संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को भारत की आवश्यकता क्यों है ?
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हाल ही में 77वीं यूनाइटेड नेशन्स जनरल एसेंबली या यूएनजीए या संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक संपन्न हुई है। यह भारत और विश्व में उसके स्थान को लेकर महत्वपूर्ण मोड़ हो सकती है। साथ ही विश्व निकाय के संदर्भ में भी भारत की आवाज को स्थापित कर सकती है। प्राथमिकताओं की ईमानदारी से पैरवी करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में इस बात की अभिव्यक्ति की है कि दुनिया को अब क्या चाहिए और क्या नहीं चाहिए।
महत्वपूर्ण वक्तव्य –
भारतीय प्रधानमंत्री यूएनजीए की न्यूयार्क बैठक में शामिल नहीं हुए थे। लेकिन उन्होंने शंघाई कार्पोरेशन ऑर्गेनाइजेशन की समरकंद की बैठक में खुलकर कहा कि विश्व को युद्ध नहीं चाहिए, और इसके लिए सभी संप्रभु राष्ट्रों को एक साथ काम करने की आवश्यकता है।
प्रभाव –
भारत के इस स्पष्ट वक्तव्य ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता की मांग को पुख्ता कर दिया है। इसके चलते भारत को उन देशों से पुनः समर्थन मिला है, जो लगभग एक दशक से इस मांग का समर्थन करते रहे हैं। यह अच्छा संकेत है, क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि विभिन्न मुद्दों पर भारत की स्थिति अलग होने पर भी सम्मानित है।
दरअसल, भारत को दोनों पक्षों पर खेलते हुए एक व्यापक दृष्टिकोण बनाने में अपनी असमर्थता से बचना चाहिए। यह तभी संभव हो सकता है, जब संप्रभु देशों से संबंधित चुनौतियों के मामले में भारत अपनी संलग्नता स्पष्ट करे। यूएनजीए की 77वीं बैठक ही वह अवसर है, जब भारत ऐसा कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की दिसंबर में होने वाली आगामी बैठक में भारत अपनी पारंपरिक चाल के साथ यह दिखा सकता है कि एक स्थायी सदस्य के रूप में वह क्या कर सकता है, और क्या किया जाना चाहिए।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 23 सितम्बर, 2022