तिब्बतियों को भारतीय समर्थन
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- 1950 के दशक में जब चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया था, तब दलाई लामा और हजारों तिब्बतियों ने भारत में शरण ली थी।
- तभी से तिब्बती भारत में एक आदर्श समुदाय के रूप में रह रहे हैं।
- ये पूरे भारत में 39 बस्तियों और अनेक स्थानों पर वैध रूप से रह रहे हैं।
- इन्होंने भारत में अपने भोजन, चिकित्सा, संस्कृति और आध्यात्मिकता से हमारे सामाजिक परिवेश को समृद्ध किया है।
- भारत में तिब्बती स्वतंत्र रूप से अपने धर्म का पालन कर पाए हैं। जबकि चीन वहाँ छूट गए या बंदी बना लिए गए तिब्बतियों की संस्कृति का चीनीकरण कर रहा है।
- हाल ही में दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन पर भी चीन ने अपना दावा किया है। भारत ने इसका खंडन किया है, और कहा है कि इसका अधिकार भारत में रह रहे दलाई लामा को ही है।
- भारत में समय-समय पर शरणार्थियों को शरण दी है। भारत की विभिन्न सरकारों ने तिब्बतियों के लिए बहुत कुछ किया है। लेकिन रोजमर्रा की कई समस्याएं अभी भी बनी हुई हैं। उनको यात्रा संबंधी प्रतिबंधों का सामना करना पडता है। वे यहाँ संपत्ति नहीं खरीद सकते। अधिकांश को बैंक से ऋण नहीं मिल पाता और उच्च शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा तक उनकी पहुँच सीमित है। व्यावहारिक तरीकों से उनकी इस स्थिति में सुधार किया जा सकता है। तिब्बती हमारे निरंतर समर्थन के पात्र हैं।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 05 जुलाई, 2025