प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाया जाना चाहिए
Date:06-07-21 To Download Click Here.
हाल के दौर के अनुभवों से ऐसा कहा जा सकता है कि धनी और शक्तिशाली देश, महामारी के संकट से निपटने में अपेक्षाकृत सक्षम रहे हैं। वे अपने नागरिकों को बेहतर और त्वरित सुविधांए भी मुहैया करा सके हैं। इस संदर्भ में स्वास्थ, शिक्षा, सफाई और पोषण की चुनौतियों से निपटने का एक ही मार्ग है कि वह औपचारिक क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में वृद्धि करके प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोत्तरी करे।
इस हेतु संरचनात्मक परिर्वतनों की आवश्यकता है, जो शहरीकरण, कौशल विकास, औद्योगीकरण तथा वित्तीयकरण आदि से जुड़े हुए हैं। यहाँ इनसे जुड़े पाँच बिंदुओं पर चर्चा की जा रही है –
- टेक होम वेतन बढ़ाएं – कर्मचारी अंशदान को स्वैच्छिक बनाने के लिए ईपीएफ अधिनियम के खंड 6 और ई एस आई एस अधिनियम के खंड 39 को संशोधित करना चाहिए। वेतन व्यक्तिगत संपत्ति है। वेतन की कटौती को बचत से अधिक नहीं रखा जा सकता।
- नियमनों में कटौती हो – राज्य और केंद्र सरकार में नियोक्ता नियामक अनुपालन की भरमार है। इसमें बदलाव भी लाए जा रहे हैं। हाल ही में पंजाब ने 479 अनुपालन रद्द किए हैं। क्रेंदीय मंत्रालय भी इस ओर कदम बढ़ा रहे हैं।
- व्यापक रोजगार योग्यता – कोविड ने शिक्षा को नुकसान पहुंचाया है, लेकिन ऑनलाइन सीखने, बिना परीक्षा के मूल्यांकन और कौशल विकास को तेज कर दिया है। इसी कड़ी में हर विश्वविद्यालय को ऑनलाइन शिक्षा के लिए तुरंत लाइसेंस दिया जाना चाहिए। डिग्री अपरेंटिस को सक्षम बनाना और कौशल विकास विश्वविद्यालयों को वैध बनाना भी जरूरी कदम होना चाहिए।
- सिविल सेवा सुधार में तेजी लाना – प्रदर्शन आधारित पदोन्नति, फ्रंट लोड प्रशिक्षण, विशेषज्ञता को महत्व, आदि बिंदुओं पर सिविल सेवा में सुधार की समय-सीमा तय की जानी चाहिए।
- निजीकरण करें – निजीकरण करने के जिस एजेंडा को लेकर सरकार चल रही है, उसे जल्द पूरा किया जाना चाहिए। मजबूत निवेशक और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का लाभ उठाकर सरकारी कर्ज पर नियंत्रण रखा जा सकता है।
अभी तक हमने अपने समाजवादी आर्थिक इतिहास को संशोधित नहीं किया है। औपचारिक, निजी, गैर-कृषि रोजगार सृजन में आगे बढ़ने के लिए इसे बदला जाना चाहिए। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि हम जो हैं, उसके लिए हम जिम्मेदार हैं, और हमारे पास खुद को वह बनाने की शक्ति है, जो हम स्वयं बनना चाहते हैं। भारत गरीब है, लेकिन ऐसा होना जरूरी नहीं है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित मनीष सबरवाल के लेख पर आधारित। 7 जून, 2021