संघ बनाम केंद्र सरकार
Date:14-07-21 To Download Click Here.
हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने अपने सरकारी कामकाज में ‘केंद्र सरकार’ के प्रयोग को हटाकर ‘संघ सरकार’ को स्थान दिया है। संविधान के प्रति जागरूकता लाने की दिशा में यह उसका पहला कदम है। संविधान के अनुच्छेद एक में इसके निर्माताओं ने बड़ी ही संजीदगी से लिखा है कि “इंडिया, जो भारत है, को राज्यों का एक संघ होना चाहिए।’’ संविधान के 22 भागों में अंतर्निहित 395 अनुच्छेदों में कहीं भी ‘केंद्र सरकार’ का प्रयोग नहीं किया गया है। हमारे पास सिर्फ ‘संघ’ है, और ‘राज्य’ हैं। संघ को राष्ट्रपति के अधीन मंत्रि-परिषद् (प्रधानमंत्री के नेतृत्व में) के साथ कार्यपालिका की शक्तियां दी गई हैं।
भले ही हमारे पास संविधान में ‘केंद्र सरकार’ का कोई संदर्भ नहीं है, लेकिन सामान्य खंड अधिनियम, 1897 इसकी परिभाषा देता है। संविधान के लागू होने के बाद सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए, “केंद्र सरकार” का अर्थ राष्ट्रपति से है। इसलिए असली सवाल यह है कि क्या ‘केंद्र सरकार’ की ऐसी परिभाषा संवैधानिक है, क्योकि संविधान स्वयं केन्द्रीकरण की शक्ति को मंजूरी नहीं देता है।
13 दिसंबर, 1946 को जवाहर लाल नेहरु ने संकल्प करते हुए विधानसभा के उद्देश्यों को प्रस्तुत किया कि भारत “स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य” में शामिल होने के इच्छुक क्षेत्रों का एक संघ होगा। एक सशक्त देश बनाने के लिए विभिन्न प्रांतों और क्षेत्रों के समेकन और संगम पर जोर दिया गया था।
संविधान सभा के कई सदस्यों की राय थी कि ब्रिटिश कैबिनेट मिशन योजना के सिद्धांतों को अपनाया जाना चाहिए। इस योजना में केंद्र की सीमित शक्तियों के साथ, प्रांतों के पास पर्याप्त स्वायत्तता थी। कश्मीर की हिंसा ने संविधान सभा को अपने दृष्टिकोण को संशोधित करने के लिए मजबूर किया और इसने एक मजबूत केन्द्र के पक्ष में संकल्प लिया। संघ से राज्यों के अलग होने की संभावना ने संविधान के प्रारूपकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए दबाव डाला कि भारतीय संघ ‘अविनाशी’ है। मसौदा समिति ने ‘संघ’ शब्द का इस्तेमाल राज्यों के अलगाव के अधिकार को नकारात्मक करने के लिए ही किया था। अम्बेडकर ने ‘राज्यों के संघ’ के प्रयोग को यह कहते हुए उचित ठहराया कि हालांकि भारत को एक संघ होना था, लेकिन चूंकि यह एक समझौते का परिणाम नहीं था, इसलिए किसी भी राज्य को इससे अलग होने का अधिकार नहीं है।
‘राज्यों के संघ’ के प्रयोग को सभी सदस्यों की स्वीकृति नहीं मिली थी। यहाँ तक कहा गया था कि अंबेडकर ने इस पर स्पष्टीकरण दिया था कि, “संघ , एक अस्पष्ट रिश्ते में एकजुट राज्यों की एक लीग नहीं है, न ही राज्य संघ की एजेंसियां हैं, जो इससे शक्तियां प्राप्त करती हैं। संघ और राज्य दोनों संविधान द्वारा व्युत्पन्न हैं। दोनों में से कोई एक दूसरे के अधीन नहीं है……. एक का अधिकार दूसरे के साथ समन्वित है।”
संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा सरकार के कार्यकारी अंग तक ही सीमित नहीं है। न्यायपालिका को भी इस प्रकार से डिजाइन किया गया है कि उसका उच्च न्यायालयों पर कोई अधीक्षण न हो। यद्यपि सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय क्षेत्राधिकार है, परंतु न्यायालयों और न्यायाधिकरणों को उसके अधीनस्थ घोषित नहीं किया जाता है। बल्कि उच्च न्यायालयों के पास जिला और अधीनस्थ न्यायालयों पर अधीक्षण की शक्ति होने के बावजूद विशेषाधिकार रिट जारी करने की व्यापक शक्तियां हैं। संसद और विधानसभाएं अपनी सीमाओं को पार नहीं करने के लिए चौकस रहती हैं । हालांकि संघर्ष होने पर केन्द्रीय संसद ही प्रबल होती है।
संविधान सभा के सदस्य संविधान में ‘केन्द्र’ या ‘केंद्र सरकार’ शब्द का प्रयोग न करने के लिए बहुत सतर्क थे, क्योंकि उनका उद्देश्य एक इकाई में शक्तियों के केन्द्रीकरण की प्रवृत्ति को दूर रखना था। ‘संघ सरकार’ या ‘भारत सरकार ’ का एक एकीकृत प्रभाव है, क्योंकि इसके माध्यम से यह संदेश दिया जाना है कि सरकार सभी की है। भले ही संविधान की संघीय प्रकृति इसकी मूल विशेषता है और इसे बदला नहीं जा सकता है। फिर भी यह देखना अभी शेष है कि क्या सत्ता चलाने वाले नेता हमारे संविधान की संघीय विशेषता की रक्षा करना चाहते हैं ?
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित मुकुंद पी. उन्नी के लेख पर आधारित। 24 जून, 2021