गत दिनों उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा किया गया व्यवहार क्या लोकतंत्र के लिए घातक है?
Date:06-02-18 To Download Click Here.
- उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों का असंतोष और उसे उजागर करने के लिए उठाया जाने वाला कदम, न्यायपालिका की छवि के लिए अत्यंत घातक सिद्ध हो सकता है। न्यायपालिका के अंदरूनी वातावरण का आभास मिलने के बाद आम नागरिक उसे संदेह की दृष्टि से देख सकता है।
- हम सब प्रजातंत्र के हितधारक हैं और प्रजातंत्र की नींव है- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। इस मामले में अमेरिका और ब्रिटेन का उदाहरण लिया जा सकता है। इन दोनों ही देशों में न्यायालय का आदेश सर्वोच्च होता है। एक प्रकार से वहाँ न्यायालय ही सर्वोच्च शक्ति है, जिसके विरुद्ध कहीं कोई सुनवाई नहीं हो सकती। इसके बावजूद वहाँ न्यायपालिका की आलोचना करने का अधिकार सबको दिया गया है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में इस प्रकार की स्वतंत्रता लोकतंत्र की रक्षा की दिशा में उठाया गया एक कदम माना जा सकता है।
- इस घटना का एक बहुत ही सकारात्मक पक्ष पारदर्शिता है। आम जनता को भी यह जानने का पूरा अधिकार है कि न्यायालयों में क्या चलता है। न्यायाधीशों के खुलकर जनता के सामने आने से न्यायिक व्यवस्था की पारदर्शित बढ़ी है। इससे न्यायिक व्यवस्था में लोगों का विश्वास अधिक दृढ़ होगा।
- वरिष्ठ न्यायाधीशों के इस कदम से उनकी इस संस्था के प्रति प्रतिबद्धता का भान होता है। कॉलेजियम के व्यवहार में कहीं भी व्यक्तिगत अहम्, द्वेष या प्रतिस्पर्धा का आभास नहीं होता। उनका ऐसा करना एक संस्थागत सामूहिकता का परिचय देता है। लोकतंत्र की मजबूती की दिशा में यह एक अहम् बिन्दु है।
भारत के लिए यह एक सकारात्मक पहल है। प्रजातंत्र में ऐसी बहस बहुत सार्थक भूमिका निभाती है और न्यायाधीशों के इस कदम को स्वागतयोग्य कहा जा सकता है।
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