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शहरी योजनाओं की कमियाँ
Date:17-05-18
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- दिल्ली का मास्टर प्लान, विश्व युद्ध के पश्चात् के यूरोप और अमेरिका की सामाजिक और आर्थिक स्थितियों के मॉडल पर आधारित है। ऐसे मॉडल को भारतीय नगर-परिवेश की जटिलताओं के अनुसार स्वदेशी नहीं बनाया गया है। यही कारण है कि सीलिंग और अतिक्रमण तोड़ने जैसे कदम उठाने की नौबत आती है।
- संपूर्ण विश्व में नगर योजना को उस देश की स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया जाता है। स्थानीय स्तर पर आने वाली समस्याओं को ध्यान में रखा जाता है। परन्तु दिल्ली में ऐसा नहीं किया गया। निचली बस्तियां, अव्यवस्थित रूप से जगह-जगह जमी हुई व्यावसायिक गतिविधियां, बाजार, औद्योगिक क्षेत्र आदि एक मजबूत राजनैतिक अर्थव्यवस्था तो विकसित कर रहे हैं, लेकिन इन सबके बीच दिल्ली के मास्टर प्लान में उचित बदलाव लाने की बात कोई नहीं सोचता। हर बार के संशोधनों ने शहर को और भी ज्यादा अस्त-व्यस्त कर दिया है।
जो लोगे पुलिस एक्शन के शिकार होते हैं, वे नेताओं की शरण में जाते हैं और गलत तरीकों से गैरकानूनी निर्माण को नियमित करवा लेते हैं। यह प्रक्रिया इतने जोरों पर चल रही है कि विशेषज्ञों को लगने लगा है कि नगर का लगभग 70 प्रतिशत भाग तो ऐसे ही नियमन पर चल रहा है।
समाधान
शहरी-योजना के निर्माण हेतु विदेशों से नीतियों का आयात करने की बजाय हमें स्थानीय योजनाओं (लोकल एरिया प्लानिंग) पर ध्यान देना चाहिए। इससे शहरी समस्याओं का नीचे से ऊपर तक समाधान हो सकेगा। मजे की बात यह है कि लोकल एरिया प्लानिंग दिल्ली के मास्टर प्लान का ही हिस्सा है। परन्तु इसे शहरी समस्याओं के समाधान के रूप में इस्तेमाल में ही नहीं लाया गया।
दस वर्ष पूर्व स्थानीय क्षेत्र नियोजन के अंतर्गत 272 वार्ड की जमीनी समस्याओं को सुलझाने के उद्देश्य से जनता, निर्वाचित प्रतिनिधियों एवं नगरपालिका अधिकारियों को एक ही समय पर इकट्ठा किया गया था, जिससे वे झुग्गियों और गैरकानूनी निर्माण आदि पर पारदर्शिता से विचार करके कोई समाधान ढूंढ सकें। यह एक उचित प्रयास था। परन्तु नगर प्रशासकों ने दिल्ली के मास्टर प्लान की सिफारिशों पर ही टिके रहना बेहतर समझा।
स्थानीय क्षेत्र नियोजन में एक प्रकार का प्रजातांत्रिक दृष्टिकोण है। जब तक इसे अमल में नहीं लाया जाएगा, तब तक सीलिंग और अतिक्रमण हटाने की घटनाएं होती रहेंगी। इस प्रयास में हुई एक सरकारी अधिकारी की हत्या जैसे दुष्परिणाम भी सामने आते रहेंगे।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ए.जी.कृष्णा मेनन के लेख पर आधारित। 1 मई 2018