उच्च शिक्षा के प्रति सरकारी रवैया

Afeias
01 Mar 2019
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Date:01-03-19

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इस वर्ष भारतीय विज्ञान कांग्रेस के कार्यक्रम स्थल के रूप में पंजाब के एक निजी विश्वविद्यालय का चुना जाना, उच्च शिक्षा के प्रति सरकार की नीतियों में बदलाव को इंगित करता है। सरकार द्वारा अनुदान प्राप्त महिला महाविद्यालय एवं अन्य शिक्षा केन्द्र आज बंद होने के कगार पर हैं। प्रस्तावित जिओ संस्थान को अभी से ‘उत्कृष्ट संस्थान सूची’ में शामिल कर लिया गया है। सरकार के ऐसे कदम स्पष्ट करते हैं कि वह उच्च शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण को बढ़ावा देने में जुटी हुई है।

  • उच्च शिक्षा को अनुदान देने वाली संस्था विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को सरकार ने बंद करने की मुहिम चला रखी है। ऐसा करने के पीछे उसका विश्व व्यापार संगठन के सिद्धांतों पर चलने का इरादा लगता है, जो उच्च शिक्षा को व्यावसायिक नजरिए से देखता है।
  • 2015 में सरकार ने राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा के अलावा चलने वाली सभी फेलोशिप बंद कर दी। विरोध के बाद सरकार ने अपना निर्णय वापस लिया। लेकिन इसके तुरंत बाद अनुसूचित जाति / जनजाति के लिए चलाई जाने वाली राजीव गांधी और मौलाना आजाद फेलोशिप को रोक दिया गया।
  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय के उच्च शिक्षा पर किए गए सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि 2010-11 के 19.4 प्रतिशत की तुलना में 2017-18 में पंजीकरण, 25.8 प्रतिशत हो गया। लेकिन इस बीच संस्थान छोड़ने वाले विद्यार्थियों का कोई आंकड़ा नहीं दिया जाता है।
  • ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन की रिपोर्ट बताती है कि 2015-16 से उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षकों की भर्ती में भारी गिरावट आई है। पिछले तीन वर्षों में आरक्षित स्थायी पदों में यह गिरावट सबसे ज्यादा देखने में आती है।
  • इस तीन वर्ष की अवधि में 104 नए विश्वविद्यालय आए हैं, जिनमें से 66 निजी हैं।

सरकार की इन नीतियों के चलते युवा वर्ग में असंतोष पनप रहा है, जिसकी चर्चा अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने भी अपने भाषण में की थी। विद्यार्थियों ने इन नीतियों का विरोध करते हुए ‘यंग इंडिया अधिकार मार्च’ के नाम से फरवरी में एक रैली निकाली थी, जिसमें 40 संस्थानों के युवा शामिल हुए थे। इनकी मांगें बढ़े हुए शुल्क को कम करने, लैंगिक असमानता कानून, पाठ्यक्रम को भगवा-मुक्त रखने, रोजगार गारंटी, शिक्षण एवं अध्ययन हेतु अकादमिक और बौद्धिक स्वतंत्रता आदि से संबंधित थीं।

भारत के प्रत्येक युवा नागरिक को उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है। सार्वजनिक शिक्षा की मांग के लिए उठ खड़े होने का यही सही समय है।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित देवादित्य भट्टाचार्य और रीना रामदेव के लेख पर आधारित। 4 फरवरी, 2019