रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण
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भारत ने संयुक्त अरब अमीरात के साथ स्थानीय मुद्राओं में व्यापार के लिए समझौता किया है। रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की दिशा में भारत का यह दूसरा बड़ा कदम है। भारत ने पिछले साल रूस के साथ कच्चे तेल का सौदा रुपये में किया था। अब यूएई से ऐसा समझौता करने से भारतीय रुपये को लाभ मिलेगा, क्योंकि अमेरिका और चीन के बाद यूएई ही भारत का तीसरा बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
भारत अपनी मुद्रा को कैसे और अधिक स्वीकार्य बना सकता है, और ऐसा क्यों किया जाना चाहिए, कुछ बिंदु –
- रुपये से होने वाला व्यापार निर्यातकों को विनिमय दर से राहत देता है।
- दूसरा कारण भारत का बढ़ता चालू खाता घाटा है।
- जब तक भारत अपनी मुद्रा को व्यापार योग्य नहीं बनाता है, तब तक भारत की प्रगति, डॉलर जैसी हार्ड करेंसी को ही लाभ पहुँचाएगी। इससे भारत की विकास दर में गिरावट आ सकती है।
- रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण का सबसे कठिन चरण पूंजी नियंत्रण से संबंधित है। व्यापारिक बाधाओं को दूर करने से ज्यादा जरूरी पूंजी नियंत्रण पर काम करना है। पूंजी खाते को मुक्त करने से पहले चालू खाते का उदारीकरण किया जाना चाहिए।
लेकिन भारत का रवैया फिलहाल संरक्षणवादी हो गया है। अगर सरकार ने जैसी संभावना व्यक्त की है, वैसा विनिर्माण से जुडा निर्यात नहीं हो पाता है, तो पूंजी के आउटफ्लो को ढील देने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 17 जुलाई, 2023
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