वास्तविक बुद्धिमत्ता से ए आई का संचालन

Afeias
11 May 2021
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Date:11-05-21

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हम अक्सर बुद्धिमत्ता का वर्णन किसी कार्य को करने या बड़ी दक्षता के साथ किसी समस्या को हल करने की क्षमता के रूप में करते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के विकास और चौथी औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के साथ ही यह दृष्टिकोण बदल रहा है। भाप और बिजली की तरह ही पूरे समाज और वित्त, संचार, चिकित्सा अनुसंधान, अंतरिक्ष अन्वेषण और जलवायु विज्ञान जैसे क्षेत्रों पर इसका प्रभाव परिवर्तनकारी है।

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से जुड़ी अनेक चिंताएं आज मुंह बाए खड़ी हैं। इस तकनीक के लागू होने के साथ ही रोजगार के कम होने की चिंता बढ़ गई है। जहां रिट्रीटिंग और रीस्किलिंग से रोजगार समाधान संभव है, वहाँ ए आई का हमारे दिमाग पर हावी होते जाना समस्यापूर्ण है।

एल्गोरिदम को मानव की सरलता और जटिलताओं को समझने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है और इनमें हेर-फेर किया जा सकता है। विचारों की उत्तेजना और ध्रुवीकरण के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

ए आई आधारित निगरानी और हथियार भी चिंता का विषय हैं। ये नैतिकता या सहानुभूति की आवाज नहीं सुन सकते। मानवना इस तकनीक को कैसे संभाल सकती है, यह एक बड़ा प्रश्न है। इस तकनीक से जितना कल्याण हो सकता है, उतना ही नुकसान हो सकता है।

इसका उत्तर कोई मुश्किल नहीं है। इसके लिए वैश्विक विशेषज्ञ ए आई को मूल्यों के साथ विकसित करने पर जोर देते हैं। मशीनों को सुपरह्यूमन इंटेलीजेंस या अलौकिक बुद्धि देने के बजाय, हमें ऐसी विनम्र मशीनों की आवश्यकता है, जो हमारी इच्छाओं के बारे में अनिश्चित रहें, और हमारे अनुकूल चल सकें। इसी तरह से एल्गोरिदम का निर्माण इस उद्देश्य से किया जाना चाहिए कि कोई भी सामाजिक संप्रदाय, तकनीक की वजह से अलग-थलग न पड़ जाए। जलवायु विज्ञान और महामारी नियंत्रण जैसी कल्याणकारी योजनाओं में ए आई का न्यायसंगत इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

महत्वपूर्ण यह भी है कि ए आई को प्रकृति आधारित रखा जाए, जहां सामूहिक कल्याण, व्यक्तिगतहित से अधिक महत्वपूर्ण हो। यह सिद्धांत प्रकृति के सबसे स्थिर और कुशल समुदायों को रेखांकित करता है, और इसलिए अब वैज्ञानिक चींटी और मछली के जीवनों का अध्ययन करके ए आई को विकसित करने का प्रयत्न कर रहे हैं।

इस असाधारण वैज्ञानिक यात्रा में मानवता को सहयोग की भावना की याद दिलाई जानी चाहिए। इसी सहयोग की भावना ने भारी उपलब्धियों को संभव बनाया है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ के इवोक संस्करण से अनुवादित। 13 मार्च, 2021