भारत-चीन-वार्ता और अफगानिस्तान
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हाल ही में भारत और चीन के बीच हुई कूटनीतिक वार्ता में अफगानिस्तान पर बातचीत एक ऐसे नए मार्ग के रूप में उभरकर आई है, जो दोनों देशों के बीच बढ़ती कड़वाहट पर सकारात्मक सिद्ध हो सकती है। इस वार्ता में चीन ने अफगानिस्तान में किए जा रहे विकास कार्यों के लिए भारत की सराहना की। और इस बात से भी सहमति प्रकट की कि भारत और चीन मिलकर काबुल में सरकार को मजबूती प्रदान कर सकते हैं। इस वार्ता में चीन ने अफगानिस्तान में पाकिस्तान के भारत के प्रति दृष्टिकोण को दरकिनार करते हुए ‘चीन-भारत के संयुक्त विकास कार्यों‘ की भी सिफारिश की।
- पिछले कुछ वर्षों में अगर चीन से भारत के संबंधों का इतिहास देखें, तो चीन का भारत के प्रति रवैया नकारात्मक ही अधिक रहा है।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा में चीन ने भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों की सदस्यता मिलने से रोका था।
- मुंबई हमले के मास्टरमाइंड मसूद अजहर को सार्वजनिक रूप से आतंकवादी घोषित करने पर चीन ने वीटो लगाया था।
- चीन की दक्षिण एशियाई नीति में पाकिस्तान सबसे अहम भूमिका निभा रहा है।
- दूसरी ओर अफगानिस्तान मुद्दे पर भारत के साथ मिलकर आगे बढ़ने की चीन की नीति में भी बहुत से कारण छिपे हो सकते हैं।
- हाल ही में इस्लामिक स्टेट ने एक वीडियो के माध्यम से चीन में खून की नदियां बहाने की धमकी दी है। इसी आतंक के चलते चीन ने रूस के साथ मिलकर अफगानिस्तान में तालिबान से बातचीत का रास्ता अपनाया है।
- चीन का ही एक अलगाववादी समूह ‘उईआर‘ विश्व में फैले दूसरे जिहादियों से संपर्क बनाना चाहता है। अगर अफगानिस्तान में आतंकवाद पनपता रहा, तो बहुत संभव है कि यह समूह उन आतंकवादियों से भी मिले। इसका प्रभाव भारत पर भी पड़ेगा। लेकिन चीन भी इससे अछूता नहीं रहेगा।
- अभी ट्रंप सरकार ने अफगानिस्तान के प्रति अपनी नीति को स्पष्ट नहीं किया है। वहाँ अमेरिकी सेना की संख्या में भी फिलहाल बहुत कमी आ गई है। चीन को यह भी डर है कि कहीं ट्रंप सरकार अफगानिस्तान में फिर से सेना की संख्या न बढ़ा दे। इस दबाव से चीन बाहर निकलना चाहता हैं। इसलिए वह भारत के माध्यम से अफगानिस्तान में पहले ही अपना प्रभाव बढ़ा लेना चाहता है।
- भले ही हाल की इस वार्ता से भारत को चीन का सकारात्मक रूख मिला हो, परंतु मुश्किलें भी हैं। चीन ने “वन बेल्ट वन रोड़” के माध्यम से भारत के ज़मीनी और द्विपीय पड़ोसियों के साथ समझौते करने की नीति पहले ही प्रस्तावित कर रखी है। चूंकि इस योजना के अंतर्गत बहुत सा निर्माण कार्य पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर वाले भू-भाग पर होना है, इसलिए भारत इस समझौते का भाग नहीं बनना चाहता। भारत को अपनी सुरक्षा एवं अखण्डता की भी चिंता है।
भारत को अपनी सुरक्षा एवं अखण्डता के प्रति चीन के दृष्टिकोण को संवेदनशील बनाने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है। अगर भारत और चीन मिलकर आगे बढ़े, तो वे अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा उत्पé की गई वैश्विक अस्थिरता को संभाल सकते हैं।
‘द हिंदू‘ के संपादकीय पर आधारित।