03-07-2024 (Important News Clippings)

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03 Jul 2024
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Date: 03-07-24

सत्संग या अनुष्ठानों में भगदड़ कैसे रुकेगी ?

संपादकीय

उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के फुलरई गांव में एक सत्संग / समागम के बाद भगदड़ मच गई, जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत की खबर है। घायलों की संख्या का अंदाजा लगाया जा सकता है। यह पहली घटना नहीं है। धर्मपरायण देश में ऐसे आयोजन होते रहते हैं, लेकिन इनमें मजबूत प्रबंधन का नितांत अभाव होता है, जिसके कारण अक्सर भगदड़ की खबरें सामने आती रहती हैं। चूंकि इसके लिए आमतौर पर स्थानीय प्रशासन से भी अनुमति नहीं ली जाती या ली जाती है तो भीड़ भी अनुमान से कहीं ज्यादा आ जाती है, फिर भी प्रशासन को लापरवाही का जिम्मेदार ठहराना अनुचित नहीं होगा। कई बार तो आयोजकों को भी अहसास नहीं होता कि भीड़ कितनी बड़ी होगी, कार्यक्रम के लिए जो स्थान लिया गया है, वह उस भीड़ के हिसाब से कैसा है…। हाथरस के इस ताजा मामले को ही लें। यह बाबा पहले आईबी में काम करते थे। अचानक उन्होंने ब्रह्मज्ञान का दावा किया। जनता उनसे प्रभावित होने लगी। दोनों पति-पत्नी भोले बाबा के नाम से समागम करने लगे। भारत में ऐसे बाबाओं की भक्त संख्या को वोटर के रूप में देखते हुए नेता और प्रशासन ऐसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते। देश के कुछ बाबाओं के आचरण को लेकर तमाम आपराधिक घटनाएं देश ने देखी हैं। वैसे भी प्रशासनिक सिद्धांत के अनुसार भारत जैसा अपेक्षाकृत कम पढ़ा-लिखा, लेकिन बेहद धार्मिक (खासकर प्रवचन, संगीत, भंडारा जैसे आयोजनों को लेकर ) समाज अक्सर अपनी जान के प्रति लापरवाह होता है, जबकि आयोजकों को भीड़ जुटाने के अलावा उनकी सुरक्षा में कोई दिलचस्पी नहीं होती। याद करिए आजाद भारत में सन् 1954 के प्रयाग के कुंभ मेले में भी हजारों लोगों की भगदड़ में मौत हुई थी। क्या हम ऐसी घटनाओं के बाद कोई सबक लेते हैं


Date: 03-07-24

हाथरस में हृदयविदारक

संपादकीय

उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में एक धार्मिक समागम में भगदड़ मचने से सौ से अधिक लोगों की मौत एक भयावह घटना है। यह घटना इसीलिए घटी, क्योंकि इस समागम में अनुमान से कहीं अधिक संख्या में लोग शामिल हुए और जब वे आयोजन के उपरांत जाने लगे तो अव्यवस्था के चलते भगदड़ मच गई। और लोगों ने ही एक-दूसरे को कुचल दिया। इस तरह की घटनाएं केवल जनहानि का कारण ही नहीं बनतीं, बल्कि देश की बदनामी भी कराती हैं। हाथरस की घटना कितनी अधिक गंभीर है, इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री ने लोकसभा में अपने संबोधन के बीच इस हादसे की जानकारी दी। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि उत्तर प्रदेश सरकार ने घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं और दोषी लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है, क्योंकि आमतौर पर यही देखने में आता है कि इस तरह के मामलों में कार्रवाई के नाम पर कुछ अधिक नहीं होता। इसी कारण रह-रहकर ऐसी घटनाएं होती रहती हैं और उनमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी जान गंवाते हैं। इसके बावजूद कोई सबक सीखने से इन्कार किया जाता है। धार्मिक आयोजनों में अव्यवस्था और अनदेखी के चलते लोगों की जान जाने के सिलसिले पर इसलिए विराम नहीं लग पा रहा है, क्योंकि दोषी लोगों के खिलाफ कभी ऐसी कार्रवाई नहीं की जाती, जो नजीर बन सके।

हाथरस में जिन बाबा के सत्संग में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटी, वह पहले पुलिस सेवा में थे और उनके आयोजन की देख- रेख उनके अनुयायी करते हैं। यह हैरानी की बात है कि किसी ने यह देखने-समझने की कोई कोशिश नहीं की कि भारी भीड़ को संभालने की पर्याप्त व्यवस्था है या नहीं? यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि इस आयोजन की अनुमति देने वाले अधिकारियों ने भी कागजी खानापूरी करके कर्तव्य की इतिश्री कर ली। यदि ऐसा नहीं होता तो किसी ने इस पर अवश्य ध्यान दिया होता कि आयोजन स्थल के पास का गड्ढा लोगों की जान जोखिम में डाल सकता है। ऐसा लगता है कि अपने देश में धार्मिक-सामाजिक आयोजनों में कोई इसकी परवाह नहीं करता कि यदि भारी भीड़ के चलते अव्यवस्था फैल गई तो उसे कैसे संभाला जाएगा ? क्या इसलिए कि प्रायः मारे जाने वाले लोग निर्धन वर्ग के होते हैं? यह तय हैं कि हाथरस में इतनी अधिक संख्या में लोगों के मारे जाने पर शोक संवेदनाओं का तांता लगेगा, लेकिन क्या शोकाकुल होने वाले ऐसे कोई उपाय भी सुनिश्चित कर सकेंगे, जिससे भविष्य में देश को शर्मिंदा करने वाली ऐसी घटना न हो सके ? प्रश्न यह भी है कि आखिर धार्मिक आयोजनों में धर्म-कर्म का उपदेश देने वाले लोगों को संयम और अनुशासन की सीख क्यों नहीं दे पाते ? यह प्रश्न इसलिए, क्योंकि कई बार ऐसे आयोजनों में भगदड़ का कारण लोगों का असंयमित व्यवहार भी बनता है।


Date: 03-07-24

दंड नहीं, न्याय का विधान

प्रमोद भार्ग

वर्ष 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से आहत होकर अंग्रेजों ने स्वतंत्रता सेनानियों और उनके मददगारों को दंड देने की दृष्टि से अनेक औपनिवेशिक कानून लागू किए थे। इनमें प्रमुख रूप से अंग्रेजी राज का पर्याय बने तीन मूलभूत कानूनों में आमूलचूल परिवर्तन किए गए हैं। 1860 में बने इंडियन पेनल कोड को अब भारतीय न्याय संहिता, 1898 में बने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और 1872 में बने इंडियन एविडेंस कोड को अब भारतीय साक्ष्य संहिता के नाम से जाना जाएगा। इन कानूनों के शीर्षक में ही ‘दंड’ की प्रधानता है।

मसलन, इन कानूनों की चपेट में जो भी आएगा उसे दंडित होना ही पड़ेगा दंड के मनोविज्ञान से ही निर्दोष भयभीत हो जाया करते हैं। इस भय से मुक्ति का प्रावधान करने की दृश्टि से ‘न्याय’ शब्द का प्रयोग कानून के शीर्षकों में किया गया है। न्याय शब्द ही इस अर्थ का प्रतीक है कि यदि आपसे भूलवश कोई अपराध हो भी गया है तो आप न्याय के भागीदार होंगे। फिरंगी हुकूमत ने कानून भारतीयों को अधिकतम दंड देने की मानसिकता से बनाए थे, जबकि कोई भी विधि सम्मत प्रक्रिया दंड की अपेक्षा न्याय के सरोकारों से जुड़ी होनी चाहिए। इसीलिए भारतीय न्याय व्यवस्था के सिलसिले में कहा जाता रहा है कि यहां न्याय नहीं निराकरण होता है। नये कानूनों के लागू होने के साथ दुनिया में सबसे अधिक आधुनिक आपराधिक न्याय प्रणाली भारत की होगी, क्योंकि अब इनकी आत्मा में भारतीयता निहित कर दी गई है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पांच प्रण किए थे, इनमें एक प्रण गुलामी की निशानियों को खत्म करना भी था। कानून संबंधी पारित विधेयक उसी परिप्रेक्ष्य में हैं। नये कानूनों के अंतर्गत दंड अपराध रोकने की भावना पैदा करने के लिए दिया जाएगा। नये कानून महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा पर केंद्रित हैं। अब नये कानून में नाबालिग से दुष्कर्म और मॉब लिंचिंग के लिए फांसी की सजा दी जाएगी। राजद्रोह कानून ब्रिटिश सत्ता को कायम रखने के लिए था, इसे अब खत्म किया जा रहा है। कुछ प्रचलित धाराओं की संख्या भी बदली गई है। प्रमुख रूप से अंग्रेजी राज का पर्याय बने तीन मूलभूत कानूनों में आमूलचूल परिवर्तन किए गए हैं। 1860 में बने इंडियन पेनल कोड को अब भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) कहा जाएगा। 164 साल पुरानी आईपीसी में 511 धाराएं थीं, जो बीएनएस 2023 में 358 रह जाएंगी।

इसमें 21 नये अपराध जुड़े हैं, और 41 धाराओं में सजा बढ़ाई गई है। पहली बार छह अपराधों में सामुदायिक सेवा की सजा जोड़ी गई है। साफ है, पीड़ितों के साथ न्याय पर फोकस किया गया है। 1998 में बने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (वीएनएसएस) कहा जाएगा। इसमें 47 नई धाराओं के साथ अब कुल 531 धाराएं होंगी। पहले धारा 154 में होने वाली प्राथमिकी नये कानून के तहत धारा 173 में दर्ज की जाएगी। अब पुराने कानून दंड प्रक्रिया संहिता में से ‘दंड को हटाकर नागरिक सुरक्षा पर जोर दिया गया है, 1872 में बने इंडियन एविडेंस कोड को अब भारतीय साक्ष्य संहिता के नाम से जाना जाएगा। पुराने कानून में 167 धाराएं थीं, जो अब 170 रह गई हैं। इस कानून को तकनीक और फॉरेंसिक आधार पर तैयार किया गया है ताकि सजा का प्रतिशत 90 प्रतिशत तक पहुंच जाए। बढ़ते साइबर अपराधों के संदर्भ में इस कानून की अहम भूमिका जताई जा रही है।

नये प्रारूप में धारा 150 के तहत आरोपी को सात साल की सजा से लेकर उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है। मॉब लीचिंग यानी उन्मादी भीड़ द्वारा हत्या और हिंसा के लिए अलग से सजा का प्रावधान किया गया है। इसे पंथनिरपेक्ष रखा गया है क्योंकि कभी-कभी चोर को भी भीड़ मार देती है। झारखंड और अन्य कई अशिक्षित क्षेत्रों में महिलाओं को डायन बता कर समूह मार देता है। इन हत्याओं पर अब मॉब लीचिंग कानून लागू होगा। अभी तक ऐसे मामलों में हत्या की धारा 302 और दंगा या बलवा की धाराएं 147 148 के तहत कार्यवाही होती है। नाबालिग से दुष्कर्म या पहचान छिपा कर किए गए दुष्कर्म के आरोप में 20 साल का कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। विरोध नहीं करने के अर्थ का आशय सहमति नहीं निकाला जाएगा।

नये कानून में पहली बार आतंकवाद की इबारत को पारिभाषित किया गया है। कोई व्यक्ति देश की एकता, अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा को संकट में डालने के इरादे से कृत्य करता है तो उसे नये कानून के हिसाब से सजा मिलेगी। देश के अस्तित्व को चुनौती देने वाले बाहरी या भीतरी असामाजिक तत्व कानूनी शिकंजे से बचने न पाएं, इसके प्रावधान किए गए हैं। यही कानूनी प्रावधान बृहत्तर सामाजिक हित राज्य को भारत की संप्रभुता, अखंडता तथा राज्य की सुरक्षा से जोड़ते हैं। भारत के विरुद्ध सांप्रदायिक कट्टरता फैलाने और सरकार के लिए नफरत के हालात बनाने में भारत विरोधी विदेशी ताकतें सोशल मीडिया का में मनचाहा एवं गलत दुरुपयोग करती हैं, इसलिए नये कानून में देश तोड़ने की कोशिश करने वाली ताकतों पर अंकुश के लिए कठोर प्रावधान किए गए हैं। अतएव स्वतंत्रता के 76 साल बाद भारतीयों को वास्तव में ऐसी प्रणाली मिल गई है, जो दंड की बजाय अधिकतम न्याय पर आधारित है।