उच्च शिक्षा से जुड़े तीन सुधार
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भारत में उच्च शिक्षा में दुनिया का नेतृत्व करने की क्षमता है। लेकिन इसके लिए शिक्षा में गुणवत्ता चाहिए। गुणवत्ता के लिए हमारे शैक्षिक संस्थानों में (1) संकाय की गुणवत्ता (2) वित्तीय मॉडल और (3) शासन के मुद्दे को संबोधित किया जाना चाहिए।
1)
- यदि अमेरिकी शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता की बात करें, तो उनके टियर एक और टियर-दो संस्थानों और विश्वविद्यालयों के बीच बहुत अंतर नहीं है। भारत में भी ऐसा करने की जरूरत है।
- सरकारी संस्थानों में संकाय की भर्ती अक्सर कानूनी जटिलताओं में फंस जाती है। इससे अनुबंध पर शिक्षकों को नियुक्त करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
- शिक्षकों की भर्ती को योग्यता के आधार पर करने के लिए ग्रेड-1 संस्थानों के शिक्षकों का एक राष्ट्रीय पूल बनाया जाना चाहिएए जो ग्रेड-2 या टियर-2 संस्थानों में पढ़ाएं। ऐसे पूल से संस्थानों की उत्कृष्टता अपने आप बढ़ेगी।
2)
- संस्थानों को परिणाम से जुड़े अनुदान दिए जाएं।
- निधि को नामांकन संख्या, प्रतिस्पर्धी अनुसंधान, दायर किए गए पेटेंट, और उद्योगों को दिए गए आईपी लाइसेंस से जोड़ा जाना चाहिए।
- अमेरिकी विश्वविद्यालायों की तरह सतत् अक्षय निधि के विकास को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
- आस्ट्रेलिया के एचईएलपी कार्यक्रम की तरह ‘अभी पढ़ो बाद में भुगतान करोष’ योजना को लागू किया जाना चाहिए। इससे वे नौकरी होने पर अपनी ट्यूशन फीस अदा कर सकते हैं। इससे सरकार या छात्रों पर वित्तीय दबाव डाले बिना उच्च शिक्षा सुलभ हो जाती है।
3)
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता पर जोर देती है।
- एक मजबूत बोर्ड का निर्माण किया जाना चाहिए और उसे वित्तीय, प्रशासनिक और शैक्षणिक निर्णय लेने के लिए सशक्त बनाना चाहिए। इन उपायों से हमारे शिक्षण संस्थान निश्चित ही उत्कृष्ट बनेंगे।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित वी. रामगोपाल राव के लेख पर आधारित। 4 अगस्त, 2024
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