सामाजिक शांति की विचारधारा अभी भी काम कर रही है
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इस आम चुनाव के नतीजों से यह प्रमाणित हो गया है कि भारत की हजारों साल पुरानी सभ्यता आज भी जीवित है। परिणामों ने नफरत की राजनीति पर लगाम लगाई है।
भगवान राम का आह्वान और चुनाव –
1984 में एक धर्मनिरपेक्ष दल के रूप में मात्र दो लोकसभा सीटों से 2019 में 303 सीटों तक भाजपा यात्रा करती रही। 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से ऐसा वातावरण बनाया गया कि 2024 के निकट आ रहे आम चुनाव में इसका प्रभाव जमा रहे। राम जन्म स्थान को लेकर की गई आडवाणी की रथ यात्रा का उद्देश्य भी पूरी तरह से राजनीतिक था। 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के साथ ही भाजपा नेताओं ने चुनावी जीत का रास्ता साफ माना होगा। लेकिन 1993 के चुनाव नतीजों में उन्हें वैसा कुछ लाभ नहीं मिला था। 1998 में पहली भाजपा सरकार का गठन राम मंदिर आंदोलन नहीं, बल्कि सत्तारूद गठबंधन में कलह के कारण हुआ था।
2024 के चुनाव में अयोध्या में भाजपा की हार, अपने आप में चुनावी राजनीति और भगवान राम के आह्वान के बीच की खराब कड़ी को दर्शाती है। इस चुनाव के नतीजे बताते हैं कि भारतीय मतदाता ने नफरत, फूट डालो और राज करो की राजनीति के प्रति घृणा व्यक्त की है।
एक सतत् विरासत –
इन चुनाव परिणामों ने दिखा दिया है कि हमारी मध्ययुगीन समय की सभ्यता आज भी प्रमुख है। इसने हमें कई संत कवियों एवं भक्तों की विरासत दी है। इन संतों ने एक सार्वभौमिक ईश्वर की अवधारणा करके देवताओं के तनावपूर्ण धार्मिक विभाजन को शांत किया है। यही विरासत आज भी कायम है। यह हमारी सांस्कृतिक शक्ति भी है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित हरबंस मुखिया के लेख पर आधारित। 14 जून, 2024