बहुक्षेत्रीय विकास कार्यक्रमों में सीएसआर की भूमिका

Afeias
20 May 2020
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Date:20-05-20

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देश में विकास कार्यों की शुरूआत तो होती है, परन्तु  राज्य  और जिला स्तर तक उनके कार्यान्वयन में बहुत सी दरारें देखी जाती हैं। इन दरारों को भरने और कार्यक्रमों को प्रभावशील बनाने में सामान्यत: आवंटित निधि की भूमिका पर्याप्त नहीं होती है। उदाहरण के तौर पर लें, तो किसी गांव में पेयजल योजना लागू किए जाने की स्थिति में पंचायत या स्थापनीय निकाय के पास इतनी निधि नहीं होती कि वह पंप-संचालक का वेतन दे सके। इन स्थितियों में कार्पोरेट के सामाजिक दायित्व की भूमिका महत्व पूर्ण हो जाती है। इसका अर्थ क्या यह समझा जाए कि सरकारी विकास कार्यों के कार्यान्व्यन में आने वाली दरारों को भरने के लिए कार्पोरेट द्वारा दी गई निधि लेई का काम कर सकती है। इस प्रश्न के उत्तार के लिए कुछ तथ्यों को जानना जरूरी है।

  • सी एस आर ऑफ कंपनीज़ एक्ट ए 2013 के अंतर्गत 15,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि प्रतिवर्ष कार्पोरेट जगत द्वारा दी जा रही है। इस राशि में धीमी गति से ही सही ; परन्तु लगातार बढ़ोत्ततरी होनी है। इस देय का संबंध कंपनियों के शुध्द् लाभ में से 2% अनिवार्य रूप से है। परन्तुं सामाजिक दायित्वों में व्याय की जाने वाली राशि की गति को देखते हुए ऐसा कहा जा सकता है कि कंपनियॉं अपना भाग बढ़ा सकती हैं।
  • विविध हितधारकों की वजह से सीएसआर, कार्पोरेट सेक्टिर की दक्षता और गैर-लाभकारी कंपनियों के जुनून और प्रतिबध्दरता जैसी अपनी ताकत का लाभ उठा सकता है। नए बुनियादी ढांचे के निर्माण के अलावा मौजूदा बुनियादी ढांचे को सुदृढ़, संवर्धित और मजबूत बनाने के लिए इसे उत्पादकता के साथ काम में लाया जा सकता है।
  • सीएसआर के माध्यम से खर्च होने वाले प्रत्ये क रुपये से अधिकतम लाभ का उद़देश्य रखा जाना चाहिए। इसकी एक-एक पाई में निवेश में अधिकतम प्रतिफल की प्राप्ति का लक्ष्या लेकर काम किया जाए। इस विचार को व्यावहारिकता के स्तार पर चरम तक ले जाया जाना चाहिए। इसके लिए हमें अपने कार्यक्रमों के डिज़ाइन और क्रियान्वयन में नवाचार को शामिल करना होगा। तभी विकास कार्यों में अधिक कुशलता को प्राप्त किया जा सकता है।

‘बिजनेस स्टैण्डर्ड’ में मधुकर गुप्ता के लेख पर आधारित।