वैवाहिक बलात्कार का अपवाद होना कितना सही
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भारतीय दंड संहिता, 1860 में धारा 375 वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी से बाहर रखती है। भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 63 भी ऐसा ही मानती है। फिलहाल उच्चतम न्यायालय इस पर विचार कर रहा है कि ऐसा प्रावधान कहीं असंवैधानिक तो नहीं है। ऐसा इसलिए सोचा जा रहा है, क्योंकि –
– इससे विवाहित महिला एक अविवाहित महिला के समान कानूनी सहायता पाने से वंचित है।
– इससे एक विवाहित महिला को विवाहित पुरुष के समान दर्जा नहीं मिल रहा है।
– इससे विवाहित महिला के निजता के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है।
केंद्र सरकार ने वैवाहिक बलात्कार अपवाद प्रावधान को बनाए रखने हेतु एक हलफनामा दायर किया है। सरकार के तर्क हैं-
– विवाह के भीरत सेक्स पारस्परिक वैवाहिक अधिकारों पर आधारित होते हैं। सहमति – असहमति के विचारों से इसकी तुलना नहीं की जानी चाहिए।
– प्रावधान को हटाने से भारतीय वैवाहिक संस्था में हस्तक्षेप होगा।
– पति – पत्नी के बीच असहमति वाले सेक्स से निपटने के लिए घरेलू हिंसा के विरूद्ध कानून मौजूद है।
उच्चतम न्यायालय का पूर्व निर्णय –
2017 के अपने ऐतिहासिक निर्णय में न्यायालय ने इसे स्पष्ट रूप से गरिमा और गोपनीयता से जोड़ा था। निजता का मौलिक अधिकार ऐसा है, जिसे विवाह भंग नहीं कर सकता है।
इसके अलावा, केंद्र सरकार भी महिलाओं के सशक्तीकरण को मुख्य नीति बनाकर चलती है। तो फिर, वैवाहिक महिलाओं की यौन अस्वीकृति को इससे अलग करके क्यों देखा जा रहा है?
समाचार पत्रों पर आधारित। 05 अक्टूबर, 2024