01-03-2024 (Important News Clippings)

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01 Mar 2024
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Date:01-03-24

An extra berth

The Rajya Sabha elections have allowed dissidents to find their voice

Editorial

The Bharatiya Janata Party (BJP) won 30 of the 56 Rajya Sabha seats which are set to fall vacant in April, from 15 States, with the results announced on February 27. The party won two more seats than what its numbers in the State Assemblies would have allowed, by brazenly engineering cross voting by legislators from the Samajwadi Party in Uttar Pradesh and the Congress in Himachal Pradesh. One BJP MLA in Karnataka crossed over to the Congress side. With six MLAs lost to the BJP, who have since been disqualified by the Speaker of the Assembly, the Congress government in Himachal Pradesh is tottering on the edge. Abhishek Manu Singhvi of the Congress and Harsh Mahajan of the BJP got 34 votes each and Mr. Mahajan was declared winner through lots. The Rajya Sabha polls brought the disenchantment within the Congress with Chief Minister Sukhvinder Singh Sukhu out to the fore. Vikramaditya Singh, a rebel Minister, announced his resignation, only to retract his statement. The Congress is making efforts to save its government, but the crisis is far from over. In Uttar Pradesh, seven Samajwadi Party legislators voted for the BJP, leading to the party winning an additional seat. It is not the first time that the BJP has fished in troubled waters to gain an extra berth in the Rajya Sabha. In 2017, Congress strategist Ahmed Patel managed to win by a whisker in Gujarat; and in 2020, the rebellion against the Ashok Gehlot government in Rajasthan happened on the eve of elections to the Upper House.

The BJP now has 97 members in the Upper House, and, along with the allies, is just four short of the majority mark of 121 in the Rajya Sabha, where the current strength is 240. While successive victories in the State elections have helped the BJP improve its position, growing from 78 members in 2019 to 97 at the end of the five years, the party has never shied away from pushing the boundaries of normative politics to increase its strength. The gap between the BJP, the single largest party in the Rajya Sabha, and the Congress, which has just 29 members, is far too wide to be bridged any time soon. The other Opposition parties too have only a limited presence with the Trinamool Congress at 13, the Dravida Munnetra Kazhagam and the Aam Aadmi Party with 10 each, the Rashtriya Janata Dal with six and the Communist Party of India (M) with five. In past parliamentary sessions, the Opposition members were frequently suspended whenever they sought to question the government, making Parliament a theatre of the government’s unilateralism.


Date:01-03-24

शिक्षा से ज्यादा नशे पर खर्च क्या बताता है ?

संपादकीय

हाल ही में जारी ‘मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय’ की रिपोर्ट को गहराई से देखने पर कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन्स, माइक्रो-न्यूट्रीएंट् स और विटामिंस के पदार्थ पर खर्च बढ़ा है। लेकिन कुछ नए रुझान डराते हैं। ग्रामीण तंबाकू, पान या अन्य किस्म के नशे पर महीने में 143 रु. खर्च कर रहे हैं जबकि शिक्षा पर मात्र 125 रु.। यह एक सच है कि एक वर्ग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों से हटाकर महंगे प्राइवेट स्कूलों में डालता है। शिक्षा पर शहरों में भी प्रतिशत के रूप में खर्च 11 वर्षों में घटा है जबकि ‘असर’ की रिपोर्ट में लोगों का रुझान महंगे निजी स्कूलों की ओर बताया गया है। ऐसे में यह रिपोर्ट थोड़ी विरोधाभासी है। यह संभव है कि निम्न वर्ग के बच्चे शिक्षा के प्रति उदासीन हों और नशे की आदत उस वर्ग में अपेक्षाकृत ज्यादा हो, जिससे इस रिपोर्ट में तुलनात्मक रूप से शिक्षा पर कम व्यय पाया गया हो। चिंता इस तथ्य से भी बढ़ जाती है कि शहरों और गांवों में डिब्बा बंद खाने पर ज्यादा खर्च किया जा रहा है और शहरों के मुकाबले गांवों में भी यह शौक बढ़ा है। एक अच्छा पहलू यह है कि अनाज पर खर्च दो-तिहाई से अधिक घटा है। इसका एक बड़ा कारण है 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मिलना । लेकिन नशे के प्रति बढ़ता रुझान इस बात का संकेत है कि सामाजिक चेतना में कमी है।


Date:01-03-24

पारदर्शिता के लिए अदालती फैसले का स्वागत है

अजय छिब्बर, ( लेखक जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित विजिटिंग स्कॉलर हैं )

चुनावी बॉन्ड को रद्द करने का उच्चतम न्यायालय का निर्णय स्वागत योग्य है। चुनावी बॉन्ड को 2019 के आम चुनाव से ठीक पहले साल 2018 में नरेंद्र मोदी सरकार ने शुरू किया था। इसने राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे को, जिसे पहले रिश्वत के रूप में दिया जाता था, वैध और कानूनी बना दिया।

इसमें चंदा देने वाले या उसे हासिल करने वाले का नाम जाहिर नहीं किया जाता, केवल सरकारी क्षेत्र के भारतीय स्टेट बैंक के पास ही जानकारी होती है, इसलिए यह एक ऐसी अपारदर्शी व्यवस्था है जिसने सत्ता में रहने वाली पार्टी को फायदा पहुंचाया। इन बॉन्ड खरीद की जानकारी चुनाव आयोग को भी नहीं होती।

तो इस लाभ के लिए भुगतान योजना ने निश्चित रूप से ऐसी व्यवस्था बनाई जिसे महाभ्रष्टाचार कहा जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने इस पर रोक लगा दी है। न्यायालय ने सरकार को यह भी निर्देश दिया है कि वह इस बात का पूरी तरह से खुलासा करे कि इस योजना में अभी तक किस पार्टी को कितना धन मिला है।

अब इसका आने वाले आम चुनाव की फंडिंग पर कोई असर पड़ेगा या नहीं यह देखने वाली बात होगी। लेकिन दीर्घकालिक स्तर के लिहाज से यह सवाल बना हुआ है: इसके विकल्प में अब क्या होगा? क्या हम फिर उसी पुरानी व्यवस्था में लौट आएंगे जहां नोटों से भरे सूटकेस होते थे और सत्तारूढ़ दल अपने चुनाव अभियान के लिए धन जुटाने के लिए बड़े-बड़े घोटाले करते थे? या क्या भारत कोई ऐसी प्रणाली विकसित कर सकता है जो न केवल चुनावों से जुड़े भ्रष्टाचार से निपट सके बल्कि आम भ्रष्टाचार से भी, जो कि हमारी आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था के लिए अभिशाप बना हुआ है?

सरकार ने एक श्वेतपत्र जारी कर यह दिखाने की कोशिश की कि पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की सरकार भ्रष्टाचार में डूबी थी। मौजूदा सरकार ‘अधिकतम शासन और न्यूनतम सरकार’ के नाम पर भ्रष्टाचार और रिसाव को कम करने का दावा करती है।

इसमें कोई शंका नहीं कि पिछली संप्रग सरकार भ्रष्टाचार से ग्रसित थी। यहां तक कि अगर उसके कार्यकाल में हुए घोटाले के ऐसे कई दावों को बदनाम करने वाला और गलत मान लें, जैसा कि दूरसंचार घोटाले में हुआ जब तत्कालीन नियंत्रक एवं लेखापरीक्षक विनोद राय ने घोटाले की राशि को लेकर बढ़ा-चढ़ाकर आंकड़े पेश किए थे, तो भी इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि संप्रग शासन में भ्रष्टाचार बहुत ज्यादा था।

अब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार (राजग) का दावा है कि उसने भ्रष्टाचार को काफी हद तक कम कर दिया है। भ्रष्टाचार को आकने वाली प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संस्था ट्रांसपैरेंसी इंटरनैशनल यह दर्शाती है कि राजग के सत्ता में आने के बाद भ्रष्टाचार के मामले में भारत का स्कोर सुधरा है। टीआई का भ्रष्टाचार स्कोर, जो 0 से 100 के पैमाने पर (जहां 100 का मतलब है बिल्कुल भ्रष्टाचार नहीं) कारोबारियों और विशेषज्ञों की धारणा पर आधारित है, साल 2013 के 36 से सुधरकर 2018 में 41 पर पहुंच गया। लेकिन यह फिर साल 2013 में नीचे खिसककर 39 पर पहुंचा और वैश्विक औसत 43 से भी नीचे हो गया। जी20 के कई मध्यम आय वाले देशों जैसे कि ब्राजील, मैक्सिको, इंडोनेशिया और तुर्की के मुकाबले भारत ने इस पैमाने पर बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन चीन और वियतनाम से नीचे है। दुनिया में भारत का टीआई भ्रष्टाचार रैंक साल 2013 के 94वें से सुधरकर साल 2018 में 78वें तक पहुंच गया, लेकिन इसके बाद यह फिर गिरकर 180 देशों में 93वें स्थान तक पहुंच गया। राजग जब सत्ता में आया तो शुरुआती दौर में भ्रष्टाचार में गिरावट आई, लेकिन यह फायदा अब कुछ हद तक पलट हो चुका है।

कारोबारियों और विशेषज्ञों की धारणाओं के अलावा आम आदमी के नजरिये पर विचार करना भी जरूरी है। राजग सरकार का दावा है कि विभिन्न सेवाओं की बेहतर आपूर्ति और नागरिकों तक सब्सिडी की सीधी पहुंच की वजह से भ्रष्टाचार कम हुआ है, जिसमें लाभ का एक हिस्सा खा जाने वाले मध्यस्थ नहीं हैं। इसका कहना है कि आधार प्रमाणीकरण के साथ ई-सेवाओं के व्यापक उपयोग ने रिसाव और भ्रष्टाचार को कम से कम किया है। ऐसे कई दावे सही हो सकते हैं, लेकिन आम आदमी अब भी व्यापक तौर पर फैले छोटे-मोटे भ्रष्टाचार की शिकायत करता है।

आपको राशन कार्ड बनवाना हो, किसी दस्तावेज का पंजीकरण कराना हो, या कोई कर भुगतान करना हो, दाएं-बाएं से कुछ न कुछ पैसा देना ही पड़ता है। ट्रांसपैरेंसी इंटरनैशनल के एक वैश्विक सर्वेक्षण में इसकी पुष्टि हुई है, जिससे यह खुलासा होता है कि साल 2020 में नागरिकों के रिश्वत देने के मामले में एशिया में भारत की रैंकिंग सबसे खराब है। करीब 39 फीसदी लोगों ने यह शिकायत की है कि जब भी उनका साबका किसी अधिकारी से पड़ा उन्हें रिश्वत देनी पड़ी और इस मामले में भारत की स्थिति बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका जैसे दक्षिण एशियाई देशों से काफी बदतर है।

भारत में भ्रष्टाचार एक जीवनपद्धति बन गई है। न्यायपालिका और पुलिस में भ्रष्टाचार बड़े पैमाने पर है और अक्सर सड़कों पर और अदालती कार्यालयों में इसे साफतौर से देखा जा सकता है, तथा अमीरों की तुलना में गरीब अधिक पीड़ित होते हैं। हालांकि समय के साथ कई देशों ने भ्रष्टाचार को कम किया है तो भारत को भी करना चाहिए। आगे का रास्ता ज्यादा पारदर्शिता की मांग करता है, अफसरों की मनमानी कम से कम हो और सेवाओं की उपलब्धता में ज्यादा प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया जाए। भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत कार्रवाई भी समाधान का एक हिस्सा है, लेकिन तभी जब इस्तेमाल चुनिंदा तरीके से न हो और ऐसा न लगे कि यह एक राजनीतिक साधन है। टैक्स इंस्पेक्टर राज के दौर को अब खत्म करना ही होगा। कई देशों ने भ्रष्टाचार से निपटने के लिए भ्रष्टाचार आयोगों का इस्तेमाल किया है, लेकिन उनका प्रदर्शन मिलाजुला रहा है। तो यह साफ है नोटबंदी या चुनावी बॉन्ड जैसे तंत्र के माध्यम से भ्रष्टाचार के वैधीकरण जैसे कठोर एकबारगी उपाय टिकाऊ समाधान नहीं हैं। इसकी जगह सरकारी प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और अनजाने में भ्रष्टाचार में योगदान देने वाले कानूनों के जाल को सुलझाने के लिए एक अधिक व्यवस्थित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

एक महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाने के बाद, सर्वोच्च न्यायालय को निचले स्तरों पर भ्रष्ट न्यायिक प्रणाली के सुधार को प्राथमिकता देने पर भी विचार करना चाहिए, जिसका वह प्रमुख है।

स्वच्छ भारत का मतलब केवल सड़कों और शौचालयों को साफ करना नहीं है, इसमें एक स्वच्छ और अधिक पारदर्शी शासन प्रणाली भी शामिल होनी चाहिए।


Date:01-03-24

अंतरिक्ष में कामयाबी के बढ़ते कदम

प्रमोद भार्गव

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने गगनयान अभियान की चरणबद्ध तैयारी में क्रायोजेनिक इंजन सीई-20 को स्वदेशी तकनीक से विकसित कर लिया है। गगनयान भारत का पहला ऐसा अंतरिक्ष अभियान होगा, जो मानव को लेकर अंतरिक्ष की उड़ान भरेगा। इस इंजन को मानव मिशन के योग्य बनाने की दृष्टि से चार इंजनों को अलग-अलग स्थितियों में ‘39 हाट फायरिंग’ जांच से गुजारा गया। यह इंजन एलवीएम-3 प्रक्षेपण वाहन के ऊपरी चरण को शक्ति प्रदान करेगा। यही इंजन अंतरिक्ष उड़ानों से लेकर उपग्रहों और मिसाइल प्रक्षेपण में काम आता है।

दरअसल, हमारे वैज्ञानिकों ने विपरीत हालातों में हासिल की है उपलब्धि यही इंजन अंतरिक्ष उड़ानों से लेकर उपग्रहों और मिसाइल प्रक्षेपण में काम आता है। दरअसल, हमारे वैज्ञानिकों ने अनेक विपरीत परिस्थितियों और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद इस क्षेत्र में अद्वितीय उपलब्धियां हासिल की हैं। अन्यथा एक समय ऐसा भी था, जब अमेरिका के दबाव में रूस ने क्रायोजेनिक इंजन देने से मना कर दिया था। असल में यही इंजन किसी भी प्रक्षेपण यान की वह शक्ति है, जो भारी वजन वाले उपग्रहों और अन्य उपकरणों को अंतरिक्ष में पहुंचाती है। दरअसल, भारत ने शुरुआत में रूस से इंजन खरीदने का अनुबंध किया था। मगर 1990 के दशक के आरंभ में अमेरिका ने मिसाइल तकनीक नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) का हवाला देते हुए इसमें बाधा उत्पन्न कर दी थी। इसका असर यह हुआ कि रूस ने तकनीक तो नहीं दी, लेकिन शुल्क लेकर छह क्रायोजेनिक इंजन भारत को भेज दिए थे। कालांतर में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की मदद से भारत को एमटीसीआर क्लब की सदस्यता भी मिल गई, लेकिन इसके पहले ही इसरो के वैज्ञानिकों ने कठोर परिश्रम और दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर स्वदेशी तकनीक से इंजन विकसित कर लिया।

मानव मिशन की इस उड़ान के पहले चरण का सफल प्रक्षेपण इसरो पहले ही कर चुका है। देश के महत्त्वाकांक्षी मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम गगनयान से जुड़े ‘पेलोड’ के साथ उड़ान भरने वाले परीक्षण यान के विफल होने की स्थिति में ‘क्रू माड्यूल’, यानी जिसमें अंतरिक्ष यात्री सवार होंगे, को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने के बाद सुरक्षित वापस लाने के लिए ‘क्रू एस्केप सिस्टम’ यानी चालक दल बचाव प्रणाली (सीईएस) का सफल परीक्षण कर इसरो विश्व कीर्तिमान स्थापित कर चुका है। इस बचाव प्रणाली की जरूरत इसलिए थी कि यान के विफल होने पर कई वैज्ञानिक प्राण गंवा चुके हैं। इस परीक्षण के अंतर्गत ‘क्रू माड्यूल’ राकेट से अलग हो गया और बंगाल की खाड़ी में गिर गया। क्रू माड्यूल वह स्थान है, जहां गगनयान मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में पृथ्वी जैसे वातावरण में रखा जाएगा।

गगनयान के अगले वर्ष उड़ान भरने की संभावना है। इस परियोजना के तहत इसरो मानव चालक दल को चार सौ किमी ऊपर पृथ्वी की कक्षा में भेजेगा। इसलिए भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम अत्यंत महत्त्वपूर्ण होगा। प्रधानमंत्री ने इसरो में वैज्ञानिकों के साथ बातचीत में उनके लिए लक्ष्य भी तय कर दिए हैं कि 2035 में भारत का अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित हो तथा 2040 में चंद्रमा पर भारतीय नागरिक के कदम पड़ जाएं।

इस यान में तीन भारतीय अंतरिक्ष यात्री तीन दिन अंतरिक्ष की सैर करेंगे। ‘रोबोट-मानव’ भी साथ ले जाया जा सकता है। मिशन के लिए दस हजार करोड़ रुपए मंजूर किए जा चुके हैं। हालांकि अब तक भारतीय या भारतीय मूल के तीन वैज्ञानिक अंतरिक्ष की यात्रा कर चुके हैं। राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय हैं। शर्मा रूस के अंतरिक्ष यान सोयुज टी-11 से अंतरिक्ष में गए थे। इनके अलावा भारतीय मूल की कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स भी अमेरिकी कार्यक्रम के तहत अंतरिक्ष में जा चुकी हैं। हालांकि पहले भारत ने 2022 तक अंतरिक्ष में मानव भेजने की घोषणा की थी, लेकिन इस पर समय रहते क्रियान्वयन नहीं हो पाया। अंतरिक्ष में मानवरहित और मानवचालित दोनों तरह के यान भेजे जाएंगे। पहले चरण में योजना की सफलता को परखने के लिए अलग-अलग समय में दो मानवरहित यान अंतरिक्ष की उड़ान भरेंगे। इनकी कामयाबी के बाद मानवयुक्त यान अपनी मंजिल का सफर तय करेगा।

मानवयुक्त गगनयान की कामयाबी के बाद भारत अमेरिका, रूस और चीन की श्रेणी में आ जाएगा। रूस ने 12 अप्रैल, 1961 को रूसी अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन को अंतरिक्ष में भेजा था। गागरिन दुनिया के पहले अंतरिक्ष यात्री थे। अमेरिका ने 5 मई, 1961 को एलन शेपर्ड को अंतरिक्ष में भेजा था। ये अमेरिका से भेजे गए पहले अंतरिक्ष यात्री थे। चीन ने 15 अक्तूबर, 2013 को यांग लिवेई को अंतरिक्ष में भेजने में कामयाबी हासिल की थी। भारत ने अब अंतरिक्ष में बड़ी छलांग लगाने की पहल कर दी है।

दरसअल, अंतरिक्ष में मौजूद ग्रहों पर यान भेजने की प्रक्रिया बेहद जटिल और शंकाओं से भरी होती है। अगर अवरोह का कोण जरा भी डिग जाए या फिर गति का संतुलन थोड़ा-सा भी लड़खड़ा जाए तो अंतरिक्ष यान या तो ध्वस्त हो जाता या कहीं भटक जाता है। इसे न तो खोजा जा सकता है और न ही नियंत्रित करके दुबारा लक्ष्य पर लाया जा सकता है। चंद्रयान-2 ऐसी ही विपरीत स्थितियों का सामना करते हुए लड़खड़ा कर उलट गया था। इसीलिए भारत पहले दो गगनयान अभियान मानवरहित भेजेगा। भारत ने गगनयान को अंतरिक्ष में भेजने की दृष्टि से श्रीहरिकोटा में जीएसएलवी मार्क-3 को स्थापित करने की तैयारी शुरू कर दी है। इसी मुहिम के तहत इसरो ने परीक्षण के तौर पर ‘क्रू एस्केप माड्यूल’ का पहला पड़ाव पार कर लिया है। इसे धरती से 2.7 किमी की ऊंचाई पर भेजने के बाद राकेट से अलग किया और फिर पैराशूट की मदद से बंगाल की खाड़ी में उतार कर जमीन के निकट लाने में सफलता प्राप्त की।

‘क्रू माड्यूल’ तीन लोगों को अंतरिक्ष में ले जाने की क्षमता रखता है। इसमें सवार यात्रियों को एक सप्ताह तक भोजन-पानी और हवा उपलब्ध करा कर जीवित रखा जा सकता है। अब गगनयान मिशन पर जाने वाले वैज्ञानिकों के नामों की घोषणा भी कर दी गई है। प्रधानमंत्री ने इनके नामों की घोषणा की। इस अभियान को स्वदेशी प्रोद्यौगिकी से तैयार किया जा रहा है। औद्योगिक घरानों की मदद से इसरो फ्लाइट्स से जुड़े हार्डवेयर और अन्य उपकरण जुटाएगा। राष्ट्रीय अंतरिक्ष और विज्ञान एजंसियां तथा विश्वविद्यालय भी इस अभियान में मदद करेंगे। इनके शिक्षाविद और प्रयोगशालाओं की भी अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षण देने में मदद ली जाएगी।

इसी क्रम में ‘क्रू माड्यूल’ को जिस पैराशूट से सुरक्षित उतारा गया है, उसे डीआरडीओ की आगरा स्थित प्रयोगशाला एडीआरडीई में बनाया गया है। बहरहाल, अंतरिक्ष में भारतीय मानव मिशन के सफल होने के बाद ही चंद्रमा और मंगल पर मानव भेजने का रास्ता खुलेगा। इन पर बस्तियां बसाए जाने की संभावनाएं भी बढ़ जाएंगी। आने वाले वर्षों में अंतरिक्ष पर्यटन के भी बढ़ने की उम्मीद है। इसरो की यह सफलता अंतरिक्ष पर्यटन की पृष्ठभूमि का एक हिस्सा है।


Date:01-03-24

गगनयान दिखाएगा चांद पर भारतीयों के उतरने का रास्ता

निरंकार सिंह, ( पूर्व स. संपादक, हिंदी विश्वकोष )

लगभग 50 साल पहले अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ में चांद पर जाने की रेस शुरू हुई थी। अमेरिका पहला देश है, जो चांद पर इंसान को भेजने में सफल रहा। सोवियत संघ ने भी अपना लैंडर चांद पर उतरा। भारत इस क्षेत्र का अपेक्षाकृत नया खिलाड़ी है। चंद्रयान-तीन मिशन के जरिये वह अपनी ताकत पूरी दुनिया को दिखा चुका है। अब वह गगनयान के जरिये अपने चार अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की कक्षा में भेजेगा। उसका लक्ष्य अंतरिक्ष में एक स्टेशन बनाने का है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र का दौरा किया और मिशन गगनयान की तैयारियों की समीक्षा की। इस दौरान प्रधानमंत्री ने मिशन पर जाने वाले चार यात्रियों को भी सम्मानित किया।

इस समीक्षा बैठक में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए एक दूरदर्शी रोडमैप तैयार किया गया। इसके लक्ष्यों में से एक है, भारत-निर्मित, स्वदेशी अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना करना, जिसको भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के रूप में जाना जाएगा। यह भारत के अंतरिक्ष बुनियादी ढांचे में एक ‘एसेट’ के रूप में कार्य करेगा। इस महत्वपूर्ण प्रयास के साल 2035 तक साकार होने की उम्मीद है। अनुमान है कि वर्ष 2030 तक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन, जिसे वर्तमान में अमेरिका, रूस, कनाडा, जापान और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा प्रबंधित किया जाता है, बंद हो जाएगा।

गगनयान देश का पहला मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन है, जिसके तहत चार यात्रियों को अंतरिक्ष की सैर कराई जाएगी। इस मिशन को इस साल के आखिर या 2025 की शुरुआत में भेजा जा सकता है। इन चार यात्रियों में पहले हैं एस्ट्रोनॉट प्रशांत बालाकृष्णन नायर। प्रशांत केरल के केपलक्कड़ के नेनमारा के रहने वाले हैं। उनको रूस में मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन के लिए ट्रेनिंग दी गई है। दूसरे एस्ट्रोनॉट अजित कृष्णन वायुसेना के टेस्ट पायलट हैं। वह भी प्रशांत बालाकृष्णन की तरह ही एयरफोर्स में ग्रुप कैप्टन हैं। अजित कृष्णन का जन्म चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ था। तीसरे अंगद प्रताप भी वायुसेना में फाइटर और टेस्ट पायलट हैं। वह भी ग्रुप कैप्टन के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। अंगद प्रताप का जन्म प्रयागराज में हुआ था। चौथे एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला वायुसेना में विंग कमांडर हैं। लखनऊ में जन्मे शुभांशु की मिलिट्री ट्रेनिंग एनडीए में हुई है। गगनयान मिशन के लिए न जाने कितने पायलटों का टेस्ट हुआ, जिनमें से इन चारों को चुना गया।

भारत और तब के सोवियन संघ के संयुक्त अंतरिक्ष अभियान में राकेश शर्मा आठ दिनों तक अंतरिक्ष में रहे थे। अंतरिक्ष में जाने वाले वह पहले भारतीय और विश्व के 138वें व्यक्ति थे। भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक कल्पना चावला 19 नवंबर, 1997 को छह अंतरिक्ष यात्रियों के एक दल का हिस्सा थीं। अंतरिक्ष शटल कोलंबिया की उड़ान से अंतरिक्ष की यात्रा करके कल्पना ने अपने नाम का डंका बजाया। कल्पना चावला ने इस मिशन में कुल 65 लाख मील का सफर तय किया। इस दौरान उन्होंने पृथ्वी की 252 परिक्रमाएं कीं। लेकिन अपने दूसरे अभियान में 1 फरवरी, 2003 को पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करने के बाद उनका अंतरिक्ष यान भीषण दुर्घटना का शिकार हो गया और कल्पना के साथ दल के सातों सदस्य धरती पर पहुंचने से पहले ही अवशेष में बदल गए।

बहरहाल, पांच दशक बाद अब भारत ने भी अपना लक्ष्य चांद को बना लिया है। 23 अगस्त को चांद पर लैंडर उतारकर हमने वह कर दिखाया, जो आज तक कोई न कर सका था। मगर क्या कभी भारत भी चांद पर इंसानों को पहुंचा सकेगा? इसका जवाब अहमदाबाद में स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के निदेशक नीलेश देसाई ने दिया। उन्होंने कहा कि चंद्रमा पर मानव मिशन भेजने में कम से कम दो-तीन दशक लग सकते हैं। उन्होंने कहा, अमेरिका और रूस पहले ही ऐसा कर चुके हैं, पर हमें कुछ समय लगेगा, क्योंकि हमें सिर्फ आदमी को भेजना ही नहीं है, उसे जिंदा वापस भी लाने की जरूरत है। हमें टेक्नोलॉजी बढ़ाने की जरूरत है। हमारे पास अच्छी, परखी हुई तकनीक हुई, तो यह कदम उठाएंगे।