शहरों में बढ़ते कचरे की समस्या
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आधुनिक अर्थव्यवस्था में अनचाहे उत्पाद के तौर पर लगातार बढ़ता कचरा विश्व स्तर पर दोनों कारकों; पारिस्थितिकी तंत्र और लोगों के स्वास्थ्य के समक्ष गंभीर चुनौती खड़ी करता है। विश्व बैंक का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक वैश्विक स्तर पर 3.4 अरब टन तक अपशिष्ट पैदा होगा। यह मौजूदा वार्षिक स्तर 2.01 अरब टन से बहुत ज्यादा है।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक भारत में प्रतिवर्ष लगभग 6.2 करोड़ टन कचरा उत्पन्न होता है। इसमें करीब 4.3 करोड़ टन कचरा संग्रहित कर लिया जाता है, जबकि शेष 3.1 करोड़ टन लैंडफिल में डाला जाता है।
बढ़ते कचरे के मुख्य कारण –
1) लगातार उभरते शहरीकरण, जनसंख्या वृद्धि और उपभोक्तावादी जीवनशैली
2) कचरें में उठान के बुनियादी ढाँचे का व्यापक तौर पर अभाव है।
3) आज भी निबटान की पारंपरिक विधियाँ अपनाई जाती है।
बढ़ते कचरे से होने वाले प्रभाव –
1) खुली और गंदी लैंडफिल साइट पेयजल को दुषित करती है, जिससे संक्रमण एवं बीमारियाँ फैलने का खतरा रहता है।
2) औद्योगिक अथवा ई-कचरे से निकलने वाले जहरीले यौगिक शहरी निवासियों के साथ-साथ पर्यावरण को भी नुकसान पहुँचाते हैं।
3) रिहायशी बस्तियाँ भी इस समस्या से परेशान हैं।
4) कचरा कुप्रबंधन के कारण वायु और जल दोनों प्रदूषित हो रहे हैं। नतीजतन जलवायु संकट खड़ा हो रहा है, जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है।
आगे की राह –
1) इस समस्या का समाधान रिसाइक्लिंग (पुनर्चक्रण) और चक्रीय अर्थव्यवस्था सिद्धांत अपनाने समेत टिकाऊ अपशिष्ट प्रबंधन में ही निहित है। इससे पर्यावरण की सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक लाभ भी होंगे।
2) स्वीडन का नवीकरणीय वेस्ट टू एनर्जी यानी कूड़े से ऊर्जा कार्यक्रम वहाँ लैंडफिल साइट को कम करने में काफी कारगर साबित हुआ है।
3) इसी प्रकार जर्मनी का मजबूत पुनर्चक्रण बुनियादी ढांचा इस बात का उदारहण है कि कैसे चक्रीय आर्थिक सिद्धांत अपनाकर कचरे को कम किया जा सकता है।
4) सरकारी नीतियाँ ऐसी हों, जो कचरा निपटान के टिकाऊ उपायों को प्रोत्साहित करें। हरित प्रौद्ययोगिकी और चक्रीय माँडल व्यवसाय केंद्रित होना चाहिए।
5) आम लोगों को भी उपभोग और अपशिष्ट निपटान के लिए अधिक ईमानदार दृष्टिकोण अपनाना होगा।
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