उत्तर-दक्षिण विभाजन की दलील कितनी सही
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हाल ही के विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के सांसद की उत्तर-दक्षिण राज्यों की विभाजनकारी टिप्पणी उचित नहीं कही जा सकती है। इसके कुछ आधार हैं –
- अगर यह अभी हुए चुनावों में उत्तर भारतीय राज्यों में भाजपा को मिली सफलता पर आधारित है, तो यह गलत है। बीजेपी को उत्तर भारत में केवल खास गढ़ों की पार्टी कहा जा सकता है। वह बिहार, बंगाल, उड़ीसा के अलावा महाराष्ट्र (गठबंधन में है) में भी केंद्रीय पार्टी नहीं है। इस आधार पर यह विभाजन गलत है।
- सांसद की टिप्पणी इसलिए भी गलत है, क्योंकि अपने विश्वासों, खान-पान की आदतों या सांस्कृतिक प्रथाओं के लिए राज्यों के लोगों पर टिप्पणी करना उनका अपमान है।
- हमारे देश के विशाल परिदृश्य में राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जैसी अनेक विविधताएं और असंतुलन मौजूद हैं। राष्ट्र निर्माता इनसे जूझते रहे। इन सबके बावजूद भारत ने उल्लेनीय प्रगति की है। राजनीतिक प्राथमिकताएं क्षेत्र-दर-क्षेत्र भिन्न-भिन्न हो सकती हैं। दक्षिण और पश्चिम के राज्य आर्थिक रूप से आगे बढ़ रहे हैं, जबकि पूर्वी और उत्तरी राज्य जनसंख्या की दृष्टि से। इन अंतरों को देश की कटुता का स्रोत बनाने की बजाय, उन्हें इस प्रकार से समेटा जाना चाहिए कि प्रगति में मदद मिले।
यह अवश्य है कि असंतुलन के इन सवालों को असंबोधित नहीं छोड़ा जा सकता। लेकिन ये चर्चाएं सम्मानजनक होनी चाहिए। इसके लिए उत्तर-दक्षिण ध्रुवीकरण को बढावा देने वाले नेताओं की बिल्कुल जरूरत नहीं है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 9 दिसंबर, 2023
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