पाकिस्तानी कलाकारों की चुप्पी

Afeias
18 Oct 2016
A+ A-

fawad-mahira-mawra-759Date: 18-10-16

To Download Click Here

हाल ही में हुए उड़ी हमले के बाद पाकिस्तानी कलाकारों का भारत में बहुत विरोध हो रहा है। उनके भारत में काम करने पर पाबंदी लगाए जाने की मांग हो रही है। ऐसा करना कितना उचित है, इसे समझने की आवश्यकता है। एक कलाकार राजनीति से ऊपर होता है। वह किसी रंगमंच का अभिनेता मात्र नहीं होता। नहीं वह केवल बहुरूपिया होता है। एक कलाकार ऐसी स्वतंत्रता का प्रतिनिधित्व करता है, जो विश्व स्तर पर किसी व्यक्ति को बिना किसी डर, हिंसा और दुख के जीने की आजादी दे। इतिहास साक्षी है कि जिन कलाकारों ने मानवमात्र के प्रति अपनी निष्पक्षता नहीं दिखाई, उनका सदैव तिरस्कार हुआ है। महान संगीतकार रिचर्ड वागनर का बहिष्कार इसलिए किया गया था, क्योंकि उन्होंने जर्मनी के उन नाजियों का साथ दिया, जिनका नाम मानवीय अत्याचारों के लिए बदनाम है।

आतंकवाद जैसा अत्याचार आतंक फैलाने वाले देशवासियों के लिए भी शर्मिंदगी का कारण है। ऐसा पाकिस्तानी कलाकारों ने पहले भी कहा है। उन्होंने पेशावर व पेरिस में किए गए आतंकवादी हमलों की भी खुले शब्दों में निंदा की है। लेकिन उड़ी मामले में वे चुप क्यों हैं? उनकी यह चुप्पी कहीं न कहीं उन्हें इन गतिविधियों का मौन समर्थक बनाती है, या उनके अंदर के भय को दिखाती है। दोनों ही रूपों में किसी कलाकार का यह रूख बर्दाश्त के लायक नहीं है। और अंतिम रुप से यह उनके लिए ही हानिकारक है।

वह कलाकार ही क्या, जो भयाक्रांत होकर सच्चाई का सामना करने और उसे लोगों के सामने लाने से बचे? पाकिस्तानी कवि फैज़ का उदाहरण इस बात का गवाह है कि कलाकारों को मानवीयता के प्रति प्रेम प्रदर्शित करने के बदले बहुत कुछ सहना भी पड़ता है। फैज़ को भी कराँची जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ा था। भारत में पाकिस्तान द्वारा फैलाए जा रहे आतंकवाद की निंदा करके अनेक पाकिस्तानी कलाकार अपना कद कम नहीं करते, बल्कि बढ़ा ही लेते।

वास्तव में कला का उद्देश्य तो आपके दिलों के तारों को झनझनाना है, चाहे वह चित्रकारी के माध्यम से हो, शब्दों से हो या संगीत से हो। इस यात्रा में कला यह नहीं देखती कि उसके दर्शक या श्रोता कौन हैं। एक कलाकार तो बस अपना काम करता है। जो कला या कलाकार ऐसा नहीं कर पा रहे हैं, उनकी कला इतिहास के पन्नों पर कोई छोप नहीं छोड़ पाती।

इंडियन एक्सप्रेसमें प्रकाशित सृजना मित्रा दास के लेख पर आधारित