वैश्विक विनिर्माण का केंद्र कैसे बने भारत ?
To Download Click Here.
परिचय –
देश का 75% व्यापार विनिर्मित वस्तुओं पर निर्भर है। गुणवत्ता युक्त विनिर्माण से निर्यात बढ़ता है। ‘मेक इन इंडिया’ पहल के कारण 99% मोबाइल, जो भारत में उपयोग हो रहे हैं, भारत में निर्मित हैं। हम विनिर्मित स्टील के विशुद्ध निर्यातक तथा नवीकरणीय ऊर्जा के चौथे उत्पादक हैं।
लेकिन 2014-2024 तक G.D.P. में विनिर्माण की हिस्सेदारी 15 से घटकर 13% हो गई। विनिर्माण निर्यात की हिस्सेदारी भी 78.1 से घटकर 64.6% हो गई है।
विनिर्माण की घटती भूमिका और निर्यात में कम योगदान के कारण –
कच्चे माल की अधिक लागत –
- कच्चे माल, ऊर्जा और कर्ज की अधिक लागत।
- कच्चे माल के आयात पर भारी शुल्क।
- कर्ज पर ब्याज दर की अधिक लागत।
जटिल श्रम कानून –
- व्यापार का बड़े कारोबारियों के पक्ष में न होना।
- 300 से अधिक कर्मचारियों वाली कंपनी में छटनी नहीं।
इसके विपरीत चीन, वियतनाम और बांग्लादेश के श्रम कानूनों में लचीलापन है।
लॉजिस्टिक का ऊँचा खर्च –
- विदेशी शिपिंग कंपनियों पर निर्भरता के कारण माल की आवाजाही पर खर्च बढ़ जाता है।
- भारतीय बंदरगाहों पर पानी इतना गहरा नहीं कि बडे जहाज वहाँ खड़े हो सकें।
- देश के भीतर माल ढुलाई की लागत सड़क परिवहन और कस्टम मंजूरी में देरी के कारण बढ़ जाती है।
हम इसीलिए असेंबलिंग (मोबाइल आदि) पर अधिक ध्यान देते हैं। 90% पुर्जे आयात करते हैं। ऊँची लागत और कारोबारी सुगमता की कमी भी परिधान, समुद्री उत्पादों तथा रत्नाभूषण जैसे अधिक श्रम वाले निर्यात को हानि पहुँचाती है।
आगे की राह –
- हमें कच्चे माल और ऊर्जा लागत कम करने के साथ श्रम कानूनों में सुधार करना होगा।
- कच्चे माल की लागत कम करने के लिए ‘की स्टार्टिंग मटीरियल्स’ पर लगने वाले आयात शुल्क और एंटी डंपिंग शुल्क पर विचार करना होगा।
- कागजी झंझट के बिना यदि एक जगह ‘नेशनल ट्रेड नेटवर्क’ स्थापित हो जाए, तो छोटे कारोबारी नियामक द्वारा मांगे जाने वाले सभी दस्तावेज ऑनलाइन ही दाखिल कर देंगे। इससे MSME’s भी निर्यातक बन सकेंगे।
- हमे ऐसी नीतियाँ बनानी चाहि जो किफायती और उत्पाद पर केंद्रित आपूर्ति श्रंखला बनाएं, जिससे कच्चा माल हासिल करना, माल की आवाजाही करना और सीमा शुल्क मंजूरी मिलना सुगम हो जाएं।
*****