विश्व में लोकतंत्र की गिरती स्थिति

Afeias
24 Dec 2020
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Date:24-12-20

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परिवर्तन समय का सार हुआ करता है। अक्सर हमें यह बताया जाता है कि किस प्रकार सत्ता अधिकारी लोग गहरे आत्मनिरीक्षण के बाद महत्वपूर्ण निर्णय लिया करते हैं। हालांकि वर्तमान में होने वाली घटनाएं इस बात की गवाह हैं कि आज के जगत में यह सच नहीं है। यह संभवतः 21वीं सदी के ‘सत्य का क्षण’ है।

अमेरिका के विभाजन से परे –

उदारवादियों और रूढ़िवादियों के बीच होने वाले तीक्ष्ण से तीक्ष्णतर विवादों को ही लोकतंत्र के लिए खतरा उत्पन्न करने का दोषी नही माना जाना चाहिए। आज विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र में धोखाधडी का बोलबाला है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप अपनी हार मानने को तैयार नहीं है, और इसके लिए तरह-तरह के दांव-पेंच इस्तेमाल में ला रहे है। ऐसे प्रयास तानाशाही में ही होते देखे गए हैं। चुनावों में अपनी जीत को सिद्ध करने के लिए हद से नीचे गिर जाना और अमेरिकी जनता के बड़े भाग का फिर भी उनको समर्थन देना बताता है कि यही आज के जगत की ‘सच्चाई’ है। यह न केवल अमेरिका, बल्कि पूरे विश्व का सच है।

यूरोप की समस्या –

दुनिया का अधिकांश हिस्सा अनेक प्रकार की समस्याओं से जूझ रहा है। यूरोप कोविड-19 की दूसरी और तीसरी लहर से जूझ रहा है। अमेरिका में नेतृत्व परिवर्तन के साथ यह उम्मीद करना बेकार है कि वह वैश्विक राजनीति में पहले की तरह सक्रिय रहेगा। ब्रेक्जिट की अनिश्चितता, ब्रिटेन और यूरोप दोनों को नुकसान पहुंचाएगी। पुतिन के अधीन वाला रूस अपनी सैन्य ताकत के बावजूद भविष्य की अनिश्चितता से ग्रस्त होता जा रहा है।

फ्रांस के मूल्य तेजी से बदल रहे हैं। अन्य यूरोपीय देशों की तुलना में यह कुछ अधिक नाजुक दौर से गुजर रहा है। हाल ही में वहां होने वाले आतंकवादी हमलों ने दीर्घकाल से चली आ रही धर्मनिरपेक्षता की भावना को कुचल दिया है।

आतंक की वापसी –

इन स्थितियों ने आतंकवाद की सनक को गहरा कर दिया है। एक नए जोश के साथ आतंकवाद फिर से सिर उठा रहा है। हाल के कुछ सप्ताहों में इसने फ्रांस और आस्ट्रिया में हमलों को अंजाम दिया हैं। आई एस में भर्ती नए युवा अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में अधिक खतरनाक हैं। वे प्रतीकवाद को भडकाऊ हिंसा के साथ जोड़ते हुए लोकतंत्रों के लिए जबर्दस्त खतरा बन चुके हैं।

भारत का मामला –

भारतीय लोकतंत्र भिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहा है। चुनावों की प्रकृति ध्रुवीकरण की ओर बढ़ती जा रही है। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर से संबंधित विरोध फिलहाल कुछ शांत है। जम्मू-कश्मीर में यूं तो शांति छाई हुई है, परंतु नीचे-नीचे आग सुलग रही है। राजनैतिक स्तर पर सात दलों की ‘गुपकार घोषणा’ जैसे समझौते किए जा रहे हैं।

भारत का बाहरी वातावरण अशांत है। पाकिस्तान से निरंतर चलने वाले तनाव के साथ चीन का अनावश्यक सीमा विवाद आ खड़ा हुआ है। आर सी ई पी से भारत की विमुखता के अंजाम बहुत सकारात्मक दिखाई नहीं पड़ते। अफगानिस्तान में भी भारत की भूमिका संकुचित होती जा रही है।

चीन का लक्ष्य –

दुनिया के लोकतंत्रों के बीच होते विघटन के विपरीत चीन में हाल-फिलहाल किसी विघटनकारी परिवर्तन की संभावना दिखाई नहीं देती है। उल्टे, 2022 में होने वाली 20वीं पार्टी कांग्रेस के बाद झीनपिंग के और मजबूत होने की संभावना है। इससे 2035 तक चीन एक महाशक्ति का अवतार ले लेगा।

पूरे विश्व में आज लोकतंत्र की स्थिति गंभीर बनी हुई है। साइकोमेट्रिक तकनीकों और आर्टिफिशियल इंटेलीजेस के माध्यम से लोकतंत्र के विचार को और भी विकृत किया जा रहा है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित एम. के. नारायणन् के लेख पर आधारित। 20 नवम्बर, 2020

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