स्टार्ट-अप की संख्या बढ़नी चाहिए

Afeias
07 Oct 2021
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Date:07-10-21

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कुछ समय से बढते वैश्वीकरण और विशाल डिजिटल कंपनियों के प्रसार ने गूगल और फेसबुक जैसे कुछ दिग्गजों में धन और शक्ति के अत्यधिक संकेंद्रण की आशंका बढ़ा दी है। इस आशंका को निराधार साबित करने का एक ही तरीका है कि नए स्टार्ट-अप का तेजी से प्रसार हो। ऐसा हो भी रहा है। अब बहुत सी ऐसी यूनीकॉर्न कंपनियां आ गई हैं, जिनकी अनुमानित कीमत शेयर बाजारों में सूचीबद्ध होने से पहले ही एक अरब डॉलर से अधिक है।

पहले की कंपनियों को निवेशकों से बड़े पैमाने पर धन लेने के लिए अपनी लाभप्रदता साबित करनी पड़ती थी। पहले विकास धीमा और सतर्क था, लेकिन अब वैश्विक उद्यम पूंजी और निजी इक्विटी फंड आ गए हैं, जो दुनिया भर में अच्छे स्टार्ट-अप में अरबों रुपए लगाने को तैयार हैं। इन स्टार्ट-अप से यही अपेक्षा की जाती है कि वे लाभ की चिंता किए बिना प्रसार पर ध्यान दें। निवेशकों की नई प्रजाति एक प्रकार से राजस्व वृद्धि पर दांव लगा रही है। इसमें अल्पावधि में भारी नुकसान होता है, परंतु लंबे समय में मुनाफा होता है।

हालांकि डॉटकॉम बूम और बस्ट जैसे स्टार्टअप ने दिखाया है कि कई स्टार्ट-अप बंद हो सकते हैं। लेकिन कुछ इतिहास में सबसे बड़े बन जाएंगे। यही कारण है कि नए वैश्विक निवेशकों ने अपना जाल चौड़ा कर दिया है। इसका लक्ष्य कुछ सफल स्टार्ट-अप से लाभ प्राप्त करना है, ताकि असफल होने वाले अन्य की भरपाई की जा सके।

किसी भी स्टार्ट अप में वैश्विक वेंचर कैपिटल और निजी फंडिंग के साथ आशंका बनी रहना स्वाभाविक है कि वह कंपनी का अधिग्रहण कर सकते हैं। जैसे फ्लिपकार्ट को वॉलमार्ट ने अधिग्रहित किया है। इस प्रकार का अधिग्रहण या किसी प्रमोटर को बेचे जाने में भी स्टार्ट अप को हानि नहीं होती है। अब तक वह इतनी पूंजी कमा चुका होता है कि वह स्वयं फाइनेंसर बन सकता है। यह विदेशी फाइनेंसरों पर भारतीय निर्भरता को कम करता है। यह अपने अनुभवों से नवागंतुकों की मदद भी करता है। इससे रचनात्मक धन के प्रसार में तेजी लाने में मदद मिलती है।

बहुत से आलोचक सोचते हैं कि भारत में बहुत अधिक अरबपति हैं, और उनकी संख्या को बढ़ने से रोकना चाहते हैं। इसके बजाय करोड़पतियों की संख्या को बढ़ाकर भी असमानताओं को कम किया जा सकता है। इसका अर्थ समतल को ऊंचा करना होगा, नीचा नहीं। इसी में देशहित होगा।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित स्वामीनाथन एस अंकलेसरैया अय्यर के लेख पर आधारित। 26 सितंबर, 2021