आरबीआई की नवीनतम मौद्रिक नीति से जुड़े कुछ बिंदु

Afeias
22 May 2024
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  • इस नीति की उल्लेखनीय विशेषता ‘मौसम की चरम घटनाओं’ और ‘जलवायु परिवर्तन के झटकों’ को प्राथमिकता देना है। ये घटनाएं न केवल खाद्य मुद्रास्फीति को प्रभावित करती हैं, बल्कि सामान्य ब्याज दर या नेचुरल रेट ऑफ इंटरेस्ट पर भी व्यापक प्रभाव डालती हैं। इससे अर्थव्यवस्था की वित्तीय स्थिरता प्रभावित होती है। (सामान्य ब्याज दर केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीतिलीवर से संबंधित है। यह मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखते हुए उसे अधिकतम आर्थिक उत्पादन बनाए रखने की अनुमति देती है।)
  • रिपोर्ट में एक ‘न्यू-कीनेसियन मॉडल’ का उल्लेख किया गया है। इसमें वास्तव में होने वाले जलवायु खतरे की क्षति से जुड़ा कार्यक्रम शामिल है। इसका उपयोग जलवायु परिवर्तन के काल्पनिक व्यापक आर्थिक प्रभाव बनाम जलवायु परिवर्तन परिदृश्य का अनुमान लगाने के लिए किया जा रहा है।
  • रिपोर्ट में यह चेतावनी भी दी गई है कि जलवायु शमन नीतियों के अभाव में 2050 तक दीर्घकालिक आर्थिक उत्पादन लगभग 9% कम हो सकता है।
  • रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर इससे जन्मी मुद्रास्फीति की तेजी से जड़ जमा लेती है, तो यह मुद्रास्फीति की उम्मीदों को कमजोर कर सकती है और आरबीआई की विश्वसनीयता को कम करने से मुद्रास्फीति के संतुलन के लिए उच्च ब्याज दरों की आवश्यकता होगी। इससे उत्पादन-हानि होगी।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि अपने नेट जीरो लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भारत को 2070 तक 17 खरब डॉलर की आवश्यकता होगी।

अन्य देशों की हरित विकास नीतियों से सीख –

  • यूरोपियन सेंट्रल बैंक ने हरित अर्थव्यवस्था का ढांचा खड़ा करने के लिए पूरे यूरोजोन आर्थिक वेल्यू चेन के लिए ग्रीन टैक्सोनॉमी की शुरूआत की है। ग्रीन टैक्सोनॉमी एक ढांचा है, जो आर्थिक गतिविधि की स्थिरता संबंधी साख और संभावित रैंकिंग का आकलन करता है।
  • बहुत से आसियान देशों में भी ग्रीन टैक्सोनॉमी की शुरूआत की जा चुकी है।

हमारे यहाँ भी 16,000 करोड़ रुपये के सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड जारी किए गए हैं। विदेशी संस्थागत निवेशकों को भविष्य की ग्रीन प्रतिभूतियों में भाग लेने की अनुमति दी गई है। अब भारत को स्तरित ग्रीन टैक्सोनॉमी को शुरू करने पर भी प्रशासनिक विचार-विमर्श करना चाहिए।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 29 अप्रैल, 2024