शत्रु संपत्ति अध्यादेश (Enemy Property Ordinance)
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हाल ही में शत्रु संपत्ति के पांचवे संशोधित अध्यादेश को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल गई है। हमारे देश में 16 हजार से भी ज्यादा शत्रु संपत्ति हैं, जिनका बाजार मूल्य अनुमानतः दस लाख करोड़ रूपये से भी अधिक है।
- क्या है शत्रु संपत्ति ?
भारत-पाकिस्तान के बीच विभाजन, सन् 1965 व 1971 में पाकिस्तान के साथ और 1962 में चीन के साथ जो युद्ध हुए, उसके बाद बहुत से लोग भारत छोड़कर चले गए और उन्होंने दूसरे देशों की नागरिकता ले ली। उन लोगों को सरकार 1968 के अधिनियम में संशोधन करके ‘शत्रु नागरिक‘ और उनकी संपत्तियों को ‘शत्रु संपत्ति‘ कानून के अंतर्गत लाकर उन्हें अपने अधिकार में लेना चाहती है। इन संपत्तियों के लिए सरकार एक संरक्षक नियुक्त करना चाहती है।
- कानून की आवश्यकता क्यों ?
महमूदाबाद के राजा भी 1957 में भारत छोड़कर चले गए थे। अपनी भारतीय संपत्ति पाने के लिए उनके वारिस ने 32 सालों तक कानूनी लड़ाई लड़कर 2005 में इसे जीत लिया। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से अब बहुत सी शत्रु संपत्तियां विवादास्पद हो गई हैं। भारत सरकार इस प्रकार के विवादों को समाप्त करके भारत-पाक विभाजन और उसके बाद के युद्धों में पलायन कर गए लोगों की संपत्तियों को अपने कब्जे में लेना चाहती है। इस बारे में अभी तक स्पष्ट कानून का अभाव रहा है। इसलिए कानून बनाना जरूरी हो गया है।
- विदेशों में भी चलन
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन में जर्मन सरकार या उसके नागरिकों की जो संपत्तियां थीं, उन्हें शत्रु संपत्ति घोषित किया गया था।भारत के बंटवारे के बाद विस्थापितों की संपत्ति से संबंधित कानूनों ने इसकी नींव रखी। 1947 में जब सीमा पार करके लाखों विस्थापितों की भीड़ भारत आने लगी, तो उनके पुनर्वास के लिए ऐसा कानून बनाया गया। यह तय किया गया कि जो लोग एक देश में अपनी घर और संपत्ति छोड़कर दूसरे देश में चले गए हैं उनके पुनर्वास के लिए ऐसी संपत्तियां का उपयोग किया जाए। ऐसी संपत्ति के संरक्षण और देखभाल के लिए ‘ऑफिस ऑफ द कस्टोडियन ऑफ एनेमी प्रॉपर्टी‘ विभाग बनाया गया। पाकिस्तानी नागरिकों की जब्त संपत्ति में से सर्वाधिक उत्तर प्रदेश में हैं।
इससे संबंधित विधेयक के संसद में पारित होते ही भारत सरकार एक बार सर्वोच्च न्यायालय में हारी अपनी लड़ाई को जीत में बदल लेगी।
-समाचार पत्रों पर आधारित।