जल्दबाजी में पारित विधेयक
Date:05-02-19 To Download Click Here.
संसद का शीतकालीन सत्र दोनों सदनों में संविधान के 124वें संशोधन विधेयक के पारित होने के साथ सम्पन्न हो गया। इस विधेयक में सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को शिक्षा व रोजगार में 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान दिया गया है। इस विधेयक को जिस प्रकार से पारित किया गया हैं। उस पर दृष्टि डाली जानी चाहिए।
- लोक सभा के नियमों के अनुसार किसी विधेयक को प्रस्तावित करने के दो दिन पहले ही उसकी प्रतियां सदन में वितरित कर दी जाती हैं। परन्तु इस विधेयक को सदन में रखने से कुछ मिनट पहले ही इसकी प्रतियां वितरित की गईं।
- सामान्यतः किसी विधेयक को पहले संसदीय स्थायी समिति को जांच के लिए सौंपा जाता है। परन्तु यहाँ ऐसा नहीं किया गया। (इस लोकसभा में मात्र 25 प्रतिशत विधेयक ही समिति को सौंपे गये हैं)।
- इस विधेयक के प्रस्तावित होने और अंतिम वाद-विवाद होने के समय में मामूली सा ही अंतर रखा गया। जबकि विधेयक के विषय में शोध एवं जांच का पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए।
ब्रिटिश प्रक्रिया
जिस दिन भारत में यह विधेयक पारित किया गया, उसी दिन ब्रिटिश संसद की सत्तासीन कंजर्वेटिव पार्टी के एक सदस्य ने एक संशोधन का प्रस्ताव रखा था, जिसका सरकार ने यह कहकर विरोध किया कि ऐसा प्रस्ताव किसी मंत्री द्वारा ही रखा जा सकता है। परन्तु सदन के स्पीकर ने कहा कि संशोधन-प्रस्ताव कोई भी सदस्य रख सकता है।
इससे तीन बिन्दुओं में यह पुष्टि होती है कि ब्रिटिश संसद की कार्यप्रणाली हमसे बेहतर है।
- वहां दलबदल रोधी कानून नहीं है। इससे प्रत्येक सांसद अपनी अंतरात्मा के अनुसार मतदान कर सकता है। यहां यह ध्यान देने योग्य है कि संसद में संशोधन-प्रस्ताव सत्तासीन दल के ही सदस्य ने रखा था, जो भूतपूर्व अटॉर्नी-जनरल भी हैं।
- ब्रिटिश संसद में प्रत्येक सांसद के मतदान का प्रमाण मिल जाता है। परन्तु हमारे यहाँ संविधान संशोधन प्रस्ताव (जिसमें दो-तिहाई बहुमत आवश्यक है) के अलावा अधिकांश मतदान मुँह जबानी कर दिया जाता है। पिछले दस वर्षों में मात्र 7 प्रतिशत विधेयकों में मतदान का रिकार्ड प्रमाण मिलता है।
- ब्रिटिश संसद के स्पीकर ने सरकार की अपेक्षा संसद को सर्वोच्च माना। वहां स्पीकर की स्वतंत्रता की रक्षा की जाती है। चुनावों में, स्पीकर के विरूद्ध कोई भी दल उम्मीदवार खड़ा नहीं कर सकता।
नागरिकों के हितों की रक्षा में संसद की महती भूमिका होती है। यह वह संस्था है, जो नागरिकों की इच्छाओं और आकांक्षाओं को उचित कानून एवं नीतियों के माध्यम से साकार करती है।
कुछ ढांचागत कारणों से भारत की संसद इन उद्देश्यों की पूर्ति में नाकाम रहती है। संसद की कमियों को दूर करके, उसे सशक्त बनाया जाना चाहिए। तभी प्रजातंत्र की रक्षा हो सकती है।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित एम.आर.माधवन के लेख पर आधारित। 12 जनवरी, 2018