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उच्च शिक्षण संस्थानों को दान दिया जाना चाहिए
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वैसे सार्वजनिक शिक्षण संस्थान, शिक्षा की कम लागत के साथ, योग्यता-आधारित छात्रवृत्ति के विपरीत बाजार में चलने वाली ट्यूशन फीस पर भी प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को अपनी ओर खींच सकते हैं। वहीं दान और परोपकार के माध्यम से भी निधि एकत्रित की जा सकती है। दूसरे, सार्वजनिक संस्थानों में श्रेष्ठ पर टिके रहने की प्रवृत्ति को बाजार की मांग के अनुसार बदलने की जरूरत है।
वहीं, निजी क्षेत्र के उच्च शैक्षिक संस्थान आज देश में ज्यादा फैल चुके हैं, और वे सरकारी या सहायता प्राप्त कॉलेजों की तुलना में अधिक दाखिले दे रहे हैं। बस, इनको उत्कृष्ट सरकारी संस्थानों की छाया से बाहर निकलने की जरूरत है। निजी संस्थानों में भी दान और व्यवसायिक दृष्टिकोण के साथ लागत कम रखकर भी अच्छे परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
अभी तक भारत में दान और कार्पोरेट सहयोग के मामले स्कूली शिक्षा तक ही सीमित रहते आए हैं। अब इस प्रवृत्ति को बदलकर हमें उसे उच्च शैक्षणिक संस्थानों पर ले जाना चाहिए, क्योंकि हमें उच्च शिक्षा में ज्ञान को कौशल से जोड़ने की बहुत ज्यादा जरूरत है। स्कूली शिक्षा के मामले ऐसे हैं, जिन्हें केवल दान और परोपकार से प्राप्त धन से सुलझाया नहीं जा सकता है। लेकिन उच्च शिक्षण संस्थानों में इस राशि से सुधार जरूर किया जा सकता है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 26 जून, 2023