शहरी श्रमिकों हेतु एक विचार

Afeias
23 Dec 2020
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Date:23-12-20

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कोविड-19 से उपजे संकट ने शहरों में रहने वाले निर्धनों की समस्याओं पर हम सबका ध्यान आकर्षित किया है। कोविड के चलते होने वाले लॉकडाउन ने उनकी जीविका के साधन छीन लिए और वे बड़े स्तर पर पलायन करने लगे। सामान्य स्थितियों में भी शहरी निर्धनों के पास रोजगार के बहुत अवसर नहीं होते हैं। जबकि किसी भी प्रकार की आपदा से उनका जीवन सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। इसके समाधान के रूप में उन्हें रोजगार-आधारित ऐसा सहयोग दिया जा सकता है, जो उन्हें अपने जीवन को सुरक्षित बनाने में मदद कर सके।

एक सरल प्रस्ताव – डी यू इ टी

विकेंद्रीकृत शहरी रोजगार एवं प्रशिक्षण योजना, (डिसेंट्रलाइज्ड अर्बन एम्प्लायमेन्ट एण्ड ट्रेनिंग – डीयूइटी) के माध्यम से केंद्र और राज्य सरकारें चाहें तो ‘जॉब स्टेम्प’ या ‘रोजगार टिकट’ निकाल सकती हैं। ऐसा एक टिकट न्यूनतम वेतन पर एक दिन के काम के लिए दिया जा सकेगा। इनका वितरण सरकारी या सार्वजनिक संस्थानों द्वारा किया जा सकता है।

टिकट रखने वाले संस्थान या कार्पोरेशन को अधिकार हो कि वह इसके बदले किसी ऐसे कार्य के लिए बाहरी व्यक्तियों को काम पर लगा सके, जिसे उनके बजट या सिस्टम के अंतर्गत नहीं किया जा सकता हो। ‘रोजगार टिकट’ के माध्यम से काम का भुगतान सीधे कर्मचारी के खाते में चला जाए। इस प्रकार से कार्य संपन्न कराने या श्रमिकों-कर्मचारियों की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए कोई एजेंसी तय की जा सकती है।

योजना के लाभ –

  • संभावित नियोक्ताओं की बड़ी संख्या को सक्रिय करना।
  • स्पेशल स्टाफ की आवश्यकता नहीं रह जाएगी।
  • काम में उत्पादकता का स्तर बढ़ेगा।
  • मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित होगी।
  • संभवतः वे अन्य लाभों के हकदार होंगे।

ऐसा देखा जा रहा है कि अनेक राज्यों को सार्वजनिक स्थानों के रखरखाव में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। वे सभी इस योजना से लाभान्वित हो सकेंगे।

  • योजना में महिलाओं को पार्ट टाइम रोजगार देने पर विचार किया जा सकता है। इससे कार्यबल में महिलाओं की संख्या बढ़ सकेगी। शहरी क्षेत्रों में रहने वाली निर्धन महिलाओं को ऐसे रोजगार की बहुत आवश्यकता होती है। इससे उनकी आत्मनिर्भरता और आर्थिक मजबूती बढ़ेगी।
  • योजना में कुशल श्रमिकों के लिए अलग विकल्प रखने से शहरी क्षेत्रों में रहने वाले बढ़ई, इलैक्ट्रीशियन , मिस्त्री आदि को अच्छी मजदूरी पर अधिक काम मिल सकेगा।

डीयूइटी की तरह अनेक पश्चिमी देशों में घरेलू सहायकों के लिए ‘सर्विस वाउचर’ योजना चलाई जाती है। इन पर भारी सब्सिडी दी जाती है। इससे नियोक्ता और कर्मचारी दोनों को ही लाभ मिलता है।

डीयूइटी का विचार अपने आप में एक सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना लेकर चलता है, जिसे सार्वजनिक संस्थानों के प्रमुखों को निहित रखकर चलना होगा। तभी इसकी सार्थकता सिद्ध हो सकती है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित ज्यां द्रेज के लेख पर आधारित। 8 दिसंबर, 2020