ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने में राज्यों का सहयोग

Afeias
22 Jan 2018
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Date:22-01-18

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सन् 2015 में जलवायु परिवर्तन के चलते कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण हेतु पेरिस समझौते में शर्तें रखी गई थीं। कार्बन उत्सर्जन  के निर्धारित लक्ष्य एवं वास्तविक उपलब्धि पर एमिशन गैप रिपोर्ट 2017 पेश की गई है। इस रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि अलग-अलग देशों में किए जा रहे प्रयासों से 2020 तक ग्लोबल वार्मिंग को 20ब से कम रख पाने के लिए केवल पेरिस समझौता पर्याप्त नहीं है। इसी कड़ी में इस माह फिजी के तालानोआ में सम्मेलन होने को है।

अंतरराष्ट्रिय जलवायु संबंधी कार्यक्रमों में भारत की भूमिका प्रमुख रही है। अब भारत को चाहिए कि वह एक कार्यो उन्मुख समावेशी धरातल से जुड़ा ऐसा कार्यक्रम लेकर चले, जिसमें राज्यों का सक्रिय सहयोग एवं भागीदारी मिल सके।

  • भारतीय प्रजातंत्र के गणतांत्रिक स्वरूप में केन्द्र, समाज, व्यवसाय एवं जलवायु परिवर्तन के भागीदारों के बीच राज्य एक कड़ी की तरह काम करता है। भारत की जलवायु परिवर्तन में जुड़ी राष्ट्रीय कार्ययोजना की सफलता का दारोमदार राज्यों पर ही है।
  • भारत ने 2030 तक अपने 2005 स्तर वाले उत्सर्जन में 33 प्रतिशत कमी करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए उसे नवीकरणीय ऊर्जा को माध्यम बनाकर 40 प्रतिशत ऊर्जा की प्राप्ति करनी होगी। इस लक्ष्य की प्राप्ति में राज्यों की भूमिका महत्वपूर्ण है।
  • 2050 तक ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को शून्य तक ले जाने का भी लक्ष्य रखा गया है। इस लक्ष्य से जुड़ने वाले विश्व के राज्यों की संख्या 200 से अधिक हो गयी है। भारत के छत्तीसगढ़ और तेलंगाना राज्य इस दौड़ में शामिल हैं। चीन के 26 राज्यों और अमेरिका के 24 राज्यों की संख्या को देखते हुए भारत को अपनी स्थिति में सुधार करने की आवश्यकता है।
  • जलवायु परिवर्तन से जुड़े राष्ट्रीय लक्ष्य की प्राप्ति में भी राज्यों का महत्वपूर्ण योगदान होना चाहिए। इसके लिए समय-समय पर राष्ट्रीय एवं राज्यों की कार्य योजनाओं का उपयुक्त आकलन एवं समीक्षा की जानी चाहिए।
  • समीक्षा हेतु एक पारदर्शी तंत्र हो।
  • अलग-अलग राज्यों की क्षमता के अनुसार उन्हें ग्रीन हाउस गैस के न्यूनीकरण का लक्ष्य दिया जाना चाहिए।

यह सत्य है कि भारत के राज्यों में हानिकारक गैसों के उत्सर्जन को न्यून करने की पर्याप्त क्षमता है। परन्तु इनको प्रभावी बनाने के लिए राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय कार्ययोजना को ज्ञान आधारित श्रृंखला एवं साझेदारी से जोड़ना जरूरी है। इस राह पर केरल ने नेतृत्व की शुरूआत कर भी दी है। वहाँ नेशनल मिशन ऑन स्ट्रेटेजिक नॉलेज फॉर क्लाइमेट चेंज की ओर से ऐसा ही कार्यक्रम चलाया जा रहा है। उम्मीद की जा सकती है कि अन्य राज्य भी इसका अनुसरण करेंगे।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित अपर्णा राय के लेख पर आधारित।

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