दिव्यांग अधिकार विधेयक और धारणीय विकास लक्ष्य

Afeias
03 Apr 2017
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Date:03-04-17

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दिव्यांगों के अधिकारों पर हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के बाद भारत ने 2007 में दिव्यांगों को अधिकार देने के लिए कदम उठाए थे। उन्हीं अधिकारों को बढ़ाते हुए संसद ने दिव्यांग अधिकार विधेयक 2016 को स्वीकृति दे दी है।अगर हम 2030 तक 17 लक्ष्यों से जुड़े धारणीय विकास को दृष्टि में रखें, तो सरकार का यह कदम सराहनीय है। दिव्यांगों को साथ लिए बिना हम विकास कार्यों को पूरा नहीं कर सकते।दिव्यांगों के लिए बनाया गया नया कानून वाकई परिवर्तनकारी है। इसमें दिए गए प्रावधानों से बहुतों को लाभ मिलेगा। इससे दिव्यांगों का इमारतों, तकनीक और सूचना क्षेत्र में प्रवेश आसान हो जाएगा। इस विधेयक के अनुसारः “सरकार को अपने सभी सार्वजनिक दस्तावेजों को सुगम्य बनाने हेतु आवश्यक कदम उठाने चाहिए।”

  • विडम्बना क्या है ?

माना कि सरकार ने दिव्यांगों की कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए विधेयक पारित कर उनके अधिकारों को महत्व दिया है। लेकिन इन अधिकारों का वास्तविक लाभ मिलने में उन्हें कितना समय लगेगा, यह कहना मुश्किल है। इस विधेयक में निहित कानून के पालन से संबंधित अधिकारी की नियुक्ति कब तक हो सकेगी, केंद्र एवं राज्य सरकार इससे जुड़े कानून कब बना सकेंगें, सार्वजनिक क्षेत्रों को दिव्यांगों के लिए सुगम बनाने संबंधी प्रयास कब प्रारंभ होंगे, आदि ऐसे अनेक प्रश्न हैं, जो इस विधेयक के पारित होने के बाद मुँह बाए खड़े हैं। सरकार ने 2015 में दिव्यांगों के लिए सुगम्य भारत अभियान (Accessible Indian Campaign) की शुरुआत की थी। लेकिन इसके नियमों को, (जिसे विभाग की साइट पर सार्वजनिक दस्तावेज बताया गया) उनके लिए उपलब्ध नहीं कराया गया, जिन्हें इसकी आवश्यकता थी।

  • क्या किया जाना चाहिए ?
    • विकलांगता को अभी भी परोपकार करने के अवसर के दृष्टिकोण से ही देखा जाता है। उसे मानवाधिकार या समान अधिकारों की दृष्टि से नहीं देखा जाता। दिव्यांगों को समस्त प्रक्रियाओं का अभिé अंग मानते हुए उन्हें मुख्यधारा से जोडने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
    • सांसदों और विधायकों को दिव्यांगों के प्रति बदलते वैश्विक दृष्टिकोण एवं उनको दिए जाने वाले अधिकारों, संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में उन्हे प्रदत्त अधिकारों (UNCRPD यू एन कन्वेंशन ऑन द राइट्स ऑफ़ पर्सन्स विद डिस्एबिलिटीस) और वर्तमान विधेयक से अवगत कराया जाना चाहिए।
    • नीति आयोग को चाहिए कि वह गैर-सरकारी संगठनों, शिक्षण संस्थानों, जन संस्थाओं और निजी क्षेत्र को ऐसा विकास एजेंडा तैयार करने को प्रोत्साहित करे, जिसमें दिव्यांग भी सबके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकें।
    • मंत्रालयों को यह समझना होगा कि धारणीय विकास के अन्य लक्ष्यों के लिए जिस प्रकार नोडल मंत्रालय बनाया गया है, उन्हें मात्र सामाजिक न्याय मंत्रालय तक केंद्रित करके पूरे नहीं किए जा सकते। सरकार में लगभग 26 मंत्रालय हैं। इन सभी मंत्रालयों को दिव्यांगों के लिए विशेष सेल बनाकर उनकी कठिनाइयों को हल करना होगा।
    • इसी कड़ी में नीति आयोग को भी दिव्यांग केंद्रित सेल बनाना चाहिए, जो अन्य सभी मंत्रालयों में दिव्यांगों के लिए बने सेल के संपर्क में रहे।
    • दिव्यांगों से संबंधिकत डाटा सही तरीके से एकत्रित और संयोजित किए जाएं। इसमें उन सभी सरकारी कार्यक्रमों के डाटा को सम्मिलित किया जाए, जो जनसंख्या, शिक्षा, गरीबी और भूख से जुड़े हुए हैं।
    • इन सबके बीच धारणीय विकास के लक्ष्यों की दृष्टि से नीति आयोग को नज़र रखनी होगी कि डाटा संग्रहण और Disaggregation में दिव्यांगों के लिए विशेषतौर पर निर्धारित किए गए सात लक्ष्यों एवं अतिसंवेदनशील व्यक्तियों के लिए निर्धारित छः लक्ष्यों की अनदेखी न हो। इन सभी डाटा का प्रकाशन किसी ऐसे सार्वजनिक माध्यम से किया जाए, जो सबके लिए सुगम्य हो।
    • अलग-अलग प्रकार की विकलांगता से जूझ रहे व्यक्तियों के समूहों को नीति आयोग राष्ट्रीय स्तर की चर्चा के लिए आमंत्रित करे और उनके मतैक्य से जनसांख्यिकी सूचनाओं; जैसे- दिव्यांग पहचान पत्र, जनगणना, जनपंजीकरण तथा सामाजिक योजनाओं के लिए नमूना पंजीकरण तंत्र आदि को संगठित किया जाए।

ऐसा करके ही विज़न 2030 में ‘लीव नो वन बिहाइंड‘ के अति महत्वपूर्ण लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकेगा।इस मार्ग में हमारी सोच बाधा सबसे बड़ी बाधा है। उसे पार किए बिना लक्ष्य दूर ही रहेगा।

समाचार पत्रों पर आधारित।

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