विवाह की वैधता पर न्यायालय का निर्णय

Afeias
20 May 2024
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हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने हिंदू विवाह में अपेक्षित विवाह समारोह या सप्तपदी की अनिवार्यता को रेखांकित किया है। और कहा है कि इसके बिना हिंदू विवाह अमान्य है।

न्यायालय की ओर से दिए गए कुछ बिंदु –

  • न्यायालय ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत विवाह की कानूनी आवश्यकताओं और पवित्रता को स्पष्ट करने की कोशिश की है। 
  • न्यायालय ने जोर दिया है कि हिंदू विवाह की वैद्यता के लिए उचित संस्कार और समारोह जरूरी हैं।
  • विवाद की स्थिति में समारोह के प्रमाण पेश करना जरूरी होगा।
  • न्यायालय ने यह भी कहा है कि अपेक्षित विवाह समारोह के बिना मात्र पंजीकरण से विवाह वैध नहीं हो जाता है।
  • न्यायाधीशों ने यह भी घोषणा की है कि ‘विवाह‘ केवल गायन और नृत्य और ‘खाने-पीने‘ के लिए कोई आयोजन नहीं है।

न्यायालय की यह नई व्यवस्था कितनी मान्य ?

न्यायालय का यह निर्णय विवाह से जुड़ी अनेक मान्यताओं के लिए बहुत निराशाजनक है। हमारे देश में अलग-अलग प्रांतों से जुड़ी विवाह की अनेक रीतियां हैं। जरूरी नहीं कि उनमें सप्तपदी और न्यायालय द्वारा अपेक्षित संस्कारों का पालन किया जाता हो।

इसके अलावा ‘कोर्ट मैरिज’ के प्रावधान का क्या होगा? यह तो न्यायालय द्वारा प्रदत्त विवाह का एक तरीका ही है न।

दूसरी ओर, हिंदू विवाह अधिनियम ने समय के साथ-साथ स्वयं ही विवाह की अनेक प्रथाओं को धूमिल कर दिया है। इसमें कर्नाटक की अलियासंतना और केरल की मरूमक्कथयम जैसी मातृवंशीय प्रथाएं हैं, जो लगभग लुप्तप्राय हो चुकी हैं।

कुल मिलाकर, हमें स्पेशल मैरिज एक्ट के एक नए संस्करण की आवश्यकता है, जहाँ सरकार कानून और नागरिकों के बीच इंटरफेस की तरह काम कर सके, और उनका मार्गदर्शन कर सके।

विभिन्न समाचार पत्रों पर आधारित। 3 मई, 2024