डब्ल्यूटीओ में डिजिटल सेवा-कर में छूट से लाभ-हानि पर विचार
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विश्व व्यापार संगठन की बैठक की समाप्ति में भारत डिजीटल सेवाओं के शुल्क मुक्त व्यापार पर समझौते को समाप्त करने की इच्छा रखता है। यह भारत के लिए भी हानिकारक हो सकता है।
कुछ बिंदु –
- फिलहाल भारत को सेवाओं के विस्तार से वैश्विक स्तर पर बहुत लाभ होने की संभावना है। इसका विस्तार प्रमुख रूप से डिजिटल व्यापार के रूप में होगा। इसी में लगभग 25 वर्षों तक कर स्थगन का प्रावधान रखा गया था।
- ई-कॉमर्स, मनोरंजन और सॉफ्टवेयर जैसी सेवाओं के आयात पर छोड़ा गया कर, भारत की प्रौद्योगिकी सक्षम सेवाओं के निर्यात की मात्रा का एक अंश मात्र होगा। अतः इसके प्रतिशोध में भारत को अन्य क्षेत्रों में बढे हुए टैरिफ का सामना करना पड़ सकता है। उदाहरण के लिए माइक्रोचिप सेवा की श्रेणी में नहीं हो सकते। अतः जो देश इसका आयात करेंगे, उन्हें भारी शुल्क देना पड़ सकता है।
- इन स्थितियों को संभालने के लिए भारत को चाहिए कि वह मैरिट के आधार पर डिजिटल सेवाओं की सूची को मान्यता दिलवाए। जैसे, डिजिटल गेम्स को बायोमेडिकल रिसर्च के बराबर की कर-श्रेणी में रखा जाना चाहिए या नहीं? ये दोनों ही गतिविधियों ऑनलाइन चलती हैं, लेकिन इनके महत्व के आधार पर इन्हें कर-छूट की श्रेणी में डाला जाना चाहिए।
फिलहाल, डेटा का आदान-प्रदान तेजी से बढ़ चुका है। यह वैश्विक माल व्यापार के लगभग आधे मूल्य तक तो पहुँच ही चुका है। इस पर नियम बनाने का यह सही समय है। भारत को इसमें अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 27 फरवरी, 2024
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