विश्व स्तर पर नैतिक नेतृत्व का निर्बाध पतन और भारत
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वैश्विक संघर्षों और लोकतांत्रिक पतन के दौर में लोकतांत्रिक दुनिया में राजनीतिक नेतृत्व का प्रश्न अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गया है। फिलहाल, ऐसे नेतृत्व को बढ़ावा देना जरूरी है, जो अपरंपरागत शक्ति से ऊपर न्याय को महत्व दे।
भारतीय लोकतंत्र, कई उतार-चढ़ावों और विद्रोहों से गुजरा है। इसके बाद यह नेताओं के परिश्रम और निस्वार्थ प्रयासों से समृद्ध हुआ है। इसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया। उन्होंने हमारे लिए परिवर्तनकारी नेतृत्व का अर्थ परिभाषित किया। उनकी राजनीति सत्ता के बंधनों से अप्रभावित थी। इसी ने उन्हें अन्याय के विरूद्ध एक स्थायी अहिंसक संघर्ष का सूत्रपात करने में सक्षम बनाया।
नैतिक राजनीति की गांधीवादी विरासत के उत्तराधिकारी और ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के अपने लोकाचार से संपन्न भारत को हर जगह न्याय की रक्षा में अग्रणी होना चाहिए। अपनी आर्थिक मजबूती, परमाणु क्षमता और क्षेत्रीय शक्ति का दर्जा भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता से समझौता किए बिना अंतरराष्ट्रीय नैतिकता का पालन करने में सक्षम बनाता है।
इस चुनौतीपूर्ण समय में, हमें अपने सर्वोच्च नेताओं से प्रेरणा लेते हुए आगे बढ़ना होगा। राष्ट्रीय लक्ष्यों और वैश्विक शांति की सेवा में अपने नेतृत्व की विशेषता दिखानी होगी। हमारे नेताओं को राजनीतिक प्रक्रियाओं के केंद्र में गरिमा दिखानी होगी। सामूहिकता की भावना को पुनर्जीवित करना होगा। विखंडन और भय के इस दौर में आशा का प्रतीक बनना होगा।
राष्ट्र के इतिहास के इस मोड़ पर घरेलू और बाहरी चुनौतियां सामाजिक सदभाव के लिए खतरा बन रही हैं। दूसरी ओर, सत्ता के पेंडुलम में विघटनकारी बदलाव सामाजिक संतुलन की परीक्षा ले रहे हैं। इस समय हमें ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है, जो मजबूत और करुणामय हो, दृढ़ लेकिन समझौतावादी हो। तथा महत्वपूर्ण मुद्दों पर लोकतांत्रिक सहमति के लिए प्रयास करते हुए निर्णायक हो।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 8 जुलाई 2025