर दिया कि संकट की घड़ी में हम आपके साथ मजबूती से खड़े हैं। हालांकि प्रधानमंत्री के इस रुख से घरेलू मोर्चे पर कुछ भ्रम की स्थिति भी बनी है। कुछ राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि पारंपरिक रूप से भारत फिलिस्तीन के न्यायसंगत अधिकारों का समर्थक रहा है, लेकिन मौजूदा मोदी सरकार इस लाइन से विचलित हो रही है। पिछले दिनों संपन्न हुई कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में फिलिस्तीन के अवाम की जमीन, स्वशासन और गरिमा के साथ जीवन के अधिकारों को लेकर समर्थन दोहराया गया। भारत और इस्राइल के बीच रक्षा और खुफिया सहयोग उच्चतम स्तर पर है। इतना सब कुछ होने के बावजूद मोदी सरकार ने अपनी विदेश नीति में संतुलित एप्रोच बनाए रखी है। भारतीय राजनयिकों को अच्छी तरह से पता है कि इस्राइल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष बढ़ता है तो इस्लामी देश फिलिस्तीन के समर्थन में खुलकर आ सकते हैं। हालांकि हमास ने निर्दोष महिलाओं और बच्चों की हत्या करने का जो जघन्य अपराध किया है, उसके कारण उसका कोई समर्थन नहीं करेगा। फिर भी यदि ऐसा होता है तो भारत के लिए गंभीर चुनौतियां पैदा हो सकती हैं। वास्तव में भारत की स्पष्ट सैद्धांतिक रही है कि आतंकवाद के किसी भी रूप के विरुद्ध मजबूती से खड़ा रहना है। अपनी इस नीति और सैद्धांतिकी के साथ किसी भी तरह का समझौता न करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने इस्राइल के साथ खड़े रहने का संकल्प जाहिर किया है। लेकिन वे फिलिस्तीन के लोगों के भी हमदर्द हैं और उनके न्यायसंगत अधिकारों के लिए भी आवाज उठाते रहे हैं। यही कारण है कि भारत में फिलिस्तीन के राजदूत अबू अलहैजा ने भारत पर भरोसा जाहिर करते हुए कहा है कि भारत इस मसले में हस्तक्षेप करे और बातचीत में हमारी मदद करे। यह प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर की कूटनीतिक सफलता ही है कि विश्व के किसी भी कोने में कोई संकट पैदा होता है तो हर कोई भारत की ओर उम्मीदों और हसरतों से देखता है।


Date:13-10-23

बचाव की कोशिश

संपादकीय

दुनिया में शायद ही कोई संघर्ष ऐसा होगा, जिसका असर भारतीयों पर न पड़ता हो। पिछले वर्ष के शुरू में भारत ने अपने लगभग 18,000 छात्रों को यूक्रेन से निकालने के लिए ऑपरेशन गंगा चलाया था और अब इजरायल से लोगों को निकालने के लिए सरकार ने ऑपरेशन अजय की शुरुआत की है। विदेश मंत्रालय के अनुसार, पहली खेप में लगभग 230 लोग को वापस लाने की सूचना है। भारतीयों की सुरक्षा को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इजरायली प्रधानमंत्री से बात हुई थी और सुरक्षा का आश्वासन मिला था। फिर भी जिस तेजी से पश्चिम एशिया में स्थितियां बिगड़ रही हैं, उसे देखते हुए भारतीयों का वहां निकल आना ही बेहतर है। इजरायल का पूरा इलाका अब संकटग्रस्त हो गया है और आने वाले दिनों में मुमकिन है कि वायुसेना के विमानों का इस्तेमाल भारतीयों की वापसी के लिए करना पडे़। इजरायल भी भारतीयों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है, लेकिन फिलहाल उसका ज्यादा ध्यान अपने दुश्मनों से बदला लेने पर है। ऐसे में, इजरायल भी खतरे में है, हजार से ज्यादा लोग इजरायल में ही जान गंवा चुके हैं। ध्यान रहे, एक-एक भारतीय की जान कीमती है और भारत को अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी ही चाहिए।

यह पश्चिम एशिया के संघर्ष का सबसे दुखद पहलू है कि यहां निर्दोष लोगों को भी निशाना बनाया जाता है। सांप्रदायिक आधार पर दोनों पक्ष युद्ध करते हैं, मगर दोनों में से कोई पक्ष अपने संप्रदाय के सद्भावी संदेशों से सबक नहीं लेता है। ऐसे में, भारत ही नहीं, दूसरे देशों के नागरिकों की भी मदद करनी चाहिए। भारत सरकार ने रूस-यूक्रेन युद्ध के समय भी ऐसा किया था। ऐसा नहीं है कि भारत अपने सभी नागरिकों को इजरायल से वापस ले आएगा, जो भी नागरिक वहां से लौटना चाहते हैं, लौट सकते हैं। करीब 20,000 भारतीय इजरायल में रहते हैं और यह अच्छी बात है कि अभी तक सभी सुरक्षित हैं। इजरायल भी ऐसी खुली लड़ाई में कूद पड़ा है, जिसमें उसे बदला लेने की ज्यादा चिंता है और नागरिकों की परवाह अपेक्षाकृत कम है। ध्यान देने की बात है कि इजरायल ने सीरिया और लेबनान में भी कुछ ठिकानों को निशाना बनाया है। भारत सरकार को केवल इजरायल में रह रहे भारतीयों की ही नहीं, बल्कि लेबनान में रह रहे करीब 8,000, जॉर्डन में रह रहे 20,000 और मिस्र में रह रहे 4,000 भारतीयों के बारे में भी फिक्रमंद होना चाहिए। युद्ध ज्यादा भड़का, तो कतर तक उसकी आंच पहुंच सकती है और कतर में 75 हजार से ज्यादा भारतीय रहते हैं।

खबर है कि इजरायल ने दमिश्क और अलेप्पो हवाई अड्डों को निशाना बनाया। इन हवाई अड्डों से उड़ानें रोकनी पड़ी हैं। युद्ध को और भड़कने से रोकना जरूरी है, ताकि लोगों को अपना कामकाज या घर-बार छोड़कर भागना न पड़े। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन अगर इजरायल पहुंचे हैं, तो उन्हें शांति-स्थापना के लिए प्रयास करने चाहिए। फलस्तीन या हमास के पक्ष में खड़े हो रहे अरब देशों को भी शांति के लिए प्रयास करने चाहिए। युद्ध को राजनीति या व्यवसाय का माध्यम नहीं बनाना चाहिए। भारत को भी अपनी ओर से कोशिश करनी चाहिए कि यह युद्ध जल्दी से जल्दी शांत हो। साथ ही, यह सोचने का भी समय आ गया है कि भारतीयों को उन देशों में जाने से बचना चाहिए, जहां जोखिम ज्यादा है। कामगारों और विद्यार्थियों को उन्हीं देशों का चयन करना चाहिए, जहां शांति सुनिश्चित है।


Date:13-10-23

बढ़ते कर्ज और घटती बचत के मायने

विद्या महांबारे, ( प्रोफेसर, अर्थशास्त्र, जीएलआईएम )

हाल ही में जारी भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल भारतीयों पर घरेलू कर्ज का बोझ काफी बढ़ा है। इससे उनकी बचत घटी है। आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2022-23 में घरेलू बचत सालाना 2.5 प्रतिशत घटकर जीडीपी की करीब पांच फीसदी रह गई है। कई विश्लेषकों ने लिखा है कि हमें इस तस्वीर को बदलना चाहिए। पारंपरिक आर्थिक सिद्धांत के मुताबिक बताया यही गया है कि भारत सरकार और कॉरपोरेट क्षेत्रों को निवेश योजनाओं के लिए पूंजी की जरूरत है, ताकि आर्थिक विकास को गति मिले। साथ ही, इस बात की भी चिंता है कि घरेलू कर्ज अस्थिर स्तर पर पहुंच रहा है। आखिर ये चिंताएं कितनी जायज हैं? इसके क्या कारण हो सकते हैं, और क्या हमें इसे लेकर चिंतित होना चाहिए? आइए, इसको बिंदुवार समझने की कोशिश करते हैं।

पहली बात, अभी हमारे पास रियल एस्टेट और सोने के रूप में घरेलू (भौतिक) बचत का पिछले साल का आंकड़ा नहीं है। चूंकि आवास ऋण के लिए परिवारों ने खासा कर्ज लिया है, इसलिए अचल संपत्ति में उनकी हिस्सेदारी बढ़ने की संभावना है। नोटबंदी के बाद रियल एस्टेट के लेन-देन यदि औपचारिक क्षेत्र में अधिक होते, तो औपचारिक वित्तीय बाजार बढ़ा हुआ दिखता। इसके अलावा, लोग गाड़ी खरीदने के लिए भी कर्ज ले रहे हैं, जो टिकाऊ संपत्ति का ही एक रूप है। बैंकों का बकाया वाहन कर्ज 2022-23 में 25 फीसदी तक बढ़ा है। इसमें भी बड़े वाहनों के लिए कर्ज देने वाली गैर-बैंकिंग कंपनियां काफी आगे निकल गई हैं।

दूसरी बात, कोविड के बाद आर्थिक विकास को संजीवनी हमारे घरेलू व्यवहार से ही मिल सकती थी। इसमें टिकाऊ वस्तुओं, ऑटोमोबाइल और घरों की खरीदारी की भूमिका अहम रही। इसके बिना कॉरपोरेट निवेश वापस पटरी पर नहीं लौट पाता है। बचत वास्तव में ऐसा उपभोग है, जो बाद में किया जाता है, जबकि अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए हमें तत्काल उपभोग करने की जरूरत होती है।

तीसरा बिंदु, भारतीय अपनी ज्यादातर बचत अब शेयर बाजार और म्यूचुअल फंड के माध्यम से कर रहे हैं। जब स्टॉक और रियल एस्टेट के दाम बढ़ते हैं, तो लोग खुद को अधिक अमीर महसूस करने लगते हैं। नतीजतन, जितना उनको करना चाहिए, वे उससे कम बचत कर सकते हैं। उन्हें इक्विटी बेचने पर वास्तविक पंूजीगत लाभ भी महसूस होता है, जो हकीकत में बचत नहीं माना जाता।

चौथी बात, सरकार अब कम आय वाले लोगों को सालाना पांच लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा देती है। इसका भी एक अनपेक्षित नतीजा कम बचत के रूप में निकल सकता है। परिवारों के लिए, विशेष रूप से कम आय वाले लोगों के लिए, अपनी आमदनी से अधिक खर्च करना वाजिब जान पड़ता है।

पांचवां बिंदु, औपचारिक अर्थव्यवस्था में लगातार विस्तार देखा गया है। इसमें कामकाजी लोगों के पास अमूमन सेवानिवृत्ति और पेंशन फंड की सुविधा होती है। वर्ष 2022-23 में कर्मचारी भविष्य निधि के सदस्यों की संख्या में 1.39 करोड़ की वृद्धि हुई है, जबकि पिछले दो वर्षों में यह संख्या क्रमश: 1.22 करोड़ और 77 लाख थी। चूंकि सेवानिवृत्ति फंड में उनका योगदान बढ़ा है, इसलिए रिटायरमेंट के बाद के जीवन-यापन के लिए हमें जो बचत करनी चाहिए, उसको लेकर गलत धारणा बन सकती है।

छठा, क्या वास्तव में घरेलू कर्ज अस्थिर स्तर तक पहुंच गया है? एक मोटे अनुमान के मुताबिक, औसतन कर्ज भले ही बढ़ा है, पर यह घरेलू आय का 10 प्रतिशत भी नहीं है। विशुद्ध घरेलू बचत तो अब भी घरेलू आय का करीब 20 फीसदी ही जान पड़ता है, जिसकी गणना मोटे तौर पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और घरेलू बचत से खपत घटाकर की जाती है।

ये औसत भ्रामक भी हो सकते हैं। फिर परिवारों में बचतकर्ता और कर्ज लेने वाले अलग-अलग भी हो सकते हैं। गिरवी रखकर उधार लेने वाले कर्जदारों की आमदनी व बचत गैर-उधारकर्ताओं की आय व बचत की तुलना में बहुत कम हो सकती है, जिसमें डिफॉल्ट का जोखिम अधिक होता है। ऐसे में, सवाल यह है कि क्या दिए जाने वाले कर प्रोत्साहन और सरकारी नीतियां घर खरीदने को प्रोत्साहित करती हैं, जिसमें आवास को गिरवी रखना फायदेमंद जान पड़ता है?

सातवां, अपने देश में घर खरीदना एक आकर्षक सौदा है, क्योंकि खरीदार कर योग्य आय पर ‘स्टैंटर्ड डिडक्शन’ और ब्याज सब्सिडी का दावा कर सकता है। सरकार सभी के लिए आवास चाहती है, जिसके लिए वह के्रडिट-लिंक्ड सब्सिडी योजना के माध्यम से किफायती घर की सुविधा देती है। अगर हम नहीं चाहते कि रियल एस्टेट में भारतीय बचत करें, तो हमें इस नीति को बदलना होगा।

आठवां, अंतरराष्ट्रीय ऋण प्रवाह भारतीय परिवारों को अधिक बचत करने के लिए मजबूर करने के बजाय कुछ सरकारी घाटे को पाटने के काम आ सकते हैं। भारत के सरकारी बांडों पर विदेशी स्वामित्व हमारे उभरते बाजार प्रतिस्प्द्धिधयों की तुलना में काफी कम हैं। जेपी मॉर्गन ईएम बांड इंडेक्स में शामिल होने से 2025 की शुरुआत तक लगभग 30 अरब डॉलर का निवेश हो सकता है। एफटीएसई ईएम और ब्लूमबर्ग बार्कलेज ईएम बांड इंडेक्स में संभावित समावेशन से ऋण प्रवाह में और बढ़ोतरी हो सकती है।

अंत में, महंगाई घटनी चाहिए, ताकि कॉरपोरेशन और परिवारों को अपना खर्च कम करने में मदद मिले। आवश्यक वस्तुओं की लागत बढ़ाने के अलावा, ऊंची महंगाई ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में उधार भी बढ़ाई है, क्योंकि रिजर्व बैंक की रेपो दर चार प्रतिशत से बढ़कर 6.5 प्रतिशत हो गई है। महंगाई पर नियंत्रण से ब्याज का बोझ कम होगा और बचत में सुधार हो सकेगा।

आज के नौजवान बचत के मामले में अपने माता-पिता की तुलना में अधिक लापरवाही कर सकते हैं। अपने बीमा कवर और पेंशन योगदान को देखते हुए वे यह समझने की भूल कर सकते हैं कि ज्यादा बचत की उन्हें जरूरत नहीं। वे अर्थव्यवस्था और खुद पर अति-आत्मविश्वास के कारण नौकरी छूटने या बीमार पड़ने जैसे प्रतिकूल झटकों की आशंका के आकलन में भी चूक कर सकते हैं। बेशक, परिवारों को अधिक बचत करनी चाहिए। मगर उनसे यह अपेक्षा करना भी गलत होगा कि वे अधिक खर्च भी करेंगे और आय का एक बड़ा हिस्सा बचत के रूप में बचाएंगे भी।