सुरक्षित बचपन के लिए प्रयास
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दो दशकों के लंबे समय के बाद केंद्र सरकार ने अब जाकर अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO – International Labour Organisation) के रोजगार की न्यूनतम आय निर्धारित करने संबंधी दो समझौतों को मंजूरी दी है। ये समझौते 182 और 138 हैं।सरकार के इस निर्णय का असर उन बच्चों पर पडे़गा जो समाज के निचले तबके से जुड़े हुए हैं, और शोषण का शिकार होते रहते हैं। हमारे देश में प्रतिदिन लगभग 40.3 लाख बच्चे स्कूल की बजाय काम पर जाते हैं।
बाल श्रम से निरक्षरता और गरीबी बढ़ती है। इसके कारण मानव व्यापार, आतंकवाद एवं ड्रग माफिया जैसे अपराधों में बढ़ोतरी होती जा रही है। एक तरह से बालश्रम ही इन अपराधों का मूल कारण है। भारत को इसे मंजूरी देने में देर लगाने के पीछे दो कारण थे। एक तो बच्चों को जबर्दस्ती या अनिवार्य रूप से श्रम में लगाना और दूसरे, खतरनाक कामों के लिए बालश्रम की उम्र को 14 से बढ़ाकर 18 करना। नवम्बर 2016 में बाल श्रम संशोधन अधिनियम को पारित करके सरकार ने दोनों ही अड़चनें दूर कर दीं। इस अधिनियम में 14 साल से कम उम्र के बच्चों के काम करने पर रोक लगा दी गई एवं खतरनाक कामों के लिए बालश्रम की उम्र को 14 से बढ़ाकर 18 वर्ष कर दिया गया। चूंकि हमारा देश अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के संस्थापक सदस्यों में से एक रहा है, इसलिए आठ श्रम समझौतों में से इन दो की मंजूरी में देर होना हमारे लिए शर्मनाक था।
इन समझौतों को मंजूर करके भारत ने विश्व के सामने यह स्पष्ट कर दिया है कि हम किसी प्रकार से बच्चों के शोषण को बर्दाश्त नहीं करेंगे। बाल दासता (जिसमें बच्चों की खरीद-फरोख्त, ऋण-दासता एवं सशस्त्र संघर्ष के लिए बच्चों को जबर्दस्ती लगाना) बाल वेश्यावृति, नशीली दवाएं बेचने का धंधा, तथा उनके स्वास्थ्य को हानि पहुँचाने वाले खतरनाक कामों में लगाने जैसे बाल श्रम के घृणित रूपों पर सरकार तत्परता से कदम उठाएगी और उन्हें दूर करेगी।
एक आदर्श कानून वह होता है, जो शासन करने के बजाय सही दिशा दे। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के इन दोनों समझौतों के अंतर्गत भारत सरकार बाल श्रम के घृणित रूपों को दूर करने के लिए कोई निश्चित समय सीमा तय नहीं कर सकी है। लेकिन समय के साथ हमारे नैतिक बल, जन-जागरूकता, सामाजिक करूणा, राजनीतिक इच्छा-षक्ति और बच्चों के विकास एवं सुरक्षा के लिए संसाधनों का पर्याप्त उपयोग करके इन समझौतों का शत-प्रतिशत पालन करने की उम्म़ीद की जा सकती है। स्थितियां रातोंरात नहीं बदलतीं आगे बढ़ना पड़ता है। हमारी सरकार ने जिस प्रकार से बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए हाथ बढ़ाया है, उसे हम सबको मिलकर आगे बढ़ाना होगा। बच्चों में किया गया निवेश, भविष्य में निवेश करना होता है। सुरक्षित भारत के लिए सुरक्षित बचपन जरूरी है।
‘द हिंदू‘ में प्रकाशित कैलाश सत्यार्थी के लेख पर आधारित।