06-05-2024 (Important News Clippings)

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06 May 2024
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Date:06-05-24

Old King Coal Still Chief Power Player

Transition challenges more political than economic

ET Editorials

India has averted large power outages during peak summer demand by increasing its reliance on coal-fed electricity-generation capacity. Share of renewables isn’t improving, partly on account of the intermittence of supply from solar and wind energy. Both thermal and renewables face tepid investor interest because of uncertainty over payments by distribution companies. The Centre has had some success in nudging states to bring down indebtedness of their distribution monopolies, but not on a scale to inspire investing confidence by private capital. The new generating capacity coming up is, thus, skewed in favour of public-funded coal-fired plants.

Distribution holds the key to capacity build-up across the electricity value chain. This is the only point in the chain where revenue enters the system, and it remains because political parties use it to price power to their advantage. The immediate bottleneck, of discoms running up huge bills with generating companies that, in turn, was affecting payments to coal suppliers, has been corrected substantially in the past two years partly by some smart persuasion. The way forward would be to break monopolies by allowing multiple distributors to share transmission infrastructure. Here, too, challenges are more political than economic. More work also needs to be done to curb power theft through smart metering.

Tepid investment in power storage from RE sources amplifies the problem of intermittence fosters overdependence on coal. PLIs for domestic battery manufacturing have not delivered substantially, but GoI is pitching hard to foreign investors. Renewables offer India a pathway to reduce its dependence on energy imports, apart from achieving self-imposed emission reduction targets. At this point, however, India will feed its economic growth through energy from all sources, and significant energy transition will be deferred. This comes at a cost in terms of price of energy and climate mitigation. But India’s growth through exports could pass some of this cost to the rest of the world.


Date:06-05-24

समुद्र के लिए गति शक्ति जैसे कार्यक्रम की जरूरत

अजय कुमार, ( लेखक भारत के पूर्व रक्षा सचिव और आईआईटी कानपुर के विशिष्ट अतिथि प्राध्यापक हैं )

महासागरों में बहुत व्यापक आर्थिक संभावनाएं हैं जिनका लाभ अभी नहीं उठाया जा सका है। आर्थिक पैमाने पर ये लाखों करोड़ डॉलर तक हो सकती हैं लेकिन इसके बावजूद इनके बहुत सारे हिस्सों के बारे में हम नहीं जानते। न केवल 94 प्रतिशत जीवन समुद्र के भीतर है, बल्कि समुद्र ग्रीनहाउस गैसों के प्रबंधन में भी अहम भूमिका निभाते हैं।

पृथ्वी की सबसे लंबी पर्वत श्रृंखला मिड-ओशन रिज जो करीब 65,000 किलोमीटर लंबी है, वह भी समुद्र के भीतर है। समुद्र के भीतर 30 लाख जहाजों का मलबा पड़ा है जिनमें से प्रत्येक के साथ कहानियों का पूरा जखीरा है। आश्चर्य की बात है कि समुद्र की उतनी भी पड़ताल नहीं हुई है जितनी चांद या मंगल की सतह की।

भारत का समुद्री क्षेत्र उसके भूभाग के ही बराबर है और हमारे 80 फीसदी संसाधन समुद्र में हैं लेकिन देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी (GDP) में उसका योगदान केवल चार फीसदी है।

भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है, ऐसे में जलीय या समुद्री अर्थव्यवस्था में बहुत अवसर छिपे हुए हैं। भारत मछलीपालन, जलीय पर्यटन, नौवहन, तटीय ऊर्जा और खनिज आदि की मदद से लाखों रोजगार और लाखों करोड़ रुपयों का राजस्व जुटा सकता है।

समुद्र में मछली मारने के हिसाब से चीन के पास दुनिया का सबसे बड़ा बेड़ा है और भारत को उसकी बराबरी करनी है। गहरे समुद्र के खनिजों की बात करें तो पॉलिमेटालिक नॉड्यूल्स और दुर्लभ खनिजों सहित वहां असीमित संभावनाएं हैं। बेहतर तकनीक के साथ निकट भविष्य में उनका निरंतर खनन भी आसान होता जाएगा। जो देश समुद्री क्षेत्रों में जल्दी पकड़ बनाएगा वही लंबी अवधि में संसाधनों और क्षेत्र पर काबिज होगा।

समुद्री अर्थव्यवस्था की रणनीति बेहतर जलीय क्षेत्र जागरूकता यानी अंडरवाटर डोमेन अवेयरनेस (यूडीए) पैदा करने पर निर्भर है जिसकी मोटे तौर पर अनदेखी की गई है। इस क्षेत्र को शीत युद्ध के दौरान पहली बार तवज्जो मिली और अमेरिकी नौसेना ने अटलांटिक सागर में एसओएसयूएस जैसे समुद्री सतह वाले हाइड्रोफोन नेटवर्क की स्थापना की ताकि रूसी समुद्री पनडुब्बियों की निगरानी की जा सके।

बहरहाल, तकनीकी उन्नति के साथ यूडीए का आर्थिक महत्त्व भी बढ़ा है। अब पानी के भीतर की जानकारी पानी के भीतर तथा अंतरिक्ष में मौजूद सेंसरों की मदद से निकाली जाती है। अंतरिक्ष स्थित सेंसरों की मदद से मछली मारने वाली नौकाओं को महंगी मछलियों को पहचानने और ज्यादा मछलियों वाले इलाकों में जाने में मदद की जाती है।

भारत को पानी के भीतर काम करने वाली स्वदेशी सेंसर तकनीक विकसित करने को प्राथमिकता देनी चाहिए क्योंकि ये तकनीक बहुत अधिक महंगी हैं और इसलिए उनका आर्थिक उपयोग अव्यावहारिक हो जाता है।

इसके अलावा शीत युद्ध के दौर में उपकरण प्रशांत और अटलांटिक महासागर के कम तापमान वाले इलाकों में कारगर रहता है लेकिन हिंद महासागर जैसे अपेक्षाकृत गर्म इलाके में उनका प्रदर्शन कमजोर पड़ जाता है। यहां उसके आंकड़े 60 फीसदी तक गलत साबित होते हैं।

भारत में अगस्त 2022 में नौसेना के स्प्रिंट कार्यक्रम के तहत 75 आईडेक्स के साथ अच्छी शुरुआत हुई। इसके परिणामस्वरूप देश में पहली बार स्वदेशी तकनीक के नमूने बनाए गए जो पानी के भीतर काम करते हैं। जल के भीतर काम करने वाली प्रणालियों को मजबूत करने के लिए घरेलू चिप विकास क्षमता जरूरी है।

एक डिजाइन आधारित प्रोत्साहन योजना के जरिये ऐसी प्रणालियों के लिए सेंसर विकास को फंड किया जा सकता है और चिप तैयार करने को भी। इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय सरकार की ओर से खरीद की गारंटी के साथ आईडेक्स जैसी प्रणालियों पर विचार कर सकता है।

ऐसी प्रणालियों में बहुत अधिक आंकड़ों के संग्रह और विश्लेषण की आवश्यकता होती है। इनमें ढेर सारी सूचनाएं होती हैं, मिसाल के तौर पर समुद्र में स्थित भौगोलिक आकृतियां, वहां घटित होने वाली घटनाएं आदि।

इसके अलावा नेविगेशन, संचार, तापमान, क्षारीयता जैसे पर्यावरण कारक, पानी की गुणवत्ता और रासायनिक घटक, समुद्री धाराएं, संकेत और पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र आदि शामिल हैं। केंद्रीय मंत्रालय, संगठन, तटीय राज्य अलग-अलग आंकड़े एकत्रित करते हैं जिससे अलहदा आंकड़े तैयार होते हैं।

यूपीआई और आधार के तर्ज पर एक ओपन एपीआई आधारित ढांचा आंकड़ों की साझेदारी का माध्यम बन सकता है। इसमें स्टार्टअप और विभिन्न संगठनों द्वारा ऐप्लिकेशन विकास मददगार हो सकता है और इस क्षेत्र में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के उपयोग को भी बढ़ावा दिया जा सकता है।

जिस तरह स्थलीय आर्थिक विकास के लिए पीएम गति शक्ति की शुरुआत की गई है, वैसे ही समुद्र के भीतर की आर्थिक संभावनाओं के लिए भी पीएम गति शक्ति की शुरुआत की जा सकती है। यह पहल उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर एक व्यापक तस्वीर पेश करेगी और मजबूती और खामियों का पता लगा सकेगी और विभिन्न एजेंसियों के लिए केंद्रीकृत समन्वय प्लेटफॉर्म की तरह काम करेगी।

आर्थिक यूडीए के लिए पीएम गति शक्ति को जीआईएस आधारित प्लेटफॉर्म से विशिष्टीकृत किया जा सकता है। चूंकि तापमान, खारापन, घनत्व आदि हमेशा बदलते रहते हैं इसलिए इस प्लेटफॉर्म का समय वाला पहलू अहम होगा।

सुंदरबन और सर क्रीक जैसे क्षेत्रों में विविध जलीय क्षेत्रों के लिए विशिष्ट समुद्री योजना बनानी होगी। आर्थिक यूडीए के लिए पीएम गति शक्ति को अपनाने से भारत स्मार्ट सिटी के तर्ज पर ‘स्मार्ट समुद्री क्षेत्रों’ का विकास कर सकता है।

इससे तकनीक संपन्न समुद्री योजना बनाने में मदद मिलेगी तथा समुद्री संसाधनों का सुरक्षित और समुचित खनन हो सकेगा। इस दौरान पानी के नीचे प्रदूषण, आर्थिक संसाधनों का प्रबंधन भी संभव होगा। इसके लिए सागर यानी सिक्युरिटी ऐंड ग्रोथ फॉर आल इन द रीजन को एक नए स्तर पर ले जाना होगा और यह भारत को हिंद महासागर क्षेत्र में अव्वल बनाएगा।

आर्थिक यूडीए के लिए गति शक्ति योजना मानव संसाधन नियोजन के लिए भी निर्देशन का काम करेगी। जरूरत इस बात की है कि नीति निर्माताओं, सेना और पुलिस में जागरूकता बढ़ाई जाए। समुद्री शोध केंद्र इस क्षेत्र में एक संसाधन केंद्र बनकर उभरा है। उसकी भूमिका का विस्तार करके तथा उसके साथ एक राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू करके क्षेत्रीय क्षमता विस्तार केंद्र स्थापित किए जा सकते हैं।

समुद्री शोध केंद्र नवाचार के केंद्र के रूप में भी काम कर सकता है और यूडीए केंद्रित स्टार्टअप के विकास में मदद कर सकता है। यूडीए को जहां सुरक्षा के मुद्दे के रूप में देखा गया है वहीं इसमें आर्थिक उत्प्रेरक होने की भी संभावना है।

इसी प्रकार अतीत में इलेक्ट्रॉनिक, अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा आयोगों जैसी पहल के तर्ज पर आर्थिक यूडीए के लिए गति शक्ति भी भारत को इस क्षेत्र में अग्रणी भूमिका में ला सकती है। यूडीए में यह क्षमता है कि वह भारत की समुद्री विरासत में नई जान फूंके और आर्थिक वृद्धि तथा वैश्विक नेतृत्व का अवसर मुहैया कराए।


Date:06-05-24

नेपाल की जिद

संपादकीय

पड़ोसी देश नेपाल ने पिछले कुछ समय से भारत को लेकर जैसा रवैया अख्तियार किया हुआ है, उससे साफ है कि वह चीन के प्रभाव में कुछ अवांछित फैसले भी कर रहा है। हालांकि उसे यह ध्यान रखना चाहिए कि भारत जैसे पड़ोसी के संप्रभु क्षेत्र में अगर वह दस्तावेजी तौर पर नाहक दखलअंदाजी करने की कोशिश करता है तो वह एक तरह से उकसावे की कार्रवाई है। गौरतलब है कि नेपाल सरकार ने सौ रुपए के नए नोट छापने का फैसला किया है, जिस पर देश का एक नक्शा भी होगा। किसी भी देश का यह अपना फैसला होता है कि वह अपनी मुद्रा पर क्या प्रतीक चिह्न देता है। मगर उसमें अगर किसी पड़ोसी देश की संप्रभुता के अतिक्रमण का संकेत दिखेगा तो यह निश्चित तौर पर आपत्तिजनक है। नेपाल ने सौ रुपए के नोट पर जो नक्शा छापने का फैसला किया है, उसमें लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी इलाके भी शामिल हैं, जबकि ये भारत के सीमा क्षेत्र में हैं। पिछले चौतीस वर्षों से वह भारत के इन तीनों क्षेत्रों को अपना बता कर विवाद को जटिल बनाता रहा है।

भारत के लिए यह तकलीफदेह इसलिए भी है कि सदियों से नेपाल के साथ मधुर रिश्ते रहे हैं। इसी वजह से नेपाल के सबसे विकट समय में भी भारत ने उसका साथ दिया है, हर स्तर पर आगे बढ़ कर मदद पहुंचाई है अफसोस की बात है कि नेपाल भारत के साथ अपने पुराने संबंधों की गरिमा को ताक पर रख कर अब कूटनीतिक संवेदनशीलता का ध्यान रखना भी जरूरी नहीं समझ रहा है। नेपाल की ओर से यह विवाद करीब चार वर्ष पहले भी उठा था, जब उसने देश के नए राजनीतिक और प्रशासनिक नक्शे की मंजूरी के लिए संसद में पेश किया था। सवाल है कि जो इलाके लंबे समय से और आधिकारिक तौर पर भारत का हिस्सा रहे हैं, उन पर दावा जता कर नेपाल क्या हासिल करना चाहता है! अभी तक भारत, नेपाल के इस रुख पर तीखी प्रतिक्रिया देकर शांत रह जाता रहा है मगर अब उसे इस मसले के हल के लिए अपनी ओर से ठोस पहल करने की जरूरत है।


Date:06-05-24

अंतरिक्ष में मुकाबला

संपादकीय

दुनिया में लगभग पांच दशक बाद फिर वैज्ञानिक प्रतिद्वंद्विता साफ दिखने लगी है और दुनिया के ज्यादातर देशों ने समझ लिया है कि वास्तविक तरक्की के लिए वैज्ञानिक कुशलता बहुत जरूरी है। फिलहाल दुनिया में चीन वैज्ञानिक रूप से सबसे तेज तरक्की करता दिख रहा है। चीन ने शुक्रवार को अपनी तरह का पहला मिशन चांग-ई-6 अंतरिक्ष यान लॉन्च कर दिया। यह यान चंद्रमा पर दूसरी तरफ से मिट्टी या नमूने लेकर धरती पर लौटेगा। चीन राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रशासन (सीएनएसए) के लिए यह स्वर्णिम काल है, नाना प्रकार के प्रयोग हो रहे हैं और संयोग भी घटित हो रहे हैं। कुल मिलाकर, चीन अपनी पूरी चेष्टा में दुनिया को यह दिखा पा रहा है कि वह वैज्ञानिक रूप से भी अब दुनिया का अग्रणी देश बनने जा रहा है। चीन अच्छी तरह जानता है कि दुनिया में लंबे समय तक अमेरिकी बादशाहत विज्ञान की बदौलत ही चली है। नया चीनी यान चांद के उस दुर्लभ हिस्से से नमूने लाएगा, जहां से अमेरिका और रूस भी कुछ लाने में कामयाब नहीं हुए हैं। चांद के सामने वाले हिस्से से नमूने लाने का काम अमेरिका, रूस और चीन पहले कर चुके हैं।

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर एक आधार बनाने की ओर बढ़ता चीन प्रशंसा का हकदार है। यही नहीं, बीते सप्ताह ही चीन ने तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन के लिए अपने अंतरिक्ष यात्रियों को रवाना किया है। चीनी अंतरिक्ष स्टेशन भी अपने आप में एक बड़ी कामयाबी है। वैज्ञानिकों के बीच अक्सर चर्चा होती है, जब अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से चीन को लाभ मिलना कम हुआ, तब चीन ने अपना अंतरिक्ष स्टेशन बना लिया। बीजिंग के नवीनतम मानव अंतरिक्ष यान मिशन शेनझोउ-18 के माध्यम से तीन अंतरिक्ष यात्री चीनी अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंच गए हैं और वहां पहले से मौजूद अंतरिक्ष यात्री वहां से लौटने वाले हैं। यह रोचक तथ्य है कि अंतरिक्ष स्टेशन पर एक जीवित मछली भी गई है, जिसे चौथा चालक दल सदस्य कहा जा रहा है। इस जेब्राफिश और शैवाल के जरिये परीक्षण किया जा रहा है, ताकि इंसानों को लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने में मदद मिल सके। अमेरिका बहुत हद तक अचंभित है, क्योंकि लगभग हर महीने चीन कुछ न कुछ अंतरिक्ष संबंधी शोध-परीक्षण लेकर सामने आ रहा है। अमेरिका ने बीजिंग के भू-राजनीतिक इरादों पर चिंता जताई है, जिसे नासा के प्रमुख ने एक नई अंतरिक्ष दौड़ या स्पेस रेस कहा है।

चांग-ई-6 का प्रक्षेपण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा अपने अगले चंद्रमा मिशन चंद्रयान-4 की योजना बनाने की चर्चा के बीच हुआ है। चंद्रयान-4 का मकसद भी चंद्रमा से नमूने लाना है। साल 2026 में जब चीन चांग-ई-7 का प्रक्षेपण करेगा, तब चंद्रयान-4 का भी प्रक्षेपण होगा। हालांकि, भारत को किसी भी प्रकार की होड़ में शामिल नहीं होना चाहिए। भारत की अपनी गति है, जिसे बढ़ाने के सतत प्रयास होते रहने चाहिए। योग्यतम भारतीय वैज्ञानिकों को इसरो में ही रुककर काम करना चाहिए। चीन की कामयाबी का राज यह है कि अब उसके योग्यतम वैज्ञानिक देश सेवा में लगे हुए हैं। अमेरिका से जैसी तकनीकी मदद चीन को तीन दशक तक मिली है, वैसी मदद भले अब न मिल रही हो, पर चीन को ज्यादा जरूरत भी नहीं है, तो क्या किया जाए? वैज्ञानिक प्रगति से किसी भी देश को रोका नहीं जा सकता, पर तरक्की करने वाले हर देश को दुनिया और इंसानियत के प्रति जिम्मेदार बनाने के प्रबंध होने चाहिए।