किसान सम्मान निधि के माध्यम से बुनियादी आय की शुरूआत
Date:06-03-19 To Download Click Here.
भारत की दो बड़ी समस्याएं रोजगार एवं कृषि वर्षों पुरानी हैं। नीतियों की विषमता ने इनकी गंभीरता को और बढ़ा दिया है। अपनी खराब नीतियों के चलते स्वतंत्रता पश्चात् के दशकों में भारत आगे नहीं बढ़ पाया। जबकि उसके समकक्ष अनेक एशियाई देशों ने गरीबी को पीछे छोड़ दिया और तेजी से आगे निकल गए।
कृषि क्षेत्र में किसानों का संकट दूर करने के उद्देश्य से अलग-अलग सरकारों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य और ऋण माफी जैसी योजना चलाई हैं, जो अभी तक पर्याप्त सिद्ध नहीं हुई है। अतः हाल ही में पेश किए गए अंतरिम बजट में छोटे और सीमांत किसानों को सहायता के रूप में एक सुनिश्चित आय देने के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि देने की घोषण की गई है। भारत दुनिया का पहला देश है, जो बारह करोड़ से अधिक किसानों को प्रत्यक्ष आय हस्तांतरण की सुविधा उपलब्ध कराने जा रहा है। इस योजना में दी जाने वाली राशि महज सात अमेरिकी डॉलर प्रतिमाह है, जो बहुत कम है।
सरकार द्वारा प्रत्येक किसान के खाते में छह हजार रुपये सालाना हस्तांतरित करने की घोषणा को भारत में सार्वभौमिक बुनियादी आय (यूनिवर्सल बेसिक इंकम) की दिशा में पहला प्रयास माना जा रहा है। 2016-17 के विस्तृत आर्थिक सर्वेक्षण में इसे गरीबी एवं असमानता दूर करने के उपाय के रूप में देखा था। इस संकल्पना के कुछ मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं –
- योजना के तहत सभी नागरिकों को एक निश्चित राशि देने का प्रस्ताव किया गया है, ताकि सभी अपना जीवनयापन कर सकें।
- इसमें दो राय नहीं है कि खातों में नकद हस्तांतरण सशर्त या बिना शर्त घरों की आय बढ़ाता है। इस उपाय की मदद से व्यापक स्तर पर लोगों का कल्याण किया जा सकता है।
- वर्तमान में, देश में श्रमिकों की संख्या बल में महिलाओं की संख्या काफी कम है। असंगठित क्षेत्र के व्यापक दायरे में महिला श्रमिकों का शोषण हो रहा है। खातों में नकद हस्तांतरण से महिला श्रमिकों की स्थिति मजबूत हो सकती है। महिलाओं के आर्थिक रूप से सबल होने से लिंग अनुपात में भी समानता आएगी। महिला सशक्तिकरण को बल मिलेगा।
- अभी नब्बे प्रतिशत से अधिक कामगार असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं, जिनमें दस से कम संख्या में काम करने वाले श्रमिकों की एक बड़ी संख्या है। ऐसे श्रमिकों को भविष्य निधि जैसी कोई सुरक्षा नहीं मिलती। इन्हें पेंशन, बीमा और स्वास्थ्य से जुड़े फायदे नहीं मिल पाते हैं। बुनियादी आय से ऐसे श्रमिकों को सीधे तौर पर लाभ मिल सकेगा।
- योजना की वजह से गरीब एवं वंचित तबकों के लोग बैंक से जुड़ने के लिए प्रेरित होंगे, जिससे वित्तीय समावेशन की संकल्पना को साकार करने में आसानी होगी। आम लोगों को बैंक से कर्ज मिल सकेगा, जिससे मांग एवं आपूर्ति के प्रवाह में तेजी आएगी और विकास को बल मिलेगा।
- कुछ अर्थशास्त्रियों का यह भी मानना है कि योजना की मदद से सब्सिडी या अन्य सरकारी योजनाओं को लागू करने के दौरान आने वाले बिचैलियों, भ्रष्टाचार आदि पर लगाम लगेगी। इससे सरकारी निधि की बर्बादी में कमी आएगी। उदाहरण के लिए चंडीगढ़ ने राशन कार्ड की जगह नकद हस्तांतरण नीति को अपनाकर 30 प्रतिशत की बचत की।
- खातों में नकद हस्तांतरण से किसानों को अपने विवेकानुसार फसल उगाने की स्वतंत्रता मिल सकेगी।
विपक्ष में तर्क
- संकल्पना के विराधियों का मानना है कि मुफ्त में मिली ऐसी राशि से लोग आलसी होने लगेंगे। लाभार्थी काम करने से परहज करने लगेंगे।
- लोगों के बीच फिजूलखर्ची की आदत विकसित होगी।
- हमारे देश में अभी भी ज्यादा संख्या में पुरुष ही बैंक से जुड़े हुए हैं। उनमें नशे और जुए की प्रवृत्ति बढ़ सकती है।
- बैंकों पर काम का दबाव बढे़गा। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र पहले ही मानव संसाधन की कमी का सामना कर रहे हैं।
- जरुरतमंदों की पहचान करना एक मुश्किल काम होगा। अपात्र व्यक्ति भी योजना का लाभ लेने में सफल हो सकता है।
- कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने की लागत सकल घरेलू उत्पाद का 3.7 प्रतिशत है, जबकि प्रस्तावित योजना की लागत 4.9 प्रतिशत होने का अनुमान है। इस बढ़ी हुई पूंजी की व्यवस्था करना भारत जैसे विकासशील देश के लिए आसान नहीं होगा।
- श्रमिक आपूर्ति में कमी आएगी। काम-धंधों की गति मंद पड़ने से उत्पादन की गति धीमी होगी। इससे मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन पैदा होगा। विकास पिछड़ जाएगा।
- योजना को लागू करने के लिए संसाधनों की जरूरत को देखते हुए शायद मनरेगा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसी सरकारी योजनाओं को बंद करना पड़ सकता है। इससे लोगों में अविश्वास का माहौल बन सकता है।
- आर्थिक आय एवं विकास संगठन (ओ.ई.सी.डी) के अनुसार किसी भी देश ने बुनियादी आय को ‘कामकाजी उम्र’ के लोगों के लिए आय समर्थन का एक प्रमुख स्तंभ नहीं माना है। भारत के अनपढ़ और बेरोजगारों की बड़ी फौज योजना से मिलने वाले लाभ को अपना अधिकार समझकर नाकारा हो सकती है।
कई देशों; जैसे अमेरिका और ईरान के एक छोटे से भाग में इस संकल्पना को प्रयोग में लाया गया है। कनाडा, फिनलैंड, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, न्यूजीलैंड, नामीबिया, स्कॉटलैण्ड और जर्मनी में भी ऐसी योजना को लागू किए जाने की कोशिश की जाती रही है।
योजना की आशंकाओं को देखते हुए अगर इसे एक हजार प्रतिमाह जैसी न्यूनतम राशि से शुरू किया जाए, तो निश्चित रूप से यह लागों की दरिद्रता को कम कर सकेगी। इससे कार्यबल में भी कमी नहीं आएगी। दूसरे, भूमिहीन किसानों को इससे अवश्य राहत पहुंचेगी।
विभिन्न समाचार पत्रों पर आधारित।