
13-06-2025 (Important News Clippings)
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Date: 13-06-25
Clear The Air
What caused the crash? A thorough probe and corrective action are necessary to reassure fliers
TOI Editorials
Yesterday’s plane crash will count among the worst aviation disasters in history. It certainly is the deadliest in India this century. By late evening, police had found only one survivor among the 242 passengers and crew, and confirmed deaths of at least five students at the medical college hostel the plane flew into. There’s shock, because plane crashes are extremely rare – the last one in India occurred in Aug 2020. And there’s anxiety, which can only be quelled by honestly investigating what went wrong – malfunction, human error, or something else. The preliminary probe report, which must be submitted to International Civil Aviation Organisation within 30 days, should be made public.
For perspective, the Air India Boeing 787 named ‘VT-ANB’ was only 11 years old – Qatar’s 747-8 gift for Trump is 13, so age was not an issue. How it lost power seconds after take-off, reportedly at a height of around 700ft, is, therefore, a mystery. There’s speculation about a bird hit – which played a role in last year’s Jeju Air disaster in S Korea, and 2009’s “miracle on the Hudson” that made Capt CB “Sully” Sullenberger famous. There are also theories about the “odd” positions of the lost plane’s landing gear and wing flaps. But armchair expertise goes only so far. What the fastest growing major aviation market needs is definite answers.
And Boeing, which has been mired in controversies, ranging from 737 Max crashes to last year’s Starliner fiasco that stranded Sunita Williams and Butch Wilmore at the ISS, would want to clear the air fast as well. To be fair, the 787 Dreamliner had a clean safety record until yesterday. In the 14 years since its introduction – 1,175 planes, 2,100 daily flights, 1bn passengers flown – no Dreamlinerhad crashed. But it’s also true that the plane’s had its share of scares over the years, from fuel leaks to smoking lithium batteries, and warnings about a computer chip that could be hacked. In 2019, Boeing workers complained about shoddy production, and last year a whistleblower claimed the Dreamliner had structural flaws that could make it disintegrate mid-flight.
Air India, which came under Tata Group’s control three years ago, has faced many embarrassments on the service front – choked loos, sagging seats – but this crash raises the critical issue of safety. So, all sides – AAIB, Boeing, Air India – need to work together. US Federal Aviation Administration has also volunteered help. A thorough probe, followed by corrective action, can reinforce the point that flying remains the safest mode of transportation. Until yesterday afternoon, 230 fliers had been killed in crashes within India this century – on our roads, 474 people die every day.
Date: 13-06-25
Some Plane Truths
World’s third-largest aviation market needs to address several structural issues quickly
TOI Editorials
The terrible aviation tragedy in Ahmedabad is a grimly appropriate occasion for reviewing the current status of Indian civil aviation. India has emerged as the third-largest aviation market in the world in terms of passenger traffic. It’s also the sixth largest market for air cargo. And with infra growth over the last few years and regional connectivity scheme UDAN, the sector is primed for further expansion. However, several structural problems are flashing red.
First, the aviation sector has practically transformed into a duopoly with IndiGo and Tata Group’s airlines accounting for nearly 90% of the market. This is incongruent with rapidly growing passenger traffic.
True, running airlines is tough business, especially in a high-cost environment such as ours. But a larger pool of airlines will help solve issues downstream, including pricing. Second, financially stressed airlines are cutting corners on safety and engineering. Just last year, Bureau of Civil Aviation Security fined IndiGo for violation of aviation security protocols; DGCA fined Akasa Air for multiple regulatory violations; and Air India was penalised for violating safety rules on certain long-range routes. Third, by March this year 133 aircraft across airlines – 16% of the industry’s overall fleet – were grounded due to supply chain issues, particularly with Pratt & Whitney engines. Switching over to reliable engines must be expedited.
Fourth, as the sector expands, there’s an acute shortage of pilots and ATCOs. India needs an additional 10,900 pilots by 2030 on top of the current roughly 11,745. Similarly, by the end of 2024 there was a requirement of 5,428 ATCOs, a 70% increase from current levels. Finally, there are few specialists at the helm of aviation regulatory agencies. This again is out of sync with a fast-expanding aviation market. The sector’s growth story can’t be put on autopilot. It has to be carefully nurtured, and gaps addressed quickly.
Date: 13-06-25
इस भयावह विमान हादसे से कई सवाल उठे हैं
संपादकीय
देश शोक-संतप्त है। लगभग 242 यात्रियों और क्रू मेम्बर्स से भरा अहमदाबाद से लंदन जा रहा एअर इंडिया का बोइंग 787 उड़ान के बाद महज 650 फीट (220 मीटर) की ऊंचाई हासिल करते ही एक बिल्डिंग पर गिर गया। इस बिल्डिंग में हॉस्टल था, जिसमें रहने वाले कई डॉक्टर्स (इंटर्न्स) भी हादसे के शिकार हुए उड़ान के समय विमान का वजन किसी पूरी तरह लोडेड दस बड़े ट्रकों के बराबर होता है और स्पीड भी अनुमानतः 240 किमी प्रतिघंटा से ज्यादा थी। यानी जहाज का बिल्डिंग पर इम्पैक्ट असाधारण संवेग से हुआ। पांच घंटे से ज्यादा की फ्लाइट थी, लिहाजा करीब एक लाख लीटर उच्च ज्वलनशील ईंधन भरा था। बिल्डिंग से टकराने से पहले कॉकपिट से आपातस्थिति का ‘मे-डे मैसेज दिया गया था। हाल के वर्षों में विमान- यात्रा आमजन के यातायात का साधन बन चुकी है, लेकिन यह घटना भारतीय एविएशन सेक्टर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नकारात्मक प्रभाव डालेगी। जहाजों के एयरवर्दी (उड़ने योग्य) होने के लिए कई स्तर पर प्रोसिजर का पालन करना होता है। क्या जहाज अपनी कुल अनुमन्य उड़ान दूरी या काल पूरा कर चुका था ? फ्लाइट के पहले सारे पैरामीटर्स चेक किए गए थे? कॉकपिट में नियम विरुद्ध आचरण पाया गया था ? क्या पायलट्स तनावग्रस्त थे? क्या एयरपोर्ट के घनी आबादी के सटे होने से समस्या आई ? जवाब जानना जरूरी हैं।
Date: 13-06-25
हमारे एविएशन सेक्टर की प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचेगी
शीला भट्ट
मनुष्य को अपनी बुद्धि-क्षमता और टेक्नोलॉजी की ईजाद पर हमेशा गुरूर रहता है। लेकिन कभी-कभी यही टेक्नोलॉजी हमें असहनीय दर्द भी दे जाती है। अहमदाबाद में एअर इंडिया की फ्लाइट जिस तरह से क्रैश हुई है, वह घटना हमें विचलित कर देने वाली है। टेक्नोलॉजी की प्रगति से हमें जो आत्मविश्वास मिला है, वो ऐसे हादसों से हिल जाता है। विमान से सफर करने से पहले बोर्डिंग पास लेकर हम कितने बेफिक्र हो जाते हैं।
बोर्डिंग की सूचना की राह देखते एयरपोर्ट पर कितनी तसल्ली से टहलते हैं। हमारी टेक्नोलॉजी पर हमें कितना भरोसा है। लेकिन पल-भर में वह भरोसा छिन्न-भिन्न हो जाता है। अहमदाबाद से लंदन जा रही उस फ्लाइट में 242 यात्री सवार थे। उन्हें कहां पता था कि उनका विमान पूरी तरह टेकऑफ करने के पहले ही पक्षाघात के शिकार किसी व्यक्ति की तरह ढह जाएगा और आग की लपटों में घिर जाएगा। विजय रूपाणी, गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री भी इसी फ्लाइट में बिजनेस क्लास में थे।
बताया जाता है कि फ्लाइट में बैठे एक सहयात्री ने उनकी फोटो अपने परिवार को भेजी थी। वो तस्वीर हमें सन्न कर देती है। मृत्यु के कुछ क्षण पहले की किसी व्यक्ति की तस्वीर उनकी मृत्यु के बाद हमें कितने सारे संदेश देती है? अमेरिकन बोइंग कंपनी का 787 विमान आधुनिक है। ये विमान दो दशकों से उड़ान भर रहा है। अगर एक इंजन फेल हो जाए तो दूसरे इंजन की वर्टिकल स्टैबलाइजर की उसमें सुविधा है। अचानक मौसम खराब होने पर भी ये यात्रियों की बेहतर सुरक्षा करता है।
ये विमान जब बाजार में आया तो सपनों की उड़ान माना गया था। नाम ही उसका ड्रीमलाइनर था। लेकिन अहमदाबाद में टेकऑफ के बाद वो 2 मिनट भी हवा में न रह सका। करीब 650 फीट से ऊपर नहीं जा सका।अभी इस बारे में कुछ भी कहना बहुत जल्दी होगा कि यह हादसा कैसे हुआ। हमें नहीं पता कि यह दुर्घटना पायलट की भूल के कारण हुई या ये महज एक टेक्निकल फेल्योर है। लेकिन एक बहुत गहरा सदमा इस मर्मांतक हादसे से भारतवासियों को लगा है। बोइंग 787 के साथ होने वाला ये पहला इतना घातक हादसा है।
इस हवाई जहाज के पहले बोइंग 737 भी काफी विवादों में रहा था। लेकिन इस दुघटना से अमेरिकन बोइंग कंपनी की आबरू और एअर इंडिया की प्रतिष्ठा- दोनों को क्षति पहुंची है। जिस तरह से यह घटना हुई है, वो इसे कभी भी भुला नहीं पाएंगे। ये विमान 242 यात्रियों को लेकर लंदन जा रहा था। उसकी टंकी ईंधन से भरी हुई थी। इसलिए जब विमान जमींदोज हुआ तो आग की भयानक लपटों में घिर गया।
हालत यह है कि यात्रियों की मृत देह की शिनाख्त करना भी अब बेहद मुश्किल हो गया है। डीएनए टेस्ट से अगर कुछ पता चले तो चले। मृतकों की जो तस्वीरें आई हैं, वो बता रही हैं कि जब टेक्नोलॉजी हमें गच्चा देती है तो वो कितनी घातक भी हो सकती है। एअर इंडिया का ये विमान एयरपोर्ट के बाजू में ही स्थित मेघानी नगर में जाके गिरा। यहां दलितों की एक बहुत बड़ी, पुरानी बस्ती है और एक बड़ा हॉस्पिटल कॉम्प्लेक्स है।
सचिन प्रजापति होम लोन का बिजनेस करते हैं। मेघानी नगर में ही उनका घर है। अपने चाचा राजू भाई के साथ वो अपने घर में बैठे थे। करीब 1:45 बजे अचानक एक धमाकेदार आवाज उन्होंने सुनी। वो दौड़कर बाहर आए। 200 मीटर की दूरी पर उन्होंने वह खौफनाक नजारा देखा तो अपनी आंखों पर यकीन नहीं कर पाए। मेडिकल कॉलेज में काम करने वाले और पढ़ने वाले इंटर्न्स की जो हॉस्टल थी, उस पर हवाई जहाज तीन टुकड़ों में गिरा पड़ा था। अफरातफरी मची थी।
सचिन कहते हैं, विमान नहीं था आग का गोला था। वे अपने दूसरे पड़ोसियों के साथ हॉस्टल की बिल्डिंग और खाने की मेस की तरफ भागे। इंटर्न्स को बचाने में उन्होंने और उनके मित्रों ने सहायता की। अफसोस कि वे काफी लोगों को बचा न पाए। भारत में एविएशन इंडस्ट्री में उछाल आया है। बहुत सारे एयरपोर्ट नए बन रहे हैं। एअर इंडिया- जो सरकारी कंपनी थी- उसे टाटा ने खरीदा है और वह 400 से ज्यादा नए विमान खरीदने वाली है।
मुंबई, दिल्ली और अहमदाबाद के नजदीक भी नए एयरपोर्ट बन रहे हैं। एविएशन की दुनिया में भारत चौथे नंबर पर है। अमेरिका और चीन के बाद वो तीसरे नंबर पर बहुत जल्द आएगा, ऐसी उम्मीद है। भारत खुद सिंगापुर और दुबई की तरह हवाई सफर का अंतरराष्ट्रीय केंद्र बनना चाहता है। पर विकसित भारत में टूरिज्म को बढ़ावा देना है तो सिविल एविएशन सेक्टर मजबूत होना चाहिए और इसीलिए इस घटना की तह में जाना पड़ेगा। हवाई सफर के क्षेत्र का विकास यात्रियों की सलामती के बिना मुमकिन नहीं है।
Date: 13-06-25
दिल दहलाने वाली त्रासदी
संपादकीय
अहमदाबाद में एअर इंडिया के लंदन जा रहे विमान का एक आवासीय क्षेत्र में गिरना और लगभग सभी यात्रियों समेत चालक दल के सदस्यों की मौत हो जाना एक बहुत ही भयावह, दिल दहलाने और हवाई यात्रा की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े करने वाली दुर्घटना है।
इसे दुर्भाग्य की पराकाष्ठा ही कहेंगे कि यह अभागा विमान उड़ान भरते ही मेडिकल कालेज के जिस हास्टल पर गिरा, वहां भी छात्रों समेत कई लोग मारे गए। यह विमान जिस तरह आवासीय क्षेत्र में जा गिरा, उससे यही लगता है कि पायलट को इतना भी अवसर नहीं मिला कि वह उसे रिहायशी इलाके से दूर ले जा पाता।
विश्व में विमान दुर्घटनाओं में कमी आई है। अब वे यदा-कदा होती हैं, पर ऐसा भयावह हादसा दुर्लभ है। भारत में हाल में वायुसेना के कुछ विमान एवं निजी कंपनियों के हेलीकाप्टर दुर्घटनाग्रस्त हुए हैं और उनमें जनहानि भी हुई है, पर किसी यात्री विमान हादसे में इतनी अधिक संख्या में लोगों ने अर्से बाद जान गंवाई है। 2010 में मेंगलुरु में विमान दुर्घटना में डेढ़ सौ से अधिक लोग मारे गए थे।
इसके पहले 1996 में हरियाणा के चरखी दादरी में सऊदी अरब जा रहे और दिल्ली आ रहे विदेशी एयरलाइन के दो विमान हवा में आमने-सामने टकरा गए थे। इसमें करीब 350 लोग मारे गए थे। यह विश्व की सबसे बड़ी विमान दुर्घटनाओं में से एक थी और अजीब भी। इस दुर्घटना में एक पायलट समेत दिल्ली एयर ट्रैफिक कंट्रोल को कठघरे में खड़ा किया गया था।
अहमदाबाद में विमान दुर्घटना किस वजह से हुई और उसके लिए कौन जिम्मेदार है, इसका पता जांच से चलेगा, लेकिन एअर इंडिया के साथ नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) को गंभीरता से हादसे के कारणों का पता लगाना और उनका निवारण करना होगा। इसलिए और भी, क्योंकि हवाई यात्रा की सुरक्षा को लेकर प्रश्न उठते ही रहते हैं।
सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि इन प्रश्नों का समय पर सही उत्तर मिले, क्योंकि अहमदाबाद की दुर्घटना ऐसे समय हवाई यात्रा के प्रति लोगों के भरोसे को डिगा सकती है, जब हवाई यात्री लगातार बढ़ रहे हैं। अब देश में विमान सेवाओं का संचालन मुख्यतः निजी कंपनियां कर रही हैं। क्या वे सुविधाओं के साथ हवाई यात्रा की सुरक्षा के प्रति सजग हैं?
एक बार को सुविधाओं में कमी की अनदेखी की जा सकती है, पर हवाई यात्रा की सुरक्षा से तो कोई समझौता हो ही नहीं सकता। माना गया था कि टाटा के हाथ आने के बाद सुविधाओं एवं सुरक्षा के मामले में एअर इंडिया की हालत सुधरेगी और विमानों का संचालन सुगमता से होगा, पर अहमदबाद की दुर्घटना यह कह रही है कि शायद ऐसा नहीं हो सका। राष्ट्रीय त्रासदी जैसी इस दुर्घटना पर विमान निर्माता कंपनी बोइंग से भी कुछ सवाल पूछने होंगे।
Date: 13-06-25
कैसे टूटे दुर्लभ खनिजों पर चीनी प्रभुत्व
लवीश भंडारी, ( लेखक जाने-माने अर्थशास्त्री हैं। यहां व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं )
स्टेल्थ विमान, ड्रोन, कंप्यूटर चिप, इलेक्ट्रिक मोटर, बैटरी, निगरानी उपकरण और मोबाइल फोन, ये सभी ऐसे खास खनिजों पर निर्भर हैं जिन्हें हम क्रिटिकल मिनरल या दुर्लभ खनिज कहते हैं। दुर्भाग्य से भारत में क्रिटिकल मिनरल सीमित मात्रा में हैं और इनके प्रसंस्करण की विशेषज्ञता की भी कमी है। ये ऐसी कमजोरियां हैं, जो हमारी उत्पादन महत्त्वाकांक्षाओं को हासिल करने में बड़ी बाधा बनती हैं।
यह चुनौती छोटी नहीं है, क्योंकि यह अर्थव्यवस्था के लगभग हर हिस्से- विनिर्माण, सेवा और यहां तक कि कृषि क्षेत्र को भी प्रभावित करेगी। उदाहरण के लिए अर्थव्यवस्था के अधिक से अधिक विद्युतीकरण की दिशा में बढ़ते कदम को ही लें, जहां परंपरागत जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा की जगह धीरे-धीरे बिजली ले रही है। इसके लिए व्यापक पैमाने पर उपभोग और गतिशीलता दोनों के लिए ही अधिक विद्युत भंडारण की आवश्यकता होती है। इसलिए चाहे वाहन क्षेत्र हो या ड्रोन, रोबोट, शिपिंग और विमान, अथवा बड़े पैमाने पर ऊर्जा भंडारण, हर क्षेत्र में बैटरी और मोटरें अर्थव्यवस्था का जरूरी हिस्सा बन जाएंगी। वर्तमान रुझान को देखते हुए लीथियम, कोबाल्ट, निकल, मैंगनीज जैसे तमाम खनिज धीरे-धीरे आम जनजीवन के लिए बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाएंगे।
इसी तरह कंप्यूटरीकरण हो या डिजिटलीकरण की ओर बढ़ते कदम, चौकसी एवं निगरानी, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस क्रांति तथा क्वांटम कंप्यूटिंग की बढ़ती प्रवृत्ति, ये सभी कार्य अलग-अलग इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों पर ही निर्भर हैं। उनके बढ़ते महत्त्व और इनके निर्यात नियंत्रित करने की चीन की प्रवृत्ति को देखते हुए भारत इन क्षेत्रों में अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए इमेज सेंसर एवं ऑप्टिकल इक्विपमेंट के लिए गैलियम, जर्मेनियम और इंडियम जैसे खनिजों से लेकर चिप के लिए टैंटलम व नियोबियम और मैग्नेट के लिए यूरोपियम, येट्रियम तथा टर्बियम जैसे दुर्लभ खनिजों की सख्त आवश्यकता होगी।
हमें रक्षा आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखना होगा। सरकारी नीति में विशिष्ट बदलाव के कारण कम अवधि में ही देश में सैन्य-औद्योगिक परिदृश्य उभर आया है। इससे आने वाले समय में मिसाइलों, तोपों, विमानों, पनडुब्बियों आदि का उत्पादन बढ़ेगा ही। टाइटेनियम और टंगस्टन जैसे खनिजों का उपयोग कुछ समय से किया जा रहा है, लेकिन अंतरिक्ष उपकरणों और मिसाइलों के बढ़ते उपयोग की वजह से बड़े स्तर पर उत्पादन के लिए बेरिलियम और दुर्भल खनिजों समेत अन्य खनिज चाहिए।
सवाल उठता है कि खनिजों की बढ़ती जरूरत और उपयोग के तेजी से बदलते परिदृश्य में सरकार क्या कर रही है। वास्तव में इस दिशा में बहुत कुछ किया गया है। भारत को किन-किन महत्त्वपूर्ण खनिजों की आवश्यकता है, उनकी पहचान की गई है, खनिज संसाधनों के लिए संयुक्त उद्यम ‘काबिल’ के माध्यम से विश्व स्तर पर करार किए जा रहे हैं, इस क्षेत्र में प्रसंस्करण क्षमता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन योजनाएं पेश की गई हैं। इसके अलावा महत्त्वपूर्ण खनिज ब्लॉकों में निजी भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा रहा है। ऐसा महसूस भी किया जा रहा है कि अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया सहित साझा हित वाले देशों के साथ महत्त्वपूर्ण खनिज साझेदारी के प्रयास सफल हो रहे हैं।
इतना सब हो रहा है तो फिर मैं यह लेख क्यों लिख रहा हूं? सही कहूं तो सरकार देश में महत्त्वपूर्ण खनिजों का मजबूत परिदृश्य विकसित करना चाह रही है। हालांकि, चाहे खनन क्षेत्र हो या प्रसंस्करण, सरकार की वर्तमान अवराेध दूर करने की रणनीति निवेश का अनुकूल वातावरण बनाने के लिए अपर्याप्त है। अब चूंकि उत्पादन के साथ-साथ अर्थव्यवस्था का भविष्य ही महत्त्वपूर्ण खनिजों के खनन और प्रसंस्करण पर टिका है, इसलिए हम इसे गलत भी नहीं ठहरा सकते।
यहां बड़ी समस्या क्रिटिकल मिनरल्स वैल्यू चेन बनाने के समयावधि को लेकर है। आसान भाषा में कहें तो एक खनिज की पहचान होने और फिर उसके खनन की पूरी प्रक्रिया शुरू होने में लगभग डेढ़ दशक का समय लगता है। प्रसंस्करण की बात करें तो स्वीकृति आदि लेने से लेकर उत्पादन के लिए जरूरी सामान जुटाने और यूनिट लगाने तक 5 से 10 साल लग जाते हैं, जबकि कोई भी यूनिट लगभत तीन वर्ष में उत्पादन शुरू करती है।
बात यह है कि अपस्ट्रीम माइनिंग का संयंत्र स्थापित करने में सबसे अधिक समय लगता है, जबकि मिडस्ट्रीम प्रॉसेसिंग थोड़ा जल्दी शुरू हो जाता है। हां, डाउनस्ट्रीम उत्पादन में सबसे कम समय लगता है। बस, दिक्कत यहीं है। बिना पर्याप्त बड़े घरेलू बाजार के किसी अपस्ट्रीम यूनिट की ठीक से योजना नहीं बनाई जा सकती और क्रिटिकल खनिजों की घरेलू आपूर्ति के अभाव में डाउनस्ट्रीम यूनिट चलाना जोखिम भरा है। दूसरे शब्दों में कहें तो वैल्यू चेन खड़ी करने में आने वाली समय की यह दिक्कत अपना बाजार खड़ा करने में बड़ी चुनौती बनती है। इससे इस क्षेत्र का सहज विकास सीधे प्रभावित होता है। इससे निपटने के लिए सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है और इस क्षेत्र के समक्ष आने वाली ऐसी अड़चनों को दूर करने की सख्त जरूरत है। केवल लाइसेंस को सुविधाजनक बनाना या निवेश में सब्सिडी देना अथवा शोध एवं विकास (आरऐंडडी) को सक्षम बनाना काफी नहीं होगा। नीति एक साथ दो मोर्चों पर काम कर सकती है। यदि खनन और प्रसंस्करण के कामों को बेहतर ढंग से समन्वित किया जाए तो तमाम जोखिम कम हो जाएंगे और बाजार विफलता के तत्व भी खत्म हो जाएंगे। सबसे पहले, यह पूरी खनन प्रक्रिया में लगने वाले समय और उससे जुड़ी अन्य अड़चनों को पहचानने में मदद करेगा। एक संभावना यह है कि कुछ चीजों के उत्पादन पर तब तक काम किया जाए और उसमें देरी की जाए जब तक कि अपेक्षित प्रसंस्करण क्षमता विकसित न कर ली जाए। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि कुछ रक्षा उपकरण के विकास में देरी की जा सकती है और दुर्लभ खनिज की आपूर्ति श्रृंखला तैयार होने तक इनके आयात पर निर्भर रहा जा सकता है। अथवा यह खनन में लगने वाले समय को कम किया जा सकता है। विभिन्न स्वीकृतियों और लाइसेंसों की पूर्व-अनुमति को सुविधाजनक बनाया जा सकता है, जिसमें अमूमन कई साल लग जाते हैं। इससे खदानों को चालू करने के लिए जरूरी समय कम हो जाएगा, लागत घट जाएगी तथा निजी निवेश के लिए जोखिम भी काफी हद तक दूर हो जाएगा।
दूसरे, भारत मिडस्ट्रीम सेगमेंट यानी प्रसंस्करण स्तर पर सीधे क्रिटिकल मिनरल्स वैल्यू चेन में प्रवेश कर सकता है। इसका उद्देश्य (ए) यह सुनिश्चित करना होगा कि डाउनस्ट्रीम निर्माताओं के लिए महत्त्वपूर्ण खनिज उपलब्ध हों, और (बी) घरेलू अपस्ट्रीम खनन और प्रसंस्करण उद्योग को अपने उत्पाद के लिए आसानी से उपलब्ध बाजार के माध्यम से विकसित होने के लिए सही वातावरण मिले। यह काम कई प्रकार से किया जा सकता है।
एक तरीका फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के न्यूनतम मूल्य वाले सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसे दृष्टिकोण पर आधारित हो सकता है, जहां सरकार खरीद मूल्य की घोषणा करे और प्रसंस्कृत खनिजों को खरीदे तथा उनका भंडारण करे। इसके बाद मांग के अनुसार उन्हें बेच सकती है। एक विकल्प एमएमटीसी के साथ मूल्य स्थिरीकरण दृष्टिकोण है, जहां एक क्रिटिकल मिनरल्स ट्रेडिंग कंपनी को घरेलू प्रसंस्करण इकाई से पहले खरीदने और फिर घरेलू फर्मों को बेचने का अधिकार दिया जाता है। इसके अलावा, वैश्विक बाजार हस्तक्षेप के माध्यम से कीमत में घट-बढ़ को समायोजित किया जाता है। यहां मुख्य बात यह है कि प्रसंस्कृत खनिजों की उपलब्धता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी पूरी तरह इसी कंपनी की होगी। एक अन्य दृष्टिकोण में सरकार द्वारा कुछ चुनिंदा निजी कंपनियों की पहचान करना भी शामिल होगा, लेकिन उन्हें सख्ती से विनियमित करना होगा क्योंकि इस क्षेत्र में निजी कंपनियां अक्सर मुनाफाखोरी को बढ़ावा देती हैं। पूरी कवायद का बड़ा उद्देश्य मुख्य उत्पादन श्रृंखला को समृद्ध और मजबूत बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति में मूल्य और मात्रा के स्तर पर स्थिरता सुनिश्चित करना है। याद रखें कि पश्चिमी दुनिया का एक समय इस क्षेत्र में प्रभुत्व था, लेकिन जब वैल्यू चेन के हर स्तर पर लाभ की प्रवृत्ति हावी हो गई तो उसे अपने संयंत्र बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा और इसने चीन के सामने घुटने टेक दिए। इससे इस क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर चीन का दबदबा कायम हो गया, क्योंकि इसने अपस्ट्रीम खनन और प्रसंस्करण पर नहीं, बल्कि विनिर्माण में डाउनस्ट्रीम लाभ पर ध्यान केंद्रित किया।
Date: 13-06-25
सुरक्षा के सवाल
संपादकीय
अहमदाबाद हवाई अड्डे के पास हुई भीषण विमान दुर्घटना ने देश को झकझोर दिया है। उड़ान भरने के कुछ ही समय बाद हुई इस दुर्घटना से जांचकर्ताओं और विमानन विशेषज्ञों के सामने कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। भारत में पिछले दशकों में कई हवाई दुर्घटनाएं देखी गई हैं। हरेक हादसे के बाद विमानन क्षेत्र में सुरक्षा के नए मानकों को लेकर मंथन हुआ है और जरूरी बदलाव किए गए हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक छानबीन के तय मानक हैं। और सुझावों को हर देश को मानना होता है। सवाल उठता है कि अहमदाबाद में क्या हुआ। हादसे के जो वीडियो सामने आए हैं, उनसे स्पष्ट है कि विमान उड़ते समय नीचे गिरा । अचानक विमान की बिजली ठप हो जाने से ऐसा होता है। इससे इंजन बंद हो जाते हैं, लेकिन इस बात की कम संभावना होती है कि किसी विमान के दोनों इंजन एक साथ बंद हो जाएं। विशेषज्ञों के मुताबिक, इस हादसे में एक बात खटकने वाली है। विमान के उड़ान भरते ही लैंडिंग गियर को ऊपर उठा दिया जाता है, लेकिन इसका लैंडिंग गियर नीचे था। संभव है कि पायलट को इंजन में खराबी का पता चला हो और उसने संभालने की कोशिश की हो।
दरअसल, विमान का उड़ान भरना और उतरना उड़ान का सबसे खतरनाक चरण होता है। जब यह हादसा हुआ, तब विमान 625 फुट की ऊंचाई पर था, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या चालक दल किसी एक ही समस्या से निपट रहा था या एक साथ कई समस्याओं से। हादसे का शिकार हुआ विमान बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर था जो चौड़े आकार वाला और दो इंजन से लैस होता है। जब जांच होगी तो पहला सवाल यही पूछा जाएगा कि यह विमान उड़ान भरने के लिए सही ढंग से तैयार था या नहीं। जेट विमानों में कई सहयोगी प्रणालियां होती हैं जिसमें केवल एक इंजन के साथ ऊपर चढ़ने की क्षमता भी शामिल होती है। अभी यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि एअर इंडिया के इस विमान ने कितनी उड़ानें पूरी की थीं। फ्लाइट रडार 24 के आंकड़ों के मुताबिक, यह विमान एक दशक से भी ज्यादा पुराना था । बोइंग के ड्रीमलाइनर को लेकर अतीत में सुरक्षा संबंधी चिंताएं सामने आई थीं, लेकिन कभी दुर्घटना नहीं हुई थी।
भारतीय वायु क्षेत्र में पिछला बड़ा हादसा 2020 में हुआ था, जब एअर इंडिया एक्सप्रेस की सहायक कंपनी का एक यात्री विमान केरल में बारिश से भीगे रनवे पर फिसल गया और दो टुकड़ों में टूट गया। कम से कम 17 लोगों की मौत हो गई थी। वर्ष 2010 में, एअर इंडिया एक्सप्रेस का एक विमान मैंगलोर में एक पहाड़ी रनवे से फिसल गया था। विमान में आग लग गई थी, जिसमें 150 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। यह वह दौर था, जब भारत के तेजी से बढ़ते विमानन क्षेत्र में सुरक्षा और व्यावसायिकता को लेकर कई स्तर पर लोग चिंतित थे । अब स्थिति सुधरने लगी थी और विमानन क्षेत्र ने करवट लेनी शुरू की थी। सरकार ने उड़ान समेत कई नई योजनाएं शुरू कीं। ऐसे में बड़े हादसे से समूची कवायद ठिठक जाएगी। उठे सवालों पर मंथन कर आगे बढ़ना होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि झकझोर देने वाले इस हादसे से विमानन कंपनियों समेत तमाम पक्ष सबक लेंगे और सुरक्षा की सौ फीसद गारंटी दी जा सकेगी।
Date: 13-06-25
त्रासद उड़ान
संपादकीय
अहमदाबाद विमान हादसे पर जितना भी दुख जताया जाए, कम होगा। लंदन जा रहे बोइंग 787 ड्रीमलाइनर विमान में उड़ान भरने के कुछ ही पल बाद पता नहीं क्या खराबी आ गई कि विमान नीचे आकर भवन से टकरा गया और उसमें धमाके के साथ आग लग गई। विमान यात्रियों से भरा हुआ था और नीचे वह जिस पांच मंजिला भवन से टकराया, उसमें भी लोग थे, अतः कुल मिलाकर, वह एक ऐसी त्रासदी है, जिसे कभी भुलाया न जा सकेगा। आने वाले दिनों में हादसे के तथ्य सामने आएंगे, पर यह बात स्पष्ट है कि पायलट ने भारी खतरे के संकेत दे दिए थे, मगर उसे कोई और सूचना देने का अवसर न मिला। आशंका है कि विमान के दोनों इंजनों ने काम करना बंद कर दिया। अगर एक भी इंजन काम करता, तो विमान को उतारने का अवसर मिल जाता। बेशक, दुर्घटना के असली कारणों का पता ब्लैक बॉक्स मिलने के बाद चलेगा। विमान को फिट मानने के बाद ही उड़ान को मंजूरी मिलती है, तो फिर क्या हुआ? इस त्रासदी ने अनेक सवाल खड़े कर दिए हैं। अचानक कोई खराबी आ गई या पायलट से कोई चूक हो गई? क्या कोई और भी वजह हो सकती है? अहमदाबाद एयरपोर्ट देश के व्यस्ततम एयरपोर्ट में शामिल है और वहां सुरक्षा को लेकर भी चिंता रही है। जांच के लिए जो भी टीमें या समितियां बनेंगी, उन्हें विस्तार से कमियों की पड़ताल करनी पड़ेगी। यह कोई पहली बार नहीं है, जब कोई विमान उड़ते ही हादसे का शिकार हुआ है। फिर भी यह दुर्घटना विरल है। कोई दोराय नहीं कि विमान यात्रा को सबसे सुरक्षित माना जाता है और यह धारणा किसी एक हादसे की वजह से नहीं बदल सकती। हां, यह जरूर है कि तात्कालिक रूप से एअर इंडिया पर असर पड़ेगा। साथ ही, विमान की निर्माता कंपनी बोइंग को भी शेयर बाजार में कुछ गिरावट का सामना करना पड़ेगा। हादसे के बाद हम देख रहे हैं कि बोइंग के शेयर भाव में करीब सात प्रतिशत की गिरावट हुई है। बेशक, स्थिति जल्दी ही सामान्य हो जाएगी, किंतु विमानन के लिए जिम्मेदार लोगों को एक बड़ा काम मिल गया है। कोई भी जागरूक व्यक्ति यही चाहेगा कि जल्दी से जल्दी विमान हादसे की वजहों का पता चले। विमानन सुरक्षा एक ऐसा मोचां है, जहां रत्ती भर भी कमी छोड़ने की गुंजाइश नहीं है। यह समय विज्ञान के लिए भी महत्वपूर्ण है। हादसे के शिकार हुए लोगों को पहचानना भी एक बड़ी समस्या होगी। राख में सुई खोजने का यह अवसर राहत दलों के साथ ही, फोरेंसिक और अन्य चिकित्सकों को परेशान कर सकता है। यह एअर इंडिया और गुजरात सरकार के लिए अत्यंत उदार होकर पीड़ितों की सेवा का समय है। विमान हादसे में करीब 11 बच्चे भी काल के गाल में समा गए हैं। ऐसे यात्री भी होंगे, जो पहली बार इतनी लंबी विमान यात्रा पर जा रहे होंगे। विमान के उड़ने के बाद ऐसे यात्री कितने खुश होंगे, पर महज पांच मिनट में उनकी खुशियों का अंत हो गया। जो विदेशी मारे गए हैं, उनके प्रति भी गहरी संवेदना का भाव होना चाहिए। उनके परिजन के साथ पूरा सहयोग करना चाहिए। मुआवजा जहां जरूरी हो, वहां वितरित होना चाहिए। राहत और बचाव के लिए एअर इंडिया, राज्य और केंद्र सरकार को मिलकर काम करना होगा, ताकि अब किसी को शिकायत का मौका न मिले। ध्यान रहे, गुजरात के लिए यह ज्यादा दुख की बात है कि उसने इस हादसे में अपने एक पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को भी खो दिया है। शांत स्वभाव के रूपाणी को गुजरात के अच्छे नेताओं में गिना जाता था। यह समय संयम, सहायता, संवेदना और प्रार्थना का है।