विनिर्माण आधारित निर्यात आगे का रास्ता है
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- भारत में विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए विदेशी निवेश को बहुत प्रोत्साहित किया जा रहा है। लेकिन यह ऐसे समय पर किया जा रहा है, जब निवेश पर आधारित विकास का चीनी मॉडल ध्वस्त होता दिखाई दे रहा है।
- फिलहाल विदेशी निवेशकों की रूचि भारत की ओर ही है, और वे चाहते हैं कि भारत विश्व के लिए निर्माण-केंद्र बने। इसी कड़ी में ऐप्पल का उदाहरण सामने है। कंपनी ने भारत सहित एशिया में अपनी आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाने का निर्णय लिया है। इसमें भारत भी शामिल है।
- भारत ने भी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए बुनियादी ढांचे में नवीनता लाने का प्रयास किया है। भारत के लिए यह खतरनाक भी हो सकता है, क्योंकि इस प्रकार का चीनी मॉडल अपनी सीमाएं दिखा रहा है।
- दरअसल, आर्थिक उत्पादन में विनिर्माण की हिस्सेदारी स्थिर रही है। ऊर्जा क्रय के कारण लगातार व्यापार घाटा हो रहा है। कृषि से निकले अतिरिक्त श्रम बल को सेवाओं में खपाने की गुंजाइश नहीं है। इन सभी समस्याओं के लिए मजबूत विनिर्माणजनित निर्यात ही एकमात्र समाधान हो सकता है।
- सरकार अब निजी निवेश को पुनर्जीवित करने के लिए घरेलू बचत का एक बड़ा हिस्सा बुनियादी ढांचे में लगा रही है। पुर्नसंतुलन बनाने के लिए मांग को उपभोग से हटाकर निवेश की ओर ले जाया जा सकता है।
- चीन से सबक लेते हुए संतुलित विकास के लिए भौतिक निवेश के साथ-साथ सामाजिक निवेश को भी महत्व दिया जाना चाहिए।
फिलहाल, विनिर्माण को बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचे की तत्काल आवश्यकता है। आगे चलकर, सामाजिक सुरक्षा का एक ऐसा जाल बनाने पर जोर दिया जाना चाहिए, जो उपभोग को ऊपर से नीचे तक बढ़ा सके।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 23 जनवरी, 2024
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