नक्सलियों के प्रति सकारात्मक पहल
Date:15-01-18
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नक्सलवाद की समस्या भारत में 1967 से ही शुरू हो गई थी। माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थक इन उग्रवादियों का केन्द्र प्रारंभ में पश्चिम बंगाल रहा। परन्तु धीरे-धीरे इन्होंने अपना फैलाव कर लिया है। चूंकि ये अपने ही लोग हैं, जो रास्ते से भटककर गलत राह पर चले गए हैं, इसलिए सरकार इनके खिलाफ कोई आक्रामक अभियान नहीं चलाना चाहती। वरन उसकी नीति नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सक्रियता दिखाने एवं समग्र विकास की ओर काम कर रही है।
2017 के प्रारंभिक महीनों में नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सलियों ने केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के लगभग 40 जवानों को मार दिया था। स्पष्ट रूप से तो इस हमले ने हमारे जवानों को हिला दिया था, परन्तु उनके हौसले अभी बुलन्द हैं और वे सरकारी नीतियों का अनुसरण करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
- माओवादियों के प्रति सुरक्षा बल अब प्रतिक्रियाशील नहीं है। जब माओवादियों ने गरियाबंद में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश की, तो सरकार ने इसे एक नया जिला घोषित कर दिया। यहाँ अनेक विकास कार्य चलाए जाने लगे। नए पुलिस थाने एवं सुरक्षा कैंप लगा दिए गए। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ़ के अन्य स्थानों में भी ऐसा ही किया गया। सुरक्षा बलों को अलर्ट करके उन्हे माओवादियों के नए केन्द्रों पर नियुक्त कर दिया गया।
- पुलिस बल ने माओवादी विस्तार वाले पड़ोसी राज्यों के साथ बेहतर संपर्क बनाने शुरू कर दिए हैं। इससे नक्सलियों की उपस्थिति की सूचना तुरन्त ही फैल जाती है। इससे वे अपने हिंसात्मक कार्यक्रमों को अंजाम नहीं दे पाते।
- नक्सलियों की समस्या केवल कानून-व्यवस्था से जुड़़ी समस्या नहीं है। इन क्षेत्रों के आदिवासियों की समस्याएं ही इसका मुख्य कारण है। सरकार इन्हें जड़ से खत्म करना चाहती है। (1) इसके लिए सरकार ने इस क्षेत्र में नई सड़कें बनाने के साथ-साथ दूरसंचार का विस्तार करने की शुरूआत कर दी है। (2) दक्षिण बस्तर में आकाशवाणी के नए केन्द्रों की स्थापना से मनोरंजन के साथ-साथ सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जा सकेगी। (3) बैंक शाखाओं का विस्तार किया गया है। (4) सरकार ने इस क्षेत्र के जंगलों में पाई जाने वाली इमली का समर्थन मूल्य बढ़ा दिया है। (5) इस क्षेत्र के हस्तशिल्प के लिए नए बाजार उपलब्ध कराने हेतु बस्तर में नई रेल सेवा की शुरूआत की गई है।
- संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियों गुटेरेस ने हाल की वार्षिक रिपोर्ट में नक्सली क्षेत्रों में भारतीय सरकार के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि ‘माओवादियों के अपने बच्चों को स्कूल न भेजने और सरकारी नौकरी न लेने के संकल्प के बावजूद सरकार ने यहाँ स्कूली शिक्षा एवं कौशल विकास के क्षेत्र में अद्भुत प्रयास किए हैं।’ सरकार ने दंतेवाड़ा में एक शिक्षा एवं आजीविका केन्द्र की स्थापना की, जिसे अपार सफलता मिली है। लगभग सभी जिलों में अब ऐसे केन्द्र स्थापित कर दिए गए हैं। सरकार की यही मंशा है कि इन क्षेत्रों के नौजवानों को सकारात्मक कामों में लगाकर माओवादियों की कमर तोड़ी जा सकती है।
- माओवादियों के साथ एक प्रकार के मनोवैज्ञानिक युद्ध को जीतना अभी भी बाकी है। यूं तो सरकार ने आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों के पुनर्वास की उचित व्यवस्था कर रखी है। वे खुशहाल जीवन जी रहे हैं। फिर भी सुरक्षा बलों को सरकार का मुखबिर मानकर अभी भी उन पर आक्रमण कर दिया जाता है।
इस समस्या से निपटने के लिए आम जनता को भी सरकार को सहयोग देना होगा। सरकारी प्रयासों की सफलता इसी में है कि उनकी योजनाएं सही तरीके से कार्यान्वित की जा सकें। जनता उसमें अवरोध उत्पन्न न करे।
अपने प्रयासों से सरकार ने अनेक स्थानों पर माओवादियों के पैर उखाड़ दिए हैं। सक्रिय पुलिस एवं सुरक्षा बल डटे खड़े हैं। समग्र विकास की सरकारी नीति अचूक सिद्ध हो रही है। भविष्य में इसके बेहतर परिणामों की आशा की जा सकती है।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित राजेन्द्र विज के लेख पर आधारित।